Nai Dunia Ki Ore

Nai Dunia Ki Ore

Authors(s):

V.K. Singh

Language:

Hindi

Pages:

464

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

928 mins

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Book Description

बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में, नवउदारवाद के पैरोकारों ने इतिहास और विचारधारा के अन्त की घोषणा की थी। समाजवाद के सोवियत प्रयोगों के विफल होने के बाद की गई वह घोषणा पूँजीवाद की ‘अपराजेयता’ का दावा था कि उसका कोई विकल्प नहीं है। लेकिन उसी समय दुनिया के विभिन्न हिस्सों से प्रतिरोध की नई-नई आवाजें सुनाई देने लगीं और नए-नए आन्दोलन उठने लगे। यह इस बात का स्पष्ट संकेत था कि पूरी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो ‘इतिहास और विचारधारा के अन्त’ के उदारवादी झाँसे में नहीं आए हैं और पूँजीवादी उत्पादन, उत्पादक शक्तियों के रिश्तों और सामाजिक सम्बन्धों की संस्थानिकताओं के विकल्पों की तलाश और मौजूदा शोषक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। वस्तुत: प्रतिरोध की ये शक्तियाँ पूँजीवाद के परे एक नई दुनिया के सपने को साकार करने के लिए प्रयत्नशील हैं और यथार्थ के ठोस धरातल पर विकल्प के सपने देख रही हैं।</p> <p>‘नई दुनिया की ओर’ उन्हीं शक्तियों के स्वप्न और संघर्ष का बयान और विश्लेषण करती है। यह पुस्तक किसी अकादमिक अथवा बौद्धिक पांडित्य का दावा किए बगैर समाज के एक सामान्य श्रमशील सदस्य की नजर और नजरिये से पूँजी और श्रम के जटिल रिश्तों को दिखाने समझाने का प्रयास करती है। लेखक आजकल जोरशोर से प्रचारित ‘प्रतिबद्धतामुक्त’, ‘गैर-राजनीतिक’ अथवा ‘निरपेक्ष-तटस्थ’ रहने की कथित समझदारी के निहितार्थों को रेखांकित करते हुए बतलाता है कि ऐसा करना वास्तव में यथास्थिति का समर्थन करना है जबकि नव-प्रतिरोध के नए संकल्प, नई परियोजनाएँ और नई प्रयोगधर्मिताएँ संघर्ष और प्रतिरोध की नई भाषा रच रहे हैं। यह वह भाषा है, जो नए वैकल्पिक संकल्पों, नई पहलकदमियों, नई परियोजनाओं और एक बेहतर समतामूलक-न्यायपूर्ण समाज की दृष्टि के साथ नए प्रयोगों को जन्म देगी।</p> <p>एक बेहतर समाज और संसार का सपना देखने वाले हरेक व्यक्ति के लिए अवश्य पठनीय और विचारोत्तेजक पुस्तक।&nbsp;

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