Pragatiwad Aur Samanantar Sahitya
Author:
Rekha AwasthiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
‘प्रगतिवाद और समानान्तर साहित्य’ यह पुस्तक शोधग्रन्थ भी है और धारदार तर्क-वितर्क से भरी एक सृजनात्मक कृति भी है। इसमें प्रगतिशील आन्दोलन के ऐतिहासिक विकास-क्रम, उसके दस्तावेज़ों, उसके रचनात्मक और समालोचनात्मक पहलुओं तथा उस दौर में प्रचलित समानान्तर प्रवृत्तियों से उसके द्वन्द्वात्मक रिश्ते की पड़ताल की गई है।</p>
<p>यह पुस्तक शोध, अन्वेषण, स्रोत सामग्री की छानबीन पर आधारित ऐतिहासिक विवेचना के क्षेत्र में एक नए ढंग की प्रामाणिकता के कारण हिन्दी के सभी प्रमुख समालोचकों के द्वारा सराही गई है तथा पाठक समुदाय ने इसका हार्दिक स्वागत किया है। अतः अध्यापकों, शोधार्थियों तथा नई पीढ़ी के साहित्यप्रेमी पाठकों के लिए यह प्रेरणादायी पठनीय पुस्तक है। 1930 से 1950 के साहित्यिक इतिहास के मुखर आईने के रूप में यह अद्वितीय आलोचनात्मक कृति है।</p>
<p>पारदर्शी तार्किकता और सांस्कृतिक उत्ताप से भरपूर संवेदनशील मीमांसा के अपने गुणों के कारण रेखा अवस्थी की यह पुस्तक प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूरा होने के मौक़े पर फिर से उपलब्ध कराई जा रही है क्योंकि पिछले दस सालों से यह पुस्तक बाज़ार में लाख ढूँढ़ने पर भी मिलती नहीं थी। इस नए संस्करण की विशिष्टता यह है कि परिशिष्ट के अन्तर्गत कुछ नए दस्तावेज़ भी जोड़े गए हैं।</p>
<p>इस पुस्तक के पाँच अध्यायों में इतनी भरपूर विवेचनात्मक सामग्री है कि यह पुस्तक बीसवीं सदी के हिन्दी साहित्य के पूर्वार्द्ध का इतिहास ग्रन्थ बन जाने का गौरव प्राप्त कर चुकी है।</p>
<p>उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में शमशेर, केदार, नागार्जुन, अज्ञेय, गोपाल सिंह नेपाली के कृतित्व का मूल्यांकन तत्कालीन ऐतिहासिक सन्दर्भ में किया गया है। इसके साथ ही यह पुस्तक प्रगतिशील आन्दोलन के बारे में फैलाई गई भ्रान्तियों को तोड़ती है और दुराग्रहों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश करती है।
ISBN: 9788126722006
Pages: 332
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Aadhunik Hindi Kavyalochna Ke Sau Varsh
- Author Name:
Pushpita Awasthi
- Book Type:

-
Description:
काव्यालोचना के सौन्दर्यशास्त्र और भाषा के वर्तमान परिदृश्य को उर्वर बनाने में एक साथ कम से कम तीन पीढ़ियाँ सक्रिय दिखाई देती हैं जिनमें विभिन्न तरह की प्रेरणाएँ, प्रक्रियाएँ देखी जा सकती हैं। काव्य-आलोचना का अद्यतन परिदृश्य विभिन्न-दृष्टियों के ताने-बाने से निर्मित है।
कविता अपनी रचना में ही कैसे अपना नया काव्यशास्त्र रचती-रचती है? कविता और काव्यालोचना का सौन्दर्य कैसे बनता है? जीवनानुभवों और मनस्तत्वों की भाषा में कैसी बुनावट है? क्या कारण है कि तुलसी-जायसी के व्याख्याता आचार्य शुक्ल कबीर से सहानुभूति-सह-अनुभूति नहीं महसूस करते? लेखिका इस पुस्तक में आधुनिक हिन्दी कविता और काव्यालोचना का नया सौन्दर्यशास्त्र सृजन करने के क्रम में समीक्षा की भाषा के अलावा ऐसे कई सवालों से भी दो-चार हुई हैं।
हिन्दी काव्यालोचना के सौ वर्ष की गहन पड़ताल करनेवाली यह पुस्तक कविता के अध्येताओं, शोधार्थियों व काव्य-प्रेमियों के लिए उपयोगी है।
Sahitya Sahchar
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: साहित्यिक पुस्तकें हमें सुख-दुःख की व्यक्तिगत संकीर्णता और दुनियावी झगड़ों से ऊपर ले जाती हैं और सम्पूर्ण मनुष्य जाति के और भी आगे बढ़कर प्राणिमात्र के दुःख-शोक, राग-विराग, आह्लाद-आमोद को समझने की सहानुभूतिमय दृष्टि देती हैं। वे पाठक के हृदय को इस प्रकार कोमल और संवेदनशील बनाती हैं कि वह अपने क्षुद्र स्वार्थ को भूलकर अशिवों के सुख-दुःख को अपना समझने लगता है। सारी दुनिया के साथ आह्लाद का अनुभव करने लगता है। एक शब्द में इस प्रकार के साहित्य को ‘रचनात्मक साहित्य’ कहा जा सकता है। क्योंकि ऐसी पुस्तकें हमारे ही अनुभव के ताने-बाने से एक नए रस-लोक, की रचना करती हैं। इस प्रकार की पुस्तकों को ही, संक्षेप में ‘साहित्य’ कहते हैं। साहित्य शब्द का विशिष्ट अर्थ यही है। प्रस्तुत पुस्तक में इस श्रेणी की पुस्तकों के अध्ययन करने का तरीक़ा बताना ही आचार्य द्विवेदी जी का संकल्प है।
Sahitya, Samaj Aur Jivan
- Author Name:
Ravinandan Singh
- Book Type:

-
Description:
‘साहित्य, समाज और जीवन’ रविनन्दन सिंह का दूसरा निबन्ध-संग्रह है। इसमें अधिकतर निबन्ध साहित्यिक हैं। लगभग एक दर्जन निबन्ध समाज के विविध पहलुओं तथा सामाजिक विसंगतियों पर केन्द्रित हैं। कुछ निबन्ध मनुष्य की जीवन शैली तथा जीवन-दर्शन से सम्बन्धित हैं।
रविनन्दन सिंह जब कोई विषय चुनते हैं तो उस विषय की गहन पड़ताल करते हैं एवं उस विषय की परतों को खोलकर रख देते हैं। वे विषय का विश्लेषण तथा मूल्यांकन बिना किसी आग्रह के, निरपेक्ष होकर करते हैं। उनके निबन्धों को पढ़ने से उस विषय की तस्वीर बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। वे विषय को उलझाते नहीं बल्कि उलझे हुए विषय को भी सुलझाकर प्रस्तुत करते हैं। उनके निबन्धों की भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। उनके निबन्ध अत्यन्त सारगर्भित एवं बोधगम्य हैं। भाषा एवं संवेदना से समृद्ध इन निबन्धों से गुज़रना एक रोचक अनुभव की तरह है। स्नातक, स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों एवं शोध-छात्रों के लिए ये निबन्ध अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगे।
Faiz Ki Shakhsiyat : Andhere Main Surkh Lau
- Author Name:
Murli Manohar Prasad Singh +1
- Book Type:

-
Description:
फ़ैज़ की शख़्सियत के सभी पहलुओं को उजागर करनेवाली यह किताब हिन्दी-उर्दू क्षेत्र के आम पाठकों के लिए ही तैयार की गई है। इसमें फ़ैज़ की आपबीती दास्तान है, तो उसके साथ ही उनकी पत्नी एलिस फ़ैज़ का दिलचस्प और पारदर्शी-सा अन्तरंग संस्मरण भी है।
रावलपिंडी षड्यंत्र केस के तहत चार साल से अधिक पाकिस्तान की भिन्न-भिन्न जेलों में बीती उनकी ज़िन्दगी के मुश्किल दिनों की यादों को लगभग क़िस्सागोई की शक़्ल में पेश करनेवाले मेजर मुहम्मद इस्हाक़ का वृत्तान्त फ़ैज़ की शख़्सियत के भिन्न-भिन्न पहलुओं को रौशन करता है। रावलपिंडी षड्यंत्र केस का पूरा लेखा-जोखा कांतिमोहन ‘सोज़’ ने इतिहास की सिलसिलेवार घटनाओं के सन्दर्भ में पेश किया है। फ़ैज़ के परिवार के भीतर आत्मीय ढंग की पैठ रखनेवाले आफ़ताब अहमद और इन्द्रकुमार गुजराल के संस्मरण पाकिस्तान के सैनिक शासन को बेपर्द करते हैं, और फ़ैज़ के व्यक्तित्व के जानदार रगरेशे से हमें परिचित कराते हैं। इसी तरह ग़घलाम मुस्तफ़ा ‘तबस्सुम’ के संस्मरण में फ़ैज़ के छात्र जीवन की यादें दिलचस्प घटनाओं के माध्यम से बताई गई हैं।
रूसी भाषा में फ़ैज़ की जीवनी लिखनेवाली रूसी विदुषी लुदमिला वेसिलेवा अपने आलेख के द्वारा पाकिस्तान और देश-विदेश की अन्दरूनी राजनीति और फ़ैज़ की साहित्यिक-सांस्कृतिक अन्तर्दृष्टि से हमें रू-ब-रू कराती हैं। रूसी विद्वान सुर्कोफ़ का साहित्यिक संस्मरण फ़ैज़ की अदबी हैसियत पर प्रकाश डालता है। फ़ैज़ के निजी चिकित्सक और पारिवारिक मित्र अय्यूब मिर्ज़ा का संस्मरण फ़ैज़ की ख़ूबियों और कमज़ोरियों का उद्घाटन करता है। लाहौर और लखनऊ के बीच फ़ैज़ की आवाजाही को एक अफ़साने की शक़्ल में अतुल तिवारी ने पेश किया है।
इन लेखों-संस्मरणों के अलावा इस किताब में फ़ैज़ द्वारा दिए गए तीन इंटरव्यू भी संकलित हैं। इंटरव्यू कला समीक्षक सुनीत चोपड़ा, हिन्दी कवि-पत्रकार इब्बार रब्बी और उर्दू के प्रोफ़ेसर और शायर नईम अहमद द्वारा तैयार किए गए हैं। फ़ैज़ को, ख़तों के आईने में ज़हूर सिद्दीक़ी ने पेश किया है जबकि फ़ैज़ और एलिस फ़ैज़ के रिश्ते की छानबीन उनके ख़तों के आधार पर नूर ज़हीर ने की है। शरद दत्त की रिपोर्ट भी फ़ैज़ की शख़्सियत को बारीक रंगों-रेखाओं में प्रस्तुत करती है।
सम्पादक मंडल के छह विद्वानों की टोली ने इस किताब की सामग्री का संचयन-सम्पादन किया है।
Premchand : Sahityik Vivechan
- Author Name:
Nandulare Vajpeyi
- Book Type:

- Description: महान कथाकार प्रेमचन्द के सम्पूर्ण कथा–साहित्य को उसकी सभी विशेषताओं और विफलताओं के साथ विश्लेषित करने का प्रयास यहाँ लेखक ने किया है। आरम्भ में प्रेमचन्द को हिन्दी कथा–साहित्य की परम्परा में स्थापित करते हुए परवर्ती अध्यायों में उनके सात प्रमुख उपन्यासों का अलग–अलग मूल्यांकन किया गया है। दो परिशिष्टों में प्रेमचन्द सम्बन्धी आचार्य वाजपेयी के फुटकर मन्तव्यों को समेकित किया गया है। साथ ही ‘हंस’ के आत्मकथा विशेषांक से उत्पन्न हुए विवादों से सम्बन्धित पत्र–व्यवहार भी उद्धृत किए गए हैं। पुस्तक के आरम्भ में डॉ. शिवकुमार मिश्र द्वारा प्रेमचन्द सम्बन्धी आचार्य वाजपेयी की मान्यताओं का ऐतिहासिक तथा समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया गया है, जो पुस्तक के इस नए संस्करण को विशेष महत्त्वपूर्ण बनाता है।
Humsafaron Ke Darmiyan
- Author Name:
Shamim Hanfi
- Book Type:

-
Description:
आधुनिक उर्दू कविता के बारे में यह छोटी-सी किताब मेरे कुछ निबन्धों पर आधारित है। समकालीन साहित्य और उससे सम्बन्धित समस्याएँ मेरी सोच और दिलचस्पी का ख़ास विषय रही हैं। पिछले पचास-साठ बरसों में मैंने इस विषय पर कम से कम साठ-सत्तर निबन्ध लिखे होंगे। उन्नीसवीं सदी और बीसवीं सदी के बहुत से शायरों को मैंने अपने आलोचनात्मक अध्ययन का बहाना बनाया यानी कि ग़ालिब से लेकर आज तक की शायरी में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है।
यहाँ आगे बढ़ने से पहले एक और सफ़ाई देना चाहता हूँ। पारम्परिक प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकतावाद में मेरा विश्वास बहुत कमज़ोर है। मैं समझता हूँ कि हमारी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परम्परा के सन्दर्भ में ही हमारे अपने प्रगतिवाद, आधुनिकतावाद और उत्तर-आधुनिकता की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। हमारा जीवन हमारे समय के पश्चिमी जीवन और सोच-समझ की कार्बन कॉपी नहीं है। जिस तरह हमारा सौन्दर्यशास्त्र या Aesthetic Culture अलग है, उसी तरह हमारी प्रोग्रेसिविज़्म (Progressivism) और Modernity या ज़दीदियत भी अलग है। मैंने इसी दृष्टिकोण के साथ आधुनिक युग के अधिकतर शायरों को समझने की कोशिश की है।
ये निबन्ध मेरी दो किताबों—'हमसफ़रों के दरमियाँ’ (सह-यात्रियों के बीच) और 'हमनफ़सों की बज़्म में’ (यार-दोस्तों की सभा में) से लिए गए हैं। इनमें मेरा विषय बननेवाले शायरों का स्वभाव, चरित्र, चेतना और रूप-रंग अलग-अलग हैं। मैं समझता हूँ कि आधुनिकतावाद को इसी भिन्नता और बहुलता का प्रतीक होना चाहिए।
—शमीम हनफी (प्रस्तावना से)
''हालाँकि हिन्दी में उर्दू साहित्य के आधुनिक दौर के अधिकांश शायरों से ख़ासी वाक़िफ़यत रही है, उन पर स्वयं उर्दू में जो विचार और विश्लेषण हुआ है, उससे हमारा अधिक परिचय नहीं रहा है। शमीम हनफी स्वयं शायर होने के अलावा एक बड़े आलोचक के रूप में उर्दू में बहुमान्य हैं। उनके कुछ निबन्धों के इस संचयन के माध्यम से उर्दू की आधुनिक कविता की कई जटिलताओं, तनावों और सूक्ष्मताओं को जान सकेंगे और कई बड़े उर्दू शायरों की रचनाओं का हमारा रसास्वादन गहरा होगा। हमें यह संचयन प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है।”
—अशोक वाजपेयी
Drishya Aur Dhwaniyan : Khand—2
- Author Name:
Sitanshu Yashashchandra
- Book Type:

-
Description:
गुजराती आदि भारतीय भाषाएँ एक विस्तृत सेमिओटिक नेटवर्क अर्थात् संकेतन-अनुबन्ध-व्यवस्था का अन्य-समतुल्य हिस्सा हैं। मूल बात ये है कि विशेष को मिटाए बिना सामान्य अथवा साधारण की रचना करने की, और तुल्य-मूल्य संकेतकों से बुनी हुई एक संकेतन-व्यवस्था रचने की जो भारतीय क्षमता है, उसका जतन होता रहे। राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय राज्यसत्ता, उपभोक्तावाद को बढ़ावा देनेवाली, सम्मोहक वाग्मिता के छल पर टिकी हुई धनसत्ता एवं आत्ममुग्ध, असहिष्णु विविध विचारसरणियाँ/आइडियोलॉजीज़ की तंत्रात्मक सत्ता, आदि परिबलों से शासित होने से भारतीय क्षमता को बचाते हुए, उस का संवर्धन होता रहे। गुजराती में से मेरे लेखों के हिन्दी अनुवाद करने का काम सरल तो था नहीं। गुजराती साहित्य की अपनी निरीक्षण परम्परा तथा सृजनात्मक लेखन की धारा बड़ी लम्बी है और उसी में से मेरी साहित्य तत्त्व-मीमांसा एवं कृतिनिष्ठ तथा तुलनात्मक आलोचना की परिभाषा निपजी है। उसी में मेरी सोच प्रतिष्ठित (एम्बेडेड) है। भारतीय साहित्य के गुजराती विवर्तों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जाने बिना मेरे लेखन का सही अनुवाद करना सम्भव नहीं है, मैं जानता हूँ। इसीलिए इन लेखों का हिन्दी अनुवाद टिकाऊ स्नेह और बड़े कौशल्य से जिन्होंने किया है, उन अनुवादक सहृदयों का मैं गहरा ऋणी हूँ। ये पुस्तक पढ़नेवाले हिन्दीभाषी सहृदय पाठकों का सविनय धन्यवाद, जिनकी दृष्टि का जल मिलने से ही तो यह पन्ने पल्लवित होंगे।
—सितांशु यशश्चन्द्र (प्रस्तावना से)
''हमारी परम्परा में गद्य को कवियों का निकष माना गया है। रज़ा पुस्तक माला के अन्तर्गत हम इधर सक्रिय भारतीय कवियों के गद्य के अनुवाद की एक सीरीज़ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस सीरीज़ में बाङ्ला के मूर्धन्य कवि शंख घोष के गद्य का संचयन दो खण्डों में प्रकाशित हो चुका है। अब गुजराती कवि सितांशु यशश्चन्द्र के गद्य का हिन्दी अनुवाद दो जि़ल्दों में पेश है। पाठक पाएँगे कि सितांशु के कवि-चिन्तन का वितान गद्य में कितना व्यापक है—उसमें परम्परा, आधुनिकता, साहित्य के कई पक्षों से लेकर कुछ स्थानीयताओं पर कुशाग्रता और ताज़ेपन से सोचा गया है। हमें भरोसा है कि यह गद्य हिन्दी की अपनी आलोचना में कुछ नया जोड़ेगा।" —अशोक वाजपेयी
Kavita Kya Hai
- Author Name:
Vishwanath Prasad Tiwari
- Book Type:

-
Description:
कविता क्या है?—इस प्रश्न के उत्तर में कोई एक सर्वसम्मत परिभाषा दे पाना कठिन है। जैसे हर मनुष्य का अपना एक रूप, स्वभाव और अन्दाज़ होता है, वैसे ही हर भाषा और हर कविता का भी अपना रूप, स्वभाव और अन्दाज़ होता है। इसलिए कविता के बारे में कोई सर्वमान्य निष्कर्ष, कोई ऐसी कसौटी, जिस पर हर काल और हर भाषा की कविता शत-प्रतिशत खरी उतरे, प्रस्तुत करना, और भी कठिन हो जाता है।
अलग-अलग कालों में और अलग-अलग देशों में कविता के प्रतिमान भी बदलते रहे हैं। फिर भी, जिस प्रकार कुछ ऐसे सामान्य धर्म होते हैं जहाँ विविध आकृति-प्रकृति के मनुष्य मिलते हैं और मनुष्य के रूप में अपनी पहचान सुरक्षित रखते हैं, उसी प्रकार कविता के भी कुछ बुनियादी तत्त्व होते हैं जिनके कारण विविध कालों, विविध भाषाओं में लिखी गई विविध भंगिमाओं वाली कविताएँ कविता के एक विशिष्ट रूप में पहचान ली जाती हैं। कविता के इन्हीं बुनियादी लक्षणों की चर्चा इस पुस्तक में हुई है।
इस पुस्तक की सीमाओं में ज़्यादा विस्तार की गुंजाइश न थी। पाठक केवल संकेत ग्रहण करेंगे और मानवता की महान कविता-परम्परा और काव्य-चिन्तन के सूक्ष्म इतिहास में ख़ुद घुसने और उसमें फ़ुरसत से रमने की कोशिश करेंगे।
—भूमिका से
Muktibodh : Sarjak Aur Vicharak
- Author Name:
Sewaram Tripathi
- Book Type:

- Description: तर नेहरू-युग में जैसे-जैसे भारतीय लोकतंत्र जनहितों से निरपेक्ष होता गया है, वैसे-वैसे साहित्य मुखर रूप से लोकतंत्र के भीतर काम कर रही जन-विरोधी शक्तियों के कठोर आलोचक के रूप में सामने आया है। इसी क्रम में मुक्तिबोध की रचनाएँ और विचार हिन्दी में केन्द्रीय होते गए हैं। पारम्परिक रसवादी और रोमैंटिक आग्रहों के सामानान्तर आधुनिक साहित्य ने विचार और बौद्धिकता को केन्द्रीय महत्त्व दिया है। इस संघर्ष में मुक्तिबोध के रचनात्मक और वैचारिक प्रयासों की महती भूमिका है। प्रो. सेवाराम त्रिपाठी की पुस्तक ‘मुक्तिबोध : सर्जक और विचारक', मुक्तिबोध का विवेचन-मूल्यांकन समग्रता से करती है। मुक्तिबोध की रचनात्मकता कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, आलोचना और पत्रकारिता तक फैली हुई है। इस पुस्तक का महत्त्व यह है कि वह मुक्तिबोध का अध्ययन करने के लिए सभी विधाओं को समेटती है। स्वाभाविक ही है कि ऐसे में लेखक ने मुक्तिबोध के सभी पक्षों पर विस्तृत विचार किया है। सेवाराम त्रिपाठी ने प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध की सर्जना में विचारधारा की भूमिका की पड़ताल की है। मुक्तिबोध हिन्दी रचनाशीलता में एक मुकम्मल और सुसंगत मार्क्सवादी थे। इसका गहरा प्रभाव विशेष रूप से कविता और आलोचना जैसी विधाओं पर पड़ा है। यह प्रभाव सामान्य न होकर जटिल है। लेखक ने पुस्तक में मुक्तिबोध में उपस्थित रचना और विचारधारा की अन्तःक्रिया पर गहन और सूक्ष्म विवेचन किया है। प्रस्तुत संस्करण पुस्तक का दूसरा संस्करण है। इसमें ‘मुक्तिबोध : पुनश्च' शीर्षक से चार नए आलेख जोड़ दिए गए हैं। इन आलेखों में मूल अध्यायों में छूट गई कुछ महत्त्वपूर्ण बातें स्थान पा सकी हैं। पुस्तक न सिर्फ़ गम्भीर अध्येताओं की ज़रूरतों को पूरा करती है, बल्कि सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी उपादेय ह
Ashok Ke Phool
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

-
Description:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी भारतीय मनीषा के प्रतीक और साहित्य एवं संस्कृति के अप्रतिम व्याख्याकार माने जाते हैं और उनकी मूल निष्ठा भारत की पुरानी संस्कृति में है। लेकिन उनकी रचनाओं में आधुनिकता के साथ भी आश्चर्यजनक सामंजस्य पाया जाता है।
‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’ और ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ जैसी यशस्वी कृतियों के प्रणेता आचार्य द्विवेदी को उनके निबन्धों के लिए भी विशेष ख्याति मिली। निबन्धों में विषयानुसार शैली का प्रयोग करने में इन्हें अद्भुत क्षमता प्राप्त है। तत्सम शब्दों के साथ ठेठ ग्रामीण जीवन के शब्दों का सार्थक प्रयोग इनकी शैली का विशेष गुण है।
भारतीय संस्कृति, इतिहास, साहित्य, ज्योतिष और विभिन्न धर्मों का उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया है जिसकी झलक पुस्तक में संकलित इन निबन्धों में मिलती है। छोटी-छोटी चीज़ों, विषयों का सूक्ष्मतापूर्वक अवलोकन और विश्लेषण-विवेचन उनकी निबन्ध-कला का विशिष्ट व मौलिक गुण है।
निश्चय ही उनके निबन्धों का यह संग्रह पाठकों को न केवल पठनीय लगेगा, बल्कि उनकी सोच को एक रचनात्मक आयाम प्रदान करेगा।
Manav Samaz
- Author Name:
Rahul Sankrityayan
- Book Type:

-
Description:
मानव समाज से अलग नहीं रह सकता था, अलग रहने पर उसे भाषा से ही नहीं, चिन्तन से भी नाता तोड़ना पड़ता, क्योंकि चिन्तन ध्वनिरहित शब्द है। मनुष्य की हर एक गति पर समाज की छाप है। बचपन से ही समाज के विधि-निषेधों को हम माँ के दूध के साथ पीते हैं, इसलिए हम उनमें से अधिकांश को बंधन नहीं भूषण के तौर पर ग्रहण करते हैं, किन्तु वह हमारे कायिक, वाचिक कर्मों पर पग-पग पर अपनी व्यवस्था देते हैं, यह उस वक़्त मालूम हो जाता है, जब हम किसी को उनका उल्लंघन करते देख उसे असभ्य कह डालते हैं।
सीप में जैसे सीप प्राणी का विकास होता है, उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है। मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा अपने परिवार, ठाठ-बाट, पाठशाला, क्रीड़ा तथा क्रिया के क्षेत्र में और समाज द्वारा विकसित भाषा को लेकर होती है।
‘मानव समाज’ हिन्दी में अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। हिन्दी और बांग्ला पाठकों के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।
Hindi Upanyas Ek Antaryatra
- Author Name:
Ramdarash Mishra
- Book Type:

- Description: हिन्दी उपन्यास अभी अपनी यात्रा के सौ वर्ष भी पूर्ण नहीं कर सका है, किन्तु इतने ही दिनों में वह जीवन यथार्थ के इतने मोड़ों और विषम धरातलों से गुजरा है कि उसे ‘आधुनिक जीवन का आईना’ कहा जा सकता है। प्रस्तुत पुस्तक उपन्यास-यात्रा की एक अन्तर्यात्रा है। यह बहुत-सी छोटी-मोटी पुस्तकों की तरह धरातल पर दिखाई पड़ने वाली घटनाओं, श्रेणीबद्ध चरित्र-चित्रणों, संस्थागत विचारों और रूढ़ शिल्प-चर्चाओं के ब्योरे में नहीं भटकी है, यह तो यात्रा की भीतरी चेतनाओं, सामाजिक और मानसिक सत्यों के सन्दर्भों में उभरते विविध मोड़ों और गतियों को पकड़ने के प्रयत्न में रही है। इसीलिए इसमें उपन्यास की गतियों, मोड़ों और चेतनाओं तथा उन्हें निर्मित या प्रभावित करनेवाली परिस्थितियों का निरीक्षण तो किया ही गया है, साथ-ही-साथ विशिष्ट कृतियों की निजी सौन्दर्य-चेतना को भी संश्लिष्ट रूप में रखने का प्रयास है। निजी सौन्दर्य-चेतना के अभाव में कृतियाँ कृतियाँ न रहकर सामाजिक या मनोवैज्ञानिक सत्यों का दस्तावेज बन जाती हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इसलिए बहुत से ऐसे चर्चित मोटे-मोटे उपन्यास नहीं लिए गए हैं जो सौन्दर्य-चेतना के अभाव में विशिष्ट सृजन नहीं बन सके हैं। सीमित आकार के नाते भी प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे अनेक उपन्यासों को छोड़ना पड़ा है जिनकी चर्चा की जा सकती तो अच्छा रहता, किन्तु किसी धारा में प्रमुख योगदान न दे सकने या निजी तौर पर विशिष्टतर उपलब्धि न प्राप्त कर सकने के कारण जिनका अचर्चित रह जाना विशेष महत्त्व नहीं रखता। लेखक की अन्तर्दृष्टि हिन्दी उपन्यास के संश्लिष्ट व्यक्तित्व और उसकी चेतना-यात्रा को पहचानने में सफल हुई है। यह पुस्तक अपने सीमित आकार में भी समग्र और प्रभावशाली है।
Hindi Samudaay Aur Rashtrawad
- Author Name:
Sudhir Ranjan Singh
- Book Type:

-
Description:
सुधीर रंजन सिंह की यह पुस्तक हिन्दी समुदाय की बौद्धिक-साहित्यिक गतिविधियों और राष्ट्रवाद से जुड़े विचारों की समीक्षा है। हिन्दीभाषी समुदाय जातीय पहचान की दृष्टि से अधूरी अवस्था में है। देश के दूसरे आधुनिक भाषा-भाषी समुदायों की तुलना में इसमें जातीय अनुभूति के स्तर पर अधिक असमानताएँ और विभाजन हैं।
इस पुस्तक में उन सभी प्रसंगों की पड़ताल की गई है जिनके कारण हिन्दीभाषी समुदाय आज यह कहने में असफल है कि ‘हम हैं’। इसमें हिन्दी समुदाय की न केवल अधूरेपन का आख्यान है, बल्कि उसके संघर्ष की गाथा भी है। इस रूप में यह उन समकालीन विवादों में प्रभावशाली हस्तक्षेप है जो हिन्दी समुदाय के निर्माणकाल की अधिकांश गतिविधियों में संकीर्ण अन्तर्वस्तु की खोज को मुख्य विषय बनाते हैं। भाषायी अस्मिता का संघर्ष इस पुस्तक के अध्ययन के केन्द्र में है। राष्ट्रीय समुदायों की भाषाओं से उनकी अस्मिता निर्धारित होती है। उन्हें दबाने का अर्थ राष्ट्रबोध को कमज़ोर करना है। अपनी भाषाओं की रक्षा सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा मामला है, और यह राष्ट्रवादी कार्य है। इस रूप में राष्ट्रवाद एक व्यावहारिक विचारधारा है जो सामान्य नागरिक को जाति और धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठाती है। पुस्तक की मुख्य स्थापना है कि देश के सबसे बड़े समुदाय को आत्म-पहचान से दूर रखने का अर्थ होगा जाति और धर्म से जुड़ी पहचानों को बढ़ावा देना और राष्ट्रीयता की रीढ़ को कमज़ोर करना। ‘आत्म-पहचान’, हमारी समझ से, राष्ट्रीयता की जान है। इसी से किसी देश का चौतरफ़ा विकास होता है। आर्थिक, वैज्ञानिक, कलात्मक, साहित्यिक सभी क्षेत्रों में।
पुस्तक में हिन्दी लेखकों की असाधारण छवि प्रस्तुत की गई है। सुधीर रंजन सिंह का विश्वास है कि हिन्दी के लेखकों में अपनी सामुदायिक अस्मिता को लेकर जैसी चिन्ता है, और उसके साथ ही दूसरी भाषाओं के साहित्य और राष्ट्रीय जीवन की समस्याओं से जुड़े विषयों से जैसा लगाव है—यह बात सामान्य जन में और दूसरी जगहों पर भी उसी अनुपात में दिखाई पड़े तो सभी राष्ट्रीय समूहों की पहचान निखरेगी, और राष्ट्रव्यापी चेतनागत असमानताएँ भी कम होंगी।
Jhuth Sach
- Author Name:
Siyaramsharan Gupt
- Book Type:

-
Description:
सब झूठ, झूठ नहीं होते; सब सच, सच नहीं होते; इसी तरह सब निषेध भी निषेध नहीं होते। कुछ निषेध ऐसे भी होते हैं, जिनमें अनुज्ञा छिपी होती है।
-श्री सियारामशरण गुप्त
प्रस्तुत पुस्तक 'झूठ-सच' निबन्ध-संग्रह में चिन्तन का विशेष योग दिखायी देता है। वे लेखक की वैयक्तिकता से बंधे हुए हैं। किसी निबन्ध में बाल्यकाल की मधुर स्मृतियाँ हैं तो किसी में स्नेहियों के संस्मरण । कभी वे हिमालय की भावात्मक झलक प्रस्तुत करने में संलग्न दिखायी पड़ते हैं तो कभी कवि-चर्चा में निमग्न हो जाते हैं। कभी वे जीवन के विभिन्न स्तरों का विनोदपूर्ण उद्घाटन करते हैं तो कभी अपूर्ण की अपूर्णता का आस्वाद कराते हैं। खुले व्यक्तित्व की संहति, लेखक-पाठक के तादात्म्य, व्यंग्य-विनोद के सन्निवेश आदि के कारण उनके निबन्ध हिन्दी साहित्य के निर्बन्ध निबन्धों की परम्परा में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में परिणित होते हैं।
पुस्तक निश्चय ही पठनीय एवं संग्रहणीय है।
Hindi Web Sahitya
- Author Name:
Sunilkumar Lawate
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी भाषा और साहित्य की विभिन्न वेबसाइट्स पर प्रकाशित साहित्य का यह पहला व्यवस्थित अनुसन्धान है। इसके अलावा इसमें कम्प्यूटर के उद्भव, वेबसाइटों के निर्माण और पोर्टल्स की बनावट आदि की बुनियादी जानकारी भी दी गई है। सीधे इंटरनेट पर प्रकाशित हिन्दी साहित्य का व्यापक परिचय देनेवाली यह पुस्तक ज्ञानभाषा के रूप में हिन्दी की क्षमता को भी रेखांकित करती है और इंटरनेट जैसे सर्वव्यापी मंच पर हिन्दी के नए उभरते भाषा-वैज्ञानिक स्वरूप को भी स्पष्ट करती है।
यह पुस्तक उन साहित्यकारों, समीक्षकों, अध्यापकों और रचनाकारों के लिए भी ‘आई ओपनर’ का काम करेगी जो अभी तक इंटरनेट से बचते आए हैं और उसकी क्षमता तथा उपयोगिता को नज़रअन्दाज़ करते रहे हैं। हिन्दी के प्रति उपयोजित प्रतिबद्धता (Applied Commitment) की भूमिका के प्रति आगाह कर यह पुस्तक हमें संगणकीय प्रयोग के लिए प्रोत्साहन भी देती है।
हिन्दी को विश्वभाषा के रूप में चिन्हित करती यह पुस्तक इसलिए भी अनूठी है कि इसमें एक भी मुद्रित सन्दर्भ नहीं है, जो है, सब ऑनलाइन बिब्लियोग्राफ़ी है।
Hindi Kriyaon Ki Roop-Rachana
- Author Name:
Badrinath Kapoor
- Book Type:

- Description: हिन्दी के आरम्भिक व्याकरण यूरोपीय विद्वानों ने लिखे थे। इन व्याकरणों को लिखने में उन्होंने वही पद्धति अपनाई, जिसमें उनके अपने व्याकरण लिखे गए थे। लौटिन पद्धति के उन व्याकरणों में पदों का वर्गीकरण अर्थमूलक आधार पर ही होता था। बाद में जब हिन्दी भाषाभाषी विद्वानों ने व्याकरण लिखे तो उन्होंने भी जाने-अनजाने पूर्वलिखित व्याकरणों को आधार बनाया। भारतीय प्राचीन पद्धति पदों का विवेचन तथा वर्गीकरण उनकी रूप-रचना के आधार पर ही करती थी। विश्वविख्यात ‘अष्टाध्यायी’ इसका ज्वलन्त प्रमाण है। प्रस्तुत पुस्तक में क्रियापदों के सभी वर्गीकरण पदों की रूप-रचना पर ही आधारित हैं। एकपदीय और द्विपदीय क्रियापद, विकारी और अविकारी क्रियापद, कर्तृ अनुगामी और कर्मादि-अनुगामी क्रियापद, कर्तृवाच्य और कर्मादिवाच्य क्रियापद आदि सभी वर्गीकरणों का आधार पूर्णतः उनकी रूप-रचना ही है।
Geet Gunj
- Author Name:
Suryakant Tripathi 'Nirala'
- Book Type:

- Description: महाप्राण निराला के काव्य में गीतों का विशेष स्थान है। इस नाते ‘गीत-गुंज’ उनका एक प्रतिनिधि गीत-संग्रह है। इस संग्रह में अनेक ऐसे गीत हैं, जिन्हें निराला अकसर गुनगुनाते थे। वर्ण्य विषय की दृष्टि से ज़्यादातर गीत प्रकृतिपरक हैं, जिनमें प्रकृति के मात्र मोहक बिम्ब ही नहीं, उसका यथार्थ स्वरूप मुखरित हुआ है। स्पष्टत: इन गीतों के माध्यम से निराला एक नई चेतना प्रदान करना चाहते हैं। गीतों के अलावा मुक्त छन्द में लिखी गई कुछ कविताएँ और स्वामी विवेकानंद की दो कविताओं का अनुवाद भी इस संग्रह में शामिल है।
Mahadevi
- Author Name:
Indranath Madan
- Book Type:

-
Description:
‘छायावाद के वसन्त वन की सबसे मधुर, भाव-मुखर पिकी’ महादेवी वर्मा के काव्य का सन्तुलित मूल्यांकन जितना उपेक्षित है, उतना ही उपेक्षित रहा है। इनके काव्य के सम्बन्ध में अनेक असंगत धारणाएँ भी रूढ़ हो चुकी हैं, अनेक भ्रान्तियाँ फैल चुकी हैं।
सवाल उठता है कि क्या महादेवी वर्मा का रचनात्मक व्यक्तित्व विभाजित है जो इनकी गद्य-रचनाओं में सामाजिक चेतना को आत्मसात् किए हुए है और काव्य-रचनाओं में पलटा खाकर असामाजिक या आध्यात्मिक रूप धारण कर लेता है? क्या इनका व्यक्तित्व अद्वैतवाद और बौद्धमत के परस्पर-विरोधी तत्त्वों से निर्मित है? क्या महादेवी की सृजन-प्रक्रिया इन विपरीत स्थितियों के तनाव में गतिशील है? इन तमाम सवालों, भ्रान्तियों आदि का सार्थक निराकरण करने की दिशा में पहला और प्रमुख कदम है यह पुस्तक।
इनकी कविता के रूढ़िगत मूल्यांकन से छुटकारा पाना इसलिए भी आवश्यक है कि युगबोध बदल चुका है और इसके बदलने पर हर कृति या हर कृतिकार को फिर से आँकने की आवश्यकता अनुभव होने लगती है।
‘राधाकृष्ण मूल्यांकन माला’ की इस पुस्तक में अधिकारी सम्पादक ने ऐसी अमूल्य सामग्री का संयोजन किया है जो अलग-अलग आलोचना-पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा शोध-ग्रन्थों में बिखरी हुई थी और जिसे एकत्र पाना दुर्लभ था। इसमें विद्वान रचनाकारों ने महादेवी वर्मा के रचनात्मक व्यक्तित्व, उनके चिन्तन व कला पक्षों का समग्रता से आत्मीयतापूर्वक मूल्यांकन किया है।
Doosare Shabdon Mein
- Author Name:
Nirmal Verma
- Book Type:

-
Description:
निर्मल वर्मा के लिए निबन्ध हमेशा ऐसी विधा रही जिसके माध्यम से उन्होंने सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और रचनात्मकता के मूलभूत प्रश्नों पर सोचते हुए जितनी बाहर, उतनी ही अपने भीतर भी यात्रा की। किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से ज़्यादा सत्य के पीछे एक सजग यात्रा।
इस पुस्तक में शामिल निबन्ध इस लिहाज से और भी विशेष हैं। भाषा, अस्मिता, परम्परा और आधुनिकता के बार-बार चिह्नित प्रश्नों को यहाँ उन्होंने एक बार फिर से अपने चिन्तन का विषय बनाया है।
इसमें कुछ साक्षात्कार भी संकलित हैं जिनके प्रश्नों ने निर्मल वर्मा को पुन: एक अवसर दिया कि वे अपने सोचे और कहे गए को नए ढंग से व्यक्त करें। इस बहाने उनके कुछ अप्रत्याशित पहलू भी उजागर हुए।
स्वतंत्रता के समय देश को नए सिरे से रचने के जो स्वप्न हमने देखे, ख़ासकर सांस्कृतिक सन्दर्भ में, क्या वे हमारे साथ बने रहे या धीरे-धीरे हमारे हाथ से छूट गए? हमारी प्राथमिकताओं ने हमें क्या दिया, और अगर कोई नई शुरुआत करनी ज़रूरी है तो वह कहाँ से हो?
ऐसे अनेक प्रश्नों पर मनन-रत ये निबन्ध हमारी वर्तमान दुविधाओं और दुश्चिंताओं के लिए भी उपयोगी कहे जा सकते हैं।
Premchand : Ek Talaash
- Author Name:
Shriram Tripathi
- Book Type:

-
Description:
‘प्रेमचन्द : एक तलाश’ रचनात्मक आलोचना का एक अनूठा उदाहरण है। आलोचक श्रीराम त्रिपाठी ने वस्तुत: हिन्दी और उर्दू में समानरूपेण समादृत अमर कथाशिल्पी मुंशी प्रेमचन्द को उनकी रचनाओं में तलाश किया है।
‘प्रस्तावना’ में श्रीराम त्रिपाठी लिखते हैं—जिस तरह कबीर हिन्दू–मुस्लिम के नहीं, समाज के निम्नतम, मगर मेहनतकश लोगों के साथ हैं, उसी तरह प्रेमचन्द हैं। वे न हिन्दी के हैं, न उर्दू के। वे हिन्दी–उर्दू के हैं। देवनागरी लिपि का मतलब हिन्दी नहीं होता और न फ़ारसी लिपि का मतलब उर्दू। प्रेमचन्द को समझने के लिए उनके श्रेष्ठतम से रू-ब-रू होना पड़ेगा। यह तभी सम्भव है, जब दोनों भाषाओं की रचनाओं की तुलना करके श्रेष्ठतम को छाँटकर अलग किया जाए और वही दोनों भाषाओं में अनुवादित होकर नहीं, लिप्यन्तरित होकर पहुँचे। मसलन, ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोग़ा’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का उर्दू रूप निश्चित तौर पर हिन्दी रूप से श्रेष्ठ है। फिर, क्यों न हिन्दी पाठकों को वही मुहैया कराया जाए। आजकल हिन्दी की रचनाओं में धड़ल्ले से देशज, अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी के शब्द आते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उनके अर्थ फुटनोट में दे दिए जाते हैं, तो प्रेमचन्द के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता।
पुस्तक की सामग्री तीन खंडों में है—लिप्यन्तर, तुलना और समीक्षा। उपसंहार के अन्तर्गत भी अत्यन्त उपयोगी सामग्री है। उदाहरणार्थ, पुस्तक में विवेचित कहानियों की उर्दू व हिन्दी में प्रथम प्रकाशन की सूचना। साथ ही, इन कहानियों में आए उर्दू शब्दों के अर्थ। निस्सन्देह, प्रेमचन्द की रचनात्मक मानसिकता को समझने में यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...