Vyavdhan : Bikhari Aas Nikhari Preet
Author:
Shanti Kumari BajpaiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
‘व्यवधान’ पर अभिमत इस उपन्यास को बड़े चाव से पढ़ गया। मुझे प्रसन्नतापूर्ण विस्मय हुआ। घर के भीतर दुनिया का इन्होंने सजीव चित्र उपस्थित किया है। इनके पात्र जाने-पहचाने से लगते हैं। अत्यन्त परिचित वातावरण के भीतर इन्होंने कई अविस्मरणीय पात्रों की सृष्टि की है और विपत्तियों की आँधी को स्वर्ग की सीढ़ी में बदल दिया है। नारी पात्र बहुत सशक्त हैं।</p>
<p>—आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी</p>
<p>इस उपन्यास में भारतीय आदर्शों एवं सात्त्विकता के प्रति असीम संवेदना है। श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी में एक सबल कलाकार है, इस उपन्यास को पढ़कर मुझे ऐसा अनुभव हुआ।...‘व्यवधान’ में किसी समस्या को नहीं उठाया गया है। प्रत्येक श्रेष्ठ कला की भाँति यह उपन्यास मानवीय संवेदना को लेकर चलता है।...भाषा मँजी हुई और गठी हुई है। मैं ऐसा समझता हूँ कि उनकी अपनी निजी शैली है, जो आगे चलकर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान बना लेगी। यही नहीं, श्रीमती बाजपेयी में एक तरह का सन्तुलन है जो श्रेष्ठ कला का अनिवार्य अंग माना जाता है।</p>
<p>—भगवतीचरण वर्मा</p>
<p>उपन्यास का सम्पूर्ण कथानक हृदयग्राही है। पात्रों को जीवन्त रूप में प्रस्तुत करने और उनकी चारित्रिक विशेषताओं को उभारने में आपकी रोचक एवं संवेदनामयी संवाद-योजना अत्यन्त सफल हुई है। भाषा-शैली की प्रेषणीयता भी स्तुत्य है।</p>
<p>—डॉ. नगेन्द्र</p>
<p>काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका सुश्री शान्ति कुमारी बाजपेयी की कृति ‘व्यवधान’ को मैंने बड़े मनोयोग से पढ़ा। मुझे आश्चर्य हुआ। ...उनकी प्रथम रचना होकर भी यह उपन्यास अपने में सर्वथा प्रौढ़ कृति मालूम पड़ता है। कथानक के गुम्फन में सफ़ाई है और उसके भीतर क्रमागत रूप में परिस्थितियों की योजना बड़ी ही विशद है। पात्रों के चरित्र में निखार है, उनका अपना-अपना स्वतंत्र विकास हुआ है और उनके मनोवैज्ञानिक उतार-चढ़ाव की गति में पर्याप्त निर्मलता है।</p>
<p>—डॉ. जगन्नाथ प्रसाद शर्मा</p>
<p>आपकी भाषा के प्रवाह, शैली के सामर्थ्य तथा चरित्र-चित्रण के कौशल से अत्यधिक प्रभावित हुआ। नामानुसार ‘व्यवधान’ के प्रसंग यत्र-तत्र मिलते हैं तथा ‘आस’ का ‘बिखरना’ एवं ‘प्रीत’ का ‘निखरना' भी पल-पल पर दिखाई देता है। दोनों ही नामकरण पूर्णत: यथार्थ हैं। आरम्भ और अन्त के प्रकरणों ने तो मुझे बार-बार रुलाया। आपकी रचना में जो सजीवता, भावनात्मक धड़कन और स्वानुभव का पुट है, उससे इस उपन्यास ने ‘आद्य’ होते हुए भी अपना ‘प्रथम’ स्थान बना लिया है।</p>
<p>—डॉ. पंडित ओंकारनाथ ठाकुर</p>
<p>उपन्यास लेखन एक दुस्तर सेतु को पार करने सरीखा है। हर्ष का विषय है कि श्रीमती शान्ति कुमारी बाजपेयी ऐसे प्रयास में कृतकार्य हुई हैं। उनकी कृति ‘व्यवधान’ का मैं स्वागत करता हूँ और एतदर्थ उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ।</p>
<p>—श्री राय कृष्णदास
ISBN: 9788180316227
Pages: 351
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Navarun Bhattacharya
- Book Type:

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Description:
बिलकुल नई भाषा-भंगिमा और अद्भुत कथा-सामर्थ्य को उपस्थित करता यह उपन्यास अपने आप में इस बात का सबूत है कि कैसे आकार में बड़ी न होकर भी एक कथा अपने समय और जीवन का विशद आख्यान बन सकती है। प्रतिष्ठित कथाकार देवेश राय का अभिमत है कि बाँग्ला भाषा में समकालीन दौर में ‘हरबर्ट’ जैसा मौलिक उपन्यास दूसरा नहीं लिखा गया। 1997 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि-कथाकार नवारुण भट्टाचार्य उन बिरले लेखकों में हैं जिनके इस पहले ही उपन्यास पर यह पुरस्कार मिला। समकालीन बाँग्ला साहित्य में जबरदस्त हलचल उत्पन्न करने वाली यह कृति ‘नरसिंह दास अवार्ड’ और ‘बँकिम पुरस्कार’ पहले ही पा चुकी थी।
यह उपन्यास महज कथा-नायक हरबर्ट सरकार की जीवन कथा ही नहीं है बल्कि अपने समय के इतिहास से गुजरते हुए एक ऐसे व्यक्ति की दास्तान है जिसके भीतर भी एक इतिहास है और जो अपनी मामूली जिंदगी को एक अर्थ देने के लिए अपने समय में असफल हस्तक्षेप करता है। गुजरते वक्त का इतिहास उपस्थित करते हुए हरबर्ट के भीतर बैठे इतिहास की खिड़की खोलने में उपन्यासकार ने जो आख्यान रचा है, उसमें उन्नीसवीं सदी के बाँग्ला कवियों की काव्य-पंक्तियाँ हर अध्याय के शुरू में जीवन दर्शन की तरह उपस्थित होती हैं और व्यक्ति, पीढ़ियाँ, पैतृक मकान, मुहल्ला, शहर, संबंध, भाईचारा, बेगानापन, समाज-व्यवस्था, राजनीतिक प्रणाली, व्यवस्था परिवर्तन का प्रतिरोध, पूँजीवादी आधुनिकता और उसकी क्रूरता आदि को समेटती हुई मामूली आदमी की महागाथा तैयार हुई है।
इतने छोटे कलेवर के उपन्यास में इतने सघन प्रभाव के साथ यह सब संभव हो पाया है अपने अपूर्व रचना-विधान और विशिष्ट भाषा रीति के कारण, जो उपन्यास लेखन की प्रचलित और परिचित परिपाटी से भिन्न नवारुण भट्टाचार्य की मौलिक उद्भावना है। यह उपन्यास गुजरते हुए काल का इतिहास है, बीत चुका अतीत नहीं–यह जारी है। और, हरबर्ट भी मरता नहीं–बार-बार पैदा हो जाता है।
Shadows of Solitude
- Author Name:
Aryani Banerjee
- Book Type:

- Description: Twenty-nine-year-old aniya finds it extremely difficult to cope after her fiancé abhishar Sen’s untimely demise. Solitude takes her on a roller coaster ride, and she suddenly develops feelings for her Jovial reporting manager Vinod Gupta, which she believes is an infatuation created by the void abhishar’s death has left in her life. Amidst all this, she comes to know that Mohan – one of her colleagues she becomes friends, has been in love with her for a long time. Droplets of hope trickle down the moist glass of her broken heart; who will she choose?
Agnibeej
- Author Name:
Markandey
- Book Type:

- Description: 'अग्निबीज' में प्रस्तुत कथा-योजना का समय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का है। उत्तर भारत के सामाजिक-राजनैतिक जीवन और यहाँ की असह्य वर्ण व्यवस्था का उस पर प्रभाव इस उपन्यास का मुख्य विचार तत्व है। इसी कारण इसके नायक तीन ऐसे पात्र बनाए गए हैं जो अल्पवय हैं और पिछड़ी तथा निचली जातियों से आते हैं। श्यामा, जो एक विक्षिप्त स्वतंत्रता सेनानी की कन्या है, इन बाल पात्रों में सर्वाधिक जागृत है। श्यामा के पिता को, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पुलिस की लाठियों और यातनाओं गूँगा बना दिया है। उनका भाई उनकी कृति और त्याग का पूरा फ़ायदा उठाता है और राजनीति तथा सामाजिक जीवन में निरन्तर लन्द-फन्द करके एक महत्त्वपूर्ण कांग्रेस नेता बन जाता है। 'अग्निबीज' का सत्य उत्तर भारत के ग्रामीण जीवन का ऐसा मुखर सत्य है जिसके कारण उच्च जातियों के बुद्धजीवियों और आलोचकों ने इस उपन्यास के विचार तत्व को एक रूप तले दबाने का प्रयत्न किया लेकिन इसके व्यापक प्रभाव को रोक पाना, उनके लिए सम्भव नहीं हो पाया। उपन्यास सारे देश में पढ़ा एवं सराहा गया और उसे अनेक विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे हैं। 'अग्निबीज’ की मुख्य उपलब्धि उसमें वर्णित उत्तर भारत के गाँवों का सामाजिक जीवन है। पिछड़ी जातियों और हरिजनों के दुःखद और यातनामय जीवन की जैसी झाँकी 'अग्निबीज' में चित्रित है, उसका दर्शन प्रेमचन्द को छोड़कर किसी अन्य कथाकार के यहाँ उपलब्ध नहीं है। ख़ुशी की बात तो यह है कि ‘अग्निबीज’ का सत्य स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद पुन: उजागर हो रहा है। समाज के उपेक्षित वर्ण जागृत होकर देश की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है।
Tapaswini
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

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Description:
भारतीय साहित्य में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का अप्रतिम महत्त्व है। वे केवल गुजराती भाषा के नहीं, अपितु समस्त भारतीय भाषाओं के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। हिन्दीभाषी समाज के लिए तो वे जैसे अपने ही रचनाकार हैं। भारतीय पौराणिक आख्यान और इतिहास उनकी रचना-भूमि है। एक ओर उन्होंने ‘भगवान परशुराम’ और ‘कृष्णावतार’ जैसे पौराणिक आख्यानों का सृजन किया, वहीं ‘जय सोमनाथ’ जैसे वृहत् ऐतिहासिक उपन्यास की रचना की।
‘तपस्विनी’ मुंशी जी की एक ऐसी अमर रचना है जिसमें 1857 से लेकर 1947 तक का कालखंड समाहित है। भारतीय स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती वर्ष में इस कृति का इसलिए भी अधिक महत्त्व है कि इसमें स्वतंत्रतापूर्व की राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ समाहित हैं। इतिहासबद्ध न होने पर भी इस कृति के ऐतिहासिक महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। स्वतंत्रतापूर्व और स्वतंत्रता-पश्चात् की स्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन में यह कृति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। मानवीय संवेदनाओं का सूक्ष्म चित्रण और भाषिक तरलता मुंशी जी के लेखन की विशिष्टता है।
इतिहास को विषयवस्तु बनाते हुए भी मुंशी जी मानवीय व्यवहार को घटनाओं से अधिक महत्त्व देकर एक तरह से समाजशास्त्रीय इतिहास की रचना करते हैं। प्रस्तुत उपन्यास भी इसी तरह का सामाजिक इतिहास रचता है। निस्सन्देह, यह कथाकृति लेखकीय दायित्व-बोध, विलक्षण प्रतिभा और कमनीय कल्पना का अपूर्व सामंजस्य प्रस्तुत करती है।
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