Rashtriya Swayamsevak Sangh : Swarnim Bharat Ke Disha-Sootra
Author:
Sunil AmbekarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दीर्घ-यात्रा पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, फिर भी संघ सदैव ही सुर्खियों में रहता है। हाल के दिनों में संघ के कामकाज को लेकर उत्सुकता बढ़ गई है, क्योंकि एक ओर इन दिनों में बहुत से स्वयंसेवक सरकार में शीर्ष पदों पर पहुँचे हैं, वहीं दूसरी ओर संघ के हिंदू-राष्ट्र और एकात्मता के मूल विचार अब हमारे सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र की मुख्यधारा बन गए हैं।
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आंबेकरजी को तथ्यों की गहरी समझ है, इसी कारण से वे विचार की स्पष्टता और उसके विस्तार, दोनों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हुए हैं। एक स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने शाखा पद्धति में कार्य किया है और उसे अपने जीवन में जिया है, उसी के आधार पर संघ की आंतरिक कार्य-प्रणाली, निर्णय-प्रक्रिया और समन्वयक-दृष्टि पर गहराई से दृष्टिपात किया है।
वास्तविक जीवन के अनुभवों से भरपूर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ उन सभी के लिए एक पठनीय पुस्तक है, जो संघ-शक्ति की कार्यप्रणाली और इसकी भविष्य की योजनाओं को समझने के इच्छुक हैं।
ISBN: 9789390378111
Pages: 272
Avg Reading Time: 9 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
संसदीय लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में विपक्ष का विशेष महत्त्व है। यदि पता करना हो कि किसी देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र जीवित हैं या नहीं तो यह जानना होगा कि वहीं विपक्ष है या नहीं, और है तो उसकी भूमिका क्या है, कैसी है।
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय संसद में विपक्ष की भूमिका पर ऐतिहासिक और संकल्पनात्मक परिप्रेक्ष्यों में विचार किया गया है। पुस्तक दो भागों में विभक्त है। पहले भाग में लोकतांत्रिक संस्थाओं के उद्भव और विकास, स्वाधीनता से पूर्व विधायिका तथा स्वाधीनता के बाद अस्थायी संसद और प्रथम लोकसभा से लेकर ग्यारहवीं लोकसभा तक विपक्ष की भूमिका की चर्चा की गई है। दूसरे भाग में विपक्ष और नेता विपक्ष के बारे में कुछ संकल्पनात्मक बातें स्पष्ट की गई हैं तथा विपक्ष की भूमिका के कुछ रूमानी आदर्श और यथार्थ स्वरूपों पर रोशनी डाली गई है। विभिन्न अध्यायों में प्रस्तुत विवेचन-विश्लेषण बहुत कुछ व्यक्तिगत अनुभव-अन्वेषण पर आधारित है क्योंकि प्रथम लोकसभा, जवाहरलाल नेहरू और दादा साहेब मावलंकर के समय से लेकर 37 वर्षों से अधिक अवधि तक डी. सुभाष काश्यप संसद से सम्बद्ध रहे और उन्होंने संसद और सांसदों के विभिन्न स्वरूप और आयाम, उतार-चढ़ाव, उत्थान-पतन देखे हैं ।
अपनी राजनीतिक व्यवस्था और प्रातिनिधिक संस्थाओं तथा अपने चुने हुए सांसदों और विधायकों के कार्यकलापों में रुचि रखनेवाले सभी सचेत नागरिकों, शोधकर्ताओं, विद्यार्थियों एवं स्वयं राजनेताओं के लिए यह पुस्तक सर्वथा संग्रहणीय, रोचक और पठनीय सिद्ध होगी ।
Vishwa ki Mahan Krantiyan
- Author Name:
Sadanand Rai
- Book Type:

- Description: "क्रांति का अर्थ उस अवस्था को समाप्त करके, जिसमें रहना ही असहनीय होता जा रहा हो, नई व्यवस्था की स्थापना करना था। अतः जहाँ-जहाँ भी विश्व में क्रांतियाँ हुईं, वहाँ देशकाल और स्थितियों के अनुसार ही इनका सूत्रपात हुआ। दिन-प्रतिदिन बढ़ते साधनों ने क्रांति को नया रूप दे दिया था। हिंसक और अहिंसक दोनों ही रूपों ने इस क्रांति विचारधारा को प्रश्रय दिया और 17वीं शताब्दी के अंत में विश्व ने इस क्रांति से परिचय किया, जो आज 21वीं शताब्दी के घोर आधुनिक युग में भी अपनी आवश्यकता एवं प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। विश्व का यह आधुनिक और विहंगम स्वरूप इन्हीं क्रांतियों की देन है। तानाशाहों, साम्राज्यवादियों, निरंकुश और अयोग्य शासकों के चंगुल से निकलकर जनता ने आधुनिकता की ओर कदम रखे तो इन्हीं क्रांतियों के कारण, जिनमें प्राणों की आहुति दी गई और शत्रुओं को सबक भी सिखाया गया। इस पुस्तक में विश्व की उन महान् क्रांतियों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने विश्व का भविष्य तय कर दिया; जैसे— औद्योगिक क्रांति : क्रांतियों का आधार, वैज्ञानिक क्रांति, इंग्लैंड की महान् क्रांति, फ्रांस की गौरवपूर्ण क्रांति, इटली की संघर्ष-क्रांति, भारत छोड़ो आंदोलन, जर्मनी की एकीकरण क्रांति, तिब्बत की धार्मिक क्रांति, जापान की तकनीकी क्रांति।"
Manavadhikar Ka Manveeya Chehara
- Author Name:
Subhash Mishra
- Book Type:

- Description: मानव-जाति के भाग-निर्माण में जितनी शक्तियों ने योगदान दिया है और दे रही हैं, उन सब में धर्म के रूप में प्रगट होनेवाली शक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है। सभी सामाजिक संगठनों के मूल में कहीं-न-कहीं यही अद्भुत शक्ति काम करती रही है तथा अब तक मानवता की विविध इकाइयों को संगठित करनेवाली सर्वश्रेष्ठ प्रेरणा इसी शक्ति से प्राप्त हुई है। हम सभी जानते हैं कि धार्मिक एकता का संबंध प्रायः जातिगत, जलवायुगत तथा वंशानुगत एकता के संबंधों से भी दृढ़तर सिद्ध होता है।
Uttar Pradesh Ka Swatantrata Sangram : Mathura
- Author Name:
Dr. Umesh Chander Sharma
- Book Type:

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Description:
भारत की आजादी के लिए हुए अप्रतिम संघर्ष में मथुरा जनपद के महान योगदान की कहानी राष्ट्रीय प्रेम को समर्पित एक अनुपम गाथा है। 1856 में मथुरा के वनों में एक पंचायत हुई थी जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की तूफानी हलचल का संकेत था।
मथुरा जनपद में 1857 की क्रांति का विस्फोट मई माह के दूसरे सप्ताह में हुआ। 15 मई तक मथुरा के अंग्रेज स्त्रियों और बच्चों को आगरा पहुँचा दिया गया था। क्रांति की लपटें ग्रामीण अंचलों तक भी पहुँचीं। मांट तहसील का नौहझील क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित हुआ। कोसी और छाता के क्षेत्रों में भी विद्रोह का बिगुल बज उठा था। मांट क्षेत्र का बाजना विशेष रूप से गतिशील हुआ। नौहबारी के जाटों ने नौहझील के किले पर आक्रमण किया। और भी कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी मथुरा जिला रहा जिसका विस्तृत विवरण इस पुस्तक में दिया गया है।
मथुरा जनपद में प्रतिरोध की परंपरा द्वापर तक जाती है जब श्रीकृष्ण ने गोपालकों को साथ लेकर कंस के शासन को समूल नष्ट कर दिया था। वही छवियाँ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी हमें देखने को मिलीं।
Asur Adivasi
- Author Name:
Shrirang
- Book Type:

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Description:
विलुप्ति के कगार पर खड़ी भारत की एक सबसे प्राचीन मानी जानेवाली असुर आदिवासी जनजाति पिछले दिनों काफ़ी चर्चा में रही है। अपनी कुछ ख़ास विशेषताओं, मान्यताओं और कुछ ख़ास माँगों के कारण इसने सभ्य समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।
दरअसल इस असुर जनजाति के लोग लौह अयस्क को खोजनेवाले तथा लौह धातु से हथियार आदि निर्माण करनेवाले विश्व की चुनिन्दा जनजातियों में से एक हैं। ये लोग अपने को पौराणिक असुरों का वंशज मानते हैं। पिछले दिनों ये चर्चा में तब आए जब इनके कुछ बुद्धिजीवी कार्यकत्ताओं ने यह माँग उठाई कि दशहरा में दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी की जो प्रतिमा लगाई जाती है तथा उसमें उन्हें हिंसक रूप और महिषासुर का वीभत्स तरीक़े से वध करते हुए दिखाया जाता है, इससे उनकी भावना को ठेस पहुँचती है। यह उनके पूर्वजों का ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण असुर आदिवासी समुदाय का अपमान है। सभ्य समाज के लिए ऐसा वीभत्स और अभद्र अमानवीय प्रदर्शन सभ्यता के विरुद्ध है। इसलिए इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।
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