Safed Ghora Kala Sawar
Author:
HrideyeshPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
हृदयेश ने अपने इस उपन्यास ‘सफेद घोड़ा काला सवार’ में भारतीय न्याय–व्यवस्था की शव–परीक्षा की है। यह उपन्यास इस व्यवस्था के सारे अन्तर्विरोधों तथा छद्मों को केवल उजागर ही नहीं करता, सामान्य जन के लिए प्रचलित न्याय–प्रणाली की निरर्थकता पर तीव्र टिप्पणी भी करता है। उपन्यास का फलक इतना व्यापक है कि इसमें संगुम्फित छोटी–छोटी कहानियाँ इसे न्याय के नाम पर रचे गए चक्रव्यूह का वृहद् मार्मिक दस्तावेज़ बनाती हैं।</p>
<p>उपन्यास में विषयगत नवीनता है, शिल्पगत ताज़गी है और है सार्थक दृष्टि का कलात्मक उपयोग। वस्तुत: यह उपन्यास हिन्दी के उन कुछ श्रेष्ठ उपन्यासों में से है जो स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में यथार्थवादी दृष्टि से लिखे गए हैं और जो पाठकों को समसामयिक परुष यथार्थ से परिचित कराने के साथ–साथ उनको बहुत कुछ सोचने को भी मजबूर करते हैं।
ISBN: 9788126702862
Pages: 198
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: इनसान अपना गाँव-देहात छोड़कर, रोज़ी-रोटी या कारोबार के चक्कर में किसी और शहर में आ बसता है। वहाँ की संस्कृति-विशेष, रहन-सहन, बोलचाल में घुल-मिल जाता है और उसी शहर में अपनी जड़ें जमा लेता है। यही होता है, अकसर होता है, अधिकतर होता है। पंजाब के गाँव-देहात की ज़मीन में उगा राजिन्दर परिवार जब ’84 के दंगे के सिख-विरोधी दंगों के चलते दिल्ली से उखड़कर कलकत्ता जैसे महानगर में पनाह लेता है और अपना छोटा-मोटा कारोबार भी जमा लेता है, तो यह शहर भी उसका अपना हो जाता है। परिवार का नौजवान बेटा, कुलदीप, अपने बंगाली मित्र राना की बहन रिमझिम से प्यार करने लगता है। मगर उनके भरे-पूरे ख़ुशहाल परिवार पर मौत की छाया तब उतर आती है, कि कलकत्ता घूमने आए राजिन्दर के बेटे और जीजा को आतंकवादी समझकर पंजाब पुलिस गोलियों से भून डालती है। इस अन्याय, अत्याचार और बेईमानी की आग में समूचा का समूचा परिवार जलकर भस्म हो जाता है। इस प्रतिकारहीन अँधेरे में नौजवान वर्ग का प्रतिनिधि कुलदीप, एक बूँद उजास की तलाश में दिशाहीन हो उठता है। उसका मोहभंग होता है। उसे अहसास होता है कि अपना गाँव–देस ही शायद उसकी पनाह है, बाक़ी हर जगह परदेस है, जहाँ वे महज़ प्रवासी हैं। कुलदीप वापस अपने गाँव जाने का फ़ैसला करता है, मगर तभी कुछेक जलते हुए सवाल उसे घेर लेते हैं—वहाँ जाकर भी क्या वह भूमिपुत्र हो सकेगा? अपनी ही नज़रों में क्या वह अजनबी नहीं होगा? इन तमाम सवालों का जवाब है, कथाकार सुचित्रा भट्टाचार्य का विस्मयकारी उपन्यास—‘परदेस’।
Are! Yeh Kaisa Man
- Author Name:
Shanti Kumari Bajpai
- Book Type:

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Description:
शान्ति कुमारी बाजपेयी का यह तीसरा उपन्यास दो दृष्टियों से अनूठा है। एक तो इसकी आत्मकथापरक शैली और दूसरे गद्य-पद्य-मिश्र चम्पू-सदृश रूप—ये दोनों ही इसे वैशिष्ट्य प्रदान करते हैं।
कथासूत्र में विशेष कसाव न होने पर भी मानव-मन की गहराइयों में झाँककर उसके अन्तस्तल का प्रत्यक्ष कराने की लेखिका की शक्ति रोचकता को निरन्तर बनाए रखती है।
रस की भाषा में बात करें तो शृंगार को इसमें भरपूर स्थान मिला है। लम्बा पूर्वराग, फिर मिलन, अन्त में सदा के लिए वियोग, इस प्रकार शृंगार के क्रमशः परिपाक और उसकी करुण में परिणति—इन सबका यहाँ मार्मिक चित्रण है।
रचना के अन्तिम अंश में नायिका को स्वयं द्वारा उपेक्षित प्रेमी के आजीवन प्रेम-व्रत-परिपालन और देहपात की बात जब ज्ञात होती है, तब उसके चित्त में करुण रस का एक पृथक् स्रोत फूट उठता है। उसके अन्तर्मन की भीतरी तह में छिपा प्रेम उभरकर जब घोर मन्थन को जन्म देता है, तब मन की जटिलता से साक्षात्कार होता है और ‘अरे! यह कैसा मन?’ इस उद्गार को सार्थकता मिलती है।
— प्रेमलता शर्मा
Ek Saa Sangit
- Author Name:
Vikram Seth
- Book Type:

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Description:
विक्रम सेठ अपनी अनूठी शैली के लेखक हैं। उनकी किसी भी पुस्तक में किसी क़िस्म का दोहराव नहीं होता, फिर भी उनकी प्रत्येक कृति पर उनकी अपनी पहचान अंकित होती है। कुछ आलोचक इस पहचान को ‘जीवन की अचूक साँस’ तो कुछ उसे ‘अनुल्लंघनीय सच्चाई’ कहते हैं।
‘ए सूटेबुल ब्वाय’ के बाद उनका यह पहला उपन्यास है जिसमें वे एक सघन और संवेदनशील कहानी लेकर आए हैं। इस कहानी में संगीत है, कला है, हास्य है और गुरु-गम्भीर अहसास भी। एक स्तर पर यह कहानी प्यार के बारे में है—एक स्त्री का प्यार जो मिलकर खो जाती है, फिर मिलती है और फिर खो जाती है। विक्रम सेठ इस उपन्यास में पुनः जीवन के विभ्रम की रचना करते हैं। और सबसे ऊपर यह पुस्तक संगीत के बारे में है और इस बारे में कि कैसे संगीत का प्यार जीवन के बीचोबीच एक घनीभूत धारा की तरह प्रवहमान रहता है।
तीखे दु:ख और दीप्तिमान मेधा की पुनरावृत्तियों के द्वारा यह उपन्यास विक्रम सेठ के लेखकीय व्यक्तित्व का एक अलग ही पहलू पाठक के सम्मुख खोलता है।
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