Maharaja Chhatrasal
Author:
Vidya ChouhanPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
शौर्य, पुरुषार्थ और मानवीय मूल्यों के किस्सों से बुना ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित उपन्यास है, 'महाराजा छत्रसाल'! यह कहानी इतिहास के उस कालखंड की है, जब भारतवर्ष पर विदेशी आक्रांताओं की कुत्सित दृष्टि पड़ी और उन्होंने आक्रमण कर इस समर्थ राष्ट्र को खूब लूटा। मुगल भारत आए और यहाँ की एकता-अखंडता की जड़ों को खोखला करने लगे। इनके शासनकाल में आमजन समुदाय पर अत्याचार बढ़ने लगे और लोगों के बीच भय, अनिश्चितता और निराशा पनपने लगी। समृद्ध भारत को दासता की बेड़ियों में जकड़ने का प्रयास जारी था।
इन्हीं परिस्थितियों में बुंदेलखंड की धरती से विलक्षण प्रतिभा संपन्न अप्रतिम योद्धा 'छत्रसाल' अपने बाहुबल से परिवर्तन की गाथा लिख रहे थे। उन्हें अपने माता-पिता से देशभक्ति और वीरता, विरासत में मिली थी। कलम और तलवार, दोनों की साधना करते हुए इस विरले राष्ट्रभक्त ने मातृभूमि की संस्कृति और स्वाभिमान को बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 82 वर्ष की आयु में उस रणबाँकुरे ने 62 वर्ष रणभूमि में बिताए।
अपने आत्मबल से उन्होंने मुगलों के सबसे क्रूर और शक्तिशाली शासक औरंगजेब का बुंदेलखंड जीतने का स्वप्न कभी पूरा नहीं होने दिया। संकट में धैर्य को परखने का नाम है, 'छत्रसाल'। अपूर्व शौर्य और पराक्रम का पर्याय है, 'छत्रसाल' और अपनी अस्मिता के रक्षार्थ शत्रुओं को धूल में मिलाने का सामर्थ्य है 'छत्रसाल'। राष्ट्रभक्ति, पराक्रम, शूरवीरता और समर्पण के प्रतीक 'महाराजा छत्रसाल' की प्रेरक यशोगाथा ।
ISBN: 9789348957023
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘हिन्दू सभ्यता’ प्रख्यात इतिहासकार प्रो. राधाकुमुद मुखर्जी की सर्वमान्य अंग्रेज़ी पुस्तक ‘हिन्दू सविलाजेशन’ का अनुवाद है। अनुवाद किया है इतिहास और पुरातत्त्व के सुप्रतिष्ठ विद्वान डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने। इसलिए अनूदित रूप में भी यह कृति अपने विषय की अत्यन्त प्रामाणिक पुस्तकों में सर्वोपरि है। हिन्दू सभ्यता के आदि स्वरूप के बारे में प्रो. मुखर्जी का यह शोधाध्ययन ऐतिहासिक तिथिक्रम से परे प्रागैतिहासिक, ऋग्वैदिक, उत्तरवैदिक और वेदोत्तर काल से लेकर इतिहास के सुनिश्चित तिथिक्रम के पहले दो सौ पचहत्तर वर्षों (ई. पू. 650-325) पर केन्द्रित है। इसके लिए उन्होंने ऋग्वेदीय भारतीय मानव के उपलब्ध भौतिक अवशेषों तथा उसके द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार की उत्खनित सामग्री का सप्रमाण उपयोग किया है। वस्तुतः प्राचीन सभ्यता या इतिहास-विषयक प्रामाणिक लेखन उपलब्ध अलिखित साक्ष्यों के बिना सम्भव ही नहीं है। यह मानते हुए भी कि भारत में साहित्य की रचना लिपि से पहले हुई और वह दीर्घकाल तक कंठ-परम्परा में जीवित रहकर ‘श्रुति’ कहलाया जाता रहा, उसे भारतीय इतिहास की प्राचीनतम साक्ष्य-सामग्री नहीं माना जा सकता। यों भी यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि लिपि, लेखन-कला, शिक्षा या साहित्य मानव-जीवन में तभी आ पाए, जबकि सभ्यता ने अनेक शताब्दियों की यात्रा तय कर ली। इसलिए प्रागैतिहासिक युग के औज़ारों, हथियारों, बर्तनों और आवासगृहों तथा वैदिक और उत्तरवैदिक युग के वास्तु, शिल्प, चित्र, शिलालेख, ताम्रपट्ट और सिक्कों आदि वस्तुओं को ही अकाट्य ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। कहना न होगा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में अध्ययनरत शोध छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी इस कृति के निष्कर्ष इन्हीं साक्ष्यों पर आधारित हैं।
BHRASHTACHAR KA ANT
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Bharatiya Itihas Prashnottari
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- Description: भारतीय इतिहास की यह प्रश्नोत्तरी बिहार राज्य के माध्यमिक विद्यालयों के निर्धारित पाठ्यक्रम के आधार पर वर्ग दशम एवं एकादश के छात्रों के लिए लिखी गई है। इस विषय पर अब तक जितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, उन सभी से इस पुस्तक को अधिक आकर्षक और छात्रोपयोगी बनाने की चेष्टा की गई है। छात्रों की कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक विषय को सरल बनाकर प्रस्तुत किया गया है।
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