Chautha Shabda
Author:
Parmanand SrivastavPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
‘उजली हँसी के छोर पर’ (1960) और ‘अगली शताब्दी के बारे में’ (1981) संग्रहों के बाद परमानंद श्रीवास्तव की कविताओं का तीसरा संग्रह ‘चौथा शब्द’ एक दशक से कुछ अधिक के अन्तराल पर प्रकाशित हो रहा है। कविता के इतिहास में यह बीता हुआ दशक कविता के लिए ही कठिन समय बनकर उपस्थित नहीं हुआ, शब्द या अभिव्यक्ति के सभी रूपों और माध्यमों के लिए और सबसे अधिक मानवीय अस्तित्व के लिए, मनुष्य द्वारा अर्जित समस्त मूल्य सम्पदा के लिए चुनौती बनकर उपस्थित हुआ। यह दौर बीता नहीं है बल्कि आज और अधिक भयावह प्रश्नों और शंकाओं से घिरा है। परमानंद श्रीवास्तव ने कविता के बाहर भी शब्द के पक्ष में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में, मानवीय मूल्यों के पक्ष में लगातार संघर्ष किया है और कविता के भीतर भी धीमी शान्त ऐन्द्रिकता, राग संवेदना और जीवन के प्रति सहज आसक्ति मात्र से सन्तुष्ट न होकर ऐसा उत्तेजक नाटकीय</p>
<p>शिल्प विकसित किया है जो कविता के पाठकों के रूप में अपने समाज के प्रति सीधा सम्बोधन है।</p>
<p>परमानंद श्रीवास्तव के इस संग्रह में ‘इन दिनों’, ‘साध्वियों’, ‘बटोर’ जैसी कविताएँ अपने कठिनतम समय के मुख्य संकट को न किसी शब्द-छल से छिपाती हैं, न ख़तरनाक ताक़तों को सीधे लक्ष्य करने से बचती हैं। इसके बाद भी परमानंद श्रीवास्तव कविता के अपने विन्यास या रूप-तंत्र के प्रति कितने सजग हैं, इसका अनुमान सहज ही किया जा सकता है। ‘चौथा शब्द’ में उनका अनुभव-संसार अधिक विस्तृत है और स्थितियों, चरित्रों तथा समय की त्रासदियों को देखने-समझने की दृष्टि भी अधिक विकसित और सचेत है। ‘वह अघाया हुआ आदमी‘, ‘फ़ुर्सत में’, ‘अपरिचित', ‘सहपाठी मिले एक दिन’ जैसी कविताएँ एक तरह के कथातन्तु का आश्रय लेती हैं जबकि ‘स्त्री सुबोधनी’ जैसी कविता मानवीय अनुभव और भाषा के स्रोतों तक जाने के लिए एक विलक्षण लोकरंग प्राप्त करती है। स्त्री की यातना के अनुभव प्रत्यक्ष कई कविताओं मे दर्ज हैं। यह कविता भी उसी अनुभव को अतीत की यातनापूर्ण यादों में जोड़कर देखने की सार्थक कोशिश है। परिप्रेक्ष्य-सम्पन्न कविताओं के लिए यह संग्रह ज़रूर ही पाठकों के बीच देर तक चर्चा में रहेगा और शायद आनेवाली कविता का संकेत भी देगा।
ISBN: 9788171783434
Pages: 17
Avg Reading Time: 1 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Yogita Warde
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- Description: जब हमने हँसते-मुस्कुराते हमेशा की तरह 2020 में प्रवेश किया, तब कहाँ पता था कि हमारी आने वाली ज़िंदगी में हमें एक बीमारी के चलते 'लॉकडाउन' में रहना पड़ेगा। लॉकडाउन हम सभी के लिए कठिन दौर रहा, जहां हमारे ऊपर क्या-क्या गुजरा, हमें किन-किन चीजों का नया अनुभव हुआ। किस तरह हम कहीं आ-जा नहीं सकते थे। किस तरह हम घरों में रहने पर मजबूर हुए। किस तरह हँसना-रोना, बिछड़ना, तकलीफें, स्कूल बंद रहे, वर्क फ्रॉम होम किया। किस तरह मजदूरों की घर वापसी हुई, वहीं बच्चे अपनी नानियों के घर नहीं जा सके। किस तरह हम डिज़िटल दुनिया में बीस साल आगे हो गए। किस तरह हमारी ज़िन्दगी में सोशल मीडिया ने अहम रोल निभाया। किस तरह हमने अपने परिवार के साथ समय बिताया। कहीं किसी की शादी का टूटना, कहीं किसी का साथ हमेशा के लिए छूटना। इन सभी अनुभवों का लेखा-झोखा है यह किताब.... 'कुकर की सीटी' में छह नाटकों का संकलन है, जो कि लॉकडाउन पर आधारित हैं।
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