Tirange Ko Kabhi Jhukane Na Doge: Deshbhakti Ke Pavan Geet

Tirange Ko Kabhi Jhukane Na Doge: Deshbhakti Ke Pavan Geet

Authors(s):

Shankar Dwivedi

Language:

Hindi

Pages:

208

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

416 mins

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Book Description

शंकर द्विवेदी—ब्रजभाषा व हिंदी खड़ी बोली के मूर्धन्य कवि शंकर द्विवेदी सन् 1960 से सन् 1980 के दशकों तक अखिल भारतीय स्तर के लब्ध प्रतिष्ठित कवि व शिक्षाविद् रहे हैं। उनका मूल नाम शंकरलाल द्विवेदी था किंतु काव्य-जगत् में वे शंकर द्विवेदी उपाख्य से ही सम्मान पाते रहे हैं। लगभग दो दशकों तक वे अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनों, साहित्यिक गोष्ठियों, प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं एवं आकाशवाणी केंद्रों से प्रकाशित-प्रसारित अपनी उद्भट काव्य प्रतिभा के कारण साहित्याकाश के दीप्तमान नक्षत्र के समान जगमगाते रहे। राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ के अवसान के पश्चात् हिंदी काव्य-जगत् में वीर रस के स्वर का जो शून्य उपस्थित हुआ, शंकर द्विवेदी की वाणी ने उसकी पूर्ति करते हुए साहित्य कोष में अविस्मरणीय योगदान दिया। वीर रस में पगी उनकी ओजमयी वाणी पर मुग्ध होकर राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने उन्हें ‘आधुनिक दिनकर’ कहकर संबोधित किया था। वीर रस में काव्य-दक्ष श्री द्विवेदी को शृंगार रस में भी दक्षता हासिल थी। संयोग तथा वियोग दोनों ही शृंगारिक पक्षों पर उनकी लेखनी समानाधिकृत रूप से समृद्ध थी। उनका कंठ-माधुर्य बरबस ही श्रोताओं को सम्मोहन-पाश में बाँध लेता था। प्रस्तुत काव्य-संग्रह ‘तिरंगे को कभी झुकने न दोगे’ शंकर द्विवेदी कृत राष्ट्रीय व सांस्कृतिक चेतना युक्त काव्य का अद्भुत संकलन है। सन् 1962 से सन् 1971 तक हमारे राष्ट्र को जिन युद्धों की विभीषिका से जूझना पड़ा, प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में उनकी प्रतिध्वनियाँ स्पष्ट सुनी जा सकती हैं। कविवर शंकर द्विवेदी का यह काव्य-संकलन न केवल हमारे राष्ट्राभिमान का द्योतक है अपितु हमारे गौरवशाली सांस्कृतिक विराट का भी मंगलाचरण है।

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