Ab Meri Bari
Author:
Ankita AnandPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
अब मेरी बारी की कविताएँ नए समय की उस नई स्त्री को सम्मुख लाती हैं जो प्रेम तो करना जानती है, लेकिन अपनी वैयक्तिक इयत्ता की क़ीमत पर नहीं। वह प्रेम में डूब जाना चाहती है, लेकिन इस आश्वस्ति के साथ कि प्रेम का दूसरा भागीदार भी उतना ही गहरे उतरे—दूसरे के साथ/न होना/ नहीं होता वफ़ादार होना/वफ़ादार होना होता है/</p>
<p>किसी के साथ/पूरी तरह होना!</p>
<p>प्रेम, पाठ, पहचान और परिवेश—इन श्रेणियों में विभक्त इस संग्रह की कविताएँ जीवन और समाज के अन्य हलक़ों को भी इतनी ही आत्म सजगता के साथ देखती हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ये कविताएँ अपनी भाषा भी अलग ढंग से गढ़ती हैं। निहायत और ग़ैर-पारम्परिक बिम्बों और प्रतीकों का उपयोग करती हुई ये कविताएँ अपनी एक नई भाषा ईजाद करती हैं जिसके ऊपर काव्यास्वाद की स्वीकृत</p>
<p>पम्परा का भार लगभग नहीं है।</p>
<p>पुरुषों के घेरों के बीच अपने पूरे आप को लेकर खड़ी हुई औरतों की तरफ़ से कहा गया है—हम अट्टहास करें, भयावह दिखें, ऑक्टोपस बनें/शरीर से छोड़ें स्याही की पिचकारियाँ/उन पर साधे/जो संग होली खेलने को व्याकुल थे।
ISBN: 9789360861353
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘कोई दूसरा नहीं’ की कविताएँ मन को केवल आह्लादित ही नहीं करतीं, बल्कि विवेक का सम्बल भी प्रदान करती हैं। व्यक्ति से समष्टि की ओर ले जानेवाली ये कविताएँ पाठकों की सामाजिक संचेतना में नई त्वरा और नए संवेग भरती हैं। भाषा जब अनुभव का दामन थामकर चलती है तब उसकी प्रभावोत्पादकता और सम्प्रेषण की क्षमता किस तरह परिपक्व और हृदयग्राही बन जाती है, उसकी मिसाल है—‘कोई दूसरा नहीं’ की कविताएँ। ये कविताएँ कभी सहजता से मन को सहलाती हैं तो कभी कोमलता से कल्पना की पाँखों को उत्प्रेरित करती हैं—निराडम्बर-उदात्त मानवीय संस्कारों को जगाती हैं और इसके साथ ही जीवन और जगत के कड़े यथार्थ का आरोहण भी करती हैं। कविताएँ तलाशती हैं वैसी परिस्थितियाँ और वैसा परिवेश भी जिसमें बेहतर इंसान की कल्पना साकार होती है। इन कविताओं की विशेषता है—प्रगाढ़ जीवनानुभव और सादगी।
Jeevan Aisa Ho
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Rajesh Maheshwari
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Description:
‘जीवन ऐसा हो’ राजेश माहेश्वरी का महत्त्वपूर्ण कविता-संग्रह है। इस संग्रह की कविताएँ पढ़कर स्पष्ट होता है कि राजेश माहेश्वरी जीवन के विशाल उपवन से अनुभवों के फूल और शूल संचित करते रहे हैं। फूल की सुरभि और शूल की चुभन इन कविताओं में सहज रूप से समाहित है। लक्ष्य है, हृदय को भावना-सम्पन्न और बुद्धि को विवेक-सम्मत बनाना।
कवि जब समाज में व्याप्त कदाचार, अन्याय और आलस्य देखता है तो उसकी कविता में दु:ख, आक्रोश और व्यंग्य घुल जाता है। वह कह उठता है—‘ग़रीब और शोषित जहाँ था/वहीं रहकर/आज भी शोषित है/और क्रान्ति की प्रतीक्षा में/प्रतिदिन ढह रहा है।’
उदात्त मानवतावाद ही राजेश माहेश्वरी का लक्ष्य है।
इन कविताओं में आस्था और विश्वास का बहुरंगी संसार है। अध्यात्म की धूपछाँह है। उद्देश्य यही है कि जीवन तुच्छताओं से मुक्त हो और परम गन्तव्य तक पहुँचे। मंगलकामना की शैली में कवि कह उठता है—
‘‘सागर से गहरी हो
प्रेम व त्याग की प्यास।
श्रम व कर्म के प्रति
हो हमारा समर्पण।।’’
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