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Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
130
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
260 mins
Book Description
“अली अमजद से मिलाया था न मैंने तुमको?”</p> <p>“वह राइटर?”</p> <p>“हाँ!”</p> <p>“हाँ-हाँ यार, याद आ गया। बड़ा मज़ेदार आदमी है।”</p> <p>“उसी का तो चक्कर है।” हरीश ने कहा, “आज ही प्रीमियर है। और वह मर गया। समझ में नहीं आता क्या करूँ?”</p> <p>“मर कैसे गया?”</p> <p>“पता नहीं। मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।”</p> <p>आईने में उसने अपने चेहरे को उदास बनाकर देखा। उसे अपना उदास चेहरा अच्छा नहीं लगा। उसने आँखों को और उदास कर लिया...</p> <p>अली अमजद मरा नहीं, क़त्ल किया गया है। और उसे क़त्ल किया है इस जालिम समाज, बेमुरव्वत हालात और इस बेदर्द फ़िल्म इंडस्ट्री ने...</p> <p>उसने गरदन झटक दी। बयान का यह स्टाइल उसे अच्छा नहीं लगा।</p> <p>मेरा दोस्त अली अमजद एक आदमी की तरह जिया और किसी हिन्दी फ़िल्म की तरह बिला वज़ह ख़त्म हो गया।...</p> <p>दाढ़ी बनाते-बनाते उसने अपना बयान तैयार कर लिया। और इसलिए जब वह अली अमजद के फ़्लैट में दाख़िल हुआ तो वह बिलकुल परेशान नहीं था।</p> <p>हिन्दी फ़िल्म उद्योग की चमचमाती दुनिया की कुछ स्याह और उदास छवियों को बेपर्दा करता उपन्यास।