
Bharatiya Sahitya Ki Bhumika
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
389
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
778 mins
Book Description
यह पुस्तक भारतीय साहित्य का संक्षिप्त इतिहास नहीं है। यहाँ भारतीय साहित्य और उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कुछ पक्षों पर विचार किया गया है। प्रयत्न यह है कि देशी रूढ़िवादियों और पश्चिमी संसार के ‘वैज्ञानिक’ विचारकों से अलग हटकर ऐसा रास्ता बनाया जाए जिस पर चलते हुए भारतीय साहित्य के और बहुत से पक्षों का वस्तुगत विवेचन किया जा सके। यह पुस्तक रास्ते की शुरुआत है, उसकी आख़िरी मंज़िल नहीं।</p> <p>‘ऋग्वेद में कवि और काव्यशिल्प’ से आरम्भ कर भारतीय नवजागरण तक की लम्बी यात्रा में लेखक ने भारतीय समाज व्यवस्था और संस्कृति के विविध पहलुओं पर विचार किया है।</p> <p>इस पुस्तक का प्रमुख आकर्षण संगीत और अन्य कलाओं के सम्बन्ध पर किया गया विचार है। <br />डॉ. शर्मा के मतानुसार, ‘‘जिसे हिन्दुस्तानी संगीत कहते हैं, वह हिन्दी भाषी जनता का जातीय संगीत है। और हिन्दुस्तानी संगीत में मुसलमानों का योगदान महत्त्वपूर्ण था।’’</p> <p>सोलहवीं-सत्रहवीं सदियों में कलाओं के पारस्परिक सम्बन्ध के बारे में उनका कहना है कि इन ‘‘सदियों में जैसा भव्य सौन्दर्य स्थापत्य में देखा जा सकता है, वैसा ही उदात्त सौन्दर्य ध्रुवपद की गायकी में है।’’ तथा ‘‘संगीतशास्त्र का इतिहास सन्तों की संगीत साधना के बिना नहीं समझा जा सकता।’’ ऐसी बहुत सी स्थापनाएँ पाठकों को इस विषय पर नए ढंग से सोचने की प्रेरणा देंगी।</p> <p>उनका कथन कि : ‘‘जिन परिस्थितियों में भारतीय साहित्य का निर्माण और अध्ययन हो रहा है, उनका गहरा सम्बन्ध विश्व पूँजीवाद से है,’’ एक विचारणीय तथ्य की ओर संकेत है। इसके साथ ही, दूसरे महायुद्ध के बाद पूँजी के ज़बर्दस्त केन्द्रीकरण से पैदा होनेवाली परिस्थितियों में वे ‘अपनी जातीय संस्कृति की रक्षा करना हर बुद्धिजीवी का कर्तव्य’ मानते हैं।</p> <p>यह पुस्तक पाठकों को ‘बड़े पैमाने पर स्वदेशी आन्दोलन की आवश्यकता’ पर सोचने की प्रेरणा देती है।