Alfa-Bita-Gama
Author:
Nasera SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
<span style="font-weight: 400;">‘अल्फ़ा-बीटा-गामा’ एक ऐसे विषय को लेकर सभ्य, महानगरीय समाज की निर्दयताओं और अक्षम्य अमानवीयताओं को उजागर करता है जिसकी तरफ़ लिखित शब्दों का ध्यान अकसर नहीं जाता, वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि उपन्यास हो जाए।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">यह उपन्यास मनुष्य की आत्मग्रस्तता को कभी कुत्तों की आँखों से दिखाता है, कभी उन कुछ जनों की आँखों से जो अपने सीमित साधनों के साथ, और अपने आस-पड़ोस का विरोध झेलकर उन असहाय जीवों के लिए कुछ करना चाहते हैं। आख़िर यह कैसे होता है कि संस्कृति और धर्म के धनी जिस भारतीय समाज में पत्थरों के साथ भी जीवित की तरह बर्ताव कर लिया जाता है, इन सजीवों के लिए सहानुभूति का संस्कार हम ख़ुद को और अपनी सन्तानों को नहीं दे पाते!</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भारतीय कुत्तों की अनेक प्रजातियों के गहरे अध्ययन, उनके व्यवहार की गहरी जानकारी के साथ नासिरा जी इस उपन्यास में नागर क्रूरताओं की दैनिक और शाश्वत कथा कहते हुए हमारे मौजूदा समय तक आती हैं जहाँ कोरोना है, और लॉकडाउन है। लॉकडाउन जिसके शिकार अनेक लोग हुए और उसी अनुपात में वे कुत्ते भी जो सार्वजनिक स्थलों, दुकानों, होटलों आदि के बन्द हो जाने के बाद न सिर्फ़ भूखे, बल्कि अकेले भी पड़ गए। लाखों मज़दूरों के पलायन और उससे पहले हुए दिल्ली दंगों की विभीषिका के मद्देनजर उपन्यास कुत्तों की पीड़ा को मानवीय भाषा में समझाने का प्रयास करता है, और चाहता है कि हमारी संवेदना की पहुँच हमारे बन्द दरवाज़ों के बाहर तक हो।</span>
ISBN: 9789392186998
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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बिलकुल नई भाषा-भंगिमा और अद्भुत कथा-सामर्थ्य को उपस्थित करता यह उपन्यास अपने आप में इस बात का सबूत है कि कैसे आकार में बड़ी न होकर भी एक कथा अपने समय और जीवन का विशद आख्यान बन सकती है। प्रतिष्ठित कथाकार देवेश राय का अभिमत है कि बाँग्ला भाषा में समकालीन दौर में ‘हरबर्ट’ जैसा मौलिक उपन्यास दूसरा नहीं लिखा गया। 1997 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि-कथाकार नवारुण भट्टाचार्य उन बिरले लेखकों में हैं जिनके इस पहले ही उपन्यास पर यह पुरस्कार मिला। समकालीन बाँग्ला साहित्य में जबरदस्त हलचल उत्पन्न करने वाली यह कृति ‘नरसिंह दास अवार्ड’ और ‘बँकिम पुरस्कार’ पहले ही पा चुकी थी।
यह उपन्यास महज कथा-नायक हरबर्ट सरकार की जीवन कथा ही नहीं है बल्कि अपने समय के इतिहास से गुजरते हुए एक ऐसे व्यक्ति की दास्तान है जिसके भीतर भी एक इतिहास है और जो अपनी मामूली जिंदगी को एक अर्थ देने के लिए अपने समय में असफल हस्तक्षेप करता है। गुजरते वक्त का इतिहास उपस्थित करते हुए हरबर्ट के भीतर बैठे इतिहास की खिड़की खोलने में उपन्यासकार ने जो आख्यान रचा है, उसमें उन्नीसवीं सदी के बाँग्ला कवियों की काव्य-पंक्तियाँ हर अध्याय के शुरू में जीवन दर्शन की तरह उपस्थित होती हैं और व्यक्ति, पीढ़ियाँ, पैतृक मकान, मुहल्ला, शहर, संबंध, भाईचारा, बेगानापन, समाज-व्यवस्था, राजनीतिक प्रणाली, व्यवस्था परिवर्तन का प्रतिरोध, पूँजीवादी आधुनिकता और उसकी क्रूरता आदि को समेटती हुई मामूली आदमी की महागाथा तैयार हुई है।
इतने छोटे कलेवर के उपन्यास में इतने सघन प्रभाव के साथ यह सब संभव हो पाया है अपने अपूर्व रचना-विधान और विशिष्ट भाषा रीति के कारण, जो उपन्यास लेखन की प्रचलित और परिचित परिपाटी से भिन्न नवारुण भट्टाचार्य की मौलिक उद्भावना है। यह उपन्यास गुजरते हुए काल का इतिहास है, बीत चुका अतीत नहीं–यह जारी है। और, हरबर्ट भी मरता नहीं–बार-बार पैदा हो जाता है।
Ukhde Huye Log
- Author Name:
Rajendra Yadav
- Book Type:

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स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज की त्रासदी को यह उपन्यास दो स्तरों पर उद्घाटित करता है—पूँजीवादी शोषण और मध्यवर्गीय भटकाव। आकस्मिक नहीं कि सूरज-सरीखे संघर्षशील युवा पत्रकार के साहस और प्रेरणा के बावजूद उपन्यास के केन्द्रीय चरित्र—शरद और जया जिस भयावह यथार्थ से दूर भागते हैं, उनका कोई गंतव्य नहीं। न वे शोषक से जुड़ पा रहे हैं, न शोषित से।
छठे दशक के पूर्वार्द्ध में प्रकाशित राजेन्द्र यादव की इस कथाकृति को पहला राजनीतिक उपन्यास कहा गया था और अनेक लेखकों एवं पत्र-पत्रिकाओं ने इसके बारे में लिखा था। मसलन, श्रीकान्त वर्मा ने कलकत्ता से प्रकाशित ‘सुप्रभात' में टिप्पणी करते हुए कहा कि “शासन का पूँजी से समझौता है, ग़रीब मज़दूरों पर गोलियाँ चलाकर कृत्रिम आँसू बहानेवाली राष्ट्रीय पूँजी की अहिंसा है। इन सबको लेकर लेखक ने एक मनोरंजक और जीवन्त उपन्यास की रचना की है (और) पूँजीवादी संस्कृति की विकृतियों की अनेक झाँकियाँ दिखाई हैं।” अथवा ‘आलोचना’ में लिखा गया कि “ ‘उखड़े हुए लोग' में जिन लोगों का चित्रण किया गया है, वे एक ओर रूढ़ियों के कठोर पाश से व्याकुल हैं तथा दूसरी ओर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में निरन्तर लुटते रहने के कारण जम पाने में कठिनाई का अनुभव कर रहे हैं। इस दोतरफ़ा संघर्ष में रत उखड़े हुए चेतन मध्यवर्गीय जीवन का एक पहलू प्रस्तुत उपन्यास में प्रकट हुआ है। बौद्धिक विचारणा की दृष्टि से यह उपन्यास पर्याप्त स्पष्ट और खरा है।” या फिर चन्द्रगुप्त विद्यालंकार की यह टिप्पणी कि, “सम्पूर्ण उपन्यास में एक ऐसी प्रभावशाली तीव्रता विद्यमान है, जो पाठक के हृदय में किसी न किसी प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न किए बिना न रहेगी और (इसमें) अनुभूति की एक ऐसी गहराई है जो हिन्दी के बहुत कम उपन्यासों में मिलेगी।” कहना न होगा कि इस उपन्यास में लेखक ने “जहाँ एक ओर कथानक के प्रवाह, घटनाचक्र की निरन्तर और स्वाभाविक गति तथा स्वच्छ और अबाध नाटकीयता को निभाया है, वहीं दूसरी ओर उसने जीवन से प्राप्त सत्यों और अनुभूतियों को सुन्दर शिल्प और शैली में यथार्थ ढंग से अंकित भी किया है।”
Adarsh Shikshak Kaise Hon
- Author Name:
Acharya Mayaram 'Patang'
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- Description: शिक्षक कैसे हो? इस प्रश्न का उत्तर अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग प्रकार से दिया जा सकता है। यहाँ पर हम प्राथमिक शिक्षक एवं माध्यामिक शिक्षक की भूमिका की चर्चा करेंगे। विषय को बहुत विस्तुत रूप में लिया जा सकता है; परंतु पुस्तक को एक संक्षिप्त स्वरूप में ही प्रस्तुत करना अभीष्ट था, अतः बहुत विस्तार नहीं किया गया। इसी कारण अनेक पहलू छूट भी गए।
Krishnavtar : Vol. 4 : Mahabali Bheem
- Author Name:
K. M. Munshi
- Book Type:

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कोई द्रष्टा साहित्यकार जब इतिहास को देखता है तो उसे उसकी समग्रता में दिखाता भी है, और ऐतिहासिक-पौराणिक चरित्रों को आधार बनाकर गुजराती में अनेक श्रेष्ठ उपन्यासों की रचना करनेवाले सुविख्यात उपन्यासकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी भारतीय कथा-साहित्य में ऐसे ही द्रष्टा साहित्यकार के रूप में समादृत हैं।
‘कृष्णावतार’ मुंशी जी की कई खंडों में प्रकाशित और कई भाषाओं में अनूदित बृहत् औपन्यासिक कृति है। ‘महाबली भीम’ इसका चौथा खंड है।
महाभारतकालीन योद्धाओं में भीम का चरित्र सर्वाधिक रोमांचक है और इस खंड में उसके विभिन्न आयामों का अविस्मरणीय अंकन हुआ है। यों समूचे उपन्यास की तरह यह खंड भी कृष्ण-सरीखे नीतिज्ञ और महायोद्धा की उपस्थिति से अछूता नहीं है, पर द्रौपदी-स्वयंवर से महाभारत युद्ध-पर्व तक का राजनीतिक परिदृश्य भीम से जिस तरह अनुप्राणित है, उससे उसका रुक्ष और कोमल, विनोदी और गम्भीर तथा सर्वोपरि यौद्धेय स्वभाव मुग्धकारी रूप में सामने आता है। साथ ही तत्कालीन राजनीति को समाज की जिस विस्तृत पटभूमि पर चित्रित किया गया है, उससे पाठक के सामने अनेकानेक सुपरिचित चरित्रों का एक नया ही रूप उद्घाटित होता है और वे अपने साथ जुड़ी तमाम पौराणिकता के बावजूद अपनी ऐतिहासिकता में ज़्यादा वास्तविक और विश्वसनीय लगते हैं।
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