
Firangi Raja
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
248
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
496 mins
Book Description
आम इनसानों से लेकर ऋषि-मुनियों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और घुमक्कड़ों के लिए हिमालय का आकर्षण हर काल में रहा है। इनमें से कुछ लोग तो यहाँ आए और यहीं के होकर रह गए। सैन्य जीवन की जटिलताओं से निकल कर आए ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक फिरंगी सैन्य अधिकारी फ्रेडरिक विल्सन की कहानी कुछ ऐसी ही थी। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में अदम्य उद्यमशीलता के बलबूते उसने अपनी शरण स्थली गढ़वाल, हिमालय के हर्षिल क्षेत्र को आजीवन कर्मस्थली में परिणित कर दिया था। लगभग चार दशक तक उसके नाम का डंका ऐसे बजा कि तत्कालीन जनसाधारण से लेकर विशिष्ट जनों के मध्य वह ‘हर्षिल का राजा’ के रूप में चर्चित हो गया था। फ्रेडरिक विल्सन की उद्यमी सफलता की कहानियाँ आज भी गढ़वाली समाज में खूब कही और सुनी जाती हैं। गढ़वाल, हिमालय में उन्नीसवीं शताब्दी में एक तरफ वह प्रकृति का क्रूर विदोहक माना गया तो दूसरी ओर सर्वांगीण विकास का नव-प्रवर्तक भी साबित हुआ।</p> <p>‘फिरंगी राजा’ में राजगोपाल सिंह वर्मा ने गढ़वाल में बीती विल्सन की जीवन-यात्रा को तत्कालीन स्थानीय वन्यता, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, शासन-प्रशासन की कार्यशैली और विकास के विभिन्न पड़ावों के साथ बेहद खूबसूरत अन्दाज में रेखांकित किया है। यह उपन्यास उन्नीसवीं सदी के गढ़वाल का इतिहास नहीं है, पर उस कालखंड के मर्म को बखूबी उद्घाटित करता है। मानवीय साहस-दुस्साहस और उसकी प्रकृति के प्रति व्यवहार की परिणिति को विल्सन के उत्थान और अवसान के जरिये उपन्यासकार ने प्रभावी तथ्यों के साथ सामने रखा है। विल्सन की वेदना के माध्यम से यह उपन्यास हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहने का संदेश ही नहीं देता वरन उससे बढ़कर एक उपयोगी और कारगर नीति की रूपरेखा भी पेश करता है। इन अर्थों में यह उपन्यास नीति नियन्ताओं के लिए एक प्रामाणिक दस्तावेज की तरह है। उपन्यास में लेखक ने गढ़वाल के इतिहास में अकारण ही भुला दिये गए नायक/प्रतिनायक फ्रेडरिक विल्सन के समूचे जीवन और परिवेश को पठनीय रोचकता के साथ रचा है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। </p> <p>—डॉ. अरुण कुकसाल