Svaraj
Author:
Ramchandra GandhiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Religion-spirituality0 Reviews
Price: ₹ 719.2
₹
899
Available
रामचन्द्र गाँधी एक ऐसे भारतीय दार्शनिक थे जिनकी साहित्य और कलाओं में गहरी दिलचस्पी थी : उनका चिन्तन अक्सर अध्यात्म, कला और साहित्य को अपनी समझ के भूगोल में समाविष्ट करता था। अपने जीवन में उनका अपने समय के कई बड़े लेखकों और कलाकारों से सम्पर्क और दोस्ताना था। चित्रकार तैयब मेहता के एक त्रिफलक से प्रेरित होकर रामचन्द्र गाँधी ने यह अद्भुत पुस्तक लिखी है।
सम्भवत: किसी कलाकृति पर ऐसी विचार-सघन पुस्तक कम से कम भारत में दूसरी नहीं है। उसमें जितने दार्शनिक आशय कला के खुलते हैं, उतने ही अभिप्राय स्वयं रामचन्द्र गाँधी के चिन्तन के भी। यह सीमित अर्थों में कलालोचना नहीं है पर यह दिखाती है कि गहरा कलास्वादन उतने ही गहरे मुक्त चिन्तन को उद्वेलित कर सकता है।
तैयब मेहता रज़ा साहब के घनिष्ठ मित्र थे। इस पुस्तक का आलोचक मदन सोनी द्वारा बड़े अध्यवसाय से किया गया हिन्दी अनुवाद उस कला-मैत्री को एक प्रणति भी है।
—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9789388183338
Pages: 205
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Vachan Chintan
- Author Name:
Kashinath Ambalge
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Treasures of Lakshmi
- Author Name:
Namita Gokhale +1
- Book Type:

- Description: Treasures of Lakshmi is the culmination of the much-loved goddess series, brilliantly curated and edited by Namita Gokhale and Malashri Lal. This trilogy, which began with In Search of Sita and continued with Finding Radha, examines the mystical realms of Hindu thought and practice, celebrating the essence of the sacred feminine. Whether it is Lakshmi’s 108 names or a sahasranama of a thousand appellations, her blessings are multidimensional and eternal. as the third and final instalment of this remarkable trilogy, Treasures of Lakshmi takes readers on a unique journey of exploration, unravelling the compelling narrative of ‘the goddess who gives’.
Gyan Ka Marg "ज्ञान का मार्ग" | Spiritual & Enlightenment | Swami Vivekananda Book in Hindi
- Author Name:
Swami Vivekanand
- Book Type:

- Description: "स्वामी विवेकानंद ने भारत में उस समय अवतार लिया, जब यहाँ हिंदू धर्म के अस्तित्व पर संकट के बादल मँडरा रहे थे। पंडित-पुरोहितों ने हिंदू धर्म को घोर आडंबरवादी और अंधविश्वासी बना दिया था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म को एक पूर्ण पहचान प्रदान की । इसके पहले हिंदू धर्म विभिन्न छोटे-छोटे संप्रदायों में बँटा हुआ था। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म-संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और भारत को विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित किया। वे केवल संत ही नहीं थे, बल्कि एक धर्मरक्षक, संस्कृतिधर्मी, महान् देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, प्रखर विचारक, रचनाधर्मी लेखक और करुण मानवप्रेमी भी थे । अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था--''नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पड़े झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से । प्रस्तुत पुस्तक में स्वामीजी ने भारत सहित देश-विदेश में वेदांत धर्म और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु देश भर के युवकों का आह्वान किया है। उन्होंने भारतीय समाज में गहरे पैठी असमानता की भावना के प्रति लोगों को सचेत किया है। अनेक सवालों और जिज्ञासाओं की प्रतिपूर्ति करनेवाली एक प्रेरक, ज्ञानवर्धक व संग्रहणीय पुस्तक ।"
Hindu Devi Devta
- Author Name:
K.K. Tripathi
- Book Type:

- Description: हिंदू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है। हिंदू धर्मग्रंथों—वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि ने संपूर्ण मानव जाति को दिशा दिखाई है तथा जीवन में आदर्श और नैतिकता का मार्ग प्रशस्त किया है। इस उच्च धर्म के वाहक चौंसठ करोड़ देवी-देवता हैं। विद्या की देवी माँ सरस्वती हैं, धन-धान्य की देवी माँ लक्ष्मी हैं, शक्ति की प्रतीक माँ दुर्गा हैं। ब्रह्माजी जन्मदाता हैं, विष्णु पालक और शिवजी संहारक। हिंदू धर्म उपासक अपनी श्रद्धा और भक्ति में सराबोर होकर अपने इष्ट देवी-देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। वही अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं, उनका कल्याण करते हैं। इस ग्रंथ में विद्वान् लेखक ने हिंदू धर्म के कुछ प्रमुख देवी-देवताओं के अलौकिक जीवन की झाँकी प्रस्तुत की है, जो श्रद्धा और भक्ति के आकाश को नया क्षितिज प्रदान करेगी। आस्था, विश्वास और समर्पण का भाव जगानेवाली पठनीय व मननीय कृति।
Neeti Aur Ramcharit
- Author Name:
Himanshu Pathak
- Book Type:

- Description: मूलत: यह पुस्तक 'स्वान्त: सुखाय’ ही लिखी गई है। एक और लक्ष्य भी रहा है। वह है भारत तथा विदेशों में रहती भारत-मूल की युवा पीढ़ी को प्राचीन भारतीय पारंपरिक ज्ञान से परिचित कराना। रामचरितमानस ज्ञान का भंडार है। इस 'दोहा शतक’ में रामचरितमानस से मूलत: ऐसे दोहों या चौपाइयों का चयन किया गया है, जो साधारण मनोविज्ञान पर आधारित हैं। इन दोहों-चौपाइयों को हिंदी में दिया गया है, साथ-साथ उनका अंग्रेजी में अनुवाद भी दिया गया है। इस कारण जो पाठक हिंदी से भली-भाँति परिचित नहीं हैं, उन्हें भी इन दोहो-चौपाइयों में छिपे ज्ञान का लाभ मिल सके। विद्वान् लेखक ने अपने सुदीर्घ अनुभव और अध्ययन के बल पर अपनी टिप्पणी भी लिखी है, जिन्हें पाठकगण अपने जीवन-अनुभवों व विचारों के अनुसार उन्हें आत्मसात् कर सकते हैं। मानस के विशद ज्ञान को सरल-सुबोध भाषा में आसमान तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास।
Rigved : Mandal-9
- Author Name:
Govind Chandra Pandey
- Book Type:

-
Description:
वेद सनातनविद्या के काव्यात्मक प्रतिपादन हैं। ऋग्वेद संहिता के अनुवाद एवं व्याख्या का प्रयास अनेक भाषाओं में समय-समय पर होता रहा है, किन्तु अभी तक उपलब्ध सभी अनुवादों में काव्यपक्ष की उपेक्षा अथवा पद्यानुवाद की प्रस्तुति के असम्भव प्रयास ही किए गए हैं जो ऋचाओं के साथ पूरा न्याय नहीं करते हैं। वेदों में भावों की सनातनता एक व्यापक ध्वनि के रूप में सूक्तों, संवादों और आख्यानों में विद्यमान है। प्रस्तुत अनुवाद में पादानुसारी किन्तु भावपरक अनुवाद पर विशेष आग्रह सोद्देश्य है ताकि ऋचाओं की काव्यात्मकता का यथासम्भव सम्प्रेषण एवं मूल की अर्थयोजना का क्रम अनुवाद में सुरक्षित रहे।
भाषान्तर में व्याख्या का सूक्ष्म प्रकार अनिवार्य होता है और वही अनुवाद का वर्तमान और अतीत के मध्य संवाद बनाकर बहुत कुछ को परम्परा में जीवित तथा प्रगतिशील रखता है। अतः ग्रन्थ में अनुवाद के लिए उपयुक्त भाषा, पुरातन ध्वनि बहुलता और समसामयिक सजीवता के संरक्षण की दृष्टि से तत्सम, तद्भव एवं देशी शब्दों के समन्वित प्रयोग किए गए हैं। साथ ही, गम्भीर और बहुमुखी अर्थों को स्पष्ट करने के लिए क्रियापदों के अनुवाद, दुरूह पदों के अर्थनिर्वचन में धातुपाठ, निरुक्त की पद्धति एवं आधुनिक तथा तुलनात्मक व्याकरण के अनुसरण से सहायता ली गई है।
वेद आर्षकाव्य के निर्देशन के साथ-साथ अध्यात्मगवेषियों के मार्गदर्शक भी हैं। अतः ऋचाओं में संश्लिष्ट आधियाज्ञिक, आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक अर्थों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। व्याख्याकारों में जहाँ विवाद की स्थिति है, वहाँ प्राचीन एवं नवीन दोनों ही मतों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार काव्यात्मक पक्ष की प्रस्तुति, निगूढ़ अर्थ के आयामों का विश्लेषण और विवादित स्थलों का तुलनात्मक विवेचन इस ग्रन्थ के अनुवाद एवं व्याख्या की अभीप्सित विशेषताएँ हैं।
इस खंड में ‘ऋग्वेद’ के नौवें मंडल का व्याख्या सहित हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।
Dharm Aur Vishvadrishti
- Author Name:
Periyar E.V. Ramasamy
- Book Type:

-
Description:
यह किताब ई.वी. रामासामी नायकर 'पेरियार' (17 सितम्बर, 1879—24 दिसम्बर, 1973) के दार्शनिक व्यक्तित्व से परिचित कराती है। धर्म, ईश्वर और मानव समाज का भविष्य उनके दार्शनिक चिन्तन का केन्द्रीय पहलू रहा है। उन्होंने मानव समाज के सन्दर्भ में धर्म और ईश्वर की भूमिका पर गहन चिन्तन-मनन किया है। इस चिन्तन-मनन के निष्कर्षों को इस किताब के विविध लेखों में प्रस्तुत किया गया है। ये लेख पेरियार के दार्शनिक व्यक्तित्व के विविध आयामों को पाठकों के सामने रखते हैं। इनको पढ़ते हुए कोई भी सहज ही समझ सकता है कि पेरियार जैसे दार्शनिक-चिन्तक को महज़ नास्तिक कहना उनके गहन और बहुआयामी चिन्तन को नकारना है।
यह किताब दो खंडों में विभाजित है। पहले हिस्से में समाहित वी. गीता और ब्रजरंजन मणि के लेख पेरियार के चिन्तन के विविध आयामों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। इसी खंड में पेरियार के ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी मूल लेख भी समाहित हैं जो पेरियार की ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट करते हैं।
दूसरे खंड में पेरियार की विश्वदृष्टि से सम्बन्धित लेखों को संगृहीत किया गया है जिसमें उन्होंने दर्शन, वर्चस्ववादी साहित्य और भविष्य की दुनिया कैसी होगी जैसे सवालों पर विचार किया है। इन लेखों में पेरियार विस्तार से बताते हैं कि दर्शन क्या है और समाज में उसकी भूमिका क्या है? इस खंड में वह ऐतिहासिक लेख भी शामिल है जिसमें पेरियार ने विस्तार से विचार भी किया है कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी?
Dharm Se Aagey
- Author Name:
Dalai Lama
- Book Type:

- Description: परम पूज्य दलाई लामा ने अपनी बहुचर्चित किताब ‘एथिक्स फ़ॉर ए न्यू मिलेनियम’ में धार्मिक सिद्धान्तों की अपेक्षा वैश्विक सिद्धान्तों पर आधारित नैतिकता को स्थापित करने की प्रस्तावना दी थी। अब ‘बियोन्ड रिलीजन : एथिक्स फ़ॉर ए होल वर्ल्ड’ पुस्तक में दलाई लामा ने अत्यन्त करुणा से भरे बेबाक अन्दाज़ में ग़ैर-धार्मिक तरीक़े विकसित करने हेतु अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उन्होंने धार्मिक युद्ध से आगे बढ़कर एक साझा संसार के निर्माण हेतु नीतिगत सिद्धान्तों की प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत की है, जो धर्म को पूरा सम्मान देती है। आध्यात्मिक और बौद्धिक अधिकार के उच्चतम स्तर के साथ दलाई लामा ने नीतिगत और आनन्दपूर्ण जीवन के मार्ग और समझ-बूझ तथा परस्पर आदर पर आधारित एक वैश्विक मानव-समाज के निर्माण की प्रार्थना की है जिसे वह ‘तृतीय मार्ग’ कहते हैं। ‘बियोन्ड रिलीजन’ पुस्तक में दलाई लामा ने उन लोगों के लिए रूपरेखा प्रस्तुत की है जो किसी धार्मिक परम्परा से जुड़े बिना इस दुनिया को बेहतर बनाने की दिशा में आगे बढ़ना और आध्यात्मिक आनन्द से पूर्ण जीवन व्यतीत करने की इच्छा रखते हैं।
Chitt Basain Mahaveer : Jivan Aur Darshan
- Author Name:
Prem Suman Jain
- Book Type:

- Description: विश्व के साधक चिन्तकों में जैन दार्शनिक एवं तीर्थंकर कई दृष्टियों से स्मरण किए जाते हैं। उनका चिन्तन धर्म, जाति, देशकाल को गहरे प्रभावित करता है। उन्होंने प्राणीमात्र के कल्याण एवं विकास के सूत्र अपने उद्बोधनों में प्रदान किए हैं। भगवान महावीर का सन्देश है कि सुख, शान्ति, तनावरहित जीवन अपरिग्रह, सन्तोष, संयम से ही आ सकता है। तीर्थंकर महावीर ने अपने जीवन में व्यक्तिगत स्वामित्व के विसर्जन का प्रयोग करके बताया है। उन्होंने राज्यपद को त्यागा और पदार्थों के ढेर से अलग जा खड़े हुए, तब वे समता और शान्ति के स्वामी बने भगवान महावीर ने व्यक्ति के पूर्ण विकास के लिए एक ओर जहाँ आत्म-विकास का पथ प्रशस्त किया है, वहीं दूसरी ओर लोक-कल्याण के लिए सामाजिक मूल्यों का भी सृजन किया है। अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त—ये तीनों मूल्य महावीर के सामाजिक अनुसन्धान के परिणाम हैं। तीर्थंकर महावीर के चिन्तन ने व्यक्ति को पुरुषार्थी और स्वावलम्बी बनने की शिक्षा दी है। उन्होंने मानव को सहिष्णु, निराग्रही होने का भी सन्देश दिया है। विचारों की उदारता से ही हम सत्य की तह तक पहुँच सकते हैं। तीर्थंकर महावीर का सारा जीवन आत्म-साधना के पश्चात् सामाजिक और नैतिक मूल्यों के निर्माण में ही व्यतीत हुआ। इसी कारण तीर्थंकर महावीर मानव जाति के गौरव के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ‘चित्त बसें महावीर’ पुस्तक में प्रो. प्रेम सुमन जैन ने तीर्थंकर महावीर के प्रेरणादायक जीवन और दर्शन को एक रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। एक महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय कृति।
CHAITANYA MAHAPRABHU
- Author Name:
Rachna Bhola Yamini
- Book Type:

- Description: चैतन्य महाप्रभु का बचपन का नाम विश्वंभर था। उनका जन्म चंद्रग्रहण के दिन हुआ था। लोग चंद्रग्रहण के शाप के निवारणार्थ धर्म-कर्म, मंत्र आह्वान, ओ३म् आदि जप-तप में जुटे हुए थे। शायद इस धार्मिक प्रभाव के कारण ही चैतन्य बचपन से ही कृष्ण-प्रेम और जप-तप में जुट गए। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक उच्च कोटि का संत बनेगा और अपने भक्तों को संसार-सागर से तार देगा। बचपन से ही चैतन्य कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने अपने अकाट्य तर्कों से स्थानीय पंडितों को दर्शन और अध्यात्म चर्चा में धराशायी कर दिया था। बाद में वैष्णव दीक्षा लेने के पश्चात् चैतन्य दार्शनिक चर्चा के प्रति उदासीन हो गए। उन्होंने कृष्ण नाम-कीर्तन आरंभ कर दिया। चैतन्य ने कलियुग में भक्तियोग को मुक्ति का श्रेष्ठ मार्ग बताया है। उनकी लोकप्रियता से खिन्न होकर एक बार एक पंडित ने उन्हें शाप देते हुए कहा, ‘तुम सारी भौतिक सुविधाओं से वंचित हो जाओ।’ यह सुनकर चैतन्य खुशी से नाचने लगे। माता-पिता ने उन्हें घर-गृहस्थी की ओर मोड़ने के लिए उनका विवाह भी कर दिया, लेकिन उन्होंने गृह त्याग दिया, अब सारी दुनिया ही उनका घर थी। भगवान् कृष्ण के अनन्य उपासक, आध्यात्मिक ज्ञान की चरम स्थिति को प्राप्त हुए चैतन्य प्रभु की ईश्वर-भक्ति की सरस जीवन-गाथा जो पाठक को भक्ति की पुण्यसलिला में सराबोर कर देगी।
Rigved : Mandal-3, 4 & 5
- Author Name:
Govind Chandra Pandey
- Book Type:

-
Description:
वेद सनातनविद्या के काव्यात्मक प्रतिपादन हैं। ऋग्वेद संहिता के अनुवाद एवं व्याख्या का प्रयास अनेक भाषाओं में समय-समय पर होता रहा है, किन्तु अभी तक उपलब्ध सभी अनुवादों में काव्यपक्ष की उपेक्षा अथवा पद्यानुवाद की प्रस्तुति के असम्भव प्रयास ही किए गए हैं जो ऋचाओं के साथ पूरा न्याय नहीं करते हैं। वेदों में भावों की सनातनता एक व्यापक ध्वनि के रूप में सूक्तों, संवादों और आख्यानों में विद्यमान है। प्रस्तुत अनुवाद में पादानुसारी किन्तु भावपरक अनुवाद पर विशेष आग्रह सोद्देश्य है ताकि ऋचाओं की काव्यात्मकता का यथासम्भव सम्प्रेषण एवं मूल की अर्थयोजना का क्रम अनुवाद में सुरक्षित रहे।
भाषान्तर में व्याख्या का सूक्ष्म प्रकार अनिवार्य होता है और वही अनुवाद का वर्तमान और अतीत के मध्य संवाद बनाकर बहुत कुछ को परम्परा में जीवित तथा प्रगतिशील रखता है। अतः ग्रन्थ में अनुवाद के लिए उपयुक्त भाषा, पुरातन ध्वनि बहुलता और समसामयिक सजीवता के संरक्षण की दृष्टि से तत्सम, तद्भव एवं देशी शब्दों के समन्वित प्रयोग किए गए हैं। साथ ही, गम्भीर और बहुमुखी अर्थों को स्पष्ट करने के लिए क्रियापदों के अनुवाद, दुरूह पदों के अर्थनिर्वचन में धातुपाठ, निरुक्त की पद्धति एवं आधुनिक तथा तुलनात्मक व्याकरण के अनुसरण से सहायता ली गई है।
वेद आर्षकाव्य के निर्देशन के साथ-साथ अध्यात्मगवेषियों के मार्गदर्शक भी हैं। अतः ऋचाओं में संश्लिष्ट आधियाज्ञिक, आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक अर्थों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। व्याख्याकारों में जहाँ विवाद की स्थिति है, वहाँ प्राचीन एवं नवीन दोनों ही मतों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार काव्यात्मक पक्ष की प्रस्तुति, निगूढ़ अर्थ के आयामों का विश्लेषण और विवादित स्थलों का तुलनात्मक विवेचन इस ग्रन्थ के अनुवाद एवं व्याख्या की अभीसिप्त विशेषताएँ हैं।
इस खंड में ‘ऋग्वेद’ के तीसरे, चौथे एवं पाँचवें मंडल का व्याख्या सहित हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है।
Vinay Patrika
- Author Name:
Tulsidas
- Book Type:

-
Description:
आत्म निवेदन का सीधा सम्बन्ध अन्तःकरण के आयतन से है। इस तरह की रचनाओं में आत्म-संवाद झलकता है। सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य के इतिहास में तुलसीदास की ‘विनय पत्रिका’ और निराला की ‘अणिमा’ से लेकर ‘सांध्यकाकली’ तक की रचनाओं में यह स्वर विशेष रूप से सुनाई पड़ता है। अन्तर्मुखी होकर किया गया आत्मविश्लेषण, अन्तर्द्वन्द्वों की गहराई, निर्भय होकर की गई आत्म-समीक्षा और सामाजिकता इन रचनाओं को अपने युग का प्रतिनिधित्व प्रदान करती हैं।
तुलसीदास के ‘हौं’ और निराला के ‘मैं’ की प्रकृति, घनत्व और आत्मविस्तार का धरातल उन्हें भिन्न कालखंडों में भी समानधर्मा बनाता है—‘उत्पस्यते तु मम कोऽपि समानधर्मा, कालो ह्यं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी’। ‘विनय पत्रिका’ और निराला की परवर्ती रचनाओं में अभिव्यक्त विनय-भावना कपोल कल्पना या आत्म-प्रवंचना नहीं है। यह दोनों कवियों के जीवन की गाढ़ी कमाई और सर्जनात्मक उपलब्धि है। दार्शनिक स्तर पर जीवन-जगत के प्रति द्वन्द्वात्मक अन्तर्दृष्टि एवं ‘अखिल कारुणिक मंगल’ के प्रसार की कामना ने भक्ति का साधारणीकरण कर दिया है। तुलसीदास का ‘हौं’ एवं निराला का ‘मैं’, अपने समाज से अन्तःक्रिया करते हुए बना है। आत्म-मुक्ति आत्म-प्रसार की भावना से अविच्छिन्न है। दोनों की विनय भावना का अन्त न तो भाग्यवाद में होता है और न ही निराशा में। इस दृष्टि से ‘विनय पत्रिका’ का अन्तिम पद और निराला की अन्तिम रचना सहज तुलनीय है।
VEDON KI KATHAYEN (PB)
- Author Name:
Harish Sharma
- Book Type:

- Description: कहते हैं धर्म वेदों में प्रतिपादित है। वेद साक्षात् परम नारायण है। वेद में जो अश्रद्धा रखते हैं, उनसे भगवान् बहुत दूर हैं। वेदों का अर्थ है—भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविष्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वास्तव में जीवन को सुंदर व साधक बनानेवाला प्रत्येक विचार ही मानो वेद है। मैक्स म्यूलर का तो यहाँ तक कहना था कि वेद मानव जाति के पुस्तकालय में प्राचीनतम ग्रंथ हैं। वेद संख्या में चार हैं—ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद। वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘जानना’। ये हमारे ऋषि-तपस्वियों की निष्कपट, निश्छल भावना की अभिव्यक्ति हैं। इनमें जीवन को सद्मार्ग पर प्रशस्त करने का आह्वान है। इतना ही नहीं, वेदों में आत्मा-परमात्मा, देवी-देवता, प्रकृति, गृहस्थ-जीवन, सृष्टि, लोक-परलोक के साथ-साथ नाचने-गाने आदि की बातें भी निहित हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है—मानव-कल्याण। एक ओर जहाँ वेदों में ईश-भक्ति और अध्यात्म की महिमा गाई गई है, वहीं दूसरी ओर कर्म को ही कल्याण का मार्ग कहा गया है। वेद हमारे अलौकिक ज्ञान की अनुपम धरोहर हैं। अत: इनके प्रति जन-सामान्य की जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, इसलिए वेदों के गूढ़ ज्ञान को हमने कथारूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। इन कथा-कहानियों के माध्यम से सुधी पाठक न केवल इन्हें पढ़-समझ सकते हैं, बल्कि पारंपरिक वैदिक ज्ञान को आत्मसात् कर लोक-परलोक भी सुधार सकते हैं।
Dr. Kalam : Prerna Ki Udaan
- Author Name:
Dr. Unnat Pandit
- Book Type:

- Description: ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक, विचारक, दाशर्निक और शिक्षक के रूप में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने प्रत्येक भारतीय को सदैव प्रेरित किया है। उनके जीवन, कॅरियर और लेखन ने कोटि-कोटि भारतीयों का मार्गदर्शन किया है, उन्हें प्रोत्साहित किया है। वे हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन हर भारतीय के हृदय में हमेशा उनका स्थान रहेगा। वे समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर हमारे मन में सदैव ज्ञान की ज्योति जलाते रहेंगे। प्रस्तुत पुस्तक ‘डॉ. कलाम : प्रेरणा की उड़ान’ उनके सहज-सरल, अनुकरणीय जीवन का एक विशद् विवेचन करती है। इस पुस्तक का उद्देश्य भारत के सर्वांगीण विकास के डॉ. कलाम के स्वप्न को साकार करने की प्रबल इच्छाशक्ति जाग्रत् कराना है, ताकि भारत के छात्र-युवा-आमजन प्रेरणा ले सकें। यह पुस्तक पढ़कर छात्रों को भारतीय रक्षा और अनुसंधान विकास में एरोनॉटिकल इंजीनियर, मिसाइल इंजीनियरिंग, उपग्रह प्रक्षेपण यान तकनीक के क्षेत्र में डॉ. कलाम के अनगिनत योगदानों के विषय में और ज्यादा जानने का अवसर मिलेगा। स्वप्न देखकर उन्हें साकार करने की क्षमता प्राप्त करने की उड़ान भरने में यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी।
Vaidik Dharm Evam Shraman Parampara
- Author Name:
Akhand Pratap Singh
- Book Type:

-
Description:
वैदिक धर्म एवं श्रमण परम्परा में प्रवृत्ति एवं निवृत्तिमूलक धर्म के कालगत प्रवाह व प्रभाव का समालोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है जो विश्वविद्यालय स्तर पर स्नातकोत्तर के छात्रों का मार्गदर्शन कराने में सर्वथा उपयोगी है। पुस्तक में साहित्यिक व पुरातात्त्विक साक्ष्यों का यथास्थान उपयोग, तथ्य एवं चिन्तन का सन्निवेश, शोधपरक दृष्टि का समावेश और संस्कृतनिष्ठ भाषा का निर्वहन है।
इस पुस्तक का उद्देश्य ताम्राश्म काल (ई.पू. तृतीय सहस्त्राब्दी) से लेकर 12वीं, 13वीं शती ईस्वी सन् अर्थात् पूर्वमध्यकाल तक हुए धर्म-दर्शन के विकास का कालक्रमानुसार विवेचन है।
प्रामाणिक इतिहास हेतु जहाँ एक ओर वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् एवं पुराण साहित्य आदि का आश्रय लिया गया, वहीं दूसरी ओर पुरातात्त्विक सामग्रियों जैसे, मुहरें, मूर्तियाँ, मुद्राएँ एवं भित्ति-चित्रों से प्राप्त सूचनाओं का समावेश किया गया है।
Ramkatha In Indian Language
- Author Name:
Yogendra Pratap Singh
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Islam Mein Dharmik Chintan Ki Punarrachna
- Author Name:
Mohd. Ikbal
- Book Type:

-
Description:
‘इस्लाम में धार्मिक चिन्तन की पुनर्रचना’ डॉ. मुहम्मद इक़बाल के उन महत्त्वपूर्ण अंग्रेज़ी व्याख्यानों का अनुवाद है जिन्हें उन्होंने मद्रास मुस्लिम एसोसिएशन के निवेदन पर तैयार किया था। ये व्याख्यान दिसम्बर, 1928 के अन्त में मद्रास और जनवरी, 1929 में हैदराबाद और अलीगढ़ में दिए गए थे।
यूरोपीय भाषाओं—जर्मन, फ़्रेंच, इतालवी तथा एशियाई भाषाओं—उर्दू, अरबी, फ़ारसी और तुर्की में इन व्याख्यानों के अनुवाद बहुत पहले हो चुके हैं। ज़रूरत थी कि दक्षिण-पूर्व एशिया की प्रमुख भाषा हिन्दी में भी इनका अनुवाद हो ताकि हिन्दीभाषी पाठक अपने दिक और काल में इस्लाम में धार्मिक चिन्तन के स्वरूप को समझने तथा इसकी पुनर्रचना के इस सबसे आधुनिक एवं समर्थ प्रयास से न केवल परिचित हो सकें, बल्कि इस्लाम में धार्मिक चिन्तन को लेकर फैलाए जा रहे प्रभावों से मुक्त होकर एक समुचित दृष्टिकोण अपना सकें।
इस पुस्तक से एक बार पुनः भारतीय दर्शन की अनेक गंगा-जमुनी समस्याओं का समाधान हो सके, इसी विश्वास के साथ एक विस्तृत परिदृश्य को रेखांकित किया गया है ताकि पाठकों एवं चिन्तकों को न केवल इक़बाल की मनोभूमि का पता चल सके, बल्कि इस्लामी चिन्तन की गहरी अर्थवत्ता और व्यापक मानवीयता का भी बोध हो सके।
Hadapada Appanna-Lingam
- Author Name:
Kashinath Ambalge
- Book Type:

-
Description:
ध्यान करना चाहूँ तो क्या ध्यान करूँ।
मन तेजोहीन धुँधला पड़ गया था, तन शून्य हो गया था।
कायक गुण गल चुका। देह से अहं मिट गया था।
अपने आपसे प्रकाश में झूमते मैं सुखी बनी
अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥
मन याद कर रहा है।
बुरी विषय वासना की ओर मन बहक रहा है।
डाली की चोटी की ओर जा रहा है मन
मन किसी भी नियम में बँधता नहीं,
छोड़ देने पर मन जाता भी नहीं।
अपनी इच्छा पर मनमानी करते मन को नियम में बाँधकर
लक्ष्य में स्थिर करके शून्य में विहरनेवाले
शरणों के चरणों में मैं समा रही
अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥
—लिंगम्मा
घास-फूस-कचरा निकालकर स्वच्छ किए
हुए खेत में कूड़ा-करकट बोनेवाले पागलों की तरह
विषय-सुखों के झूठे भ्रम में लोलुप होकर
तकलीफ़ में पड़नेवाले मनुष्य कैसे जान सकते
महाघन गुरु के स्वरूप को?
मरण बाधा में पड़नेवाले आपको कैसे जान सकते हैं
बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा? ॥
भूख मिटाने अन्न स्वीकार करते हैं,
विषय के मोह में झूठ बोलते हैं,
नए-नए व्यसन में पड़कर
भस्म धारण करके सारा विश्व घूमते हैं।
इस मिथ्या को छोड़कर, माया के धुँधलेपन को दूर किए बिना
नहीं समा सकता हमारा बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा॥
—अप्पण्णा
Hindutwa Aur Uttar-Aadhunikta
- Author Name:
Sudhish Pachauri
- Book Type:

-
Description:
किसी दैनिक कमेंट्री की तरह लिखी गई ये टिप्पणियाँ उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श का रेखांकन करने और उसके समस्या-बिन्दुओं को खोलने की प्रक्रिया में लिखी जाती रही हैं। उत्तर-आधुनिक विमर्श और उत्तर-संरचनावादी पाठ-प्रविधि के बिना उत्तर-औपनिवेशिकता की इस गुत्थी को नहीं खोला जा सकता। यहाँ हिन्दुत्व के द्वारा चयनित और सक्रिय किए गए नाना प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक चिन्हों को पढ़ा गया है। वे इस लेखक के लिए ‘षड्यंत्र’ नहीं हैं, उत्तर-औपनिवेशिक एजेंडे और सत्तामूलक विमर्श के परिणाम हैं जिनकी कुल माँग आधुनिकता का एक सकलतावादी एजेंडा है। सती-दहन से लेकर अणुबम फोड़ने तक, मस्जिद के विध्वंस से लेकर मन्दिर निर्माण तक हर बात पर स्वदेशी एजेंडे की वकालत, पिछले दशकों के वे राजनीतिक-सांस्कृतिक समुच्चय हैं जो प्रचलित सेकुलर समीक्षा की मुठभेड़ों से परे और महफ़ूज़ ही रहे आए हैं। इसका कारण हिन्दुत्व शक्तियों द्वारा पैदा किए गए ‘प्रस्थापना परिवर्तन’ हैं, सेकुलर विमर्श जिन्हें समझने में कई बार नाकाम रहता है। उसे अगर कोई प्रस्थापनाएँ समस्याग्रस्त करती हैं तो लेट-कैपिटलिज़्म के द्वारा पैदा की गई उत्तर-आधुनिक प्रस्थापनाएँ हैं। उत्तर-आधुनिकता के समय में हिन्दुत्व एक ‘अ-सम्भावना’ ही है।
भारत जैसे समाजों के सन्दर्भ में उत्तर-आधुनिकता की भूमिका नए पूँजीवाद की भूमिका की तरह द्वन्द्वात्मकता से युक्त है क्योंकि उसमें लेट-कैपिटलिज़्म का द्वन्द्ववाद सक्रिय है। यही इस लेखक की उत्तर-आधुनिकता की अपने ढंग की उत्तर-मार्क्सवादी पाठ-प्रविधि है जो उत्तर-औपनिवेशिक एजेंडे के आगे उत्तर-आधुनिकता से फिर-फिर टकराती है और हिन्दुत्व के सकलतावाद के एकार्थवादी तत्त्व के बरक्स उत्तर-आधुनिकता के बहुलवाद के तत्त्व को अल्पवाद के हाशियावाद के विमर्श में उपयोगी पाती है और साथ ही एक समकालीन ‘कल्चर टर्न’ को पढ़ते हुए उपभोक्तावाद और पॉपुलर कल्चर में इस उत्तर-औपनिवेशिक तत्त्ववाद के सकंट को गहराता देखती है।
यह किताब हिन्दुत्व के अन्तरंग संकटों के इशारे देती है। यह हिन्दुत्व की समकालीन मार्केटिंग में निहित है। यह उत्तर-औपनिवेशिक विमर्श का उत्तर-आधुनिक ग्लोबल मंडली में बैठना भर है। इस मार्केटिंग के खेल को पुराने सेकुलर विमर्श की प्रस्थापनाओं से नहीं समझा जा सकता। बिन लादेनी ब्रांड का इस्लाम पहले इसी बाज़ार के लिए बना था, अब उसे उसी बाज़ार ने तोड़ा है। हिन्दुत्व की अन्तिम हद अगर कुछ है तो तालिबानीकरण है और वही उसकी समाधि भी है।
Ramkatha Mein Naitik Mulya
- Author Name:
Dr. Vinod Bala Arun
- Book Type:

- Description: रामकथा भारतवर्ष की सांस्कृतिक एकता का प्रबल सूत्र रही है। जहाँ भारत की प्राचीन भाषाओं (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि) में विस्तृत राम-साहित्य अनेक विधाओं में लिखा गया, वहीं यह दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग सभी देशों, जैसे जावा, बाली, मलय, हिंद चीन, स्याम, चीन आदि में भी उपलब्ध होता है। चीन का ‘दशरथ कथानम्’, इंडोनेशिया का ‘रामायण काकावीन’, जावा का ‘सेरतराम’ और स्याम का ‘रामकियेन’ आदि इसके कतिपय उदाहरण हैं। रामकथा मानव जीवन को समुन्नत बनाने वाले नैतिक मूल्यों का अक्षय भंडार है। संभवतः विश्व वाङ्मय में वाल्मीकि-रामायण वह प्रथम ग्रंथ है, जिसमें नैतिक मूल्यों का काव्यात्मक, व्यावहारिक और मूर्तिमान् रूप दिखाई देता है। मनुष्य के अभ्युदय और निःश्रेयस के लिए ये मूल्य इतने उपयोगी और महत्त्वपूर्ण हैं कि वाल्मीकीय रामायण के बाद रामकथा की एक लंबी परंपरा बन गई, जिसमें इन नैतिक मूल्यों को जीवन में आचरित और अवतरित होते हुए दिखाया गया। रामचरितमानस में तो इनको दैवी गरिमा दी गई। इस पुस्तक में रामकथा के मूल ग्रंथ वाल्मीकि-रामायण और शिखर ग्रंथ रामचरितमानस में सन्निहित नैतिक मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन करके मानव जीवन में उनकी उपयोगिता का आकलन किया गया है। नैतिक मूल्यों के संरक्षण-संवर्धन हेतु एक विशिष्ट पुस्तक।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...