Vardhman

Vardhman

Authors(s):

Rajendra Ratnesh

Language:

Hindi

Pages:

276

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

552 mins

Buy For ₹350

* Actual purchase price could be much less, as we run various offers

Book Description

‘वर्द्धमान' शीर्षक यह उपन्यास लिच्छवियों के विशाल समृद्ध गणराज्य की राजधानी वैशाली में महाराजा चेटक के राजमहल के इन्द्रभवन जैसे मणिकांचन जड़ित स्फटिक भवन में वैशाली की महारानी सुभद्रा और सुभद्रा की ननद राजकुमारी त्रिशला के मनोविनोदपूर्ण परिहास से शुरू होकर पावापुरी में महाप्रभु के निर्वाण पर पूर्ण विराम लेता है। यही राजकुँवरी त्रिशला कुंडपुर में ब्याही गई और वर्द्धमान महावीर की माँ बनी।</p> <p>महावीर के आयुकाल में विभाजन रेखाएँ स्पष्ट हैं। अपनी आयु के 28 वर्ष उन्होंने कुंडपुर में बिताए। बाल्यकाल से ही वे वीतराग होते चले गए। फिर 2 वर्ष वह अग्रज नन्दीवर्द्धन के आग्रह पर स्वयं को वहीं रोके रहे। 30 वर्ष की आयु में राजमहल से चल पड़े। ज्ञात खंड उद्यान के अशोक वृक्ष की छाया में उन्होंने सारे वस्त्र और आभूषण उतार दिए। तपस्या काल यहीं से शुरू हुआ। पूरे साढ़े बारह वर्ष परीषह और उपसर्ग सहते हुए सस्मित मौन तपस्वी रहे। पावापुरी से जंभियग्राम और वहीं ऋजुबालुका नदी के पास शालवृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ। वे केवली बने।</p> <p>बाद के तीस वर्ष उन्होंने धर्मलाभ और पुण्यलाभ के निमित्त सारे संसार पर न्योछावर कर दिए।</p> <p>उपन्यास के कथानक, उपन्यासों के पात्रों, राजनगरों, राजधानियों, राज्यशैलियों, प्रचलित परम्पराओं, पात्रों के नामों, सामाजिक स्थितियों, परिस्थितियों, सामान्य नागरिकों की मन:स्थितियों, यात्राओं, धर्मसभाओं, न्यायालयों, नारी जगत की संवेदनाओं, ईर्ष्याओं, वैर-बदलों, उपसर्गों, परीषहों, मन्दिरों, मदिरालयों आदि का अध्ययन करने पर लगता है कि मनस्वी डॉ. रत्नेश ने पचासों उपन्यासों को इस एक उपन्यास में महावीर को अपना कथानायक बनाकर लिखने की कोशिश की है। श्री रत्नेश अपनी प्रवाहमयी भाषा के लिए जाने जाते हैं। उस काल के अनुरूप संवादों और व्यवहारगत भाषा का ध्यान उन्होंने बराबर रखा है।</p> <p>डॉ. राजेन्द्र रत्नेश की पुस्तक ‘वर्द्धमान’ का समग्र लेखन जैन आगम, जैन इतिहास, जैन पुराण और जैन मान्यताओं के अध्ययन तथा आधारभूमि पर है। डॉ. रत्नेश ने अपनी आयु का स्वर्णकाल एक जैन श्रमण या जैन मुनि के रूप में जिया है। उन्होंने साधु जीवन और मुनि जन्म का शैलीगत पालन किया है। आज वे एक सद्गृहस्थ और मेधावी पत्रकार तथा लेखक हैं। अपने दीर्घ अनुभव और अध्ययन से वे यदि 'वर्द्धमान' जैसा मात्र पठनीय ही नहीं, अपितु मननीय ग्रन्थ अपने समाज को सौंपते हैं तो यह बहुत सुखद फलित है।

More Books from Rajkamal Prakashan Samuh