Anadi Anant
Author:
Madhu BhaduriPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
'कालचक्र' और 'ज्वार' के बाद मधु भादुड़ी का यह तीसरा उपन्यास है। भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत और प्राय: विदेश में ही रहनेवाला कोई साहित्यकार तेजी से बदल रहे भारतीय यथार्थ पर क्या इतनी पैनी नजर रख सकता है कि एक औपन्यासिक रचना के साथ पूरा न्याय कर सके ? मधु भादुड़ी ने अपने रचना कर्म से साबित किया है कि वे ऐसा कर सकती हैं। बगैर किसी दार्शनिक अतिरेक के, रोजमर्रे की ब्यौरेवार जिंदगी से गुजरते हुए वे मानवीय नियति के प्रश्नों से टकराती हैं और इसी क्रम में नियति निर्धारित करनेवाले कारकों पर रोशनी भी डालती हैं।</p>
<p>'अनादि अनंत' कलेवर की दृष्टि से एक छोटा उपन्यास है लेकिन इसमें एक भारतीय स्त्री के उत्पीड़ित से उत्पीड़क बनने और अपने इस परिवर्तन के जरिए अपनी विडंबना ही उजागर करने की एक बड़ी कथा कही गई है। जो साहित्यिक रूढ़ियाँ भारतीय स्त्री की सामाजिक हैसियत को लेकर सुदूर अतीत से बनी चली आ रही हैं और जो नई रूढ़ियाँ इस विषय में हाल के दौर में बनी हैं, दोनों पर ही यह उपन्यास कड़ा आघात पहुँचानेवाला साबित होगा, ऐसा हमारा विश्वास है ।</p>
<p>साथ की तीनों कहानियाँ, 'मुनिया', 'टेस्टर्ज टी' और 'अस्पताल' मधु भादुड़ी की किस्सागोई की बानगी हैं। वैसी ही सघन घटनात्मकता और क्लाइमेक्स की स्थितियाँ इनमें मौजूद हैं, जैसी आपको शास्त्रीय कहानियों से अपेक्षित होती हैं। एक लेखिका के बतौर मधु भादुड़ी की यह तीसरी प्रस्तुति आपको रोमांचित करेगी और हिंदी लेखक के विश्वव्यापी होते दायरे के प्रति आश्वस्त भी।
ISBN: 9789395737746
Pages: 150
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
रवीन्द्र भारती का उपन्यास ‘जगदम्बा’ हिन्दी कथा-साहित्य के मौजूदा ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ ‘हृदय की बात’ की मानिन्द है। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर भारत का आँचलिक जनजीवन जिस गहरी आत्मीयता, सूक्ष्मता तथा संगीतमय भाषा के साथ इस उपन्यास में अभिव्यक्त हुआ है, वह इधर के दिनों में दुर्लभ से दुर्लभतर होता गया है। लेकिन जो बात इस उपन्यास को खास बनाती है वह है उन दारुण स्थितियों का विश्वसनीय उद्घाटन जिनकी टीस स्थानीय बोली-बानी, आस्था-अन्धविश्वास और तमाम चीज-बतुस के संक्रामक आकर्षण के बावजूद, पाठक गहरे महसूस करता है।
इस उपन्यास में ऐसी स्त्रियाँ आती हैं जो अपने बनाए आकाश में उड़ना चाहती हैं। लेकिन उन्हें उड़ना पड़ता है मर्द के बनाए आकाश में। उन्हें अपने आकाश में उड़ने की आज़ादी नहीं। उड़ेंगी तो पतुरिया कहलाएँगी। इससे बात न बने तो देवी कहकर, जगदम्बा करार देकर उनके पंख तोड़ दिए जाएँगे। उपन्यास सवाल उठाता है— इनसान कोई बाँधने की चीज है? और, जवाब भी देता है—दरअसल जानवर भी बाँधने की चीज नहीं है मगर, आदमी अपने स्वार्थ में क्या नहीं करता! न हाथ बाँधने की चीज है, न मन। जहाँ कहीं बन्धन की गाँठ पड़ेगी, वह दिखे न दिखे, इनसान कुम्हला जाता है।
यहाँ हम मर्द के साथ सोने से इनकार करने पर जगदम्बा बना दी जाने वाली एक स्त्री को, समाज और परिवार ने मुक्ति की जो स्थापना दी है, उससे अलग, नई राह पर कदम बढ़ाते देखते हैं जो उसने खुद चुनी है। वह किसी मिथ जैसी मालूम पड़ती है; लेकिन वह यथार्थ है, वर्तमान में भविष्य की दिशासूचक! उपन्यास में हमें ऐसे अनेक किरदार मिलते हैं। मसलन चटपट और खटपट जो भले ही अनगढ़, गंवार लगते हैं लेकिन अन्याय को समझने और उसका प्रतिकार करने की अपनी सहज वृत्ति के कारण अलग से ध्यान आकर्षित करते हैं। बागुन बाबा, नकछेदी, सिस्टर क्रेजी भी ऐसे ही अनूठे किरदार हैं।
वस्तुतः आँचलिक उपन्यास का यह नया आख्यान है जो न केवल बेहद पठनीय है बल्कि संग्रहणीय भी है।
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