Vakya Sanrachana Aur Vishleshan : Naye Pratiman
Author:
Badrinath KapoorPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Available
हिन्दी की प्रकृति और प्रवृत्ति को जानना-समझना डॉ. बदरीनाथ कपूर का व्यसन रहा है। ‘बेसिक हिन्दी’, ‘परिष्कृत हिन्दी व्याकरण’, ‘हिन्दी व्याकरण की सरल पद्धति’ तथा ‘नवशती हिन्दी व्याकरण’ आदि पुस्तकें इसी व्यसन की सूचक हैं। ‘नवशती हिन्दी व्याकरण’ में कुछ नई प्रस्थापनाएँ भी की गई थीं जो परम्परा से हटकर थीं।
प्रस्तुत पुस्तक क्रियाओं के सम्बन्ध में किए गए उनके चिन्तन का सुफल परिणाम है। उनका मानना है कि क्रियापदों में ही ऐसे सूत्र निहित हैं जिनके आधार पर वाक्य की संरचना की जा सकती है। उन्होंने इन सूत्रों को ‘क्रिया-निर्देश’ की संज्ञा दी है। कुल सूत्र चालीस हैं और पाँच-पाँच सूत्रों के इनके आठ सर्ग हैं। इन्हीं के आधार पर इस पुस्तक में हिन्दी वाक्यों की विशेषतः सरल वाक्यों की— संरचना करने का प्रयास किया गया है।
इस पुस्तक में वाक्य-संरचना और विश्लेषण दोनों साथ-साथ दिये गए हैं जिससे स्पष्ट हो कि क्रिया-निर्देशों और नवशती हिन्दी व्याकरण की स्थापनाओं (दोनों) का उद्देश्य एक है।
हिन्दी वाक्य-संरचना के नए प्रतिमान प्रस्थापित करनेवाली डॉ. बदरीनाथ कपूर की यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक हिन्दी भाषा की सूत्रबद्धता को स्थापित करती है और सिद्ध करती है कि हिन्दी एक सुचिन्तित और सुनियोजित भाषा है।
हिन्दी भाषा की अस्मिता और गरिमा की वृद्धि करनेवाली इस महत्त्वपूर्ण कृति का संयोजन वैज्ञानिक और गणितीय पद्धति पर हुआ है।
छात्रों-अध्येताओं के लिए समान रूप से उपयोगी।
ISBN: 9788183612258
Pages: 242
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
आधुनिक उर्दू कविता के बारे में यह छोटी-सी किताब मेरे कुछ निबन्धों पर आधारित है। समकालीन साहित्य और उससे सम्बन्धित समस्याएँ मेरी सोच और दिलचस्पी का ख़ास विषय रही हैं। पिछले पचास-साठ बरसों में मैंने इस विषय पर कम से कम साठ-सत्तर निबन्ध लिखे होंगे। उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के बहुत से शायरों को मैंने अपने आलोचनात्मक अध्ययन का बहाना बनाया यानी कि ग़ालिब से लेकर आज तक की शायरी में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है।
यहाँ आगे बढ़ने से पहले एक और सफ़ाई देना चाहता हूँ। पारम्परिक प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकतावाद में मेरा विश्वास बहुत कमज़ोर है। मैं समझता हूँ कि हमारी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परम्परा के सन्दर्भ में ही हमारे अपने प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकता की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। हमारा जीवन हमारे समय के पश्चिमी जीवन और सोच-समझ की कार्बन कॉपी नहीं है। जिस तरह हमारा सौन्दर्यशास्त्र या Aesthetic Culture अलग है, उसी तरह हमारी प्रोग्रेसिविज़्म (Progressivism) और Modernity या ज़दीदियत भी अलग है। मैंने इसी दृष्टिकोण के साथ आधुनिक युग के अधिकतर शायरों को समझने की कोशिश की है।
ये निबन्ध मेरी दो किताबों—'हमसफ़रों के दरमियाँ’ (सह-यात्रियों के बीच) और 'हमनफ़सों की बज़्म में’ (यार-दोस्तों की सभा में) से लिए गए हैं। इनमें मेरा विषय बननेवाले शायरों का स्वभाव, चरित्र, चेतना और रूप-रंग अलग-अलग हैं। मैं समझता हूँ कि आधुनिकतावाद को इसी भिन्नता और बहुलता का प्रतीक होना चाहिए।
—शमीम हनफी (प्रस्तावना से)
''हालाँकि हिन्दी में उर्दू साहित्य के आधुनिक दौर के अधिकांश शायरों से ख़ासी वाक़िफ़यत रही है, उन पर स्वयं उर्दू में जो विचार और विश्लेषण हुआ है, उससे हमारा अधिक परिचय नहीं रहा है। शमीम हनफी स्वयं शायर होने के अलावा एक बड़े आलोचक के रूप में उर्दू में बहुमान्य हैं। उनके कुछ निबन्धों के इस संचयन के माध्यम से उर्दू की आधुनिक कविता की कई जटिलताओं, तनावों और सूक्ष्मताओं को जान सकेंगे और कई बड़े उर्दू शायरों की रचनाओं का हमारा रसास्वादन गहरा होगा। हमें यह संचयन प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है।”
—अशोक वाजपेयी
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