Kaggattala Kala
Author:
Shashi TharoorPublisher:
Sahitya AkademiLanguage:
KannadaCategory:
History-and-politics1 Reviews
Price: ₹ 265.6
₹
320
Unavailable
Bharatadalli British Samrajya:Kannada translation by S.B. Ranganath of Shashi Tharoor,s award winning English prose,An Era of Darkness-The British Empire in India
ISBN: 9789355480651
Pages: 340
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस पुस्तक में अत्यन्त विरोधाभासपूर्ण मनःस्थिति से गुज़र रहे समाज में क़ानून-व्यवस्था स्थापित करनेवाले तंत्र की सफलता या असफलता का मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है। एक ऐसे समाज में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखना, अपराध स्थिति पर नियंत्रण रखना उतना दुष्कर कार्य नहीं है, जो प्रशासनिक एवं पुलिस ढाँचे को अपना ही सृजन एवं अंग स्वीकृत करता हो; परन्तु जिस समाज की मनोदशा यह रही हो कि प्रशासनिक तंत्र उसके लक्ष्यों के मार्ग में बाधक है, उनका दुश्मन है, उसमें शान्ति-व्यवस्था स्थापित करना, अपराध स्थिति पर नियंत्रण रखना अत्यन्त कठिन एवं दुष्कर कार्य अवश्य होता है।
जिस समाज में शान्ति छोड़कर या प्रशासनिक तंत्र को चुनौती देकर अपना लक्ष्य हासिल होने की उम्मीद हो, ऐसे मनोभावों वाले समाज में क़ानून-व्यवस्था स्थापित करना, अपराध स्थिति पर नियंत्रण रखना किस प्रकार, कितनी सफलता के साथ सम्भव हो सका?—निष्कर्षात्मक रूप में ऐसे मूल प्रत्ययों को विश्लेषणात्मक रूप से स्थापित करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
पुस्तक में राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन एवं विचारधारा को चरणबद्ध तरीक़े से विवेचित किया गया है। राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रत्येक चरण की विवेचना के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में अपराध स्थिति एवं पुलिस तंत्र के गठन एवं उनमें होनेवाले परिवर्तनों को भी विवेचना का विषय बनाया गया है। यह देखने एवं मूल्यांकित करने का प्रयास किया गया है कि राष्ट्रीय आन्दोलन की विचारधारा एवं राष्ट्रीय आन्दोलन की घटनाओं ने अपराध स्थिति को कहाँ तक प्रभावित किया है। पुलिस तंत्र के ढाँचे में होनेवाले परिवर्तनों को भी राष्ट्रीय आन्दोलन की घटनाओं, अपराध स्थिति पर उसके अनुवर्ती प्रभाव के दृष्टिकोण से विवेचित करने का प्रयास किया गया है।
Jokhim Bhare Hastakshep
- Author Name:
Hardeep Singh Puri
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- Description: 7 मार्च, 2011 को मैनहैटन के एक आला दर्जे के रेस्टोरेंट में विशेष लंच का आयोजन था। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और उनकी पूरी ए-टीम मौजूद थी। जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि चर्चा का मुख्य विषय लीबिया था, जहाँ कथित रूप से मुअम्मर गद्दाफी की सेना विद्रोहियों के गढ़ बेंगाजी की ओर पूरे विपक्ष को कुचलने के लिए तेजी से बढ़ रही थी। प्रति व्यक्ति 80 डॉलर के इस लंच पर सुरक्षा परिषद् में प्रतिनिधित्व करनेवाले देशों के दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण कूटनीतिज्ञों का एक छोटा समूह बल प्रयोग पर चर्चा कर रहा था, जो कहने को तो नागरिकों की सुरक्षा के लिए था, लेकिन वास्तव में उसका मकसद सत्ता-परिवर्तन करना था। बात आगे बढ़ी और महज दस दिन बाद परिषद् की मंजूरी मिल गई, और फिर सबकुछ बेकाबू हो गया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन राजदूत, हरदीप पुरी परिषद् के मनमाने फैसले लेने के ढंग और इसके कुछ स्थायी सदस्यों में बिना सोचे-समझे दखलंदाजी की मची रहनेवाली बेचैनी का खुलासा करते हैं। संकटपूर्ण हस्तक्षेप दिखाता है कि केवल लीबिया और सीरिया ही नहीं, बल्कि यमन और क्रीमिया में बल प्रयोग के फैसले विनाशकारी रूप से गलत साबित हुए। वरिष्ठ राजनयिक हरदीप पुरी इस प्रवृत्ति पर प्रकाश डालते हैं, जिसके अंतर्गत हस्तक्षेप करनेवाले देश अपने हित को साध लेने के बाद मुँह मोड़ लेते हैं। वह हस्तक्षेपों और सत्ता-परिवर्तन के प्रयासों के विरुद्ध चेतावनी देने की भारत की भूमिका को भी स्पष्ट करते हैं। संयम और सावधानी के पथ पर चलते हुए, संकटपूर्ण हस्तक्षेप दुनिया के ताकतवर देशों को उनके बुरे कर्मों की याद दिलाती है और वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की माँग करती है।
Shalbhanjika
- Author Name:
Uday Narayan Rai
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Description:
‘शालभञ्जिका’ शब्द प्राचीन भारतीय कला की एक विशेष लोकप्रिय ललित मुद्रा का वाचक था। इसके ज्वलन्त उदाहरण भारत के विविध ऐतिहासिक केन्द्रों से प्राप्य हैं, जिसमें उच्चित्रित सुन्दरी अपने एक हाथ से वृक्ष-शाखा को नमित एवं दूसरा कटि-प्रदेश पर अलम्बित करती त्रिभङ्ग मुद्रा में विलसित है। कला के अतिरिक्त संस्कृत, पालि एवं प्राकृत साहित्य में भी इस ललित कला-मुद्रा का प्रचुर निरूपण प्राप्य है। इससे विशेष रूप से प्रभावित होनेवाले कवियों, लेखकों एवं समीक्षकों में अश्वघोष, कालिदास, श्रीहर्ष, बाणभट्ट, राजशेखर एवं गोवर्द्धनाचार्य उल्लेखनीय हैं। इनके ग्रन्थों में प्राप्य तत्सम्बन्धी विवरण कला, इतिहास एवं दर्शन की दृष्टि से रोचक, सारगर्भित एवं ज्ञानवर्द्धक हैं।
भारतीय कला के मर्मज्ञ डॉ. उदय नारायण राय ने प्राचीन ग्रन्थों का मन्थन कर साहित्यिक एवं पुरातत्त्वीय साक्ष्यों में सुन्दर सामंजस्य स्थापित करते हुए प्रस्तुत ग्रन्थ में इस ललित कला-मुद्रा का विस्तृत ऐतिहासिक परिचय एकत्र उपलब्ध कराने का अभिमत प्रयास किया है।
Bharat Mein Sampradayik Dange Aur Aatankvad
- Author Name:
Prateep K. Lahari
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भारत में जहाँ दोनों समुदायों का समान इतिहास और एक समान संस्कृति की साझेदारी है, उनकी राष्ट्रीयता एक है। कुछ मुसलमान हैं और कुछ हिन्दू हैं किन्तु दोनों भारतीय हैं। न्यस्त स्वार्थों या धार्मिक नेताओं द्वारा इनके बीच जानबूझकर अलगाव पैदा किया जाता है और फिर उसे बढ़ावा दिया जाता है जिससे कि चुनावी तथा अन्य कारणों के लिए दोनों समुदायों को एक-दूसरे से दूर रखा जाए। यह अलगाव पूर्वग्रह और धर्मान्धता का पोषण करता है।
एक विख्यात प्रशासनिक शासकीय अधिकारी पी.के. लाहिरी ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, उसके समक्ष मेरी अच्छी-से-अच्छी कोशिश भी तुच्छ लगेगी। उन्होंने अनेक हिन्दू-मुसलमान दंगों को क़रीब से देखा है और उनके कारणों और प्रभावों का विश्लेषण करने का उत्कृष्ट कार्य किया है। उन्होंने दंगों का जो विवरण दिया है, उसमें छोटी-से-छोटी बात भी शामिल है, उससे मैं मंत्रमुग्ध हो गया हूँ।
मैं श्री लाहिरी से सहमत हूँ कि हिन्दू-मुसलमान दंगों की तुलना सभ्यताओं के संघर्ष से नहीं की जा सकती है और न ही उनका सम्बन्ध नस्लवाद के प्रश्न से है। इसका ज़्यादा सम्बन्ध पहचान को लेकर है, उस भय से कि बहुसंख्यक लोग कम संख्या वाले लोगों का नाश कर देंगे। शेष बात पूर्वग्रह या पक्षपात की है। धर्मान्ध और धार्मिकता के प्रति रूझान वाले राजनीतिक दल इसके लिए ज़िम्मेवार हैं। लाहिरी की पुस्तक ने मेरे ज्ञान को बढ़ाया है। पाठको, आपके साथ भी यही होगा। आपको भी यही अनुभव होगा। इस विद्वत्तापूर्ण कार्य को करने के लिए लाहिरी डॉक्टरेट के हक़दार हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि कोई विश्वविद्यालय उन्हें यह सम्मान देगा।
—कुलदीप नैयर
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