Rahul Sankrityayan : Jinhen Seemayen Nahin Rok Sakin
Author:
Jagdish Prasad Baranwal 'Kund'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
अद्वितीय प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन की लेखनी से कोई भी ऐसी विधा अछूती नहीं रह गई थी, जिसका सम्बन्ध जन-जीवन से हो। एक साथ कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, भाषाशास्त्री, इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, दार्शनिक, पर्यटक, समाज सुधारक, राजनेता, विज्ञान और भूगोलवेत्ता, गणितज्ञ, शिक्षक, कुशल वक्ता तथा जितने भी समाज के स्वीकार्य रूप हो सकते हैं, उनमें सब विद्यमान थे।</p>
<p>अपने विचार स्वातंत्र्य के लिए ज्ञात राहुल जी ने जो भी लिखा, साक्ष्य सहित और निर्भीकतापूर्वक लिखा बिना यह सोचे कि उनके विचारों से किसी की भावना आहत भी हो सकती है।</p>
<p>संघर्षों से भरा उनका जीवन अन्धविश्वास उन्मूलन और अमीरी-ग़रीबी के भेद से रहित समानधर्मा समाज की स्थापना के लिए समर्पित था। इस त्याग के लिए उन्हें विरोधियों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, जेल- जीवन और दंड-प्रहार की यातनाएँ भी सहनी पड़ी थीं।</p>
<p>वे कई भारतीय और विदेशी भाषाओं के ज्ञाता थे किन्तु उनका हिन्दी के प्रति प्रेम अटूट था।</p>
<p>जन-जन में यात्राओं के प्रति उत्साह भरनेवाले राहुल जी ने ऐसे-ऐसे दुर्गम स्थानों की यात्राएँ की हैं और उन्हें लिपिबद्ध किया है, जिनके बारे में सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
ISBN: 9789389243338
Pages: 164
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अनुवाद भाषिक कला है और किसी भाषा-रचना को दूसरी भाषा में पुनर्सृजित करने का कौशल भी। पुनर्सृजन के इस कला-कौशल में भाषा की शर्तों का अतिक्रमण होता है। तथापि यह अतिक्रमण अराजक क़तई नहीं होता। सृजन की अकुलाहट के बावजूद यह सदैव सुन्दर और रुचिकर ही होता है।
किन्तु अनुवाद का दूसरा यथार्थ यह भी है कि भाषाविज्ञान से सम्बद्ध होकर मशीन से सम्भव होने के कारण अनुवाद आधुनिक समय में जितना कला है, उतना ही विज्ञान भी है। अनुवाद की यही फ़ितरत (फ़ित्रत) है, जो उसे किंचित् मुश्किल कर्म बनाती है। इस मुश्किल से पार पाने में अनुवाद की प्रक्रिया और तकनीक सहायता करती हैं। तभी सटीक, समतुल्य और संगत अनुवाद सम्भव हो पाता है।
अनुवाद की राह में समस्याओं के कई पठार भी आते हैं, जिन्हें अनुवादकर्ता को अपने ज्ञान और सूझबूझ से तोड़ना पड़ता है। ज़ाहिर है, अनुवाद की प्रक्रिया और तकनीक अपनी समस्त शर्तों एवं सावधानियों के द्वारा उसे परिपाक तक पहुँचाती हैं। समस्याएँ इसमें बाधक नहीं वरन् ताक़त बनकर उभरती हैं। अनुवाद के पुनर्सृजन अथवा अनुसृजन अर्थात् समानान्तर सृजन होने का यही राज है। अनुवाद के इस राज को प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. श्रीनारायण समीर ने बड़ी बारीकी और धैर्य के साथ उद्घाटित किया है। इस उद्घाटन में भाषा की रवानी और ताज़गी एक सर्वथा नए आस्वाद की अनुभूति कराती है, जिसे पढ़कर ही महसूस किया जा सकता है।
Aadhunik Hindi Kavita
- Author Name:
Vishwanath Prasad Tiwari
- Book Type:

- Description: v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main"><p>प्रस्तुत पुस्तक में प्रसिद्ध कवि-आलोचक डॉ. विश्वनाथप्रसाद तिवारी ने आधुनिक हिन्दी कविता के तेरह प्रमुख कवियों—मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, हरिवंशराय बच्चन, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, नरेन्द्र शर्मा और स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की कविताओं का विश्लेषण-मूल्यांकन किया है। उपर्युक्त कवियों के काव्य का यह अध्ययन अपने संक्षिप्त रूप में विराट विस्तार को समेटने वाला है। बूँद में समुद्र की तरह। यह उन कवियों की मुख्य काव्य-विशेषताओं को उद्घाटित करता है, साथ ही एक लम्बी कालावधि की काव्य प्रवृत्तियों को भी। पुस्तक में किसी प्रकार का पूर्वग्रह नहीं है, न उखाड़-पछाड़ वाली दृष्टि। लेखक ने पूरी तरह सन्तुलित-तटस्थ दृष्टि से सहृदयता के साथ कवियों के काव्यानुभव और उनकी काव्यभाषा की समीक्षा की है। अवश्य ही यह पुस्तक पाठकों का ध्यान सही निष्कर्षों की ओर आकृष्ट करेगी।</p> <p>इस पुस्तक से हिन्दी कविता के कुछ अत्यन्त विशिष्ट कवियों के माध्यम से कविता के एक महत्वपूर्ण युग की उपलब्धियों के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलेगी। इसमें सन्देह नहीं कि आकार में यह लघु पुस्तक साहित्य के अध्येताओं के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।</p>
Chintan Ke Aayam
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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‘चिन्तन के आयाम’ में युगदृष्टा रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चिन्तनपूर्ण, लोकोपयोगी बाईस निबन्धों को संगृहीत किया गया है। ये निबन्ध जहाँ एक तरफ़ दिनकर के चिन्तक–स्वरूप का साक्षात्कार करवाते हैं, वहीं पाठक के ज्ञान–क्षितिज का विस्तार भी करते हैं।
दिनकर के ये निबन्ध—‘आदर्श मानव राम’, ‘लौकिकता और हिन्दू–धर्म’, ‘भगवान बुद्ध’, ‘बौद्धधर्म की विश्व–व्यापकता’, ‘शान्ति की समस्या’, ‘धर्म और विज्ञान’, ‘मिली–जुली संस्कृति’, ‘गांधी से मार्क्स की परिष्कृति’, ‘स्वतंत्रता के बाद’, ‘लोकतंत्र : कुछ विचार’, ‘नेता नहीं, नागरिक चाहिए’, ‘शीर्षकमुक्त चिन्तन’, ‘इल्म की इन्तिहा है बेताबी’, ‘शिक्षा के पाँच लक्षण’, ‘शिक्षा : तब और अब’, ‘आधुनिकता का वरण’, ‘आधुनिकीकरण’, ‘काम–चिन्तन की कणिकाएँ’, ‘पुरानी और नई नैतिकता’, ‘प्रेम एक है या दो?’, ‘विवाह की मुसीबतें’, ‘मूल्य–ह्रास के पच्चीस वर्ष’—मानवता, हमारी संस्कृति, विवाह, प्रेम, काम, नैतिकता, शिक्षा, आधुनिकता, गांधी, मार्क्स और शिक्षा जैसे विषयों पर उनके गम्भीर–चिन्तन को उद्घाटित करते हैं, वहीं लोकतंत्र, धर्म और विज्ञान तथा मूल्य–ह्रास जैसे ज्वलन्त प्रश्नों द्वारा हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं।
नए रूप में प्रस्तुत इस पुस्तक में निबन्धों को क्रमवार सँजोया गया है, जिससे इनकी लयबद्धता एकरूप समान ढंग से चलती जाती है। गम्भीर चिन्तन के नए आयामों के साथ–साथ पुस्तक में सम्मिलित ये निबन्ध दिनकर के व्यक्तित्व को भी समझने में सहायक सिद्ध होते हैं।
Kathakar Premchand
- Author Name:
Zafar Raza
- Book Type:

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भाई जाफ़र रज़ा प्रेमचन्द साहित्य के एक जाने-माने विद्वान् हैं। हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं पर अपने समान अधिकार, शोध और गवेषणा में अपनी गहरी रुचि, और अपनी स्वच्छ समीक्षा-दृष्टि के आधार पर उन्होंने अपनी इस पुस्तक में प्रेमचन्द साहित्य के कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिनसे हिन्दी संसार भी अभी यथेष्ट परिचित न था। उसी तरह उर्दू में प्रेमचन्द को हिन्दी से अपरिचित रहकर देखनेवालों ने बड़ी गुमराही पैदा की है और ऐसे अनेक पहलू आँख से ओझल हो गए हैं, जिनके बिना प्रेमचन्द साहित्य का ठीक-ठीक अध्ययन असम्भव हो जाता है। डॉक्टर जाफ़र रज़ा ने अपनी इस पुस्तक में बहुत-सी एतद्विषयक सूचनाएँ और आवश्यक तथ्य प्रस्तुत किए हैं, जो प्रेमचन्द-साहित्य के गम्भीर अध्ययन के लिए अपरिहार्य हैं।
भाई जाफ़र रज़ा ने प्रेमचन्द के उर्दू-हिन्दी उपन्यासों और कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करके प्रेमचन्द को ठीक से समझने के लिए नए रास्ते खोले हैं। उदाहरण के लिए प्रेमचन्द की रचना-प्रक्रिया को समझने के लिए उनकी रचनाओं के उर्दू और हिन्दी दोनों ही पाठों को देखना ज़रूरी है, क्योंकि उसके बिना लेखक के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। भाई जाफ़र रज़ा ने शुद्ध पाठों को अपनी खोज, विभिन्न पाठों की समस्याओं और नई रचनाओं की अपनी खोज के आधार पर प्रेमचन्द के साहित्य और उसकी रचना प्रक्रिया को समझने की दिशा में बड़ा सुन्दर कार्य किया है। इतना निर्विवाद है कि उनकी यह पुस्तक प्रेमचन्द-सम्बन्धी आलोचना-साहित्य को उनकी एक विशिष्ट देन है।
—अमृत राय, इलाहाबाद गणतंत्र दिवस, 1983
Kuvempu Sahitya : Vividh Aayam
- Author Name:
Ram Prakash
- Book Type:

- Description: भारतेन्दु का भाषा–प्रेम, मैथिलीशरण गुप्त की सांस्कृतिकता, जयशंकर प्रसाद की दार्शनिकता, पंत का प्रकृति–प्रेम, महादेवी वर्मा की रहस्यात्मकता, निराला की क्रान्तिकारिता, हजारीप्रसाद द्विवेदी की परम्परा–निष्ठा, प्रेमचन्द की सामाजिक–प्रतिबद्धता, रेणु की आंचलिकता, नागार्जुन की फक्कड़ता, केदारनाथ अग्रवाल का ग्रामीण–प्रेम, हरिशंकर परसाई की व्यंग्यात्मकता और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की वैज्ञानिकता को अपने साहित्य में समेटनेवाले रचनात्मक व्यक्तित्व का नाम है—‘कुवेम्पु’। कन्नड़ भाषा के प्रथम ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित ‘कन्नड़ कविरत्न’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विविध पक्षों पर विद्वत्तापूर्ण व्यापक अध्ययन को प्रस्तुत करनेवाले आलेखों का संग्रह है—‘कुवेम्पु साहित्य : विविध आयाम’।
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