Bhartendu Harishchandra Aur Hindi Navjagaran Ki Samasyayeen
Author:
Ramvilas SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
लब्धप्रतिष्ठ प्रगतिशील आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा ने इस पुस्तक में आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन और साहित्य-सम्बन्धी जीवन्त तत्त्वों को ऐसे रूप में प्रस्तुत किया है कि आज की अनेक समस्याओं का भी समाधान मिल सके। भारतेन्दु-युगीन हिन्दी नवजागरण की समस्याओं पर विस्तार से विचार करते हुए इस पुस्तक में यह प्रतिपादित किया गया है कि भारतेन्दु हिन्दी की जातीय परम्परा के संस्थापक हैं और मुख्यतः उनकी बताई हुई दिशा में चलकर ही हमारा साहित्य उन्नति कर सकेगा।</p>
<p>पुरानी पत्र-पत्रिकाओं एवं दुर्लभ पुस्तकों में दबे पड़े अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों को पहली बार प्रकाश में लाकर डॉ. शर्मा ने भारतेन्दु का सर्वथा मौलिक चित्र पुनर्निर्मित किया है, जो बहुतों के लिए चौंकाने वाला सिद्ध हो चुका है।</p>
<p>दो अध्यायों में भारतेन्दु के नाटकों पर विस्तार से विचार करने के साथ, उनकी कविता, उपन्यास, आलोचना, निबन्धकला एवं पत्रकारिता का भी आलोचनात्मक परिचय दिया गया है। इस संस्करण के लिए विशेष रूप से लिखित ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और हिन्दी नवजागरण की समस्याएँ’ शीर्षक एक नए अध्याय ने पुस्तक को और भी संग्रहणीय बना दिया है।</p>
<p>वास्तव में भारतेन्दु साहित्य सम्बन्धी सभी पक्षों की प्रामाणिक जानकारी के लिए यह अकेली पुस्तक पर्याप्त है।
ISBN: 9788171787128
Pages: 175
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान का यह नया संस्करण एक ऐसे साहित्यिक दौर में प्रकाशित हो रहा है, जब बिम्ब हिन्दी काव्यालोचन का स्वीकृत शब्द बन चुका है। परन्तु जिस समय (लगभग छठे दशक के अन्त में) यह शोधकार्य सम्पन्न हुआ था, उस समय तक हिन्दी में बिम्ब-विचार की कोई सुस्पष्ट परम्परा नहीं बन सकी थी। यह पुस्तक उस दिशा में पहले महत्त्वपूर्ण प्रयास के रूप में सामने आई थी। यहाँ पहली बार भारतीय परम्परा में बिम्ब-विचार के मूल स्रोतों को सुसंगत ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की गई थी। शायद इन्हीं बातों के चलते, इस बीच लिखी गई बिम्ब-सम्बन्धी अनेक पुस्तकों के बावजूद, आधुनिक कविता के प्रेमी पाठकों और शोध-कर्मियों के बीच आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान की माँग बराबर बनी रही। यह संस्करण–जो लगभग अपने मूल रूप में प्रकाशित हो रहा है–उसी माँग के दबाव का परिणाम है।
बिम्ब-चिन्तन के लिए एक नई भाषा गढ़ने के साथ-साथ यहाँ पहली बार यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि आधुनिक कविता का बिम्बात्मक चरित्र किस बिन्दु पर मध्यकालीन अलंकार-विधान से अलग होता है। इस व्याख्या के क्रम में आधुनिक हिन्दी कविता के कल्पनात्मक विकास का एक सुस्पष्ट दृश्यालेख भी यहाँ पहली बार प्रस्तुत हुआ है, पाठक इसे लक्ष्य किए बिना नहीं रहेंगे।
अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण आधुनिक हिंदी कविता में बिम्बविधान आज भी जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही प्रासंगिक भी।
Vichar Ka Aina : Kala Sahitya Sanskriti : Jaishankar Prasad
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

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Description:
विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
आधुनिक हिन्दी साहित्य के शुरुआती निर्माताओं में से एक जयशंकर प्रसाद भारतीय संस्कृति के मूल्यवान तत्वों को साहित्य में पुनर्स्थापित करने वाले लेखक-चिन्तक हैं। उन्होंने दिखाया कि साहित्य इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार है कि वह दर्शन की गहराइयों को अपने भीतर जगह दे। उन्होंने इतिहास के नायकों को अपना साहित्य नायक बनाया और परम्परा से निरन्तर संवादरत रहे लेकिन वे अतीतजीवी नहीं थे। आज जब राजनीतिक पूर्वाग्रहों से लैस होकर इतिहास का उत्खनन किया जा रहा है ऐसे में हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब उस धुन्ध को साफ करने में हमारी मदद करेगी जिसकी गिरफ्त में इतिहास और वर्तमान दोनों ही डूबे हुए हैं।
Kavita Ki Zameen Aur Zameen Ki Kavita
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

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‘आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ’, ‘छायावाद’ और ‘कविता के नए प्रतिमान’ जैसी कविता-केन्द्रित पुस्तकों के लेखक प्रो. नामवर सिंह के अब तक असंकलित कविता-केन्द्रित निबन्धों का संकलन है—‘कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता’। ये निबन्ध लगभग पाँच दशकों की विस्तृत अवधि में लिखे गए थे। संस्कृत कविता से लेकर प्रगतिशील काव्यधारा और नई कविता के कवियों पर केन्द्रित निबन्ध यहाँ एक साथ संकलित हैं। साथ ही साथ कविता के प्रतिनिधि कवियों ब्रेख़्त और विशेषत: पाब्लो नेरुदा पर केन्द्रित अनेक निबन्ध यहाँ मौजूद हैं। पुस्तक का केन्द्र प्रगतिशील और नई कविता है। ‘ज्ञानोदय’ में ‘नई कविता पर क्षण भर’ शृंखला तथा उस समय के अन्य निबन्धों में हमें सहज ही ‘कविता के नए प्रतिमान’ जैसी प्रबन्धात्मक और संवादी पुस्तक के आलोचनात्मक मानस का विकास दिखाई देता है। बाद में विकसित हुई अनेक अवधारणाएँ यहाँ बीज रूप में मौजूद हैं।
नागार्जुन-शमशेर पर लिखे गए निबन्धों से गुज़रते हुए हम सहज ही लक्षित कर सकते हैं कि ये निबन्ध ‘कविता के नए प्रतिमान’ पुस्तक की काव्य-दृष्टि का विस्तार और स्पष्टीकरण एक साथ है। एक हद तक उसमें छूट गए महत्त्वपूर्ण रचना-संसार को फ़ोकस में लाने का एक गम्भीर प्रयास भी। एक तरह का प्रत्याख्यान। एक आलोचना प्रयास के केन्द्र में यदि मुक्तिबोध हैं तो दूसरे के केन्द्र में हैं नागार्जुन और त्रिलोचन। कहना न होगा कि इन शीर्ष कवियों के माध्यम से प्रगतिशील काव्यधारा का खंडित रहा परिदृश्य इस तरह नामवर के आलोचना संसार में रचनात्मक पूर्णता के साथ उपस्थित हो पाया है।
Jhuth Sach
- Author Name:
Siyaramsharan Gupt
- Book Type:

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सब झूठ, झूठ नहीं होते; सब सच, सच नहीं होते; इसी तरह सब निषेध भी निषेध नहीं होते। कुछ निषेध ऐसे भी होते हैं, जिनमें अनुज्ञा छिपी होती है।
-श्री सियारामशरण गुप्त
प्रस्तुत पुस्तक 'झूठ-सच' निबन्ध-संग्रह में चिन्तन का विशेष योग दिखायी देता है। वे लेखक की वैयक्तिकता से बंधे हुए हैं। किसी निबन्ध में बाल्यकाल की मधुर स्मृतियाँ हैं तो किसी में स्नेहियों के संस्मरण । कभी वे हिमालय की भावात्मक झलक प्रस्तुत करने में संलग्न दिखायी पड़ते हैं तो कभी कवि-चर्चा में निमग्न हो जाते हैं। कभी वे जीवन के विभिन्न स्तरों का विनोदपूर्ण उद्घाटन करते हैं तो कभी अपूर्ण की अपूर्णता का आस्वाद कराते हैं। खुले व्यक्तित्व की संहति, लेखक-पाठक के तादात्म्य, व्यंग्य-विनोद के सन्निवेश आदि के कारण उनके निबन्ध हिन्दी साहित्य के निर्बन्ध निबन्धों की परम्परा में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में परिणित होते हैं।
पुस्तक निश्चय ही पठनीय एवं संग्रहणीय है।
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