Sampurna Natak : Bhishm Sahani : Vols. : 1-2
Author:
Bhisham SahniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 1400
₹
1750
Available
(खंड - 1) भीष्म साहनी का रंगमंच से रिश्ता सिर्फ़ नाटककार का नहीं था। वे उसके हर पहलू से जुड़े थे। उन्होंने अभिनय भी किया, निर्देशन में भी हाथ आज़माया और लगभग आधा दर्जन मौलिक नाटकों की रचना करके नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित तो हुए ही।</p>
<p>इस पुस्तक में भीष्म जी के उन्हीं नाटकों को रखा गया है। मंचानुकूल शिल्प व सम्प्रेषणीयता से समृद्ध ये नाटक अपने कथ्य में भी रचनात्मक और हस्तक्षेपकारी रहे हैं। ‘हानूश’ जिसका मूल मंतव्य सत्ता के दमनकारी चरित्र को रेखांकित करना और रचनाकार की स्वाधीनता का आह्वान करना है, उस वक़्त सामने आया जब देश इमरजेंसी के दौर से गुज़र रहा था। ‘मुआवज़े’ की कहानी साम्प्रदायिक दंगे से ग्रस्त शहर के सामाजिक और प्रशासनिक विद्रूप को दिखाती है। ‘कबिरा खड़ा बजार में’, ‘आलमगीर’, ‘रंग दे बसन्ती चोला’ और महाभारत की एक कथा पर आधारित ‘माधवी’ में भी भीष्म जी ने अपने समय की ज़रूरतों और चुनौतियों को नज़रअन्दाज़ नहीं किया है।</p>
<p>इस संकलन में शामिल सभी नाटक सार्थकता और मंचीयता, दोनों का सन्तुलन साधते हुए समकालीन नाटककार के सामने एक मानक प्रस्तुत करते हैं। पुस्तक में शामिल भीष्म जी का प्रसिद्ध आलेख ‘रंगमंच और मैं’ इस पुस्तक का विशेष आकर्षण है।</p>
<p> </p>
<p>(खंड - 2) ‘दावत’, ‘अहं ब्रह्मास्मि’, ‘ख़ून का रिश्ता’ और ‘साग-मीट’—ऐसी अनेक कहानियाँ हैं जो हिन्दी कथा-साहित्य को भीष्म साहनी की अप्रतिम देन हैं। मध्यवर्गीय जीवन और मानसिकता की विडम्बनाओं पर तीखी प्रगतिशील दृष्टि से लिखी गई उनकी कहानियों ने अपना एक अलग संवेदना-संसार निर्मित किया।</p>
<p>भीष्म साहनी के सम्पूर्ण नाटकों के इस आयोजन में यह दूसरा खंड उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानियों के नाट्य-रूपान्तरणों पर केन्द्रित है। ये रूपान्तरण उन्होंने स्वयं ही रेडियो के लिए किए थे। कुछ टीवी के लिए भी। रेडियो के लिए किए गए कुछ रूपान्तरण बाद में टीवी पर भी प्रसारित किए गए।</p>
<p>आज जब ‘कहानी का रंगमंच’ समकालीन हिन्दी थिएटर की अहम गतिविधि बन चुका है, इन रूपान्तरणों को मंच की दृष्टि से पढ़ना एक अलग अनुभव है। कहानी में निहित नाटकीयता को किस कोण पर कैसे पकड़ा जाए और कैसे उसको एक जीते-जागते नाटक में तब्दील कर दिया जाए, यह कथाकार-नाटककार भीष्म साहनी ने स्वयं ही इन रूपान्तरणों में स्पष्ट कर दिया है।</p>
<p>जिन कहानियों के नाट्य-रूपान्तरण इस खंड में शामिल हैं, वे हैं—‘दावत’, ‘साग-मीट’, ‘अहं ब्रह्मास्मि’, ‘निमित्त’, ‘खिलौने’, ‘आवाज़ें’, ‘झूमर’, ‘झुटपुटा’, ‘मक़बरा शाह शेर अली’, ‘गंगो का जाया’, ‘ख़ून का रिश्ता’, ‘समाधि भाई रामसिंह’, ‘तद्गति’ और ‘कंठहार’।</p>
<p>उम्मीद है कि अपनी परिचित कहानियों का स्वयं कथाकार द्वारा प्रस्तुत यह नाट्य-रूप पाठकों को उपयोगी और उत्कृष्ट लगेगा।
ISBN: 9788126718351
Pages: 984
Avg Reading Time: 33 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Ajatshatru
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

-
Description:
प्रसाद के नाटकों की दीवारें प्राय: इतिहास की नींव पर ही खड़ी हैं। लेकिन अजातशत्रु में उन्होंने ऐतिहासिक परम्परा और कल्पना का सजग सम्मिश्रण किया है। अधिकांश पात्र, घटना-क्रम और कथा-विस्तार भी इतिहास सम्मत है।
अन्तर्द्वन्द्व इस नाटक का मूलाधार है। मगध, कौशल और कौशम्बी में प्रज्वलित विरोधाग्नि इस पूरे नाटक में फैली हुई है। उत्साह और शौर्य से परिपूर्ण इस नाटक में वीर-रस की ही प्रधानता है।
Ek Kanth Vishpai
- Author Name:
Dushyant Kumar
- Book Type:

-
Description:
शिव-सती प्रसंग को आधार बनाकर लिखी गई इस काव्य-नाटिका में दुष्यन्त कुमार ने बड़ी बेबाकी से कई ऐसे प्रसंगों को उठाया है जो हमारे समय में प्रासंगिक हैं। देवताओं में शिव ऐसे मिथक हैं जो औरों से बिलकुल अलग आभावाले हैं। इस शिव की ख़ासियत यही है कि अगर इनका तीसरा नेत्र खुल गया तो फिर दुनिया को ख़ाक होते देर नहीं लगेगी। सभी प्रार्थना करते हैं कि यह नेत्र यूँ ही बन्द रहे। क्या यह शिव उस आम आदमी की शक्ति का पर्याय नहीं जिसके जगने पर सत्ताधीशों को ज़मींदो़ज़ होते देर नहीं लगती। ये सत्ताधीश अपनी भलाई इसी में समझते हैं कि शिव अपना नेत्र बन्द रखें। अर्थात् जनता अपनी शक्ति अपने सामर्थ्य को भूली रहे। वह सोयी ही रहे, किसी भी क़ीमत पर जगने न पाए। यह शिव जो कि एक जन-प्रतीक है, दुनिया भर के विष को अपने कण्ठ में समाहित किए हुए है। चार अंकों में फैला काव्य-नाट्य ‘एक कण्ठ विषपायी’ का वितान कुछ ऐसा ही है।
काव्य-नाटिका ‘एक कण्ठ विषपायी’ में एक पात्र है ‘सर्वहत’ जो अनायास ही उभरकर आधुनिक प्रजा का प्रतीक बन गया। दरअसल यह सर्वहत उस सर्वहारा वर्ग का ही प्रतिनिधि है जो हर जगह उपेक्षित रहता है। एक जगह यह सर्वहत कहता है—‘मैं सुनता हूँ...मैं सब कुछ सुनता हूँ, सुनता ही रहता हूँ, देख नहीं सकता हूँ, सोच नहीं सकता हूँ और सोचना मेरा काम नहीं है। उससे मुझे लाभ क्या मुझको तो आदेश चाहिए। मैं तो शासक नहीं प्रजा हूँ। मात्र भृत्य हूँ केवल सुनना मेरा स्वभाव है।’ क्या आज भी जनता की यही स्थिति नहीं है? वह मूकद्रष्टा की भूमिका में होती है। जनता के सेवक के नाम पर शासन करनेवाले नेता और नौकरशाह अपने को अधिनायक समझने लगते हैं। लोकतंत्र भी आज महज़ एक मज़ाक़ बनकर रह गया है। वंशवाद, परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद से आज सभी दल आप्लावित हैं। एक जगह सर्वहत कहता भी है—‘शासन के ग़लत-सलत झोंकों के आगे भी फ़सलों-से विनयी हम बिछे रहे। निर्विवाद हमारे व्यक्तित्व के लहलहाते हुए खेतों से होकर दक्ष ने बहुत-सी पगडंडियाँ बनाईं, कर दीं सब फ़सलें बर्बाद।’
Kamla
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

-
Description:
कमला इस पुरुष प्रधान समाज में शताब्दियों से जिन्दा है। कहीं उसे बाजार हाट से पशुओं की तरह खरीद लिया जाता है तो कहीं दान-दहेज में लिपटी चीज की तरह प्राप्त किया जाता है। नाम चाहे उसका सरिता हो या कुछ और, रहती वह कमला ही है। लेकिन इस मुर्दा समाज में शताब्दियों से जिन्दा यह नारी-देह आखिर कब तक रूह-विहीन रखी जाएगी, यह सवाल कमला में पूरी गम्भीरता से उठाया गया है।
सुविख्यात मराठी नाटककार विजय तेन्दुलकर की यह नाट्यकृति हिन्दी रंगमंच और साहित्यिक हलकों में विशेष चर्चित रही है। विशेषकर इसलिए भी कि पत्रकारिता के कैरियरिस्ट दिमाग से अखबारी पन्नों पर उछाली गई कमला जिस समाज-व्यवस्था और मानसिक सड़ाँध का परिणाम है, उसकी ओर भी सार्थक संकेत किया गया है। हमारे समाज के तथाकथित आभिजात्य, उसके आयातित सांस्कृतिक मिजाज और जगमग सभ्यता का यह ढोंग ही होगा कि वह अपनी मानवीय संवेदना और सामाजिक जागरूकता का ढोल पीटता फिरे तथा अधिसंख्य अनपढ़ आम भारतीय को बड़े घरानों के अंग्रेजी अखबारों के जरिये सचेत करने की डींग हाँके। काका के माध्यम से इस अखबारी प्रवृत्ति पर तेन्दुलकर ने गहरी चोट की है। नारी की खरीद- फरोख्त और उसकी गुलामी को सप्रमाण पेश करने- वाले पत्रकार जयसिंह जाधव का असली नारी-दर्शन क्या है, इसे सरिता के प्रति उसके व्यवहार से जाना जा सकता है । साथ ही एक अर्थपूर्ण संकेत इसमें यह भी है कि पत्नी के रूप में सरिता को अपनी परतंत्रता का बोध अपने स्वतंत्रचेता पति के बजाय उसी कमला से हुआ जो गुलाम और गुलामी के प्रमाणस्वरूप इस नाटक के केन्द्र में है। वास्तव में विजय तेन्दुलकर की यह नाट्यरचना नारी-मुक्ति आन्दोलन के इस युग में उन बुनियादी सवालों तक ले जाती है, जहाँ से इस विषय पर एक कारगर बहस शुरू हो सकती है।
Aap Na Badlenge
- Author Name:
Mamta Kaliya
- Book Type:

-
Description:
मैंने तुम्हारा नाटक पढ़ लिया था। सबसे पहली बात तो यह कि इसमें एक बहुत ही सामयिक और महत्त्वपूर्ण थीम को उठाया गया है। दहेज के सवाल पर हर स्तर पर कुछ न कुछ लिखा जाना चाहिए और मुझे ख़ुशी है कि तुमने इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए नाटक का सहारा लिया। दूसरे तुम्हारी भाषा में बहुत कसावट है और नाटकीयता भी है। प्रारम्भिक दृश्य बड़े सघन लगते हैं और कार्य-व्यापार में भी एक तरह की नाटकीय क्रूरता का अहसास होता है जो ज़रूरी है।
—नेमिचन्द्र जैन, प्रख्यात रंग-आलोचक
इधर मैंने अपने विद्यार्थियों को 'यहाँ रोना मना है' एकांकी पढ़ाया। एकांकी सबको बहुत अच्छा लगा।
—के.एम. मालती; अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, गवर्नमेंट आर्ट्स एवं साइंस कॉलेज, कालीकट, केरल
Arthdosh
- Author Name:
Albert Camus
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
विश्वविख्यात फ्रेंच लेखक अल्बैर कामू की यह नाट्यकृति मनुष्य की अछोर, लेकिन अपूर्ण सुखाकांक्षाओं से उपजी क्रूरता का ऐसा दृश्यालेख है, जो हमें हतप्रभ कर देता है।
नाटक की नायिका मार्था अपनी बूढ़ी माँ के साथ एक सराय में एक छोटा होटल चलाती है। लेकिन उस स्थान की अनाकर्षक और असुविधाजनक स्थिति उसे पसन्द नहीं। वह कहीं सुदूर समुद्र तट पर जाकर रहना और जीवन के तमाम सुख पाना चाहती है—उबरना चाहती है अपने चुकते हुए उबाऊ और नीरस जीवन से। किन्तु इसके लिए बहुत-सा धन चाहिए, इसलिए वह अपने यहाँ कभी-कभार ठहरनेवाले मुसाफिरों को जहर देकर मार डालती है। इस काम में वह अपनी बूढ़ी माँ को भी साथ रखती है। एक दिन जब बीस साल पहले घर से गया उसका भाई, जॉन, एक मुसाफिर की ही तरह आकर वहाँ ठहरता है, तो माँ के साथ मिलकर वह उसकी भी हत्या कर देती है। सचाई सामने आने पर माँ की व्यथा, विलाप और पश्चात्ताप का उसे कोई मूल्य नहीं दिखता, क्योंकि सिर्फ अपने बेटे की हत्या पर सदय और मानवीय हो उठना दूसरी तमाम हत्याओं के अपराध को कम नहीं कर सकता।
यही वह कठोर जीवन-यथार्थ है, जिसे झेलने के लिए वह जॉन की पत्नी मारिया को पत्थर हो जाने की सलाह देती है, ताकि इस अमानवीय समाज का सामना किया जा सके।
कहने की जरूरत नहीं कि अपने ही सुख की तलाश और परिस्थितिवश उसमें असफल रहने के कारण हद दर्जे तक क्रूर हो चुकी मार्था जैसी स्त्री भी अर्थदोष से ग्रस्त इस पत्थरदिल समाज पर एक तीखा व्यंग्य बनकर उभरती है।
Skandgupt
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Chaar Natak
- Author Name:
Shyam Manohar
- Book Type:

- Description: “मराठी की रंगपरम्परा बहुत समृद्ध और सजीव रही है और उसका प्रभाव हिन्दी पर भी पड़ा है। मराठी और हिन्दी के बीच रंगमंच और नाटक के क्षेत्र में लगातार आदान-प्रदान होता रहा है। मराठी के प्राय: सभी बड़े आधुनिक नाटककारों के नाटक हिन्दी में अनूदित हुए और अनेक निर्देशकों द्वारा कई शहरों में खेले जाते रहे हैं। श्याम मनोहर के ‘चार नाटक’ मराठी-हिन्दी के विद्वान् निशिकान्त ठकार द्वारा अनूदित होकर यहाँ पहली बार हिन्दी में प्रकाशित हो रहे हैं। रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत अन्य भारतीय भाषाओं से अच्छी और प्रासंगिक सामग्री हिन्दी में लाने के हमारे प्रयत्न का यह हिस्सा है।”
Sampurna Natak : Mrinal Pandey
- Author Name:
Mrinal Pande
- Book Type:

-
Description:
विख्यात कथाकार, पत्रकार और समाज-चिन्तक मृणाल पाण्डे के नाटकों का यह संग्रह उनके एक और महत्त्वपूर्ण रचना-पक्ष को सामने लाता है। नाटककार के रूप में उनकी यात्रा अस्सी के दशक से शुरू हुई और अपनी तमाम कार्यकारी तथा रचनात्मक व्यस्तताओं के बीच समय-समय पर उन्होंने इसे बरक़रार रखा। उनका पहला नाटक ‘मौजूदा हालात को देखते हुए’ था जिसका प्रकाशन ‘नटरंग’ में और भोपाल में मंचन भी हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी कोई प्रतिलिपि अब प्राप्य नहीं है। यही स्थिति उनके रेडियो नाटकों की भी है, जिनमें से अधिकांश आकाशवाणी के आर्काइव्ज़ में गुम हैं। सो इस संग्रह में दो ही रेडियो नाटक शामिल हो सके हैं, ‘सुपर मैन की वापसी’ और ‘धीरे-धीरे रे मना’।
पुस्तक के मुख्य भाग में मृणाल जी के पाँच पूर्णकालिक नाटक हैं जो न केवल नाटककार के रूप में उनकी प्रतिभा के परिचायक हैं बल्कि उनकी वैचारिक आत्मनिर्भरता को भी रेखांकित करते हैं। संग्रह का पहला नाटक ‘जो राम रचि राखा’ उस दौर में लिखा गया था जब हिन्दी में जनवादी तर्ज की ‘प्रतिबद्धता’ धार्मिक आस्था की तरह स्थापित थी। उस दौर में उन्होंने इस नाटक के पात्र मन्ना सेठ के हास्यास्पद क्रान्ति-स्वप्नों के माध्यम से अपने समाज से अपरिचित और निरर्थक प्रतीकों से भरी तत्कालीन वैचारिक दुनिया की तरफ़ इशारा किया। इस पर उनको आलोचना भी सहनी पड़ी।
आलोचना उन्हें अपने नवीनतम नाटक ‘शर्मा जी की मुक्तिकथा’ (2002) पर भी मिली जिसको आलोचकों ने जटिल और ‘बहुत प्रयोगधर्मी’ कहा। लेकिन इस सबके बावजूद मृणाल पाण्डे का नाटककार अपने समय की जटिलताओं का सामना करता रहा। उनका मानना है कि “अपनी सच्ची स्थिति को, वह चाहे जितनी भी जटिल क्यों न हो, परिभाषित करना हर लेखक की लेखकीय अनिवार्यता है।” उनके एक पहले नाटक ‘आदमी जो मछुआरा नहीं था’ का फोकस ही यह है कि मनुष्य के लिए उसकी स्वतंत्रता और नियति अन्तत: एक निजी सवाल है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि मृणाल पाण्डे के ये सभी नाटक मंच की कसौटी पर भी खरे उतर चुके हैं। इसलिए सिर्फ़ पाठक ही नहीं, रंगकर्मी भी इस संकलन को उपयोगी पाएँगे और हमें उम्मीद है कि इससे उनकी यह शिकायत काफ़ी हद तक दूर हो जाएगी कि हिन्दी में मंचन करने लायक मौलिक नाटक नहीं लिखे जा रहे।
Mansukhlal Majidiya
- Author Name:
Labhshankar Thakur
- Book Type:

- Description: Mansukhlal Majidiya
Shri Maithlisharan Gupt Ke Natak
- Author Name:
Maithlisharan Gupt
- Book Type:

-
Description:
श्रीमैथिलीशरण गुप्त के नाटकों का यह संग्रह एक साथ प्रकाशित होने के कारण ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस अर्थ में और भी महत्त्वपूर्ण है कि अभी तक अप्रकाशित, ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन’, नाटकों के पहली बार प्रकाशन के कारण अधिकतर मूल्यवान है। इसमें पाँच मौलिक और चार अनूदित कुल नौ नाटक सम्मिलित हैं। इन सभी प्रकार के नाटकों के चयन में गुप्त जी ने वैविध्य का ध्यान रखा है। इन नाटकों का मुख्य उद्देश्य अपने समय के महत्त्वपूर्ण और चुनौती-भरे प्रश्नों का उत्तर देना रहा है।
‘अनघ’ नाटक अहिंसा, करुणा, लोक-सेवा आदि पर आधारित है। ‘विसर्जन’ में पहली बार बेगार प्रथा की ख़िलाफ़त की गई है। यह बेगार प्रथा और शोषण के ख़िलाफ़ सशक्त नाटक है। ‘निष्क्रिय-प्रतिरोध’ दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग पर केन्द्रित है जो महात्मा गांधी द्वारा कुलियों पर किए गए अत्याचार के विरोध की याद दिलाता है। महाकवि भास के संस्कृत नाटकों के किए गए अनुवादों में पारिवारिकता, उदारता, सत्याग्रह, लोक-सेवा, अन्तरात्मा की प्रतिध्वनि और अहिंसा आदि मूल्यों की मार्मिक अभिव्यक्ति है। श्रीमैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित इस संग्रह के नाटक उनके समय के प्रश्नों को समझाने और उनका उत्तर खोजने के अतिरिक्त आज के नारी-विमर्श एवं दलित-विमर्श के चिन्तन को भी रेखांकित करते हैं।
Bahu Aks Paheli
- Author Name:
Tripurari Sharma
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Dhruvswamini
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

- Description: गुप्त काल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में रचा गया नाटक ‘ध्रुवस्वामिनी’ जयशंकर प्रसाद की अन्तिम नाट्य-कृति है जिसे उनकी श्रेष्ठतम नाट्य-रचना भी माना जाता है। मंचन की दृष्टि से भी अत्यन्त सफल रहे इस नाटक की घटनाओं का इतिहास-सम्मत तथ्यों की रोशनी में विवेचन भी प्रसाद ने इस पुस्तक में किया है। नाटक की कथा गुप्तवंश के शासक रामगुप्त की पत्नी ध्रुवस्वामिनी के इर्द-गिर्द घूमती है और प्राचीन भारत में स्त्री के आत्मसम्मान तथा साहस को रेखांकित करती है। रामगुप्त की उपेक्षा और सन्देह की शिकार ध्रुवस्वामिनी कायर राजा के निर्णय का सशक्त प्रतिरोध कर अपने सम्मान की रक्षा करती है तथा चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर राज्य के शत्रु शकराज से भी मुक्ति पाती है। यह नाटक भारतीय स्त्री का एक अनूठा चित्र प्रस्तुत करता है जिसमें नारीसुलभ कोमल भावनाओं के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम तथा अपने निजी सम्मान का अद् भुत सम्मेल देखने को मिलता है। नाटक की भाषा संस्कृतनिष्ठ होते हुए भी इतनी प्रवहमान है कि हर पात्र तथा हर परिस्थिति का जैसे एक चित्र हमारे सामने उभरता चलता है। बहुत ज़्यादा पात्र का न होना इसे मंच-संयोजन के लिहाज़ से भी एक अच्छे नाटक का रूप देता है।
Dharti Aaba
- Author Name:
Hrishikesh Sulabh
- Book Type:

-
Description:
...“इतने दिन बीत गए और मैं आज तक मुंडाओं को उनका राज नहीं दिला सका। गुलामी का अँधेरा उनके ऊपर पहले की तरह ही छाया हुआ है। ...पर कुछ दरवाज़े तो खुले हैं।...थोड़ी उजास तो आ रही है। मैंने उनके कई बन्धनों को खोल दिया है। अब वे असुरों की पूजा नहीं करते। अब वे प्रेतों से नहीं डरते। अब उन्होंने पहानों-ओझाओं को भेंट चढ़ाना बन्द कर दिया है।...पर मैंने यह कैसी राह चुन ली। इतनी कठिन राह! क्या वे सब इस राह पर चल सकेंगे? जानता हूँ मैं, यह एक कठिन राह है। जब पैर बढ़ाओ, तब काँटे। पर यही एक राह है जिस पर चलकर मुंडा गोरे साहबों के डर और पकड़ से आज़ाद हो सकते हैं। यह जो कुछ हो रहा है, क्या यह सब मैं कर रहा हूँ? नहीं, मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता।...मैं तो बस उनकी साँसों में...उनके मन में,...उनकी आत्माओं में...उनकी नसों में एक तेज़ तूफ़ान की तरह रहना चाहता हूँ। उन्होंने मुझे अपना पिता कहा और मैंने उनका पिता बनना स्वीकार किया। वे ग़ुलामी के बन्धन से छूटना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें भरोसा चाहिए, और उन्होंने उस भरोसे को मेरे भीतर पाया।...उन्हें एक भगवान चाहिए, वे धर्म के बिना न तो जी सकते हैं और न ही मर सकते हैं। जनम-जनम से वे सिंबोङा को पूजते रहे, पर सिंबोङा ने उनकी सुधि नहीं ली। मेरे ऊपर उनके भरोसे ने उन्हें मेरे भीतर भगवान दिखाया। उन्होंने मुझे अपना भगवान माना और मुझे उनका भगवान बनना पड़ा। क्या करता मैं? उनके भरोसे को कैसे तोड़ता? मैं जानता हूँ दिकुओं, ज़मींदारों, साहेबों की ताक़त को। पर बिना लड़े कुछ नहीं हो सकता। हार के डर से लड़ने को रोका नहीं जा सकता। मैं जानता हूँ बन्दूक की ताक़त। मालूम है मुझे कि संथाल हूल में हारे, कोल, खरुआ और सरदार हारे, पर लड़ाई सिर्फ़ हार-जीत नहीं होती।...मुझे अपना अन्त मालूम है, पर मैं जानता हूँ कि उनकी जीत उनके भरोसे में ही छिपी है।...हाँ मैं आबा हूँ इस धरती का...भगवान हूँ मुंडाओं का...। मैंने मिशन में प्रभु यीशु की प्रशंसा में सुना था कि एक रोटी में उन्होंने हज़ारों-हज़ार लोगों की भूख मिटाई थी। आनन्द पांडे के घर सुना था कि भक्त प्रह्लाद के लिए भगवान ने सिंह का रूप धरा और खम्भा से निकलकर उसके मामा को मार डाला। मैं भी उन्हीं की तरह हूँ। लँगोटी पहने, तीर-धनुही लिये, भूखे पेट मुंडाओं को मैंने निडर किया है। आज हर मुंडा निडर है और दुनिया पर राज करनेवाले साहेबों के सामने छाती ताने खड़ा है।”
—इसी पुस्तक से
Barbareek Uvach
- Author Name:
Kunal
- Book Type:

- Description: Drama
Ramlila : Parampara Aur Shailiya
- Author Name:
Induja Awasthi
- Book Type:

- Description: हिन्दी-भाषी क्षेत्र की सबसे प्राचीन और समृद्ध नाट्य परम्परा–रामलीला–की सर्वांगीण झाँकी पहली बार इस पुस्तक में पाठकों को मिलेगी। रामलीला की ऐतिहासिक भूमिका, सुसंस्कृत और मध्ययुगीन नाट्य परम्परा से उसका सम्बन्ध, नाटकीय संवादों के स्रोत, सामाजिक, सांस्कृतिक पुस्तक, प्रदर्शन और अभिनय के व्यवहार, क्षेत्रीय शैलियाँ, रामलीला की रंगमंचीय परम्परा–सभी पक्षों का गंभीर विवेचन इस पुस्तक की विशेषता है। रामचरितमानस का गहरा प्रभाव रामनगर, वाराणसी की विशिष्ट रामलीला शैली पर है। इस पुस्तक में नितान्त नयी सामग्री प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत की गई है। एक अध्याय में रामकथा पर आधारित देश के विभिन्न भागों में प्रचलित पारम्परिक नाट्य-रूपों की चर्चा रामलीला की परम्परा को अखिल भारतीय सन्दर्भ प्रदान करती है। लेखिका ने एक ओर तो स्थान-स्थान के रामलीला प्रदर्शन देखकर तथ्य एकत्र किये और दूसरी ओर अपने चार दशकों के गहरे और व्यावहारिक रंगमंचीय अनुभव के आधार पर इस विवेचन को ऐसा रंग-बोध दिया है जो हिन्दी के नाट्य-अनुसन्धान में सर्वथा नया है। अन्तिम परिशिष्ट में दक्षिण एशियाई देशों की नृत्यनाट्य और रूपांकन कलाओं में रामायण के गहरे प्रभाव का विवेचन पुस्तक की उपादेयता को बढ़ा देता है।
Parsi Theater : Udbhav Evam Vikash
- Author Name:
Somnath Gupta
- Book Type:

- Description: डॉ. सोमनाथ गुज ने सन् 1947 में हिन्दी नाटक साहित्य का इतिहास लिखा था । प्रस्तुत रचना में यथास्थान यह बताया गया है कि विक्टोरिया थियोट्रिकल मण्डली की स्थापना से पहले भी पारसियों और गैर-पारसियों की मण्डलियाँ नाटक किया करती थीं परन्तु बड़े और सुदृढस्तर पर नाट्यकला को प्रतिष्ठित करने का श्रेय विक्टोरिया, एलफिनस्टन और जोरास्ट्रियन नाटक मण्डलियों को ही था । इनके सम्बन्ध में गुजराती के साप्ताहिक पत्र ' रास्तगोफ्तार ', में थोड़ी-बहुत जानकारी मिलती है । इसके सम्पादक कैखुसरो कावराजी स्वयं नाटककार, निर्देशक और अभिनेता थे । अंग्रेजी के ' बाम्बे टाइम्स ' और ' बाम्बे कूरियर एण्ड टेलिग्राफ ' की पुरानी फाइलें अनेकों सूचनाओं से भरी पड़ी हैं । महाराष्ट्र सरकार के ' आलेख और पुरातत्व विभाग' की सामग्री जीर्ण-शीर्ण है । सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण गुजराती साप्ताहिक ' कैसरेहिन्द ' है । इसी पत्र में धनजी भाई नसरवानजी पटेल के पारसी नाटक सम्बन्धी अनेकों लेख निरन्तर रूप से प्रकाशित हुए थे । इन लेखों में अधिकांशत: पारसी अभिनेताओं की चर्चा है । कुछ नाटक मण्डलियों, उनके मालिकों और निर्देशकों का विवरण भी आ गया है । जहाँगीर खम्बाता की रचना ' मारो नाटकी अनुभव ' भी बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है । सभी नाटक मण्डलियाँ जहाँगीर की अभिनय-कला और निर्देशन शक्ति का लोहा मानती थी । सबसे अधिक उपयोगी और प्रमाणित वे दीबाचे (भूमिकाएँ) है जो किसी-किसी नाटक के आदि में मिलते हैं । इन दीबाचों से यह पता चलता है कि नाटक किसने लिखा? किस नाटक मण्डली के लिए लिखा? कब उसका प्रकाशन हुआ? तथा नाटककार का नाटक-विशेष के लिए क्या दृष्टिकोण है? प्रस्तुत कृति में सभी प्राप्य और दुधार सामग्री का उपयोग किया गया है । ऐसा ग्रंथ हिन्दी में पारसी थियेटर पर नहीं लिखा गया जिसमें मूलभूत स्रोतों पर अवलम्बित इतनी अधिक सामग्री मिलती हो ।
Kutte
- Author Name:
Vijay Tendulkar
- Book Type:

- Description: से दूर पिछड़े क्षेत्र में नियुक्त एक सेल्समैन, उसका एक बेहद चतुर-दुनियादार सहायक, घोडके, एक प्रौढ़वय स्त्री और उसके कुत्ते। इस नाटक की कथा इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। अपने घर-परिवार से दूर अकेलेपन और अनिद्रा से त्रस्त नायक घोडके की मार्फ़त उस रहस्यमयी स्त्री की कोठी में जा पहुँचता है जहाँ वह अपने सात पालतू कुत्तों के साथ रहती है। उसका विश्वास है कि इनमें से किसी एक कुत्ते के रूप में उसके दिवंगत पति ने पुनर्जन्म लिया है। स्त्री का दिव्य रूप, अभिजात संयम और आध्यात्मिक वलय नायक को पूरी तरह अपनी गिरफ़्त में ले लेता है। और, एक अभागी रात वह कुछ ऐसा कर गुज़रता है जो उसके भीतरी-बाहरी संसार को पूरी तरह बदल डालता है। विजय तेन्दुलकर के अन्य नाटकों की तरह यह नाटक भी मानव-जीवन की विडम्बनाओं और विद्रूपताओं को बड़े कौशल से खोलता है और दर्शक को सोच के एक नए धरातल पर ले जाता है। रंगशिल्प और मंचीय भाषा के लिहाज़ से भी यह नाटक विशिष्ट है। अपनी नाट्य-विधियों और गतिमयता के कारण यह पाठक और दर्शक, दोनों के लिए एक चिरस्मरणीय अनुभव होने की क्षमता रखता है।
San 2025
- Author Name:
Piyush Mishra
- Book Type:

-
Description:
दो पात्रों का यह नाटक एक लेखक के रहस्यमय जीवन और लेखन से एक-एक कर कई पर्दे उठाता है। गड़गड़ सूफ़ी एक जासूस है, जो उसके चर्चित-पुरस्कृत उपन्यासों की सच्चाई की तस्दीक अख़बारी कतरनों से करता चलता है और एक दिन आकर लेखक को बताता है कि मुझे मालूम है कि आपने जो भी हत्या-कथाएँ लिखी हैं, वे आपने स्वयं की हैं; और लेखक उसके इस आरोप को स्वीकार कर लेता है और कहता है कि हाँ, वे सब हत्याएँ मैंने ही की हैं। इससे पहले कि जासूस लेखक से कुछ हासिल करने के लिए अपनी शर्तें मनवाता लेखक पिस्तौल के इशारे पर उसे बाल्कनी से गिरकर मरने पर बाध्य कर देता है।
तुर्की-ब-तुर्की संवादों के माध्यम से आगे बढ़ता यह छोटा-सा नाटक दर्शक के सामने सच और झूठ का एक तिलस्म रचता है जिसमें हमें यथार्थ का एक नया चेहरा दिखाई देता है।
Greece Ke Trasad Natak
- Author Name:
Kamal Naseem
- Book Type:

- Description: पाँचवीं शताब्दी ई.पू. ग्रीस के 31 क्लासिकल त्रासद नाटकों का संक्षिप्त हिन्दी कथा-रूपान्तरण केवल उन रचनाओं का संक्षिप्त रूपान्तर नहीं, ये छोटी-छोटी खिड़कियाँ और झरोखे हैं जो आपको आज से दो हज़ार पाँच सौ वर्ष पहले की ग्रीक सभ्यता और संस्कृति के ऐसे भव्य संसार में ले जाएँगे, जहाँ देश और काल की सीमाएँ अपने आप ही तिरोहित हो जाती हैं। कास्ट्यूम और मुखौटे अपनी सादगी और रंगीनी में एक ऐसे ‘लार्जर दैन लाइफ़’ पात्रों का संसार रच देते हैं, जहाँ बिना किसी दृश्य और श्रव्य तकनीक के वायुमंडल में बहती आवाज़ें आपके अस्तित्व को अभिभूत कर लेती हैं...। आप सम्मोहित से आगे बढ़ते जाते हैं...एक-एक कर वितान खुलते जाते हैं...और आप देखते हैं ग्रीक महानायकों की बृहद् कर्मभूमि, आकाश को छूती महत्त्वाकांक्षाएँ, मन को छूती करुणा; दिव्य तेज और साहस के कारनामे, दैन्य की पराकाष्ठा; युद्ध का भयावह रक्तपात और नरसंहार, माँओं, बहनों और दासियों का दिल दहलानेवाला चीत्कार; अनैतिकता के गर्हित कर्म और कर्तव्य के लिए प्राण निछावर करने का आत्मबल और धर्म; अहम् और स्वार्थ का कुचक्र, संवेगों का संघर्ष; कोमल आत्मीयता का क्रूर मर्दन और सम्बन्धों पर मर मिटने को तत्पर जीवन—सभी कुछ तो है यहाँ। किन्तु ये केवल झलकियाँ हैं जो निश्चय ही आपको ग्रीक पुराकथाओं और नाटक के समग्र संसार की ओर जाने को अभिप्रेरित करेंगी।
Gagan Damama Bajyo
- Author Name:
Piyush Mishra
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी की अपनी मौलिक नाट्य-लेखन और रंग-परम्परा में एक मील का पत्थर
इस नाटक के लिए दिल्ली के प्रसिद्ध ‘एक्ट-वन नाट्य समूह’ और ख़ुद पीयूष मिश्रा ने इतना शोध और परिश्रम किया था कि भगतसिंह पर इतिहास की कोई पुस्तक बन जाती, लेकिन उन्हें नाटक लिखना था जिसकी अपनी संरचना होती है, सो उन्होंने नाटक लिखा जिसने हमारे मूर्तिपूजक मन के लिए भगतसिंह की एक अलग महसूस की जा सकनेवाली छवि पेश की।
सुखदेव से एक न समझ में आनेवाली मित्रता में बँधे भगतसिंह, पंडित आज़ाद के प्रति एक लाड़-भरे सम्मान से ओत-प्रोत भगतसिंह, महात्मा गांधी से नाइत्तफ़ाक़ी रखते हुए भी उनके लिए एक ख़ास नज़रिया रखनेवाले भगतसिंह, नास्तिक होते हुए भी गीता और विवेकानन्द में आस्था रखनेवाले भगतसिंह, माँ-बाप और परिवार से अपने असीम मोह को एक स्थितप्रज्ञ फ़ासले से देखनेवाले भगतसिंह, पढ़ाकू, जुझारू, ख़ूबसूरत, शान्त, हँसोड़, इंटेलेक्चुअल, युगद्रष्टा, दुस्साहसी और...प्रेमी भगतसिंह। यह नाटक हमारे उस नायक को एक जीवित-स्पन्दित रूप में हमारे सामने वापस लाता है जिसे हमने इतना रूढ़ कर दिया कि उनके विचारों के धुर दुश्मन तक आज उनकी छवि का राजनीतिक इस्तेमाल करने में कोई असुविधा महसूस नहीं करते।
यह नाटक पढ़ें, और जब खेला जाए, देखने जाएँ और अपने पढ़े के अनुभव का मिलान मंच से करें। नाटक के साथ इस जिल्द में निर्देशक एन.के. शर्मा की टिप्पणी भी है, और पीयूष मिश्रा का शफ़्फ़ाफ़ पानी जैसे गद्य में लिखा एक ख़ूबसूरत आलेख भी, और साथ में भगतसिंह की लिखी कुछ बार-बार पठनीय सामग्री भी।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...