Sadi Patthron Ki
Author:
Narendra MauryaPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
Book
ISBN: 9789390593354
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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अन्तिम चरण में रघुवीर सहाय की कविता पहले जैसी चित्रमय नहीं रही पर उसमें उनकी निरालंकार शैली में, मूर्तिमत्ता है—वह पारदर्शिता जो उनकी कविता की विशिष्टता रही है, अधिक उत्कट, सघन और तीक्ष्ण हुई है। भाववाची को, जैसे ग़ुलामी, रक्षा, मौक़ा, पराजय, उन्नति, नौकरी, योजना, मुठभेड़, इतिहास, इच्छा, आशा, मुआवज़ा, ख़तरा, मान्यता, भविष्य, ईर्ष्या, रहस्य आदि को, बिना किसी लालित्य या नाटकीयता का सहारा लिए, और निरे रोज़मर्रा को कुछ अलग ढंग से देखने की कोशिश में रघुवीर सहाय जैसा सच-ठोस-सजीव बनाते हैं, वह एक बार फिर सिद्ध करता है कि उनके यहाँ जीने की सघनता और शिल्प की सुघरता में कोई फाँक नहीं थी। कविता जीने का, इसके आशयों को आत्मसात् करने और सोचने का ढंग है—कविता जीवन का दर्शन या अन्वेषण या उसकी अभिव्यक्ति नहीं है—वह जीवन है उससे तदाकार है।
कविता अपने विचार बाहर से उधार नहीं लेती, बल्कि ख़ुद सोचती है, अपनी ही सहज-कठिन प्रक्रिया से अपना विचार अर्जित करती है—रघुवीर सहाय की कविताएँ कविता की वैचारिक सत्ता का बहुत सीधा और अकाट्य साक्ष्य हैं। हिन्दी के विचार-प्रमुख दौर में इस कविता-वैचारिकता का ऐतिहासिक महत्त्व है।
इस संग्रह में पहले के संग्रहों की छोड़ दी गई कुछ कविताएँ भी शामिल हैं और इस तरह यह संग्रह रघुवीर सहाय की कविता की यात्रा को पूर्ण करता है। अपनी मृत्यु के बाद भी रघुवीर सहाय लगातार तेजस्वी और विचारोत्तेजक उपस्थिति बने हुए हैं। उनका एक समय था पर आज ऐसे बहुत से हैं जो मानते हैं कि हिन्दी में सदा उनका समय रहेगा।
—अशोक वाजपेयी।
Nai Konplen
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Naqsh-E-Fariyadi
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Faiz Ahmed 'Faiz'
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- Description: ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पहला कविता-संग्रह है जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। मुहब्बत और इन्क़लाब का जो अटूट अपनापा आगे चलकर फ़ैज़ की समूची शायरी की पहचान बना, उसकी बुनियाद इस संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसमें बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक की उनकी तहरीरें शामिल हैं, जब फ़ैज़ युवा थे और उनका दिलो-दिमाग़ एक तरफ़ ‘ग़मे-जानाँ’ से तो दूसरी तरफ़ ‘ग़मे-दौराँ’ से एक साथ वाबस्ता हो रहा था। स्वाभाविक ही है कि इस संग्रह के शुरुआती हिस्से में ग़मे-जानाँ का रंग गहरा नज़र आता है, जो आख़िरी हिस्से में पहुँचते-पहुँचते ग़मे-दौराँ के रंग में मिल जाता है। और तब फ़ैज़ लिखते हैं, ‘मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग’। गोकि इस सोच की शिनाख़्त शुरुआती हिस्से की तहरीरों में भी नामुमकिन नहीं है। मगर अहम बात यह है कि फ़ैज़ एलान करते हैं कि ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ एक ही तजुर्बे के दो पहलू हैं। यही वह एहसास है, जिससे उनकी शायरी तमाम सरहदों को लाँघती हुई पूरी दुनिया के अवाम की आवाज़ बन गई है। ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ इस एहसास का घोषणापत्र है।
Kahin Koi Darwaja
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Ashok Vajpeyi
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Description:
अशोक वाजपेयी की 2009 से 2012 के दौरान लिखी गई कविताओं का यह संग्रह फिर उनकी अथक जिजीविषा, सयानी और संयत परिवर्तनशीलता, कविता तथा शब्द की सम्भावना और सीमा को स्पष्टता और निर्भीकता से अंकित करने का सशक्त साक्ष्य है। उनका अदम्य जीवनोल्लास और उतना ही उनके अन्तर में बसा अवसाद फिर शब्द-प्रगट है।
वे अपनी लगभग अकेली और अद्वितीय राह नहीं छोड़ते। उस पर आत्मविश्वास से चलते हुए वे कई अप्रत्याशित मानवीय अभिप्राय और दृश्य उकेरते-खोजते हैं। हमारे समय में अन्तःकरण की विफलता, नागरिकों के लहू-रिसते घाव, सदियों से हिलगी हताश प्रार्थनाएँ, अपने निबिड़ शून्य में सिसकता ब्रह्मांड, चकाचौंध के फिसलन-भरे गलियारों में अनसुना विलाप आदि सभी उनकी कविता में दर्ज हैं पर यह उम्मीद भी कि कहीं कोई दरवाज़ा खुलता है। यह कविता नाउम्मीद अँधेरे से इनकार नहीं करती पर उम्मीद का दामन भी नहीं छोड़ती। यह संग्रह एक वरिष्ठ कवि की एक अधसदी से लम्बी कविता-यात्रा का एक नया और भरोसेमन्द मुकाम है।
Pran-Bhang Tatha Anya Kavitayen
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Ramdhari Singh Dinkar
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- Description: ं वर्तमान संग्रह को अपनी प्रारम्भिक रचनाओं का संग्रह बनाना चाहता था और इसका मुख्य रूप वही है भी। किन्तु पुरानी बहियों को उलटते-पलटते समय कुछ कविताएँ और मिल गईं, जिन्हें प्रारम्भिक रचनाएँ तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु जो उसी न्याय से प्रकाश में आने के योग्य हैं, जिस न्याय से कवि की प्रारम्भिक रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं।' दिनकर जी के इस कथन से स्पष्ट है कि यह उनकी प्रारम्भिक कविताओं का संग्रह है। बावजूद इसके यह उनका एक ऐसा संग्रह भी है जिसके महत्त्व को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में उल्लेख किया है। प्रस्तुत संग्रह में एक लघु खंड काव्य 'प्रण-भंग' नाम से है जो महाभारत युद्ध में घटित श्रीकृष्ण के शस्त्र-ग्रहण की घटना पर आधारित है जिसे दिनकर जी ने खुद 'जयद्रथ-वध' के अनुकरण पर लिखा गया माना है। इस खंड काव्य में परम्परा और आधुनिकता का अन्तर्विरोध अपनी तार्किकता के साथ है। यही नहीं, इसमें भक्ति भी अपनी आस्था के साथ रूपायित हुई है। ‘प्रण-भंग’ के अलावा संग्रह की स्फुट कविताओं–‘शहीद अशफाक के प्रति’, ‘वायसराय की घोषणा पर’, ‘महात्मा गांधी’, ‘शहीदों के नाम पर’, ‘मूक बलिदान’, ‘तपस्या’, ‘शहीद’ आदि–में हम स्वर्णिम अतीत के प्रति संवेदनशीलता और अपने यथार्थ के प्रति अन्तर्विरोध को गहरे लक्षित कर सकते हैं। वहीं पुस्तक के अन्त में संगृहित अट्ठाईस क्षणिकाओं में सामाजिक पीड़ा और सांस्कृतिक चिन्तन है, तो सत्ता की शोषक-प्रवृत्ति के प्रति धारदार नज़रिया भी है जिसे इन पंक्तियों में देखा जा सकता है–‘राजा/तुम्हारे अस्तबल के/घोड़े मोटे हैं।/प्रजा भूखी और नंगी है।/घोड़ों को कोई अभाव नहीं।/लेकिन लोगों को हर तरफ़ की तंगी है।’ ‘प्रण-भंग और अन्य कविताएँ’ संग्रह के बारे में दिनकर जी के ही शब्दों को लेकर कहें तो यह उनके 'सम्पूर्ण काव्य-यात्रा पर प्रकाश डालता है
Shoknach
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R. Chetankranti
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Description:
महत्त्वपूर्ण कवि आर. चेतनक्रांति का यह पहला संग्रह जवाबदेह भाषा और फ़ॉर्म के साथ-साथ हिन्दी कविता के समकालीन परिदृश्य में नए मुहावरे ईज़ाद करने के कारण अपनी मौलिक पहचान बनाता है।
चेतन की भाषा में एक ख़ास तरह का व्यंग्य है जो विडम्बनाओं एवं विद्रूपताओं की खिल्ली उड़ाता चलता है। जो लोग कविता (साहित्य) को मनोरंजन की चीज़ समझते हैं, उन्हें चेतन की कविताएँ निराश करेंगी क्योंकि ये कविताएँ पाठकों का टाइम पास नहीं करतीं, बल्कि रचनात्मक उत्तेजना और बेचैनी से भर देती हैं।
अपने कठिन समय की जटिल मानव-स्थितियों की ज़रूरी पड़ताल करती ये कविताएँ उन अवरोधक शक्तियों की भी शिनाख़्त करती हैं जो सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन की सहजता को अपने ढंग से नियंत्रित करना चाहती हैं। कवि के गहरे सरोकारों के दायरे में रिक्शेवाले, दैनिक वेतनभोगी, भूखे बच्चे एवं भूकम्प पीड़ित हैं तो दूसरी तरफ़ ‘सीलमपुर की लड़कियाँ’ भी हैं जिन्होंने अपनी हज़ारसाला पुरानी आत्माओं को उतारकर चुपके से एक नया सपना देखने का जोखिम उठाया है।
चेतन कविता और औसत राजमार्ग से अलग इस कठिन समय में अपनी रचनात्मक बेचैनी के साथ एक अलग और नया रास्ता बनाते हैं जो क़तार के आख़िरी आदमी के सपनों तक पहुँचता है और उसकी संवेदना से स्वयं को जोड़ता है। लेकिन चेतन अनुभूतियों के ही नहीं, दृढ़ विचारों और स्पष्ट ‘विज़न’ के कवि हैं।
Noopilan Ki Mayra Payabi
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Geeta Gairola
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- Description: Hindi poems by Geeta Gairola
Nahin
- Author Name:
Pankaj Singh
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अपने ऐतिहासिक समय को वंचित मनुष्यता की पीड़ा और संघर्ष के गहरे सरोकारों की केन्द्रीयता के साथ परिभाषित करती कविता का यह संकलन ‘नहीं’ यथार्थ की द्वन्द्वात्मकता को उन बिन्दुओं पर सृजन के अनुभवों में बदलता है, जहाँ यथास्थिति के निषेध में नई और सच्ची मानव-निर्मितियों की आकांक्षा और सम्भावनाएँ एकत्र होकर क्रियाशील होती हैं। पंकज सिंह की इन कविताओं की दृष्टिसम्पन्नता और आशय इन्हें कोरे नकार की निष्फलता से बचाकर संवेदना की उस मनोभूमि में ले जाते हैं जो ‘नहीं’ की पवित्र दृढ़ता से अनन्त सम्भावनाओं की प्रक्रिया और उसकी सहज-अबाध परिणतियों के प्रकट होते जाने की आश्वस्ति देती है।
पंकज सिंह ने अपने पिछले काव्य-संग्रहों, ‘आहटें आसपास’ और ‘जैसे पवन पानी’, की कविताओं में सार्थक जोखिम उठाते हुए भारतीय समाज में पिछली शताब्दी के सातवें दशक की ‘वसन्त गर्जना’ से उत्प्रेरित प्राण-शक्ति को भाषा में अनूठे रूपाकार दिए। अन्याय की सत्ताओं के बरक्स सांस्कृतिक संरचना में प्रतिरोध के साहस की अभिव्यक्ति और परिवर्तन के महास्वप्न की अर्थ-सक्रियता उन कविताओं की उदग्र पहचान बनी। उन तत्त्वों से हिन्दी में अनुभव-सघन तथा अभिप्राय की गरिमा से भरी जिस मौलिक राजनीतिक कविता को पंकज सिंह के कवि ने सम्भव किए उसके नए और कदाचित् अधिक क्षिप्र रूप भी, ‘नहीं’ की कविताओं में हैं।
इन कविताओं में अनुभव-अनुकूलित शिल्प का सुघड़पन है और कहन के ऐसे अनेक लहज़े हैं जो काव्य-औज़ारों, हिकमतों और समग्र प्रविधि के मामले में हिन्दी काव्य के नए विस्तार के सूचक हैं।
‘नहीं’ की कविताओं की जीवन्त अनुभव-राशि में अगर अन्तर्विरोधों और द्वन्द्वों में शामिल विडम्बनाएँ और कई प्रकार के सामूहिक बोध के समुच्चय हैं, तो निजी आवेग-संवेग, प्रेम और आसक्ति, आघात-संघात और अवसाद-विषाद भी हैं जो पंकज सिंह की कविताओं में व्यापक और तीव्र संवेदकों की उपस्थिति को गहराई देनेवाली चीज़ें हैं, और इस अर्थ में चकित करनेवाली भी कि वे तर्क और विवेक की शक्लें अख़्तियार करके सार्वजनिक संलाप का हिस्सा मालूम होने लगती हैं।
अगर काव्य के कुछ शाश्वत मापक होते हों तो उनके सम्मुख भी ‘नहीं’ की जीवन-विश्वासी कविता सार्थक और सामाजिक-सांस्कृतिक उपयोग की बनी रहेगी, क्योंकि इसकी आत्मा में करुणा और प्रेम की सुनिश्चित लय है और वह उसी महास्वप्न से आबद्ध-प्रतिबद्ध है जो उसे जीवन और भाषा में चतुर्दिक फैले विचलनों के बीच सन्तुलित और ऊर्जस्व बनाए हुए है।
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