Gaganvat : Sanskrit Muktakon Ka Sweekaran
Author:
Mukund LaathPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
'स्वीकरण’ शब्द मेरा नहीं, पुराना है—12वीं सदी के काव्याचार्य राजशेखर का है। मैंने शब्द 'कविता का एक भाषा से दूसरी भाषा में काव्यानुवाद’—इस अर्थ में लिया है। राजशेखर ने 'स्वीकरण’ का प्रयोग इसे 'हरण’ से व्यावृत्त—अलग—करने के लिए किया है। राजशेखर कहते हैं कि नई कविता बनती ही पुरानी चली-आती कविताओं की परम्परा के भीतर है—यों पुरानी कविता को 'ले लेना’ कोई बुरी बात नहीं—बल्कि अनिवार्य है। पर उसे सचमुच 'अपना लेना’ उपाय-कौशल चाहता है। राजशेखर ऐसे उपायों का विस्तार से वर्णन करते हैं। इसके लिए पुरानी कविता का रूपान्तर आवश्यक था जो कई तरह से किया जा सकता था, जिन्हें राजशेखर खोल कर दिखाते हैं। 'स्वीकरण’ शब्द राजशेखर ने गढ़ा था। पर इसके पीछे जो धारणा है, विचार है, वह 'ध्वन्यालोक’ के विख्यात लेखक, भाषा में एक नए अर्थलोक—व्यंजना—के द्रष्टा, महत् दार्शनिक आनन्दवर्धन का है। आनन्दवर्धन अपने ग्रन्थ में ध्वनि (व्यंजना) की शास्त्रीय स्थापना करने के बाद पूछते हैं कि यह जो स्थापना हुई है, यह क्या शास्त्रमात्र-सार नहीं? इससे कवि को क्या लाभ? उत्तर देते हुए आचार्य कहते हैं कि मनुष्य के चित्त में जितने भाव हैं, पुरानी कविता में उनकी सक्षम अभिव्यक्ति हो चुकी है, आज का कवि नया क्या कर सकता है? पर कविता तो नई ही होती है। आनन्दवर्धन की दृष्टि में यह नयापन व्यंजना का ही नयापन होता है। पुरानी कविता की व्यंजना बदल दी जाए तो कविता नई हो जाती है।</p>
<p>मेरे अनुवाद इन पुराने रास्तों पर नहीं चलते। 'स्वीकरण’ मेरे लिए अनूदित कविता का रूपान्तरण नहीं, उलटे उस कविता के स्वरूप-स्वभाव को, भाव-मर्म को बजा रखते हुए उसे एक नई भाषा में उतारना है। एक बात और कहना चाहूँगा। संस्कृत कविता मुक्तक-प्रधान है। बड़ी कविताओं में, महाकाव्यों में भी, यह प्रवृत्ति देखी जा सकती है। मैंने अपने 'अनुवचन’ में मुक्तक पर कुछ लम्बी चर्चा की है। पाठक उसे देखेंगे तो इन कविताओं में उसकी पैठ बढ़ सकती है। </p>
<p>—प्रस्तावना से</p>
<p> </p>
<p>संस्कृत काव्य की विपुलता और वैभव का अक्सर ज़िक्र होता है। मुकुन्द लाठ उन बिरले कवि-चिन्तकों में से हैं जिन्होंने इस काव्य के अपार लालित्य को हिन्दी में सुघरता और संवेदनशीलता से लाने की कोशिश की है। राजशेखर के हवाले से वे इन्हें 'स्वीकरण’ कहते हैं। वे इस अर्थ में स्वीकरण हैं भी कि उन्हें पढ़ते लगता है कि आप मूल हिन्दी कविता ही पढ़ रहे हैं। हमें प्रसन्नता है कि हम रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत इस संचयन को एक बार फिर हिन्दी पाठकों के समक्ष रसास्वादन के लिए ला रहे हैं। </p>
<p>—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9789388753111
Pages: 197
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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विश्वनाथप्रसाद तिवारी के कवि-कर्म के सरोकारों की गहरी छानबीन की जाए तो उसकी मुख्य थीम में तीन प्रस्थान-बिन्दु चिह्नित होते हैं—स्वाधीनता, स्त्री-मुक्ति और मृत्यु-बोध। ग़ौर से देखें तो उनकी समूची काव्य-यात्रा इन तीन प्रस्थान-बिन्दुओं को लेकर गहन अनुसन्धान करती हैं। इन तीनों जीवन-दृष्टियों का बोध वे भारतीय अन्त:करण से करते हैं। स्त्री-अस्मिता की खोज उनके कवि-कर्म के बुनियादी सरोकारों में सबसे अहम है। उनकी कविता के घर में स्त्री के लिए जगह ही जगह है। उनकी दृष्टि में स्त्री के जितने विविध रूप हैं, वे सब सृष्टि के सृजनसंसार हैं।
उनके कवि की समूची संरचना देशज और स्थानीयता के भाव-बोध के साथ रची-बसी है, काव्यानुभूति से लेकर काव्य की बनावट तक। भोजपुरी अंचल में पले-पुसे और सयाने हुए विश्वनाथ के मनोलोक की पूरी संरचना भोजपुरी समाज के देशज आदमी की है। उनकी कविताओं में इस समाज का आदमी प्राय: विपत्ति में लाठी की तरह दन्न से तनकर निकल आता है।
Deewan-E-Meer
- Author Name:
Ali Sardar Zafari
- Book Type:

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मीर तक़ी मीर भारतीय कविता के उन बड़े नामों में से हैं, जिन्होंने लोगों के दिलो-दिमाग़ में स्थान बनाया हुआ है। अपनी शायरी को दर्द और ग़म का मज़मूआ बताते हुए मीर ने यह भी कहा है कि मेरी शायरी ख़ास लोगों की पसन्द की ज़रूर है, लेकिन ‘मुझे गुफ़्तगू अवाम से है।’ और अवाम से उनकी यह गुफ़्तगू इश्क़ की हद तक है। इसलिए उनकी इश्क़िया शायरी भी उर्दू शायरी के परम्परागत चौखटे में नहीं अँट पाती। इन्सानों से प्यार करके ही वे ख़ुदा तक पहुँचने की बात करते हैं, जिससे इस राह में मुल्ला-पंडितों की भी कोई भूमिका नज़र नहीं आती। यही नहीं, मीर की अनेक ग़ज़लों में उनके समय की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों तथा व्यक्ति और समाज की आपसी टकराहटों को भी साफ़ तौर पर रेखांकित किया जा सकता है, जो उन्हें आज और भी अधिक प्रासंगिक बनाती हैं।
दरअसल मीर की शायरी भारतीय कविता, ख़ास कर हिन्दी-उर्दू की साझी सांस्कृतिक विरासत का सबसे बड़ा सबूत है, जो उनकी रचनाओं के लोकोन्मुख कथ्य और आम-फहम गंगा-जमुनी भाषायी अन्दाज़ में अपनी पूरी कलात्मक ऊँचाई के साथ मौजूद है।
Pratinidhi Shairy : 'Majaz' Lakhnavi
- Author Name:
Majaz Lakhnavi
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‘मजाज़’ की गिनती उन थोड़े से शायरों में की जा सकती है जिन्होंने कम उम्र में ही ऐसी शोहरत हासिल की कि आगे आनेवाली सारी नस्लें उनकी शायरी पर सर धुनें। ‘मजाज़’ की ख़ासकर ‘आवारा’ जैसी नज़्में तो भाषा की तमाम दीवारें तोड़कर व्यापक रूप से तमाम साहित्य–प्रेमियों के दिलों में अपनी जगह बना चुकी हैं। ‘मजाज़’ की शायरी उस दौर की शायरी है जब उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द अदब का आन्दोलन रफ़्ता– रफ़्ता अपने लड़कपन से शबाब की ओर बढ़ रहा था। आज़ादी की जंग और उसी के साथ तरक़्क़ीपसन्द अदब की सारी आशा–निराशा, उसके उतार–चढ़ाव, उसके सारे दु:ख–दर्द, ख़ुशियाँ, उसकी सारी उमंगें और उसका सारा आदर्शवाद कला के स्तर पर ‘मजाज़’ की शायरी में साफ़ दिखाई देते हैं, और यही सब तत्त्व हैं जिन्होंने ‘मजाज़’ को इनसान की क़ुव्वत और उसके सुनहरी मुस्तक़बिल में भरोसा रखना सिखाते हुए उनसे ‘ख़्वाबे–सेहर’ और ‘रात और रेल’ जैसी ख़ूबसूरत नज़्में कहलवार्इं। और यही कारण है कि जहाँ तरक़्क़ीपसन्द मुसन्निफ़ीन की अंजुमन को दुनिया के रंगमंच से विदा हुए कोई आधी सदी का अरसा गुज़र चुका है, वहीं उसकी बेहतरीन पैदावारों में से एक के रूप में ‘मजाज़’ की शायरी आज भी अपने पूरे तबो–ताब के साथ हमारे सामने आती है, और ज़िन्दगी-भर दर्दो–रंज से निहाल रहनेवाला यह ‘शायरे–आवारा’ अपने तमाम दर्दो–रंज से ऊपर उठकर दुनिया और दुनिया के सारे दुखों पर छा जाता है।
एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
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