Dharamguru
Author:
SwarajbirPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
यह नाटक उच्चस्तरीय बौद्धिक रचना का प्रमाण देता है। नाटककार ने पूरे धार्मिक व्यवहार पर जो कटाक्ष किया है, वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। संवादों, घटनाओं तथा कार्यव्यापार के माध्यम से उभारा गया नाटकीय टकराव शिखर को छूता है। इस नाटक ‘धर्मगुरु’ की प्रस्तुति से पंजाबी नाटक नए क्षितिजों के द्वार खोलता है...।
—गुरुशरण सिंह (नाटककार एवं निर्देशक)
स्वराजबीर के नाटक पहली बार पंजाबी नाटक को उस नाट्य विधिविधान के साथ जोड़ते हैं जो भारतीय नाट्य रूप से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि ये नाटक अग्रदूत बनकर पंजाबी नाटक में पैदा हुई जड़ता को तोड़ते हैं। नाट्य-विधि के रूप में ही इनमें कविता और गद्य अन्तर्सम्बन्धित हैं।
—डॉ. सुतिंदर सिंह नूर
स्वराजबीर का नाटक ‘धर्मगुरु’ वर्तमान समय पर एक बड़ी टिप्पणी है जो धर्म और राजनीति की साँठ-गाँठ के माध्यम से समाज के समूचे अस्तित्व को अपनी गिरफ़्त में लेने के लिए सक्रिय है। इस समय इसकी प्रस्तुति एक साहसिक क़दम है।
—‘नवांजमाना’ (दैनिक, जालंधर)
यह नाटक ‘धर्मगुरु’ आज के दौर में फैले धार्मिक कठमुल्लापन और सामाजिक आपाधापी पर तीखा व्यंग्य है। तथाकथित धार्मिक नेताओं की मनमानियों और समाज की बेबसी की त्रासदी के दौर में इस नाटक का मंचन बुद्धिजीवियों और कलाकारों की बुलन्द आवाज़ और सच्चाई का प्रतीक है।
—‘अजीत’ (दैनिक, जालंधर)
ISBN: 9788183610124
Pages: 107
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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मूल नाटक ओपेरा शैली में लिखा गया है लेकिन यह माना जाता है कि उसका प्रेरणा सूत्र ओपेरा शैली नहीं बल्कि रासलीला का बुनियादी ढाँचा था जिसमें संवादों से अधिक कविता का महत्त्व दिखाई पड़ता है। कविता और संगीत के प्रति उसे समय दर्शकों के अन्दर जितना उत्साह और लगन रही होगी इतनी शायद आज नहीं है। दूसरी बात यह है कि नाटक में नाटकीयता के तत्वों पर अधिक बल नहीं दिया गया है।
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Description:
गिरीश कारनाड के नाटक नैतिक धारणाओं को कई स्तरों पर विश्लेषित करते हैं। सीधे सन्देशों की स्थूल वाचालता उनके यहाँ नहीं होती। वे जो कथा-भूमि चुनते हैं वह मन-जीवन का एक जटिल वितान रचती है, जिसमें वे नैतिक रूढ़ियाँ जो हमारे लिए अभी तक तमाम सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक हिंसा का आधार बनी आती हैं, अचानक मामूली और बचकाने आग्रह-भर दिखने लगती हैं। वे हमें हमारी जड़ताओं से मुक्त करके अपने उच्चतर सत्यों की तलाश के लिए स्थान देते हैं। इस पुस्तक में संकलित दोनों नाटक भी इसका अपवाद नहीं हैं। मोनोलॉग की शैली में लिखे ये नाटक पुन: हमें कुछ नैतिक चौराहों पर लाते हैं। एक ही चरित्र के दो चेहरों के परस्पर मुखामुखम से बुना नाटक ‘बिखरे बिम्ब’ मंजुला नायक नामक स्त्री, उसकी विकलांग बहन और पति की कहानी कहता है और ‘पुष्प’ में एक शिव-भक्त पुजारी तथा एक गणिका के माध्यम से नैतिक असमंजस की सर्जना की गई है।
दोनों नाटक एक ही कलाकार द्वारा खेले जाने के ढंग से लिखे गए हैं, लेकिन उन्हें पुस्तक रूप में पढ़ना भी कम दिलचस्प नहीं।
Agni Aur Barkha
- Author Name:
Girish Karnad
- Book Type:

- Description: इतिहास, पुराण, जातक और लोकथाएँ गिरीश कारनाड के लिए सर्वाधिक समृद्ध उत्प्रेरक और आकर्षक कथा-बीज स्रोत रहे हैं। नई दृष्टि एवं संवेदना के वहन के लिए वे अपनी रचना का शरीर अतीत से चुनते हैं। उनकी विशिष्टता यह है कि वे मिथकीय कथानकों से आधुनिक और सामयिक समस्याओं के सम्प्रेषण का काम लेते हैं। अग्नि और बरखा के लिए कारनाड पुनः अतीत की ओर लौटे हैं, इसके केन्द्र में है–महाभारत का वन पर्व। अपने वनवास काल में देशाटन में पांडव इधर-उधर भटक रहे हैं। सन्त लोमष इन्हें यवक्री अर्थात् यवक्रत की गाथा सुनाते हैं। महाभारत जैसी महागाथा का पटल इतना जटिल है कि ऐसे छोटे वृत्तान्त पर ध्यान न जाना स्वाभाविक था, लेकिन कारनाड को इस कथा ने सर्वाधिक प्रभावित किया। इस कथा के भीतर कई गम्भीर अर्थ विद्यमान हैं, नाटककार इस नाट्य-रूपान्तर में इसके निहित अर्थों व अभिप्रायों को स्पष्ट करता है। अतीत के प्रकाश में वर्तमान धुँधलके को साफ़ और उजला करने की यह रचनात्मक कोशिश निःसन्देह पठनीय और दर्शनीय है, इसका एक प्रमाण यह भी है कि अब तक इस नाटक के दर्जनों सफल मंचन हो चुके हैं।
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