Baa
Author:
Giriraj KishorePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
गांधी को लेकर एक बड़ा और चर्चित उपन्यास लिख चुके गिरिराज जी इस उपन्यास में कस्तूरबा गांधी को लेकर आए हैं। गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं अपने और साथ ही देश की आज़ादी के आन्दोलन से जुदा दोहरा संघर्ष। ऐसे दस्तावेज़ बहुत कम हैं जिनमें कस्तूरबा के निजी जीवन या उनकी व्यक्ति-रूप में पहचान को रेखांकित किया जा सका हो, नहीं के बराबर। इसीलिए उपन्यासकार को भी इस रचना के लिए कई स्तरों पर शोध करना पड़ा। जो किताबें उपलब्ध थीं, उनको पढ़ा, जिन जगहों से बा का सम्बन्ध था, उनकी भीतरी और बाहरी यात्रा की और उन लोगों से भी मिले जिनके पास बा से सम्बन्धित कोई भी सूचना मिल सकती थी।</p>
<p>इतनी मशक्कत के बाद आकार पा सका यह उपन्यास अपने उद्देश्य में इतनी सम्पूर्णता के साथ सफल हुआ है, यह सुखद है। इस उपन्यास से गुज़रने के बाद हम उस स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में चीन्ह सकेंगे जो बापू के बापू बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया में हमेशा एक ख़ामोश ईंट की तरह नींव में बनी रही। और उस व्यक्तित्व को भी जिसने घर और देश की ज़िम्मेदारियों को एक धुरी पर साधा। उन्नीसवीं सदी के भारत में एक कम उम्र लड़की का पत्नी रूप में होना और फिर धीरे-धीरे पत्नी होना सीखना, उस पद के साथ जुड़ी उसकी इच्छाएँ, कामनाएँ और फिर इतिहास के एक बड़े चक्र के फलस्वरूप एक ऐसे व्यक्ति की पत्नी के रूप में ख़ुद को पाना जिसकी ऊँचाई उनके समकालीनों के लिए भी एक पहेली थी। यह यात्रा लगता है कई लोगों के हिस्से की थी जिसने बा ने अकेले पूरा किया। यह उपन्यास इस यात्रा के हर पड़ाव को इतिहास की तरह रेखांकित भी करता है और कथा की तरह हमारी स्मृति का हिस्सा भी बनाता है।</p>
<p>इस उपन्यास में हम ख़ुद बापू के भी एक भिन्न रूप से परिचित होते हैं। उनका पति और पिता का रूप। घर के भीतर वह व्यक्ति कैसा रहा होगा, जिसे इतिहास ने पहले देश और फिर पूरे विश्व का मार्गदर्शक बनते देखा, उपन्यास के कथा-फ़ेम में यह महसूस करना भी एक अनुभव है।
ISBN: 9788126728343
Pages: 280
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘दास्तान-ए-लापता’ और ‘सूखा बरगद’ जैसे चर्चित उपन्यासों के लेखक मंज़ूर एहतेशाम की यह नई औपन्यासिक कृति समकालीन हिन्दी उपन्यास के लय-ताल रहित परिदृश्य में एक सुखद हस्तक्षेप है। यह उपन्यास पुनः स्थापित करता है कि सिर्फ़ कहानी बता देना और प्रचलित विमर्शों की जुमलेबाज़ी का बघार डालते हुए ‘पोलिटिकली करेक्ट’ मोर्चे पर सीना तानकर खड़े हो जाना ही अच्छे उपन्यास की गारंटी नहीं है। हर उपन्यास को अपनी भाषा और संरचना में अपनी ही एक लय का आविष्कार करना पड़ता है, और यही वह चीज़ है जो उसे दशकों और सदियों तक पढ़नेवाले के दिलो-दिमाग़ का हिस्सा बनाती है।
यह उपन्यास सफलतापूर्वक इस ज़िम्मेदारी को अंजाम देता है। देश और काल के विभिन्न चरणों में आवाजाही करता हुआ यह उपन्यास स्मृतियों की पगडंडियों पर जैसे चहलक़दमी करते हुए, अपने पात्रों के भीतरी और बाहरी बदलावों की प्रक्रिया से गुज़रता है; उन सवालों से रूबरू होता है जो समय हमारे भीतर रोपता रहता है और उन यंत्रणाओं से भी जिनकी ज़िम्मेदारी तय करना कभी आसान नहीं होता।
किसी भी उम्दा रचना को लेकर यह कहना कभी सम्भव नहीं होता कि इसका उद्देश्य अमुक है, अथवा इससे हमें अमुक सन्देश प्राप्त होता है। वह हमारे ही जीवन का एक ज़्यादा उजले प्रकाश में बुना गया चित्र होता है जिससे हम जाने कितनी दिशाओं से रोशनी पाते हैं, और एक ज़्यादा खुली और रौशन जगह में अपना नया ठिकाना बनाते हैं।
ठिकानों और वक़्तों की उधेड़-बुन में रोशनी की किरचें पकड़ता हुआ यह उपन्यास पाठकों को निश्चय ही अनुभूति का एक नया धरातल देगा।
In Other Words
- Author Name:
Jhumpa Lahiri
- Book Type:

- Description: On a post-college visit to Florence, Pulitzer Prize-winning author Jhumpa Lahiri fell in love with the Italian language. Twenty years later, seeking total immersion, she and her family relocated to Rome, where she began to read and write solely in her adopted tongue. A startling act of self-reflection, In Other Words is Lahiri’s meditation on the process of learning to express herself in another language-and the stunning journey of a writer seeking a new voice.
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