Bhumandalikaran Aur Hindi Upanyas
Author:
Pushppal SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
भूमंडलीकरण सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों का समुच्चय है; यानी यह हमारे भीतर और बाहर, जीवन के दोनों पक्षों को प्रभावित करता है, कर रहा है।</p>
<p>साहित्य भी इससे अछूता नहीं रह सकता, वह भी उपन्यास जो जीवन का सर्वांगीण अंकन करता है। वरिष्ठ आलोचक पुष्पपाल सिंह की यह पुस्तक हिन्दी उपन्यासों के सन्दर्भ में भूमंडलीकरण और भूमंडलीकरण के सन्दर्भ में हिन्दी की औपन्यासिक कृतियों की विवेचना करती है। एक ओर इसमें भूमंडलीकरण और उसके आनुषंगिक प्रश्नों-विचारों का, उसके आर्थिक व सांस्कृतिक पक्षों का विशद और स्पष्ट विवेचन किया गया है, दूसरी ओर 1985 से लेकर मार्च-अप्रैल 2009 तक प्रकाशित अधिकांश महत्त्वपूर्ण उपन्यासों का भी अध्ययन प्रस्तुत कि गया है। हिन्दी उपन्यासों का इतना बृहत् अध्ययन भूमंडलीकरण के सन्दर्भ में पहली बार हुआ है।</p>
<p>निरपेक्ष और स्पष्ट समीक्षा के लिए ख्यात पुष्पपाल सिंह ने इस पुस्तक में समीक्षित उपन्यासों पर अपनी राय का निर्धारण उनकी रचनात्मकता के आधार पर ही किया है, किसी अन्य कारण से नहीं। साथ ही एक नई समीक्षा-पद्धति और कथा-समीक्षा की एक नई शाखा विकसित करने का भी प्रयास उन्होंने यहाँ किया है। अकादमिक और उबाऊ आलोचना से हटकर यह पुस्तक निश्चय ही पाठकों को एक नया पाठ-सुख प्रदान करती है और समकालीन साहित्य-परिदृश्य पर एक नई दृष्टि विकसित करने का अवसर भी देती है।</p>
<p>
ISBN: 9788183615037
Pages: 288
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पुस्तक में संकलित समीक्षात्मक निबंधों में साहित्य के विश्लेषण और मूल्यांकन पर सर्वाधिक बल दिया गया है। साहित्य, सिद्धान्त और आलोचना के क्षेत्र में काम करने वाले अध्येताओं के अलावा शोधार्थियों, अध्यापकों और छात्रों के लिए भी यह एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक साबित होगी।
Kaalyatri Hai Kavita
- Author Name:
Prabhakar Shrotriya
- Book Type:

- Description: सुपरिचित आलोचक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय द्वारा हिन्दी कविता की यह काल-यात्रा विशेष महत्त्व रखती है। कोई रचना इतिहास के दौर में क्या रूप लेती है और मानवीय संवेदन की अन्तर्धारा उसमें किन माध्यमों से परिचालित होती है, इसकी प्रामाणिक और गहरी समझ डॉ. श्रोत्रिय को थी। अक्सर इतिहास के कालबोध की परवर्ती दृष्टि के दौर में लोग अतीत की परिस्थितियों और कवि-सीमाओं को उपेक्षित कर जाते हैं। इस पुस्तक में ऐसा आवश्यक लचीलापन है, जिससे यह अतीत को जहाँ आधुनिकता की सार्थकता में देख सकी है, वहीं युग और कवि सीमा को भी संवेदित परकाय-प्रवेश की भाँति अपने मौलिक स्वरूप में प्रतिष्ठित कर सकी है। इससे कविता इतिवृत्त नहीं रहती, बल्कि वह आगामी काल-प्रवाह में सक्रिय और प्रेरक साझीदार प्रतीत होती है। अपने समय की नवीनतम काव्य-प्रवृत्तियों को भी लेखक ने गहराई से पकड़ा है, तभी वह आदिकाल से लेकर सातवें, आठवें और नवें दशक तक के विभिन्न कविता-दौरों पर समान रूप से विचार कर सका है। यही नहीं, इस संस्करण के लिए पुस्तक को संशोधित करते हुए डॉ. श्रोत्रिय ने दो नए अध्याय भी जोड़े थे। इनमें से एक है ‘भारतीय साहित्य की परम्परा’ और दूसरा, ‘नवाँ दशक : बदलाव की नई पहल’। लम्बी कविता और हिन्दी-नवगीत पर पहले से ही दो अध्याय पुस्तक में हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि डॉ. श्रोत्रिय की यह आलोचना-कृति हिन्दी कविता का एक व्यापक और मूल्यवान अध्ययन है और मनुष्यता के चिर उपेक्षित हिस्से की पीड़ाओं को काव्य-साहित्य की प्रमुख मानवीय चिन्ताओं में शामिल करने का आग्रह करती है।
Bhasha Vigyan Ki Bhumika
- Author Name:
Aacharya Devendranath Sharma
- Book Type:

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Description:
इस पुस्तक की उपादेयता, लोकप्रियता एवं सामयिकता का प्रमाण यह है कि गत चैंतीस वर्षों में इसके चार संस्करण और बीस से अधिक पुनर्मुद्रण हो चुके हैं। नवीन संस्करण में ग्रन्थ की आत्मा को अक्षुण्ण रखते हुए संशोधन एवं परिवर्धन का प्रयास किया गया है।
‘भाषाविज्ञान का इतिहास’ नामक अध्याय में बीसवीं शताब्दी में भाषाविज्ञान के विकास का प्रकरण ग्रन्थ को समसामयिक बनाए रखता है। इसके अतिरिक्त भाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, व्यतिरेकी भाषाविज्ञान और संगणक भाषाविज्ञान का परिचय इस नवीन संस्करण की अन्यतम विशेषता है। इससे पाठकों को न केवल इन विषयों की जानकारी मिलेगी, अपितु भाषाविज्ञान के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति को दिशा–चयन में भी सहायता मिलेगी।
Tulsi : Mulyankan (lok)
- Author Name:
Rammurti Tripathi
- Book Type:

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Description:
प्रस्तुत मूल्यांकनमाला हिन्दी के विशिष्ट और श्रेष्ठ आलोचकों द्वारा लिखी गई सामग्री का एकत्र महत्वपूर्ण संकलन है जो रचनाकार और उसकी कृतियों का अनेक कोणों से एक समग्र और वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। हिन्दी साहित्य के अध्येताओं, आलोचकों और विद्यार्थियों के लिए यह सामग्री पुस्तकाकार संपादित प्रकाशित होकर सामने आ रही है।
तुलसीदास विश्व के श्रेष्ठतम कवियों में हैं। अपने ग्रंथों के माध्यम से उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को ही नहीं सामाजिक मूल्यों को भी सम्प्रेषित किया है। अनुभव की अद्वितीयता और भाषा की सरलता की दृष्टि से रामचरितमानस उनके कवि व्यक्तित्व को राष्ट्रीय व्यक्तित्व में बदल देता है। उनकी विनम्रता ही उनकी महानता का प्रमाण है। अपने समकालीन साहित्य के प्रति अति सजग तुलसी, लोकजीवन से प्राप्त अनुभव को सामान्यीकृत करके जनता के सलाहकार बन गये हैं।
Bhagat Singh Jail Diary
- Author Name:
Yadvinder Singh Sandhu
- Book Type:

- Description: "माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया। लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था। भगतसिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं। भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था। उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी।"
Hindi Bhasha Ka Samajshastra
- Author Name:
Ravindranath Shrivastava
- Book Type:

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प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने ‘हिन्दी भाषा का समाजशास्त्र’ पुस्तक की योजना ही नहीं, इसकी पूर्ण रूपरेखा भी अपने जीवन-काल में ही निर्मित कर ली थी। प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा और उसकी बोलियों को व्यापक सामाजिक घटकों से सम्बद्ध करके देखती है। यह अध्ययन निश्चित ही हिन्दी भाषा-समुदाय से जुड़े अनेक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है।
अल्पसंख्यक भाषा-समुदायों की भाषाओँ का मिश्रण, स्थिर बहुभाषिकता का विकास, भाषा का मानकीकरण और आधुनिकीकरण, भाषा-विकास में भाषा-नियोजन की भूमिका आदि कुछ ऐसे ही प्रश्न हैं, जिन्हें हिन्दी भाषा-समाज को केन्द्र में रखकर प्रो. श्रीवास्तव ने उठाया है और उनकी विवेचना-व्याख्या की है। एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं संग्रहणीय कृति।
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