Swatantroyottar Hindi Natak : Mulya-Sankraman
Author:
Jyotishwar MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हमारे देश में उपजी एक ज्वलन्त समस्या है मानवमूल्य-संक्रमण। डॉ. ज्योतीश्वर मिश्र ने स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी नाटकों में दर्शित इस मूल्य-संक्रमण का गम्भीर और प्रामाणिक विवेचन ग्रन्थ में किया है। इसमें स्वतंत्रता के बाद लिखे गए लगभग सौ नाटकों को उपयुक्त उद्धरणों सहित सन्दर्भित किया गया है। स्पष्ट है कि अध्ययन कुछ इने-गिने चर्चित नाटकों तक ही सीमित नहीं रहा। यह लेखक की श्रमशीलता का तथा ग्रंथ की विवेचन-पद्धति उसकी प्रौढ़ दृष्टि का स्पष्ट परिचय देती है। नाटकों के कथ्य तथा शिल्प पर लेखक द्वारा की गई टिप्पणियाँ बहुत ही सार्थक एवं व्यंजक हैं। ग्रंथ की भाषा विषयवस्तु के सर्वथा अनुरूप, प्रभावशाली तथा प्रवाहपूर्ण है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि साहित्य और समाजशास्त्र दोनों विषयों के अध्येता इस ग्रंथ से बहुत लाभान्वित होंगे।</p>
<p>—प्रोफ़ेसर मोहन अवस्थी
ISBN: 9788180311130
Pages: 228
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Ajatshatru
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

-
Description:
प्रसाद के नाटकों की दीवारें प्राय: इतिहास की नींव पर ही खड़ी हैं। लेकिन अजातशत्रु में उन्होंने ऐतिहासिक परम्परा और कल्पना का सजग सम्मिश्रण किया है। अधिकांश पात्र, घटना-क्रम और कथा-विस्तार भी इतिहास सम्मत है।
अन्तर्द्वन्द्व इस नाटक का मूलाधार है। मगध, कौशल और कौशम्बी में प्रज्वलित विरोधाग्नि इस पूरे नाटक में फैली हुई है। उत्साह और शौर्य से परिपूर्ण इस नाटक में वीर-रस की ही प्रधानता है।
Greece Ke Trasad Natak
- Author Name:
Kamal Naseem
- Book Type:

- Description: पाँचवीं शताब्दी ई.पू. ग्रीस के 31 क्लासिकल त्रासद नाटकों का संक्षिप्त हिन्दी कथा-रूपान्तरण केवल उन रचनाओं का संक्षिप्त रूपान्तर नहीं, ये छोटी-छोटी खिड़कियाँ और झरोखे हैं जो आपको आज से दो हज़ार पाँच सौ वर्ष पहले की ग्रीक सभ्यता और संस्कृति के ऐसे भव्य संसार में ले जाएँगे, जहाँ देश और काल की सीमाएँ अपने आप ही तिरोहित हो जाती हैं। कास्ट्यूम और मुखौटे अपनी सादगी और रंगीनी में एक ऐसे ‘लार्जर दैन लाइफ़’ पात्रों का संसार रच देते हैं, जहाँ बिना किसी दृश्य और श्रव्य तकनीक के वायुमंडल में बहती आवाज़ें आपके अस्तित्व को अभिभूत कर लेती हैं...। आप सम्मोहित से आगे बढ़ते जाते हैं...एक-एक कर वितान खुलते जाते हैं...और आप देखते हैं ग्रीक महानायकों की बृहद् कर्मभूमि, आकाश को छूती महत्त्वाकांक्षाएँ, मन को छूती करुणा; दिव्य तेज और साहस के कारनामे, दैन्य की पराकाष्ठा; युद्ध का भयावह रक्तपात और नरसंहार, माँओं, बहनों और दासियों का दिल दहलानेवाला चीत्कार; अनैतिकता के गर्हित कर्म और कर्तव्य के लिए प्राण निछावर करने का आत्मबल और धर्म; अहम् और स्वार्थ का कुचक्र, संवेगों का संघर्ष; कोमल आत्मीयता का क्रूर मर्दन और सम्बन्धों पर मर मिटने को तत्पर जीवन—सभी कुछ तो है यहाँ। किन्तु ये केवल झलकियाँ हैं जो निश्चय ही आपको ग्रीक पुराकथाओं और नाटक के समग्र संसार की ओर जाने को अभिप्रेरित करेंगी।
Sampurna Natak : Mrinal Pandey
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

-
Description:
विख्यात कथाकार, पत्रकार और समाज-चिन्तक मृणाल पाण्डे के नाटकों का यह संग्रह उनके एक और महत्त्वपूर्ण रचना-पक्ष को सामने लाता है। नाटककार के रूप में उनकी यात्रा अस्सी के दशक से शुरू हुई और अपनी तमाम कार्यकारी तथा रचनात्मक व्यस्तताओं के बीच समय-समय पर उन्होंने इसे बरक़रार रखा। उनका पहला नाटक ‘मौजूदा हालात को देखते हुए’ था जिसका प्रकाशन ‘नटरंग’ में और भोपाल में मंचन भी हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी कोई प्रतिलिपि अब प्राप्य नहीं है। यही स्थिति उनके रेडियो नाटकों की भी है, जिनमें से अधिकांश आकाशवाणी के आर्काइव्ज़ में गुम हैं। सो इस संग्रह में दो ही रेडियो नाटक शामिल हो सके हैं, ‘सुपर मैन की वापसी’ और ‘धीरे-धीरे रे मना’।
पुस्तक के मुख्य भाग में मृणाल जी के पाँच पूर्णकालिक नाटक हैं जो न केवल नाटककार के रूप में उनकी प्रतिभा के परिचायक हैं बल्कि उनकी वैचारिक आत्मनिर्भरता को भी रेखांकित करते हैं। संग्रह का पहला नाटक ‘जो राम रचि राखा’ उस दौर में लिखा गया था जब हिन्दी में जनवादी तर्ज की ‘प्रतिबद्धता’ धार्मिक आस्था की तरह स्थापित थी। उस दौर में उन्होंने इस नाटक के पात्र मन्ना सेठ के हास्यास्पद क्रान्ति-स्वप्नों के माध्यम से अपने समाज से अपरिचित और निरर्थक प्रतीकों से भरी तत्कालीन वैचारिक दुनिया की तरफ़ इशारा किया। इस पर उनको आलोचना भी सहनी पड़ी।
आलोचना उन्हें अपने नवीनतम नाटक ‘शर्मा जी की मुक्तिकथा’ (2002) पर भी मिली जिसको आलोचकों ने जटिल और ‘बहुत प्रयोगधर्मी’ कहा। लेकिन इस सबके बावजूद मृणाल पाण्डे का नाटककार अपने समय की जटिलताओं का सामना करता रहा। उनका मानना है कि “अपनी सच्ची स्थिति को, वह चाहे जितनी भी जटिल क्यों न हो, परिभाषित करना हर लेखक की लेखकीय अनिवार्यता है।” उनके एक पहले नाटक ‘आदमी जो मछुआरा नहीं था’ का फोकस ही यह है कि मनुष्य के लिए उसकी स्वतंत्रता और नियति अन्तत: एक निजी सवाल है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मृणाल पाण्डे के ये सभी नाटक मंच की कसौटी पर भी खरे उतर चुके हैं। इसलिए सिर्फ़ पाठक ही नहीं, रंगकर्मी भी इस संकलन को उपयोगी पाएँगे और हमें उम्मीद है कि इससे उनकी यह शिकायत काफ़ी हद तक दूर हो जाएगी कि हिन्दी में मंचन करने लायक मौलिक नाटक नहीं लिखे जा रहे।
Katha Shakuntala Ki
- Author Name:
Radhavallabh Tripathi
- Book Type:

- Description: शकुंतला-दुष्षंत की कथा की इस नाट्य-प्रस्तुति को जो चीज़ विशिष्ट बनाती है, वह है इसका काल-बोध और तत्कालीन परिवेश का तथ्यपरक निरूपण। ‘महाभारत’ में किंचित् परिष्कृत रूप में सबसे पहले आनेवाली यह कथा वास्तव में वैदिक काल की है। इसके पात्र वेदों के समय से सम्बन्ध रखते हैं। दुष्यंत के पुत्र भरत का ज़िक्र भी वेदों में मिलता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ‘महाभारत’ में यह कथा जिस रूप में आई, उसके बजाय यह नाटक इस कथा के उस रूप को आधार बनाता है जो वैदिक काल में रहा होगा। ‘महाभारत’ में, और उसके बाद हम जिस भी रूप में इस कथा को देखते हैं, उसकी जड़ें सामन्ती मूल्य-संरचना में हैं। वैदिक संस्करण निश्चय ही कुछ भिन्न रहा होगा और उसका परिप्रेक्ष्य आदिम मूल्यबोध से रहा होगा। इस नाटक में कथा के उसी रूप को पकड़ने का प्रयास किया गया है। इसीलिए यहाँ ‘दुष्यंत’ को ‘दुष्षंत’ कहा गया है जो ‘महाभारत’ तथा वैदिक साहित्य में आता है। यह प्रचलित कथा मूलत: मातृसत्तात्मक समाज से ताल्लुक़ रखती है जहाँ लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी छूट है, जैसाकि शकुंतला भी करती है। नाटक में भूख और अकाल की भी चर्चा है जिन्हें वेदों के ही कुछ प्रसंगों के आधार पर पुन:सृजित किया गया है। भाषा, संवाद-रचना और प्रसंगानुकूल दृश्य-रचना के चलते यह नाटक शकुंतला की जानी-पहचानी कथा को हमारे सामने नए और भावप्रवण रूप में प्रस्तुत करता है; जो मंच के लिए जितना अनुकूल है, साधारण पाठ के लिए भी उतना ही रुचिकर है।
Grees Puran Katha-Kosh
- Author Name:
Kamal Naseem
- Book Type:

- Description: एशिया और पश्चिमी देशों के सारे साहित्य-संस्कृति की रीढ़ हैं भारतीय और ग्रीस-पुराण-कथाएँ। अपोलो, हेराक्लीज़ ऑरोरा, ऐफ्रॉडायटी ट्रॉय इत्यादि न जाने कितने देवी-देवता, वीर नायक-नायिकाएँ स्थान और घटनाएँ हैं, जिनके ज़िक्र अंग्रेज़ी और भारतीय साहित्य में प्रारम्भ से ही आने लगते हैं और आगे हर क्षेत्र में इनके सन्दर्भ मिलते हैं। कमल नसीम ने बेहद ही परिश्रम से इन परिचयात्मक कहानियों को वर्गीकृत किया और प्रामाणिक रूप से लिखा है। यह अनोखा, विलक्षण सन्दर्भ-कोश एकदम नए ढंग से हमें इस उपयोगी, ज्ञानवर्धक और दिलचस्प सामग्री से परिचित कराता है। हज़ारों महाकाव्यों, काव्यों, नाटकों, फ़िल्मों इत्यादि की आधारभूत सामग्री की पृष्ठभूमि खोलता है। इसमें हैं—देवी-देवता, वीर, पराक्रमी, चमत्कारी नायक, योद्धा, सुन्दर-कुरूप नायिकाएँ, घटनाएँ, घटना-स्थल, युद्ध और निर्माण, विजय-पराजय, स्वप्न और इतिहास, मनुष्य के आदिम और उदात्त रूप, सम्बन्धों के घिनौने और पूज्य धरातल। ये कहानियाँ जितनी रोचक, रोमांचक, प्रतीकात्मक और ज्ञानवर्धक हैं, उतनी ही उपयोगी भी। पुस्तक में पीछे दी गई अनुक्रमणिका की सहायता से वांछित प्रसंगों का विस्तृत विवरण आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह ऐसा कोश है, जिसे न सिर्फ़ इतिहास के छात्र, प्राध्यापक वरन् सुधी पाठक भी पढ़ना और सँजोकर रखना चाहेंगे।
Janch Partal
- Author Name:
Sanjay Sahay
- Book Type:

-
Description:
महान रूसी लेखक नि. व्. गोपाल की कालजयी कृति 'दी गवर्नमेंट इंस्पेक्टर' पर मूलतः आधारित संजय सहाय का हिंदी नाटक जांच-पड़ताल उस व्यथा और तंत्र के मानव-द्रोही भ्रष्ट चरित्र को परत-दर-परत खोलता है, जिसके बीच हम रहने और जीने के लिए लगभग अभिशप्त हैं ! यथार्थ के विचलित कर देनेवाले उत्ताप और तीखे दंश के सहारे यह नाटक कहीं-न-कहीं हमें भी अपनी ही नजरों के आगे परख व् पहचान के लिए खड़ा करता है ! एक बेमुरौवत कठघरे में-जहाँ से जीवन-सन्दर्भों की न केवल एक नई कारगर पहचान व् प्रतीति होती है; बल्कि अर्थपूर्ण बदलाव की शुरुआत भी होती है !
भाषा, रूप, चरित्र, अंतर्वस्तु और अर्थध्वनियों के स्तर पर दिक् और काल के अपार आयामों में गूंजती हुई गोगोल की सशक्त कृति के भीतर से सर्जनात्मक अंतर्यात्रा करते हुए 'जांच-पड़ताल' के लेखक ने समसामयिक भारतीय संदर्भो में अपरोक्ष अभिप्रायों से लैस एक नई रंग-आकृति रचने-ढालने की कोशिश की है ! अनुकृति या अंतरण से भिन्न यह नाट्य-रचना देश, समाज, भाषा और युग के भिन्न संदर्भो में मूल कृति का ही पुनराविष्कार है, जिसमे उनकी अशेष रचनात्मक संभावनाओं का संदोहन है ! हम इसे गोगोल की आधारभूत कृति का हिंदी तदभव कह सकते हैं !
Natya Manjari
- Author Name:
Jagdish Prasad Singh
- Book Type:

- Description: महाराज, आपने जिस तरह दर्जनों शत्रुओं पर विजय प्राप्त की, वह इस देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। आपने पिछले कुछ महीनों में पूरे दक्षिणी हिन्दुस्तान पर अधिकार कर लिया और मराठा राज्य को हर तरह समृद्ध किया। हैदराबाद में आपका प्रवेश उस नगर के लोग हमेशा याद रखेंगे। आपके स्वागत के लिए नगर को पूरी तरह सजाया गया था और सभी सड़कों और गलियों में कुमकुम की एक पर्त बिछायी गई थी। नगर में स्थान-स्थान पर विजय द्वार बनाए गए थे और सड़क की दोनों तरफ लाखों नगरवासी रंग-बिरंगे परिधानों में खड़े थे। मकानों की छतों पर और बालकनियों में महिलाओं ने आपके और सैनिकों के स्वागत के लिए भीड़ लगा रखी थी। मराठी सेना ने इस अवसर के लिए अपने वस्त्रों की सादगी का त्याग कर दिया था और नए, भड़कीले वस्त्र पहन लिये थे। सेनाधिकारियों और चुने हुए सिपाहियों ने अपने शिरस्त्राण में मोतियों की माला लगा रखी थी, और उनकी बाँहों में सोने के बाजूबंद चमक रहे थे। उनकी वर्दी नई थी जिस पर सोने के तार का काम किया हुआ था और उनके हथियार नए और चमचमाते हुए थे ।
Muktiparv
- Author Name:
Avinashchandra Mishra
- Book Type:

- Description: Drama based on Sama-Chakewa
Aadhe-Adhoore
- Author Name:
Mohan Rakesh
- Book Type:

-
Description:
‘आधे-अधूरे’ आज के जीवन के एक गहन अनुभव–खंड को मूर्त करता है। इसके लिए हिन्दी के जीवन्त मुहावरे को पकड़ने की सार्थक, प्रभावशाली कोशिश की गई है।
...इस नाटक की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विशेषता इसकी भाषा है। इसमें वह सामर्थ्य है जो समकालीन जीवन के तनाव को पकड़ सके। शब्दों का चयन, उनका क्रम, उनका संयोजन—सबकुछ ऐसा है जो बहुत सम्पूर्णता से अभिप्रेत को अभिव्यक्त करता है। लिखित शब्द की यही शक्ति और उच्चारित ध्वनि–समूह का यही बल है, जिसके कारण यह नाट्य–रचना बन्द और खुले, दोनों प्रकार के मंचों पर अपना सम्मोहन बनाए रख सकी।
...यह नाट्यलेख, एक स्तर पर स्त्री–पुरुष के बीच के लगाव और तनाव का दस्तावेज़ है...दूसरे स्तर पर पारिवारिक विघटन की गाथा है। एक अन्य स्तर पर यह नाट्य–रचना मानवीय संतोष के अधूरेपन का रेखांकन है। जो लोग ज़िन्दगी से बहुत कुछ चाहते हैं, उनकी तृप्ति अधूरी ही रहती है।
एक ही अभिनेता द्वारा पाँच पृथक् भूमिकाएँ निभाए जाने की दिलचस्प रंगयुक्ति का सहारा इस नाटक की एक और विशेषता है।
संक्षेप में कहें तो ‘आधे–अधूरे’ समकालीन ज़िन्दगी का पहला सार्थक हिन्दी नाटक है। इसका गठन सुदृढ़ एवं रंगोपयुक्त है। पूरे नाटक की अवधारणा के पीछे सूक्ष्म रंगचेतना निहित है।
Khamosh ! Adalat Jari Hai
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

-
Description:
प्रसिद्ध मराठी नाटककार विजय तेन्दुलकर ने भारतीय रंगमंच को नाटकों के माध्यम से समकालीन समाज की उन उलझी हुई सच्चाइयों से अवगत कराया जो आधुनिक जीवन की उपज हैं और जिनको काले और सफ़ेद के नैतिक खानों में बाँटकर नहीं समझा जा सकता, बल्कि उनको समझने के लिए हमें आधुनिक व्यक्ति की उन तमाम सीमाओं और उत्कंठाओं को समझना होता है जिनसे वह बरबस बँधा होता है।
अपने अनूठे रचनात्मक साहस के साथ विजय तेन्दुलकर ने रंगमंच जैसी सार्वजनिक विधा के माध्यम से ऐसी अनेक विचलित करनेवाली सच्चाइयों की तरफ़ इशारा किया, जिनको छूने का साहस अक्सर रंगमंच में नहीं हुआ था।
‘ख़ामोश! अदालत जारी है’ उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक है। असंख्य मंचनों, चर्चाओं और फ़िल्मांकनों के चलते अधिकांश लोग इस नाटक से परिचित हैं। नाटक के भीतर चलते इस नाटक की मुख्य पात्र लीला बेनारे की जीवन-कथा जैसे-जैसे खुलती है हमें हमारे आसपास के समाज, उसकी सफ़ेद सतह के नीचे सक्रिय स्याह मर्दाना यौन-कुंठाओं और स्त्री के दमन की कई तहें उजागर होती जाती हैं।
नाटक का सर्वाधिक आकर्षक पहलू इसका फ़ॉर्म माना गया है। एक अदालत के दृश्य में मानव-नियति की विडम्बनाओं के उद्घाटन को जिस प्रकार नाटककार ने साधा है, वह अद्भुत है। यही कारण है कि रंगकर्मी हों, नाट्यालोचक हों या दर्शक—हर किसी के लिए यह नाटक भारतीय रंगमंच के इतिहास में मील का एक पत्थर है।
Agin Tiriya
- Author Name:
Ravindra Bharti
- Book Type:

-
Description:
रवीन्द्र भारती की नाट्य-कृतियाँ हिन्दी रंगमंच में विगत बीस वर्षों से अपनी अनूठी अभिव्यक्ति एवं लोकप्रिय प्रस्तुतियों के लिए विख्यात हैं। ‘कम्पनी उस्ताद’, ‘फूकन का सुथन्ना’, ‘जनवासा’ जैसे नाटकों में आंचलिक सरलीकृत लोक-व्यवहार अपनी सघन और व्यापक अर्थवत्ता में जिस तरह सुलक्षित हुआ है, वह दुर्लभ है।
उनकी यह नाट्य-कृति ‘अगिन तिरिया’ कुछ अलग ही भावजगत की है। उनके सभी नाटकों से भिन्न। भाषा, कथ्य, शिल्प—सभी स्तरों पर भिन्न। अद्भुत अजाना संसार न जाने कहाँ पैठकर रचा उन्होंने। नाटक के पात्र प्रचलित लोक जगत के नहीं लगते। कैसे-कैसे नाम रखे हैं पात्रों के—मात्या, सुआ, बेली, चेची आदि अनसुने नाम...प्रवृत्ति, प्रकृति, व्यवसाय, मनुष्येतर प्राणी, जीवन-नियोजन, अलंकार, दोगली घातक संस्कृति और उसके रक्षक तो लगते हैं पर सांसारिक नहीं लगते।
ये पात्र नाट्यधर्मी हैं। शब्द से परे संवेदना के अन्तस्थल में निहित सांकेतिक बिम्ब हैं। भारती ने अपने पात्रों के ज़रिए ऐसी जीवनधारा का स्रोत बहाया है जिसमें एक नई वोल्गा से गंगा समाहित है। उसकी धारा में सृष्टि का इतिहास-बोध बह रहा है। सभ्यता के आरम्भिक काल से लेकर उत्तर-आधुनिक भविष्योन्मुख रचना है ‘अगिन तिरिया’ जिसमें अनवरत संघर्ष की नारी-गाथा संयोजित है।
सनातन संघर्ष के विजय-उल्लास का ऐसा सुन्दर दृश्य भारती की यायावरी और हाशिये पर जी रहे आदि-वनवासी और जनजातीय समुदाय की लोकगाथा शैली और विन्यास से रोमांचित होकर सहज ही उपजा है, जहाँ परिकल्पना की ऐसी ऊँचाई है जो गाथा में आकांक्षा की विजय का बिम्ब सँवारती है।
Ek Kanth Vishpai
- Author Name:
Dushyant Kumar
- Book Type:

-
Description:
शिव-सती प्रसंग को आधार बनाकर लिखी गई इस काव्य-नाटिका में दुष्यन्त कुमार ने बड़ी बेबाकी से कई ऐसे प्रसंगों को उठाया है जो हमारे समय में प्रासंगिक हैं। देवताओं में शिव ऐसे मिथक हैं जो औरों से बिलकुल अलग आभावाले हैं। इस शिव की ख़ासियत यही है कि अगर इनका तीसरा नेत्र खुल गया तो फिर दुनिया को ख़ाक होते देर नहीं लगेगी। सभी प्रार्थना करते हैं कि यह नेत्र यूँ ही बन्द रहे। क्या यह शिव उस आम आदमी की शक्ति का पर्याय नहीं जिसके जगने पर सत्ताधीशों को ज़मींदो़ज़ होते देर नहीं लगती। ये सत्ताधीश अपनी भलाई इसी में समझते हैं कि शिव अपना नेत्र बन्द रखें। अर्थात् जनता अपनी शक्ति अपने सामर्थ्य को भूली रहे। वह सोयी ही रहे, किसी भी क़ीमत पर जगने न पाए। यह शिव जो कि एक जन-प्रतीक है, दुनिया भर के विष को अपने कण्ठ में समाहित किए हुए है। चार अंकों में फैला काव्य-नाट्य ‘एक कण्ठ विषपायी’ का वितान कुछ ऐसा ही है।
काव्य-नाटिका ‘एक कण्ठ विषपायी’ में एक पात्र है ‘सर्वहत’ जो अनायास ही उभरकर आधुनिक प्रजा का प्रतीक बन गया। दरअसल यह सर्वहत उस सर्वहारा वर्ग का ही प्रतिनिधि है जो हर जगह उपेक्षित रहता है। एक जगह यह सर्वहत कहता है—‘मैं सुनता हूँ...मैं सब कुछ सुनता हूँ, सुनता ही रहता हूँ, देख नहीं सकता हूँ, सोच नहीं सकता हूँ और सोचना मेरा काम नहीं है। उससे मुझे लाभ क्या मुझको तो आदेश चाहिए। मैं तो शासक नहीं प्रजा हूँ। मात्र भृत्य हूँ केवल सुनना मेरा स्वभाव है।’ क्या आज भी जनता की यही स्थिति नहीं है? वह मूकद्रष्टा की भूमिका में होती है। जनता के सेवक के नाम पर शासन करनेवाले नेता और नौकरशाह अपने को अधिनायक समझने लगते हैं। लोकतंत्र भी आज महज़ एक मज़ाक़ बनकर रह गया है। वंशवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद से आज सभी दल आप्लावित हैं। एक जगह सर्वहत कहता भी है—‘शासन के ग़लत-सलत झोंकों के आगे भी फ़सलों-से विनयी हम बिछे रहे। निर्विवाद हमारे व्यक्तित्व के लहलहाते हुए खेतों से होकर दक्ष ने बहुत-सी पगडंडियाँ बनाईं, कर दीं सब फ़सलें बर्बाद।’
Andher Nagari
- Author Name:
Bhartendu Harishchandra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक 'अंधेर नगरी' भारतेन्दु ने बनारस में नेशनल थियेटर के लिए एक दिन में सन् 1881 में लिखा था जो काशी के दशाश्वमेघ घाट पर उसी दिन अभिनीत भी हुआ था। 'अंधेर नगरी' को रोचक विनोदपूर्ण बनाने के लिए उसका कथात्मक ढाँचा सादा सामान्य रखा है, पर व्यंग्य को तीव्रतर बनाने के लिए ज़रूरी संकेत पहले दृश्य से ही दिए गए हैं। 'अंधेर नगरी' अंग्रेज़ राज्य का ही दूसरा नाम है। संवाद व्यंग्यपूर्ण अभिप्रायमूलक है। समूचा प्रकरण तमाशा जैसा ही है। क्योंकि 'अंधेर नगरी' की अंधेरगर्दी जिस हास्यास्पद परिणति तक दिखाई गई है, वह अकल्पनीय या अविश्वसनीय होते हुए भी यथार्थ के निकट है।
Do Vyangya Natak
- Author Name:
Sharad Joshi
- Book Type:

-
Description:
शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य साहित्य के श्रेष्ठ सृजकों में से एक हैं। साहित्य की रचनात्मक मूल्यवत्ता के प्रति सतत जागरूक रहकर अपने परिवेश, जीवन और समाज की हर छोटी-बड़ी विसंगति को उघाड़ने और उसके मूल पर चोट करने में उन्होंने कहीं चूक नहीं की।
प्रस्तुत पुस्तक में शरद जी के दो व्यंग्य नाटक संगृहीत हैं—‘अन्धों का हाथी’ तथा ‘एक था गधा उर्फ़ अलादाद ख़ाँ।’ दोनों ही नाटक समकालीन राजनीतिक परिदृश्य को प्रस्तुत करने के साथ-साथ राजनीति की अविच्छिन्न अन्तर्धारा और वृत्तियों से गहरा परिचय कराते हैं। एक ओर जनसामान्य तो दूसरी ओर जन-विशेष। सामान्यजन को मूर्ख बनाए रखने तथा इस्तेमाल करते रहने का एक अन्तहीन दुश्चक्र राजनीति का स्वभाव, शौक़, ज़रूरत या कहें कि उसका मौलिक अधिकार है—विडम्बना यह कि वह भी कर्तव्यों की शक्ल में।
राजनीति के तहत सतत घट रही इस मूल्यहंता त्रासदी की गहरी पकड़ इन नाटकों में मौजूद है। लेखक ने सहज अभिनेय नाट्य-शिल्प और सुपाठ्य भाषा-शैली के सहारे अपूर्व व्यंग्यात्मक वस्तु का निर्वाह किया है।
R.U.R.
- Author Name:
Karel Čapek
- Book Type:

- Description: क़रीब एक सदी पूर्व लिखित ‘आर.यू.आर.’ ही वह पुस्तक है जिसमें ‘रोबोट’ शब्द पहली बार आया था। चेक भाषा के ‘रोबोटा’ से गढ़े गए इस शब्द का अर्थ बेगार या बँधुआ मज़दूरों से कराया गया काम होता है। लेखक ने इस नाटक में वैज्ञानिक विकास और मानवीय भविष्य के जटिल सम्बन्धों को लेकर जो भविष्यवाणी थी, वह कल्पना के दायरे को पार कर आज यथार्थ बन चुकी है—मानवीय मेधा के समक्ष ज़बरदस्त चुनौती के रूप में रोबोट आज एक वास्तविकता है।
Aap Na Badlenge
- Author Name:
Mamta Kaliya
- Book Type:

-
Description:
मैंने तुम्हारा नाटक पढ़ लिया था। सबसे पहली बात तो यह कि इसमें एक बहुत ही सामयिक और महत्त्वपूर्ण थीम को उठाया गया है। दहेज के सवाल पर हर स्तर पर कुछ न कुछ लिखा जाना चाहिए और मुझे ख़ुशी है कि तुमने इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए नाटक का सहारा लिया। दूसरे तुम्हारी भाषा में बहुत कसावट है और नाटकीयता भी है। प्रारम्भिक दृश्य बड़े सघन लगते हैं और कार्य-व्यापार में भी एक तरह की नाटकीय क्रूरता का अहसास होता है जो ज़रूरी है।
—नेमिचन्द्र जैन, प्रख्यात रंग-आलोचक
इधर मैंने अपने विद्यार्थियों को 'यहाँ रोना मना है' एकांकी पढ़ाया। एकांकी सबको बहुत अच्छा लगा।
—के.एम. मालती; अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, गवर्नमेंट आर्ट्स एवं साइंस कॉलेज, कालीकट, केरल
Parsi Theater : Udbhav Evam Vikash
- Author Name:
Somnath Gupta
- Book Type:

- Description: डॉ. सोमनाथ गुज ने सन् 1947 में हिन्दी नाटक साहित्य का इतिहास लिखा था । प्रस्तुत रचना में यथास्थान यह बताया गया है कि विक्टोरिया थियोट्रिकल मण्डली की स्थापना से पहले भी पारसियों और गैर-पारसियों की मण्डलियाँ नाटक किया करती थीं परन्तु बड़े और सुदृढस्तर पर नाट्यकला को प्रतिष्ठित करने का श्रेय विक्टोरिया, एलफिनस्टन और जोरास्ट्रियन नाटक मण्डलियों को ही था । इनके सम्बन्ध में गुजराती के साप्ताहिक पत्र ' रास्तगोफ्तार ', में थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है । इसके सम्पादक कैखुसरो कावराजी स्वयं नाटककार, निर्देशक और अभिनेता थे । अंग्रेजी के ' बाम्बे टाइम्स ' और ' बाम्बे कूरियर एण्ड टेलिग्राफ ' की पुरानी फाइलें अनेकों सूचनाओं से भरी पड़ी हैं । महाराष्ट्र सरकार के ' आलेख और पुरातत्व विभाग' की सामग्री जीर्ण-शीर्ण है । सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण गुजराती साप्ताहिक ' कैसरेहिन्द ' है । इसी पत्र में धनजी भाई नसरवानजी पटेल के पारसी नाटक सम्बन्धी अनेकों लेख निरन्तर रूप से प्रकाशित हुए थे । इन लेखों में अधिकांशत: पारसी अभिनेताओं की चर्चा है । कुछ नाटक मण्डलियों, उनके मालिकों और निर्देशकों का विवरण भी आ गया है । जहाँगीर खम्बाता की रचना ' मारो नाटकी अनुभव ' भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है । सभी नाटक मण्डलियाँ जहाँगीर की अभिनय-कला और निर्देशन शक्ति का लोहा मानती थी । सबसे अधिक उपयोगी और प्रमाणित वे दीबाचे (भूमिकाएँ) है जो किसी-किसी नाटक के आदि में मिलते हैं । इन दीबाचों से यह पता चलता है कि नाटक किसने लिखा? किस नाटक मण्डली के लिए लिखा? कब उसका प्रकाशन हुआ? तथा नाटककार का नाटक-विशेष के लिए क्या दृष्टिकोण है? प्रस्तुत कृति में सभी प्राप्य और दुधार सामग्री का उपयोग किया गया है । ऐसा ग्रंथ हिन्दी में पारसी थियेटर पर नहीं लिखा गया जिसमें मूलभूत स्रोतों पर अवलम्बित इतनी अधिक सामग्री मिलती हो ।
Maseeha Aur Anya Ekanki
- Author Name:
Sagar Sarhadi
- Book Type:

-
Description:
ज़िन्दगी के कुछ आधारभूत मूल्य होते हैं जिन पर इंसानियत की आख़िरी उम्मीद टिकी होती है। वे हर दौर, हर मुश्किल में साधनों और सुखों से वंचित, हारे हुए लोगों का भरोसा बनते हैं, उन्हें दिलासा और हौसला देते हैं। ग़लत और सही का फ़र्क़, रिश्ते-नाते-दोस्ती, हमदर्दी, यक़ीन, एक-दूसरे की मदद करने का जज़्बा और आख़िरी साँस तक लड़ने को कटिबद्ध जिजीविषा, ये मनुष्य की आन्तरिक दुनिया के कुछ ऐसे पाए हैं जो हमारे लालच और हैवानियत के घुन से जर्जर हो चुके संसार को हर हाल में थामे रहते हैं।
सागर सरहदी के इन एकांकी नाटकों की भीतरी तहों में यही क़द्रें बहती हैं और ज़िन्दगी की तमाम विपरीत परिस्थितियों में कुछ ज़्यादा रोशन होकर हमें अपनी मौजूदगी का अहसास कराती हैं। समाज के वास्तविक हालात को सागर साहब बिना किसी लाग-लपेट के देखते और अंकित करते हैं। ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, अपने मन का काम न कर पाने की पीड़ा, पछतावा, अकेलापन, सब कुछ को लेकर गहरा व्यर्थता-बोध—यानी डरावने वक़्तों की कोई भी शक्ल उनकी निगाह से नहीं छूटती। वे पूरी शिद्दत और सचाई से उनके ख़ाके खींचते हैं, और उतनी ही शिद्दत से उनके लाचार, समाज के हाशिये पर पहुँच चुके, परेशानहाल किरदार उन चीज़ों से लोहा लेते हैं, उन्हें सीधे अपनी रूह पर झेलते हैं।
'एक शाम और गुज़र गई' के हताश, तंगहाल लेकिन ज़िन्दादिल, सपनों को सच की तरह जीने वाले अदाकार-कलाकार हों, 'एहसास की चुभन' में अधूरे प्यार की विडम्बना हो, महानगरों में घर की समस्या पर फ़लसफ़ियों की तरह बतियाता 'एक बँगला बने न्यारा' हो या अभाव, लाचारी और इनसे पैदा होने वाली चारित्रिक कमज़ोरी को बयान करनेवाला 'दायरा', सागर सरहदी हर एकांकी में सामाजिक-आर्थिक विडम्बनाओं को उनके क्रूरतम रूप में पकड़ते हैं।
इस संग्रह में शामिल सभी एकांकी न सिर्फ़ कंटेंट और शिल्प के लिहाज़ से, बल्कि मंच-तकनीक के लिहाज़ से भी जितने पठनीय हैं, उतना ही सहज इनको मंच पर उतारना भी है। कम पात्रों के साथ, चुस्त संवादों से जटिल और दिलचस्प जीवन-दृश्यों को साकार करने में सक्षम ये छोटे-छोटे नाटक आज़ादी बाद के कुछ दशकों के समाज-मनोविज्ञान का पता भी देते हैं, रूमान और बदलाव की कामना जिसका अभिन्न हिस्सा थे।
Bali
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

-
Description:
मौजूदा समय में नैतिक ईमानदारी का अभिप्राय सिर्फ़ उसको सिद्ध कर देने-भर से होता है। वह कोई सामाजिक संस्था हो या राजनीतिक अथवा न्यायिक, उसको भी हमसे जवाब-तलब करने का अधिकार है, उसे संतुष्ट करने के लिए बस इतना काफ़ी है कि हम सबूतों के आधार पर अपनी पवित्रता को साबित कर दें। और, दुर्भाग्य से ईश्वरीय सत्ता भी उसी श्रेणी में आ गई लगती है। लेकिन नैतिकता की एक कसौटी अपना आत्म भी है और यही वह प्रामाणिक कसौटी है जो हमें हिप्पोक्रेसी और सच साबित कर दिए गए असत्यों की तहों में दुबके सतत दरों से हमें मुक्त करती है, हमारे पार्थिव संसार में सचाई और नैतिकता की व्यावहारिक स्थापना करती है।
यह नाटक इसी कसौटी के बारे में है। नाटक का विषय पशु-बलि है और कथा बताती है कि बलि आख़िर बलि है, वह जीते-जागते जीव की हो या आटे से बने पशु की। हिंसा तो तलवार चलाने की क्रिया में है, इसमें नहीं कि वह किस पर चलाई गई है।
हिंसा का यह विषयनिष्ठ, सूक्ष्म और उद्वेलक विश्लेषण गिरीश कारनाड ने एक पौराणिक कथा के आधार पर किया है जिसे उन्होंने तेरहवीं सदी के एक कन्नड़ महाकाव्य से लिया है। गिरीश कारनाड के नाटक हमेशा ही सभ्यता के शाश्वत द्वन्द्वों को रेखांकित करते हैं, यह नाटक भी उसका अपवाद नहीं है।
Viththala
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

-
Description:
ज़िन्दगी बड़ी सहज होती है। हाय-हाय, भाग-दौड़ से वह सहजता नहीं रह पाती। कभी-कभी अति महत्वाकांक्षाएँ ऐसी अँधेरी गुफा में ला छोड़ती हैं, कि हाथ मलना ही शेष रह जाता है, ज़िन्दगी एक छलावा बनकर रह जाती है।
विट्ठला भी बड़ा महत्त्वाकांक्षी था। ग़रीब परिवार की मर्यादा भूलकर, ऐशो-आराम का जीवन जीना चाहता था, लेकिन क्या हुआ? ऊँचे परिवार की एक विधवा से क्या दिल लगा बैठा कि अकाल मृत्यु का ग्रास बन गया।
अब उसकी अतृप्त आत्मा भटकती रहती है—पश्चात्ताप करने के लिए। लेकिन उसे ऐसा कोई उपयुक्त पात्र नहीं मिलता जिसकी मदद करके वह भूत योनि में भी कुछ पुण्य अर्जित कर सके।
सुप्रसिद्ध नाटककार विजय तेन्दुलकर की ऐसी रोचक नाट्य-कृति जिसमें सामाजिक विसंगतियों, धर्माडम्बरों और चली आ रही पुरानी कुरीतियों पर सटीक रूपक के माध्यम से तीखा प्रहार किया गया है। तेन्दुलकर के अन्य नाटकों की तरह रंगशिल्प और भाषायी रोचकता के लिहाज़ से एक सक्षम नाट्य-कृति।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.