Pracheen Vishwa Ka Uday Evam Vikas
Author:
Om Prakash PrasadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 716
₹
895
Available
विश्व-इतिहास का निर्माण जिन लोगों ने किया, उन्हें निम्न पशुमानव, निर्धन, अनपढ़, अर्धनग्न, जंगली और आदिवासी के नाम से पहचाना गया। इतिहासकार उन्हें विश्व का आविष्कर्ता और प्रारम्भिक वैज्ञानिक मानते हैं। भारत, मिस्र, मेसापोटामिया, चीन, यूनान, और रोम की सभ्यताओं का उदय और विकास उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है।</p>
<p>जिस सूत्र से ये सभी सभ्यताएँ परस्पर सम्बद्ध रहीं, वह सूत्र है—इस पुस्तक में मानव-विकास के विभिन्न चरणों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए जिन पहलुओं पर विशेष दृष्टिपात किया गया है, उनमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रमुख हैं। इस क्रम में पुस्तक यह भी स्पष्ट करती है कि अखिल विश्व में एकता और परस्पर-निर्भरता का आधार सबसे ज़्यादा वैज्ञानिक उपकरणों ने तैयार किया। विज्ञान के साथ-साथ विद्वान इतिहासकार ने इस कृति में समय-समय पर अस्तित्व में आए धर्मों की भी जानकारी दी है।</p>
<p>पुस्तक के अन्त में दी गई शब्दावली विशेष रूप से उपयोगी है।
ISBN: 9788126719938
Pages: 568
Avg Reading Time: 19 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: वीर सावरकर रचित ‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् १९०९ में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से १९४७ में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंतःकरणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी। पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् १८५७ का यथार्थ क्या है?क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था?योजना का स्वरूप क्या था?क्या सन् १८५७ एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?भारत की भावी पीढि़यों के लिए १८५७ का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक देशभक्त भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
Bharat Darshan
- Author Name:
Jagram Singh
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