Rangmanch ke Siddhant
Author:
Mahesh AnandPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Plays0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
हिन्दी में एक ऐसी पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी जो पूर्व और पश्चिम में प्रचलित नाट्य सिद्धान्तों को एक स्थान पर और सुग्राह्य भाषा में उपलब्ध कराती हो। ‘रंगमंच के सिद्धान्त’ इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है। समकालीन रंगमंच के अध्येता महेश आनन्द तथा रंगकर्म के व्यावहारिक और सैद्धान्तिक पक्षों का एक-सी निष्ठा के साथ निर्वाह करते आ रहे सुपरिचित रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर के कुशल सम्पादन में तैयार इस पुस्तक में अरस्तू से लेकर भारतेन्दु और फिर बादल सरकार तक के रंग सिद्धान्तों का विवेचन अधिकारी विद्वानों और रंगकर्मियों द्वारा किया गया है।</p>
<p>यह पुस्तक बताती है कि रंगमंच केवल किसी नाट्य-कृति को अभिनेताओं द्वारा मंच पर खेल देना भर नहीं होता। समाज, मनुष्य, उसकी मनोरचना और नियति के साथ रंगमंच के सम्बन्ध को लेकर हर युग में चिन्तक और रंगकर्मी चिन्तन-मनन करते रहे हैं और मानव-जीवन की एक अधिकाधिक विश्वसनीय प्रतिकृति के रूप में रंगकर्म को स्थापित करने के लिए नई-नई शैलियाँ ढूँढ़ते और विकसित करते रहे हैं। उन तमाम सिद्धान्तों-शैलियों को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है जो अपने समय में रंगकर्म के लिए दिशा-निर्देशक बने और आज भी हमारी सोच को उत्तेजित करते हैं। जिन विचारकों के सिद्धान्तों का विश्लेषण किया गया है, वे हैं: अरस्तू, स्तानिस्लाव्स्की, मेयरहोल्ड, आर्तो, ब्रेष्ट, क्रेग, माइकेल चेख़व, ग्रोतोव्स्की, पीटर ब्रुक, ज़ेआमि, भरत, भारतेन्दु, प्रसाद और बादल सरकार।
ISBN: 9789395737661
Pages: 312
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Dr. Bhaskaracharaya Tripathi
- Book Type:

- Description: भवभूति 8वीं शताब्दी के भारतीय विद्वान थे, जो संस्कृत में लिखे गए अपने नाटकों और कविताओं के लिए विख्यात थे। उनके नाटकों को कालिदास की रचनाओं के बराबर माना जाता है। उन्हें उत्तररामचरित नामक उनकी रचना के लिए "करुणा रस के कवि" के रूप में जाना जाता है। भवभूति का जन्म महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के पद्मपुरा, आमगांव में हुआ था। उनका जन्म विद्वानों के एक औदुंबर/उदुंबर ब्राह्मण[1] परिवार में हुआ था।[2][3] उन्हें यायावर परिवार का वंशज बताया जाता है, जिनका उपनाम उदुंबर था। उनके कश्यप ब्राह्मण पूर्वज काले यजुर्वेद का पालन करते थे और पाँच पवित्र अग्नि रखते थे।[4] उनका असली नाम श्रीकंठ औदुंबर था। वे नीलकंठ औदुंबर और जतुकर्णी औदुंबर के पुत्र थे। उन्होंने ग्वालियर से लगभग 42 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में पद्मपवाया में अपनी शिक्षा प्राप्त की। दयाननिधि परमहंस को उनका गुरु माना जाता है। उन्होंने यमुना नदी के तट पर कालपी में अपने ऐतिहासिक नाटकों की रचना की। माना जाता है कि वे कन्नौज के राजा यशोवर्मन के दरबारी कवि थे। 12वीं सदी के इतिहासकार कल्हण ने उन्हें राजा के दल में शामिल किया है। 736 ई. में, राजा को कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपीड़ ने पराजित किया था।
Nyayapriya
- Author Name:
Albert Camus
- Book Type:

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Description:
सुविख्यात फ्रेंच लेखक अल्बैर कामू का यह ऐतिहासिक नाटक सन् 1903 के क्रान्तिकालीन रूस में आतंकवादियों के एक गुट द्वारा आयोजित एक बम कांड का यथातथ्य चित्रण करता है। जैसा कि लेखक ने स्वयं कहा है कि ‘इस नाटक की कुछ स्थितियाँ यथार्थतः ऐतिहासिक हैं। इसके सभी पात्र वास्तविक हैं और उन्होंने उसी तरह का आचरण किया था, जैसा कि मैंने बताया है।’ यहाँ तक कि ‘न्यायप्रिय’ के नायक का नाम कलियायेव भी वास्तविक है।
अतिवादियों के इस गुट ने, जो क्रान्तिकारी समाजवादी पार्टी का ही हिस्सा था, रूसी सम्राट के चाचा प्रधान ड्यूक सार्ज की हत्या की योजना बनाई थी, जिसे कलियायेव ने पूरा किया। लेकिन लेखक के लिए इस समूचे घटनाक्रम में ड्यूक की हत्या के बजाय वह महान उद्देश्य और उसे पूरा करते हुए बचाए गए वे मानवीय मूल्य महत्त्वपूर्ण हैं, जो आतंकवाद को क्रान्तिकारिता के उच्चादर्श तक ले जाते हैं। कामू ने इस मुद्दे पर कलियायेव और दूसरे साथियों के बीच होनेवाली बहस को सर्वाधिक महत्त्व और विस्तार दिया है। सामाजिक अन्याय पर खड़ी एक दमनकारी राज्य-व्यवस्था से नाभिनालबद्ध दोषी व्यक्ति को खत्म करते हुए भी मानवीय करुणा, न्याय-भावना और आत्म-गौरव को बचाये रखने का संकल्प एक सच्चा क्रान्तिकारी ही साध सकता है। कलियायेव इन्हीं मूल्यों के लिए अपना बलिदान देता है और संसार के क्रान्तिकारी इतिहास में एक और अविस्मरणीय अध्याय जोड़ जाता है।
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