
Hindi Sahitya Ka Itihas Punarlekhan Ki Avashyakta
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
248
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
496 mins
Book Description
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य-लेखन की रामकथा के वाल्मीकि हैं<strong>,</strong> कोई भी साहित्येतिहासकार उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता। यह कहना अनुचित न होगा कि आदिकाल<strong>, </strong>भक्तिकाल और रीतिकाल की जैसी रंगारंग और जीवित पारदर्शियाँ हमें उनके इतिहास में मिलती हैं<strong>,</strong> वैसी आधुनिक साहित्य के बारे में नहीं मिलती हैं। इस दृष्टि से हिन्दी साहित्येतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता महसूस की जाती है।</p> <p>इसके अलावा शुक्ल जी के बाद कई दशकों में फैला तकनीक क्रान्ति<strong>, </strong>और संचार तथा सूचनाओं का विस्फोटक दौर हमारे सामने है। इन वर्षों का हिन्दी साहित्य भाषा की दृष्टि से<strong>, </strong>अनुभव की दृष्टि से<strong>, </strong>ज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त विविध और सम्पन्न साहित्य है। सभ्यता<strong>, </strong>संस्कृति और विश्व-साहित्य के संगम-काल के इस साहित्य का विवेचन और दस्तावेज़ीकरण भी अब एक बड़ी आवश्यकता है।</p> <p>यह पुस्तक ऐसे ही अन्य घटकों पर भी नज़र डालती है जो साहित्येतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। साथ ही इसमें इतिहास<strong>-</strong>लेखन के अब तक के इतिहास के हर चरण को विस्तार से विवेचित किया गया है जो अध्येताओं और विद्यार्थियों के लिए विशेष पठनीय है। आचार्य शुक्ल लिखित इतिहास के बाद हिन्दी में साहित्येतिहास-लेखन के जो अन्य प्रयास हुए उनका विशद विश्लेषण और तथ्यगत जानकारी भी दी गई है। आधुनिक हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं<strong>, </strong>और इतिहास-लेखन की दृष्टि से उनका मूल्यांकन भी लेखक ने किया है।