Modi Vijaygatha 2019
Author:
Pradeep BhandariPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
2019 के आम चुनाव की पृष्ठभूमि कुछ ऐसी थी जब अप्रत्याशित गठबंधन बने, जिनमें एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वियों ने भी एक व्यक्ति, एक पार्टी और एक विचारधारा के खिलाफ हाथ मिला लिया था। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब एकजुट विपक्ष सामने आया, जिससे ये चुनाव मोटे तौर पर मोदी-विरोधी बनाम मोदी—समर्थक बन गया। नोटबंदी और जी.एस.टी. को लोग जहाँ अब तक भूले नहीं थे, वहीं चुनाव से ठीक पहले पुलवामा के हमले और बालाकोट एयरस्ट्राइक ने राष्ट्रवाद की एक भावना पैदा कर दी। इस वजह से, सबसे अनुभवी राजनीतिक जानकार भी ये अंदाजा नहीं लगा सके कि इस चुनाव का नतीजा क्या होगा। भले ही अब हम जानते हैं कि इस चुनावी लड़ाई में जीत किसकी हुई, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर क्यों लोगों ने ऐसे समय में अपना मूड बदला, जब कई लोगों ने मोदी और बीजेपी की हार की भविष्यवाणी कर दी थी। पूरे देश में जमीनी स्तर पर लोग क्या सोच रहे थे, इस विषय पर ग्राउंड जीरो से महत्त्वपूर्ण जानकारियों के साथ, यह पुस्तक उस क्यों का जवाब देती है और यह भी बताती है कि उस जनादेश के भारतीय राजनीति के भविष्य पर कौन-कौन से प्रभाव पड़े।
जमीनी सच्चाई और वोटरों के मानस का सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन कर लिखी गई यह पुस्तक न केवल चुनाव विश्लेषकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, वरन् सामान्य पाठक के लिए भी समान रूप से पठनीय है।
ISBN: 9789390378395
Pages: 320
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: भारत के नौ प्रान्त तथा वे 562 रियासतें जो अगस्त, 1947 में मौजूद थीं, आज आज़ादी के 75वें साल में देश के नक़्शे पर कहीं दिखाई नहीं देतीं, यह तथ्य अपनी राजनीतिक व प्रशासनिक सीमाओं को लेकर अपने नागरिकों को विश्वास में लेने की राष्ट्र की क्षमता को दर्शाता है। राज्यों के मद्देनज़र भारत की पुनर्कल्पना की प्रक्रिया एक तरफ़ जहाँ प्रशासनिक ज़रूरतों से प्रभावित हुई, वहीं आन्तरिक सीमाओं का पुनर्गठन विभिन्न भाषायी और जातीय समूहों की आकांक्षाओं को समायोजित करने के लिए भी हुआ, वे समूह जो राज्य और संघीय राजनीति में अपना स्थान चाहते थे। प्रस्तुत अध्ययन डॉ. संजीव चोपड़ा ने राज्य अभिलेखों और भूमि बन्दोबस्त के लिए भूमि मापन उपकरणों पर शोध के रूप में शुरू किया था, जो होते-होते राज्य सीमाओं के मानचित्रण तथा भारत के भूगोल के माध्यम से इसके समकालीन राजनीतिक इतिहास के आख्यान के रूप में बदल गया। इस पुस्तक में राज्य पुनर्गठन आयोग, भाषायी पुनर्गठन आयोग, राजकीय दस्तावेजों और विदेश तथा राष्ट्रमंडल कार्यालय के दस्तावेजों से ली गई मूल्यवान सामग्री के साथ इस आख्यान को रचा गया है। राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के 1947 से अब तक हुए एकाधिक सीमा-निर्धारणों के बारे में यह पुस्तक प्रामाणिक तथ्यों के साथ प्रकाश डालती है। यह बताती है कि भारत ने कैसे अपने आपको लगातार पुनर्परिभाषित किया है और कर रहा है।
Chandrashekhar Azad : Mithak Banam yatharth
- Author Name:
Pratap Gopendra
- Book Type:

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Description:
असहयोग आन्दोलन के स्थगन से निराश युवा गुप्त संगठनों से जुड़कर अपनी विचारधारा एवं कार्यक्रमों के द्वारा ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने लगे। इन संगठनों में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ यानी एच.एस.आर.ए. का स्थान सर्वोपरि है और उतना ही विशिष्ट है— एच.एस.आर.ए. के शीर्षस्थ नेता अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का स्थान। मिथकों के ढेर में दबी क्रान्तिकारी विचारधारा भारत के आधुनिक इतिहास लेखन में जितनी दुर्बोध बनी हुई है, उतना ही अज्ञात है आज़ाद का जीवन। सुदूर भाबरा के जंगलों में भील समुदाय के बीच पला-बढ़ा सामान्य शिक्षा-दीक्षा और साधारण शक्ल-ओ-सूरत का एक निर्धन बालक, काशी आकर कैसे एक प्रचण्ड राष्ट्रभक्त में विकसित हुआ और अन्तत: अपनी आहुति देकर राष्ट्र का अभिमान बन गया, इसे समझे बिना स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को पूर्णत: नहीं समझा जा सकता।
यह कृति विश्वसनीय एवं प्राथमिक अध्ययन स्रोतों के गहन विश्लेषण के आधार पर चन्द्रशेखर आज़ाद के जीवन को और सम्पूर्ण क्रान्तिकारी विचारधारा को मिथकों से अलग कर ऐतिहासिक सन्दर्भों में समझने का एक विनम्र प्रयास है।
Pagha Jori-Jori Re Ghato
- Author Name:
Rose Kerketta
- Book Type:

- Description: "रोज ने अपने कथा-संग्रह में आदिवासी जीवन को सघनता और संपूर्णता के साथ शामिल किया है। जो जिया है, उसे ही लिखा है। संग्रह में व्यापकता है, विविधता है, आधुनिकता है, और जो सबसे बड़ी बात है, वह है प्रतिरोध का राजनीतिक स्वर। इसमें हिंदी साहित्य में चल रहे स्त्री विमर्श से अलग ढंग की कहानियाँ हैं, जो पुरुष के विरोध में नहीं, व्यवस्था के विरोध में खड़ी हैं। यहाँ अलग तरह का नारीवाद है। जल, जंगल, जमीन पर हो रहे हमले के खिलाफ लड़ता हुआ नारीवाद। —वीरभारत तलवार ऐसे मौसम में जबकि रचनात्मकता में एक प्रकार का सुखाड़ एवं अकाल है, रोज दी ने वैसी कहानियाँ दी हैं, जो बिल्कुल ही एक नए स्वाद की कहानियाँ हैं। समाज में जो लड़ाई है, उस लड़ाई को ताकत देने के लिए यह किताब है। —किशन कालजयी रोज दी की प्रमुख विशेषता यह है कि वे कहानियाँ लिखती नहीं कहती हैं, यानी एक कहानीकार का पाठक के साथ जो एक संवाद हो सकता है, पाठक में जो विश्वास हो सकता है, पाठक के साथ जो साझेदारी या भागीदारी हो सकती है, वह रोज दी की कहानियों में दिखती है। उनका जो देशज स्वर है, वह सीमित भौगोलिक दायरे में नहीं सिमटता है। हिंदी में जनजातीय पात्रों को लेकर जो कहानियाँ लिखी गई हैं, ये कहानियाँ उनसे भिन्न हैं। —रविभूषण इस कथा-संग्रह से गुजरते हुए आदिवासी समाज की वाचिक परंपरा-किस्सागोई का आस्वाद अनायास हमारे मन-मस्तिष्क को भिगोता है। इन कहानियों में लेखिका ने शिल्प के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया है। कथ्य के साथ सादा-सा शिल्प सहज रूप से आया है। एक नैसर्गिक आदिवासी सादगी मौलिकता-सहजता के साथ। —रणेंद्र
Marang Gomke Jaipal Singh Munda
- Author Name:
Ashwani Kumar 'Pankaj'
- Book Type:

- Description: कौन थे जयपाल सिंह मुंडा? इनका भारतीय स्वतंत्रता और नए भारत के निर्माण में राजनीतिक-बौद्धिक योगदान क्या था? वे जिस आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उसकी आकांक्षाएँ क्या थीं? इस बारे में आजादी के सत्तर साल बाद भी इतिहास चुप है। एक तरफ गांधी-नेहरू, जिन्ना, अंबेडकर सहित अनेक राजनीतिज्ञों पर सैंकड़ों पुस्तकें हैं, पर जयपाल सिंह मुंडा पर एक भी नहीं है। यह कितनी हैरत की बात है कि झारखंड आंदोलन में कूदने से पहले और देश के संविधान निर्माण सभा में लाखों आदिवासियों के लिए निडरता से दहाड़नेवाले जिस आदिवासी ने देश के लिए आई.सी.एस. छोड़ी, जिसकी कप्तानी में भारत ने पहला हॉकी का ओलंपिक स्वर्ण जीता, जिसने अफ्रीका और भारत के कॉलेजों में अध्यापन के दौरान अपनी शिक्षकीय योग्यता से प्रभु वर्ग को प्रभावित किया, जो गुलाम भारत में किसी ब्रिटिश कंपनी में सर्वोच्च पद पर काम करनेवाला पहला भारतीय (वह भी आदिवासी) था, जिससे पढ़ने के लिए भारत के राजा-रजवाड़े लालायित रहते थे, जो ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में गोल्डमेडलिस्ट था, हॉकी में एकमात्र भारतीय ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ खिलाड़ी था और जो कॉलेज के दिनों में विभिन्न सभा-सोसायटियों का नेतृत्वकर्ता संयोजक-अध्यक्ष था, उसे इस लायक भी नहीं समझा गया कि उसकी चर्चा हो। —इसी पुस्तक से
Namo Vani
- Author Name:
Ed. Arun Anand
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Himalaya Ka Itihas
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Madan Chandra Bhatt
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Description:
हिमालय का गहरा नाता भारत के इतिहास और संस्कृति से है। लेकिन अपनी विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति और अनूठी सांस्कृतिक महत्ता के कारण, यह जन-सामान्य के लिए इतिहास का विषय उतना नहीं रहा है जितना गौरव और श्रद्धा की वस्तु। वास्तव में एक मानवीय पर्यावास और सभ्यता के केन्द्र के रूप में हिमालय का इतिहास अब भी काफी कुछ अजाना है। इस सन्दर्भ में मदन चन्द्र भट्ट की यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण पाठ है, जिसमें भारत के उत्तरी, दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र का सारगर्भित ऐतिहासिक आकलन प्रस्तुत किया गया है।
लेखक ने हिमालय क्षेत्र में मौजूद शैलचित्रों, अभिलेखों, स्थापत्य और शिल्प अवशेषों, ताम्रपत्रों, सिक्कों जैसे पुरातात्त्विक साक्ष्यों को ही नहीं, बल्कि प्राचीन ग्रन्थों, लोक अनुश्रुतियों और राजस्व विवरणों में उल्लिखित विवरणों को आधार बनाकर एक सिलसिलेवार चित्र उकेरा है। उसका जोर सम्पूर्ण और प्रामाणिक लेखा प्रस्तुत करने तथा सर्वमान्य निष्कर्षों को प्रमुखता देने पर रहा है। जो तथ्य-निष्कर्ष विवादित रहे हैं उनका भी यथास्थान उल्लेख किया गया है।
सुदूर अतीत में अन्य क्षेत्रों की तरह हिमालय क्षेत्र में भी छोटे राज्यों ने आंचलिक और जनपदीय संस्कृतियों का निर्माण किया था। स्वाभाविक ही उनमें स्थानीयता का दृष्टिकोण विकसित हुआ, जब-तब सामाजिक-सांस्कृतिक संकीर्णता के कतिपय तत्त्व भी पनपे। लेकिन अन्य राज्यों और संस्कृतियों से वे कटे नहीं रहे और भारतवर्ष की बुनियादी एकता को मजबूत बनाने में उनका भी योगदान रहा। इस तथ्य को सप्रमाण बतलाते हुए यह पुस्तक एक तरफ उपेक्षित,ओझल पक्षों को सामने लती है, तो दूसरी तरफ भारत के इतिहास में हिमालय क्षेत्र के इतिहास को यथोचित स्थान देने का प्रस्ताव करती है।
इतिहास के अध्येताओं, शोधार्थियों, विद्यार्थियों से लेकर आम पाठक तक के लिए समान रूप से पठनीय और संग्रहणीय कृति!
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