
Hindi Sahitya Ka Aalochanatmak Itihas
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
688
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
1376 mins
Book Description
“साहित्य और संस्कृति एक वृन्त के दो पुष्प हैं, और उनका पोषण एक ही रस से होता है। एक ही रस में रचे-पचे तथा परस्पर अभिन्न अन्तरंगता से जुड़े ऐतिहासिक चेतना के अद्वैत तत्त्व हैं।” ऐसी लेखक की अवधारणा है।</p> <p>डॉ. वर्मा साहित्येतिहास को धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान और सामाजिक धारणाओं के अखंड प्रतिफल के रूप में परिभाषित करते हैं, इसलिए आपके समक्ष प्रस्तुत ‘हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ सांस्कृतिक सन्दर्भों की कसौटी पर अत्यन्त प्रामाणिक और विश्वसनीय बनकर उतरता है।</p> <p>आचार्य रामकुमार वर्मा का यह इतिहास आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इतिहास के बाद ही नहीं लिखा गया, बल्कि शुक्ल जी के इतिहास-लेखन की अवधारणाओं से भिन्न प्रत्ययों के आधार पर लिखा गया।</p> <p>लेखक ने संस्कृति, समाज, धर्म आदि को साहित्य के इतिहास-लेखन के लिए प्रभावकारी और पोषणीय तत्त्व के रूप में स्वीकार किया। इसलिए उनका इतिहास केवल साहित्य का इतिहास न होकर संवत् 750 से लेकर संवत् 1750 तक के मनुष्य की सोच, भावुकता, समन्वयशीलता, प्रतिरोधात्मकता, रक्षणशीलता, आचरणपरकता और समग्र क्रियाशीलता का इतिहास भी है। यह जितना साहित्य का इतिहास है, उतना ही संस्कृति विमर्श है।</p> <p>डॉ. वर्मा ने सन्धिकाल और चरणकाल पर जितने विस्तार और गम्भीरता से प्रमाण-पुष्ट उदाहरणों द्वारा विचार किया है, वैसा किसी साहित्य के इतिहासकार ने नहीं किया।</p> <p>कलाकाल या रीतिकाल का इतिहास भी लिखा है और मेरी राय में वह रीतिकाल पर लिखे गए इतिहासों से अधिक प्रामाणिक और व्यवस्थित है। भक्तिकाल का एक अर्थ में इतिहास तो वर्मा जी ने ही लिखा।</p> <p>इस इतिहास-ग्रन्थ से आदिकालीन और भक्तिकालीन साहित्य की गम्भीर समझ विकसित होती है और साहित्य के निर्वचन की शक्ति प्राप्त होती है।