Rangmanch
Author:
Choi In HoonPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
कोरिया के लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार छ् वे इन हुन की प्रतिनिधि रचना है ‘रंगमंच’, जिसमें फन्तासी के माध्यम से यथार्थ की भीतरी परत को उकेरने का सार्थक प्रयत्न किया गया है।</p>
<p>यह उपन्यास मूलतः कथानायक के पागलपन और समाज को उसके अनुकूल न बदल पाने से उत्पन्न विफलता को दर्शाता है। दक्षिणी क्षेत्र में माता-पिता की छत्रछाया से अलग कथानायक का व्यक्तित्व क्रान्ति और प्रेम के तत्त्वों से निर्मित होता है जो कभी अमैत्रीपूर्ण समाज की आलोचना करता है तो कभी पुराने ख़ुशहाल दिनों की नास्टेल्जिया से घिर जाता है।</p>
<p>कथानायक ली म्यंगजुन दर्शनशास्त्र का छात्र रहा है जो दुनिया और मनुष्य को एक ख़ास नज़रिए से विश्लेषित करता है। उसने उस दौर को देखा है जब वामपंथी और दक्षिणपंथी लोग कोरियाई प्रायद्वीप में अपनी अलग सरकारें स्थापित करने के लिए एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे। वह दिन-प्रतिदिन कोरिया को अपने वैभव और आदर्श से च्युत भ्रष्टाचार के गर्त में गिरते हुए देखकर हताश होता है। तब भागकर उत्तर की ओर चला जाता है जैसा कि उसके पिता ने पहले किया था। मगर उत्तर के कम्युनिस्टों की दृढ़ व्यवस्था के भीतर कुलबुलाती गुप्त शत्रुता को देख वह बेचैन हो उठता है। उत्तर के लोगों को असंख्य नारों के शोर तले सीमित स्वतंत्रता ही हासिल है जहाँ किसी व्यक्ति की सोच और व्यक्तित्व के विकास के लिए कोई जगह नहीं है।</p>
<p>कोरिया की लड़ाई उसे फिर दक्षिणी क्षेत्र सियोल खींच लाती है जहाँ कम्युनिस्ट दस्ता में लड़ते हुए वह गिरफ़्तार होता है और दक्षिण के एक द्वीप पर बन्दी शिविर में रखा जाता है। लड़ाई के बाद कैदियों से समझौते के आधार पर वह तीसरे और तटस्थ देश भारत को अपने शेष जीवन के लिए चुनता है लेकिन समुद्र यात्रा के दौरान समुद्र में कूदकर आत्महत्या कर लेता है।</p>
<p>राष्ट्रीय विभाजन की समस्याओं को प्रखरता से रेखांकित करने के कारण कोरियाई साहित्य के इतिहास में ‘रंगमंच’ ने युगान्तकारी कृति का दर्जा हासिल किया है। हिन्दी पाठकों को यह उपन्यास न केवल पठनीय लगेगा, बल्कि उनकी सोच को रचनात्मक आयाम भी प्रदान करेगा।
ISBN: 9788126712250
Pages: 172
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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गुजराती उपन्यास के क्षेत्र में सन् 1992 में ‘मीरा याज्ञिक नी डायरी’ (मीरा याज्ञिक की डायरी) एक बे-आवाज़ बग़ावत बनकर आई। बिन्दु भट्ट द्वारा पहली बार यहाँ रूढ़ियों और कामवर्जनाओं की बन्दिशों को तोड़कर बिना किसी मुखरता के सेल्फ़ सेन्सरशिप को उखाड़ फेंकने की दिशा में स्त्री-लेखन ने एक क़दम आगे बढ़ाया है। संवेदनशील-शिक्षित युवती के समलिंगी तथा विषमलिंगी काम सम्बन्धों की अन्तरंग और बेबाक अभिव्यक्ति, डायरी शैली की कलात्मक सार्थकता एवं पारदर्शी गद्य की ताज़गी ने सुज्ञ पाठक वर्ग का बरबस ध्यान खींचा। आज सर्वाधिक आलोचनात्मक लेखों का रिकॉर्ड ‘मीरां याज्ञिक की डायरी’ ने क़ायम किया है।
अपने लघु-कलेवर में ‘मीरा याज्ञिक की डायरी’ हमारी चेतना को अनेक स्तर पर छूते हुए विस्तार देती है। विश्वविद्यालय में शोधकार्य करती मीरा संवेदनशील और बौद्धिक है। ख़ालिस ख़ूबसूरती और भरपूर प्रेम की उसे तलाश है। इस तलाश में अपने समूचे अस्तित्व के साथ वह समस्त परिवेश, विविध पात्र और परिस्थितियों को सहज स्वीकार करती है। संवेदना के स्तर पर वह जो कुछ भी अनुभव करती है, उसे बिना किसी दम्भ-दावे और पूर्वाग्रह के, अपनी डायरी में सर्जनात्मक ढंग से दर्ज करती है। इसीलिए मीरा की डायरी में उसके भीतर-बाहर की प्रत्येक तरंग का विश्लेषणात्मक लेखा-जोखा है और उसकी भाषा में बिना किसी लाग-लपेट की अपूर्व ऐसी स्वाभाविकता। निर्मम होकर अपने आपको भी दाँव पर लगाती यह अन्तरंगता जीवन के साथ बड़े गहरे सरोकार से ही सम्भव है। इसके चलते यह डायरी केवल मीरा की नहीं रहती, बल्कि किसी भी संवेदनशील बौद्धिक चेतना का अंश बन जाती है। वृन्दा और उजास में भीतर तक पैठकर स्वयं अपने को पाने की मीरा की ख़तरनाक जद्दोजहद ‘मनुष्य’ मात्र की जद्दोजहद में बदल जाती है और हमें झकझोरती है।
Radheya
- Author Name:
Ranjeet Desai
- Book Type:

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‘कर्ण’ के जीवन की विडम्बनाएँ और उसके चरित्र की उदात्तता बार-बार आधुनिक रचनाकारों को आकर्षित करती रही हैं। उसका जीवन-चरित बार-बार नाटकों, खंड-काव्यों और उपन्यासों का विषय बनता रहा है। यह उपन्यास भी कर्ण के जीवन पर आधारित है।
ऐतिहासिक-पौराणिक कथानकों पर प्रभावशाली औपन्यासिक सृष्टि करने में सिद्धहस्त लेखक रणजीत देसाई ने अपनी इस कृति में कर्ण की एक व्यक्ति और एक परिस्थिति, दोनों रूपों में व्याख्या की है। माता-पिता के स्नेह से वंचित, सतत उपेक्षित और अपमानित कर्ण जीवन-भर किसी ऐसे अपराध की सज़ा भोगता रहता है, जिसमें वह कहीं शामिल नहीं था। क़दम-क़दम पर उससे उसकी जातिगत श्रेष्ठता का प्रमाण माँगा जाता है, जो वह नहीं दे पाता, जिसके कारण उसके व्यक्तित्व का प्राकृतिक तेज धूमिल पड़ जाता है। वह अकेला पड़ जाता है। ‘महाभारत’ के इतने विस्तृत फलक पर जिस तरह का अकेलापन कर्ण झेलता है, वह और कोई पात्र नहीं।
प्रस्तुत उपन्यास में गंगा के किनारे जाकर कर्ण को ध्यानस्थ होते देखना सचमुच उसे उस करुणा और सहानुभूति का अधिकारी बनाता है जिसे उसका देश-काल अपनी धार्मिक-सामाजिक सीमाओं के चलते नहीं दे पाया।
Alka
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

- Description: इस उपन्यास में निराला ने अवध क्षेत्र के किसानों और जनसाधारण के अभावग्रस्त और दयनीय जीवन के चित्रण किया है। पृष्ठभूमि में स्वाधीनता आन्दोलन का वह चरण है जब पहले विश्वयुद्ध के बाद गांधी जी ने आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में ली थी। यही समय था जब शिक्षित और सम्पन्न समाज के अनेक लोग आन्दोलन में कूदे जिनमें वकील-बैरिस्टर और पूँजीपति तबके के नेता मुख्य रूप से शामिल थे। इस नेतृत्व का एक हिस्सा किसानों-मज़दूरों के आन्दोलन को उभरने देने के पक्ष में नहीं था। निराला ने इस उपन्यास में इस निहित वर्गीय स्वार्थ का स्पष्ट उल्लेख किया है।
Nar Naari
- Author Name:
Krishna Baldev Vaid
- Book Type:

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Description:
यह उपन्यास कृष्ण बलदेव वैद के सबसे चर्चित और बहस तलब रचनाओं में से एक है। उन्होंने हिन्दी की मुख्यधारा से अकसर दूर ही रहते हुए भाषा को ऐसी कृतियाँ दी हैं जो शिल्प के हमारे साथ सोचने के तरीक़ों को भी विचलित करती रही हैं।
‘नर नारी’ उपन्यास स्त्री की समूची सामाजिक, पारिवारिक और दैहिक इयत्ता को केन्द्र में रखता है, और उनसे जुड़े प्रश्नों पर एक संकुल भावभूमि के परिप्रेक्ष्य में विचार करता है। पितृसत्तात्मक सामाजिक तंत्र में सम्पत्ति के उत्तराधिकार, विवाह-संस्था की वैधता, यौन- शुचिता और इससे जुड़े कई विधि-निषेधों पर अत्यन्त ज़ोर दिया जाता है। पति-पत्नी, बहन-भाई, माँ-बेटे आदि सभी सम्बन्ध अन्तत: इन्हीं सब के सन्दर्भ में परिभाषित होते दिखते हैं।
इनके बीच ही मौजूद है स्त्री-पुरुष का आदिम रिश्ता जो एक दूसरी की उपस्थिति को एक प्राकृतिक और समान भूमि पर परिभाषित करता है। बाँझ माँजी, रसीला, सीमा और मीनू आदि इस उपन्यास के ऐसे स्त्री पात्र हैं जिनका जीवन और दृष्टिकोण इन तमाम प्रश्नों पर अलग-अलग ढंग से प्रकाश डालता है।
संवादों के बीच से ही दृश्यों को साकार करते हुए उपन्यास को पढ़ना जैसे अपने ही मन की भीतरी तहों की यात्रा करने जैसा है। लेखक कहीं पर न पात्रों का बाहरी विवरण देता है, न परिस्थितियों का, फिर भी सब जैसे पाठक की आँखों के सामने साकार होता चलता है। एक पठनीय और विचारणीय उपन्यास।
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