Roshani Ke Raste Per
Author:
Anita VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
<span style="font-weight: 400;">अपने पहले संग्रह ‘एक जन्म में सब’ के प्रकाशन के साथ अनीता वर्मा ने एक ऐसे कवि के रूप में पहचान बनायी जिनके पास एक विरल संवेदना है, अपने आंतरिक संसार के स्पंदनों को सही शब्दों और सार्थक बिंबों में रूपांतरित कर पाने की क्षमता है और एक सघन सुंदर विन्यास है। वह एक अद्वितीय संग्रह है जिसे संवेदनशील पाठकों ने एक सुखद आश्चर्य के साथ देखा और समझा। अनीता वर्मा का दूसरा संग्रह ‘रोशनी के रास्ते पर’ उस गतिशीतला और ऊर्जा को रेखांकित करता है जो एक रचनात्मक जीवन की यात्रा से अपने आप जुड़ी होती हैं। लेकिन इस संग्रह की कविताएं इससे भी अधिक कुछ संकेत करती हैं और कवि के रचनात्मक अंतर्संघर्ष के साथ-साथ उनकी कविताओं के कथ्य और शिल्प में आये बदलावों को बतलाती हैं। यहां बिंबों से वृत्तांत की ओर, स्मृति से स्वप्न की ओर, अंतरंग से बहिरंग की ओर और अनुभूति से अनुभव की ओर जाने और कभी-कभी एक-दूसरे में आवाजाही करने की एक अनोखी यात्रा दर्ज हुई है: ‘अच्छा हुआ कि हृदय बच गया/और शब्दों को चलने के लिए पैर मिल गये।’</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">अनीता वर्मा की ज़्यादातर कविताओं में दिखने वाली आत्मिकता, रहस्यमयता, शमशेर बहादुर सिंह जैसी शुद्धता और गहरे आशावाद की ओर कई पाठकों-आलोचकों का ध्यान गया है। इन विशेषताओं का जन्म कवि के भीतर संवेदना की गहराइयों और ऊंचाइयों से ही हुआ है और वे इस संग्रह की कविताओं में भी पूरे घनत्व के साथ उपस्थित हैं। अंतर यह है कि अनीता अब इस संवेदना के माध्यम से बाहर के संसार को भी व्यक्त कर रही हैं जिसका प्रमाण ‘बूढ़ानाथ की औरतें’, ‘अपने घर’, ‘भय’, ‘सभागार में’, ‘मां का हाथ’, ‘अनिंदो दा के साथ’, ‘मंच पर’ जैसी विलक्षण रचनाओं में मिलता है। अनीता वर्मा की काव्य संवेदना में निराशा और विकलता के बीच उम्मीद के आत्मिक बिंदु हमेशा चमकते दिखते हैं और पाठक की संवेदना को भी प्रकाशित करते रहते हैं। ऐसे कवि की सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि भी बहुत मानवीय और प्रतिबद्ध होगी जिनकी अभिव्यक्ति ‘महज़ नाम नहीं’, ‘झारखंड’, ‘रोशनी’ जैसी रचनाओं में हुई है। एक कविता की पंक्तियां कहती हैं: ‘मुझे अचानक दिखाई दिये कहीं खिले हुए कुछ फूल/और तभी कोई लालटेन का शीशा साफ़ कर/उसे जला कर रख गया था।’ हमारे समय में जमा हो रहे कई तरह के अंधकारों के बीच ये पंक्तियां इन कविताओं के स्वभाव को भी बतलाती हैं।</span>
ISBN: 9788126716685
Pages: 103
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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मीर तक़ी ‘मीर’ के समकालीन मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ‘सौदा’ 18वीं सदी के चार प्रमुख उर्दू शायरों में गिने जाते हैं। आम तौर पर सौदा को क़सीदे का शायर समझा जाता है, और इसमें कोई शक नहीं कि, सौदा के कुछेक क़सीदे ग़ज़ब के हैं। लेकिन सच बात यह है कि सौदा को इस रूप में पेश करना उनके साथ नाइंसाफ़ी से कुछ कम नहीं है। अपनी हज्वियाती नज़्मों (निन्दा-काव्यों) में और अपने शह्र-आशोवों में सौदा का हमें एक और ही रूप दिखाई देता है जो न तो उनके क़सीदों में नज़र आता है और न उनकी ग़ज़लों में। इन हज्वियाती नज़्मों और शह्र-आशोवों में सौदा अपने वक़्त की कड़वी सामाजिक सच्चाइयों के बारे में, 18वीं सदी की पतनशील सामन्ती सभ्यता के बारे में जिस स्पष्ट दृष्टि का परिचय देते हैं, वैसी दृष्टि उनके किसी भी अग्रज या समकालीन शायर के यहाँ नहीं दिखाई देती। मीर और दर्द के यहाँ भी नहीं। इसमें शक नहीं कि सौदा ख़ुद इस सामन्ती संस्कृति से जुड़े हुए रहे और इसीलिए इसके पतन से उनका प्रभावित होना स्वाभाविक था, उनका अफ़सोस करना भी उतना ही स्वाभाविक था। लेकिन सौदा इस पतनशील संस्कृति का मातम ही नहीं करते, बढ़-चढ़कर उन लोगों पर चोटें करते हैं, उनकी क़लई खोलते हैं जो इस पतन के लिए ज़िम्मेदार थे। इस सिलसिले में सौदा ने जादू-बयानी का जो परिचय दिया है, वह अपनी मिसाल आप है।
अकसर आलोचकों ने मीर और सौदा के तुलनात्मक अध्ययन के प्रयास किए हैं, और यह नतीजा निकाला है कि मीर सौदा से कोसों आगे हैं। आलोचकों की इस राय में बहुत कुछ सच्चाई है। ख़ासकर ग़ज़लों में जहाँ मीर का अन्दाज़े-बयाँ दिल को छू लेने की हैसियत रखता है, वहीं सौदा का अन्दाज़े-बयाँ ज़्यादातर भाषा के खिलवाड़ों तक सीमित रहता है। फिर भी इसमें शक नहीं कि सौदा को कुछ कम करके आँकना ग़लत होगा—ख़ासकर हजो और शह्र-आशोब जैसी विधाओं में उनका कोई जवाब नहीं है। ख़ुद उन्हीं के शब्दों में कहें तो सौदा हिन्द के शायरों के पैग़म्बर तो नहीं हैं लेकिन सुख़न कहने में उन्हें एज़ाज़ ज़रूर हासिल है।
Udhav Satak
- Author Name:
Jagannath Das Ratnakar
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Suno Jogi Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
Sandhya Navodita
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संध्या नवोदिता की जोगी वाली कविताएँ जब पहली बार फ़ेसबुक पर पढ़ीं, तभी चौंक गई थी। कौन है यह जो अन्तस की ऐसी गहराई से ऐसी कविताएँ लिखती है जो पूरे ब्रह्मांड को घेर लेती हैं? मैंने इस अनजान कवि की ‘जोगी’ शीर्षक से एक फ़ाइल बना ली और कविताएँ उसमें रखने लगी—यह सोचकर कि फिर उतरना ही होगा इनमें फ़ुरसत से। और जब उतरी तो पाया कि ज़िन्दगी के पार्क का तीन अरब किलोमीटर का चक्कर लगवाती हैं ये कविताएँ—पृथ्वी के आलिंगन में सूरज के चारों ओर। इन कविताओं में प्रेम की उदासी और दुःख का पहाड़ा ऐसा हृदयविदारक है कि मेरे जैसा अ-रूमानी पाठक भी सन्तप्त हो उठता है। जाने कैसी सच्चाई है, कैसी गहराई है इस भाषा में, जो रोज़मर्रा के जीवन की मामूली चीज़ों से होती सुपर मून तक वामन डग भरती विस्तार पा लेती है।
इन कविताओं में कवि का आत्म अपने को विस्तारित करता हुआ समूची धरती का आत्म बन जाता है। इसलिए सहज ही संध्या वह सब कुछ अपनी कविताओं में कह जाती हैं जो बहुत श्रम के बाद भी अनकहा ही रह जाता है। बराबर मनुष्य की गरिमा के साथ प्रेम और साहचर्य को जीती ये कविताएँ प्रकृति के साथ भी एक अटूट साहचर्य की कामना रखती हैं। प्रेम, प्रकृति और प्रतिरोध यहाँ इस तरह से घुल-मिलकर आते हैं कि अलग से उनकी पहचान कर पाना या एक दूसरे से विलगाकर देख पाना सम्भव नहीं बचता।
यह सब उस भाषा में है जिसे हम रोज़ बरत रहे हैं। कहीं कोई बनावट या कविताई का आग्रह नहीं दिखता। शायद अनुभव और अभिव्यक्ति की यह निर्दोष जुगलबंदी है कि हम उसके ख़यालों की सीढ़ियाँ नाप पाते हैं। कुछ कविताओं को पढ़ ऐसा होता है कि मैं अगर उनपर कुछ लिखना चाहूँ, तो वे शब्द नहीं मिलते जो उस कविता के साथ न्याय कर सकें। मेरी भाषा मौन हो जाती है। लौट आने के आह्वान में खोए हुए की प्रतीति और पुकार अविस्मरणीय बन जाती है। संध्या की कविताएँ ऐसी ही कविताएँ हैं।
—अलका सरावगी
Ant Anant
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
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यह संकलन सम्पूर्ण निराला-काव्य का परिचय देने के लिए नहीं, बल्कि इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि इससे पाठकों को उसकी मनोहर तथा उदात्त झाँकी-भर प्राप्त हो, जिससे वे उसकी ओर आकृष्ट हों और आगे बढ़ें।
निराला की ख़ासियत क्या है? वे प्रचंड रूमानी होते हुए भी क्लासिकी हैं, भावुक होते हुए भी बौद्धिक, क्रान्तिकारी होते हुए भी परम्परावादी तथा जहाँ सरल हैं, वहाँ भी एक हद तक कठिन। उनकी अपनी शैली है, अपनी काव्य-भाषा। अभिव्यक्ति की अपनी भंगिमाएँ और मुद्राएँ।
यह सर्वथा स्वाभाविक है कि उनके निकट जानेवाले पाठकों से यह अपेक्षा की जाए कि उनका काव्यानुभव बच्चन, दिनकर या मैथिलीशरण गुप्त तक ही सीमित न हो। जब वे किंचित् प्रयासपूर्वक उक्त कवियों से हटकर उनके काव्य-लोक में प्रवेश करेंगे, तो पाएँगे कि उनकी तुलना में वे उनके ज़्यादा आत्मीय हैं।
निराला के प्रसंग में सरलता का यह मतलब क़तई नहीं है कि उनकी कविताएँ पाठकों के मन में बेरोक-टोक उतर जाएँ। कारण यह है कि उनके लिए काव्य-राचन सशक्त भावनाओं का मात्र अनायास विस्फोट नहीं था, बल्कि वे अपनी प्रत्येक कविता को किंचित् आयासपूर्वक पूरी बौद्धिक सजगता के साथ गढ़ते थे। स्वभावतः उनकी सम्पूर्ण अभिव्यकि कलात्मक अवरोध से युक्त है, जिसे ग्रहण करने के लिए थोड़ा धैर्य और श्रम आवश्यक है।
इस पुस्तक में निराला के काव्य-विकास की तीनों अवस्थाओं—पूर्ववर्ती, मध्यवर्ती और परवर्ती—की सौ चुनी हुई सरल कविताएँ संकलित की गई हैं, प्राय रचना-क्रम से। आरम्भिक दोनों अवस्थाओं में सृजन के कई-कई दौर रहे हैं, कविता और गीत के, जिसकी सूचना अनुक्रम से लेकर पुस्तक के भीतर सामग्री-संयोजन तक में दी गई है।
पाठक मानेंगे कि यह कविता की एक नई दुनिया है, अधिक आत्मीय और प्रत्यक्ष, जिसे भाषा सजाती नहीं बल्कि अपनी भीतरी शक्ति से खड़ी करती है।
Pani Jaisa Des
- Author Name:
Vinay Kumar
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पानी जैसी तरल और पारदर्शी ये कविताएँ पानी के ही बारे में हैं, पानी के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में; और इस तरह पृथ्वी पर पानी के सहारे जीने वाले मनुष्य, और उसकी उत्तरजीविता के बारे में भी।
यह अकसर नहीं होता कि कोई एक तत्त्व कवि की चेतना में इस तरह पैवस्त हो जाए कि एक पूरी की पूरी पुस्तक उससे लिखवा ले, विनय कुमार के साथ यह दूसरी बार हुआ है। ‘यक्षिणी’ के बाद इस बार वे पानी पर ठहरे हैं, जो जीवन का आधार है, और सभ्यता की सबसे ज्यादा मार भी उसी पर है।
ये कविताएँ पानी के दुख की कविताएँ हैं जिसमें मनुष्यों के दुखों के प्रतिबिम्ब भी दिखाई देते हैं। इनमें तालाब हैं, नदियाँ हैं, उनके किनारों पर उगी-बसी जीवन-आकांक्षाएँ और हताशाएँ हैं। मंत्रों जैसी अखंडता में अनुस्यूत ये कविताएँ गहरे वैचारिक आलोड़न से उपजी हैं जिनका एक सिरा पर्यावरणीय सरोकारों की वर्तमानता से जुड़ा है और दूसरा सिरा जल की तात्त्विक अनंतता से।
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