Jayasi : Ek Nai Drishti
Author:
RaghuvanshPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
प्रस्तुत पुस्तक जायसी साहित्य के अध्ययन-चिन्तन में एक नई दृष्टि की शुरुआत करती है। धर्म, दर्शन और आचरण की मूल्यपरक रचना-प्रक्रिया मानवीय संस्कृति की आन्तरिक प्रकृति है—इस ज्ञान के साथ उन्होंने पाया है कि इसी की अभिव्यक्ति मनुष्य की कलाओं और साहित्य में होती है।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न प्रकरणों में जायसी के जीवन, दार्शनिक चिन्तन, उनकी आध्यात्मिक दृष्टि, साधना की भाव-भूमि, मानवीय जीवन के सारे परिवेश के साथ उसके मूल्य प्रक्रिया के विविध पक्षों को विवेचित करने में लेखक ने सर्वथा नई दृष्टि से काम लिया है।</p>
<p>जायसी साहित्य के अध्येताओं के लिए डॉ. रघुवंश की यह पुस्तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है।
ISBN: 9789352210312
Pages: 166
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी’ में प्रख्यात भाषाविद् डॉ. सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या के वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाषण संकलित हैं, जो उन्होंने 1940 ई. में ‘गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी’ के आमंत्रण पर दिए थे। इन भाषणों के विषय थे : (1) ‘भारतवर्ष में आर्यभाषा का विकास’ और (2) ‘नूतन आर्य अन्त:प्रादेशिक भाषा हिन्दी का विकास’ अर्थात् राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विकास। जनवरी 1942 में सुनीति बाबू ने इन भाषणों को संशोधित और परिवर्धित करके पुस्तक रूप में प्रकाशित कराया था। 1960 में दूसरे संस्करण के लिए उन्होंने फिर इसे पूरी तरह संशोधित किया। इसमें कुछ अंश नए जोड़े और कुछ बातों पर पहले के दृष्टिकोण में संपरिवर्तन किया। इस प्रकार पुस्तक ने जो रूप लिया, वह आज पाठकों के सामने है, और भारत में ही नहीं विदेश में भी यह अपने विषय की एक अत्यन्त प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है।
भारत सरकार द्वारा यह पुस्तक पुरस्कृत हो चुकी है।
Hindi Ki Sahitiyak Sanskriti Aur Bhartiya Adhunikata
- Author Name:
Rajkumar
- Book Type:

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Description:
हिन्दी की आधुनिक संस्कृति का विकास भारतीय सभ्यता को एक आधुनिक औद्योगिक राष्ट्र में रूपान्तरित कर देने के वृहत् अभियान के हिस्से के रूप में हुआ। इस प्रक्रिया में गांधी जैसे चिन्तकों के विचारों की अनदेखी तो की ही गई, मार्क्स के चिन्तन को भी बहुत ही सपाट और यांत्रिक ढंग से समझने और लागू करने का प्रयास किया गया। यह पुस्तक गांधी और मार्क्स का एक नया भाष्य ही नहीं प्रस्तुत करती, बल्कि भारतीय आधुनिकता की विलक्षणताओं को भी रेखांकित करने का उपक्रम करती है। आधुनिकता की परियोजना के संकटग्रस्त हो जाने और उत्तर-आधुनिक-उत्तर-औपनिवेशिक चिन्तकों द्वारा उसकी विडम्बनाओं को उजागर कर दिए जाने के उपरान्त गांधी और मार्क्स का ग़ैर-पश्चिमी समाज के परिप्रेक्ष्य में पुनर्पाठ एक राजनीतिक और रणनीतिक ज़रूरत है। इस ज़रूरत का एहसास भारतीय और पश्चिमी समाज वैज्ञानिकों के लेखन में इन दिनों बहुत शिद्दत से उभरकर आ रहा है। विडम्बना ये है कि हिन्दी की दुनिया ने अभी भी इस प्रकार के चिन्तन को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी है। इस दृष्टि से विचार करने पर आधुनिकता के साथ पूँजीवाद, उपनिवेशवाद, राष्ट्रवाद, विज्ञान, तर्कबुद्धि और लोकतंत्र का वैसा सम्बन्ध ग़ैर-पश्चिमी सभ्यताओं के साथ नहीं बनता है, जैसा पश्चिमी सभ्यताओं के साथ दिखाई पड़ता है। इस बात का एहसास गांधी को ही नहीं, हिन्दी नवजागरण के यशस्वी लेखक प्रेमचन्द को भी था। यह अकारण नहीं है कि प्रेमचन्द ने आधुनिकता से जुड़े हुए राष्ट्रवाद समेत सभी अनुषंगों की तीखी आलोचना की और उसके विकल्प के रूप में कृषक संस्कृति, देशज कौशल, शिक्षा और न्याय-व्यवस्था के महत्त्व पर ज़ोर दिया। देशज ज्ञान को महत्त्व देनेवाला व्यक्ति ज्ञान के स्रोत के रूप में सिर्फ़ अंग्रेज़ी के माहात्म्य को स्वीकार नहीं कर सकता था। इसलिए गांधी और प्रेमचन्द ने हिन्दी और भारतीय भाषाओं के उत्थान पर इतना ज़ोर दिया। लेकिन, हिन्दी की साहित्यिक संस्कृति के अधिकांश में, भारतीय भाषाओं की अस्मिता और उनके साहित्य का अध्ययन भी यूरोपीय राष्ट्रों के साहित्य के वज़न पर किया गया। आधुनिक साहित्यिक विधाओं का चुनाव और विकास भी बहुत कुछ पश्चिमी देशों के साहित्य के निकष पर हुआ। यह सब हुआ जातीय साहित्य और जातीय परम्परा का ढिंढोरा पीटने के बावजूद। यह पुस्तक साहित्य के इतिहास-अध्ययन की इस प्रवृत्ति और साहित्यिक विधाओं के विकास की सीमाओं और विडम्बनाओं को भी अपनी चिन्ता का विषय बनाती है और सही मायने में अपनी जातीय साहित्यिक-सांस्कृतिक परम्परा को एक उच्चतर सर्जनात्मक स्तर पर पुनराविष्कृत करने की विचारोत्तेजक पेशकश करती है।
—पुरुषोत्तम अग्रवाल
The Untold Story Of Kakori
- Author Name:
Smita Dhruv
- Book Type:

- Description: Do you remember “Kakori train loot” by Ten heroes ? It happened on 9th August, 1925. A real life drama by India’s martyrs around which this fiction is written. India’s Non Co-operation Movement against the British Government was started with a promise to free India within a year. When it was withdrawn abruptly in 1922, thousands of young freedom fighters were disillusioned. This deceit saw birth of a large number of revolutionaries fighting with all their might single-handedly against the ruling British in India. On this day, a team of ten young boys looted treasury of the Indian Railways near Kakori Railway Station, next to Lucknow. An event in the Golden history of India’s freedom fights and is a fictional story woven around it. This book brings alive those shining moments of gallantry by young, brave martyrs, who till today remain unknown to us. A nail biting portrayal of mental agony, dilemma and _ survival issues from the lives of heroes of our country and their families is a tribute to the Kakori boys
Bhartiya Kavya Shastra Ki Bhumika
- Author Name:
Yogendra Pratap Singh
- Book Type:

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Description:
भारतीय काव्य-चिन्तन की दृष्टि कविता के स्थापत्य से जुड़ी है। काव्य-सृजन शब्दार्थ का एक अद्वैत सहयोग है और कवि अपनी प्रतिभा के संयोग से इस शब्दार्थ में चित्त को विगलित करने की सामर्थ्य उत्पन्न करता है। पश्चिम में, यदि प्लेटो तथा अरस्तू से इसका प्रारम्भ माने तो सत्रहवीं शती तक वहाँ इसका अव्यवस्थित एवं अक्रमबद्ध विवेचन मिलता है, जबकि आचार्य भरत से प्रारम्भ होकर भारतीय काव्य-चिन्तन सत्रहवीं शती तक अपने विकास के चरम शीर्ष पर पहुँच जाता है।
‘शब्दार्थ’ रचना की प्रमुख समस्याएँ—‘सर्जन का मूलाधार’ (काव्य हेतु), ‘सृजन की केन्द्रीय चेतना’ (काव्यात्मा), ‘सृजन का मूल उद्देश्य’ (काव्य प्रयोजन), ‘कवि-कर्म का वैशिष्ट्य’ जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षों पर यहाँ क्रमश: चिन्तन किया गया है और सार्वभौम हल निकालने की चेष्टा की गई है। भारतीय काव्य चिन्तन की केन्द्रीय धुरी ‘शब्दार्थ’ रचना ही है क्योंकि कविता की निष्पत्ति के लिए एकमात्र और अन्तिम मूल सामग्री वही है—भारतीय काव्य-चिन्तन का समग्र विकास अर्थात् शब्द सौष्ठव से लेकर आस्वादन तक का विवेचन, इसी शब्दार्थ पर ही आधारित रहा है और प्रस्तुत कृति का सम्बन्ध भारतीय कविता-चिन्तन के इसी वैशिष्ट्य को इंगित करना है।
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