
Jagdish Chandra Mathur Rachanawali : Vol. 1-4
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
1536
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
3072 mins
Book Description
जगदीशचन्द्र माथुर सृजनात्मक प्रतिभा के धनी थे। वे 14–15 वर्ष की आयु से ही लिखने लगे थे। नाटककार के रूप में विख्यात माथुर जी ने अपनी विशिष्ट शैली में चरित लेख, ललित निबन्ध और नाट्य–निबन्ध भी लिखे हैं। लेखन में उनकी इतनी रुचि थी कि जिन विभागों में उन्होंने काम किया उनकी समस्याओं के सम्बन्ध में भी बराबर लिखा। उनकी आरम्भिक रचनाएँ उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं—‘चाँद’, ‘भारत’, ‘माधुरी’, ‘सरस्वती’ और ‘रूपाभ’ में छपती थीं।</p> <p>बिहार में शिक्षा सचिव के पद पर काम करते हुए उन्होंने कई सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना की और उनमें गहरी रुचि ली। अपने विचारों और मूल्यों में श्री माथुर ग्रामीण और नागर, लोक और शास्त्रीय संस्कारों व परम्पराओं के समन्वय के पक्षधर थे। इस पक्षधरता का स्वर उनके साहित्य में पूर्णत: मुखर है। उन्होंने अपनी रचनाओं की प्रकृति, रचना–प्रक्रिया और अपने विचारों एवं विश्वासों के बारे में पुस्तकों की भूमिकाओं में बहुत–कुछ लिखा है, जो उनके साहित्य को समझने में सहायक है।</p> <p>प्रस्तुत रचनावली उनके सम्पूर्ण रचनाकर्म को एक स्थान पर समेटने का प्रयास है। जगदीशचन्द्र माथुर रचनावली के इस खंड को चार भागों में बाँटा गया है। इसमें उनके एकांकी तथा दो कठपुतली नाटक संकलित हैं। पहले भाग में ‘मेरे सर्वश्रेष्ठ रंग एकांकी’, दूसरे में उनके दो एकांकी ‘भोर का तारा’ और ‘ओ मेरे सपने’, तथा तीसरे भाग में पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित स्फुट एकांकी हैं, इनमें ‘मेरी बाँसुरी’ और ‘लव–कुश’ जैसी आरम्भिक रचनाएँ हैं। चौथे व अन्तिम भाग में ‘कुँवर सिंह की टेक’ और ‘गगन सवारी’ दो कठपुतली नाटकों को रखा गया है।