Dalit And Minority Empowerment
Author:
Santosh BhartiyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 960
₹
1200
Unavailable
भारत से लेकर सम्पूर्ण विश्व के शक्तिहीन, दबे-कुचले, सामाजिक रूप से पिछड़े और सताए हुए लोग और उनके समूह जब आपस में मिलकर शक्ति सम्पन्न होने का संकल्प लें, तो इसे बड़े बदलाव के भावी संकेत के रूप में लिया जाना चाहिए। इतिहास बनने की शुरुआत ऐसे ही होती है। जो इसकी अगुआई करते हैं, उन्हें इतिहास अपने सिर माथे बैठाता है, क्योंकि अगर वे आगे नहीं बढ़ते तो यात्रा अपने अन्तिम चरण पर पहुँचती ही नहीं। दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण की यात्रा शुरू हो चुकी है। इस यात्रा का ध्येय है शक्तिहीन, दबे-कुचले, और सामाजिक रूप से भेदभाव के शिकार दलितों और अल्पसंख्यकों को शक्ति सम्पन्न करना व उनके सामाजिक आधार को मज़बूत करते हुए उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार करना।</p>
<p>पुस्तक का महत्त्वपूर्ण अंश है डॉ. मनमोहन सिंह का कथन। भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने शक्तिहीनों को शक्ति सम्पन्न बनाने तथा दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के प्रयास को अपना पूरा समर्थन देने की घोषणा की। भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने साफ़ कहा कि अब सहूलियत देने से काम नहीं चलेगा, वंचितों को शिरकत भी देनी होगी।</p>
<p>बाबा साहेब अम्बेडकर ने ग़रीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण की लड़ाई को वैज्ञानिक विचार का आधार दिया तथा उसे हथियार बनाया। उसी कड़ी में यह एक प्रयास है ताकि आज दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के लिए लड़नेवाले लोग न केवल अपना वैचारिक आधार मज़बूत कर सकें, बल्कि उसे हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर <br>सकें।</p>
<p>यह पुस्तक उन सबके लिए उपयोगी है जो ग़रीबों और वंचितों की लड़ाई में या तो शामिल होना चाहते हैं या उन्हें सहयोग देना चाहते हैं। राजनीति और समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक भारत के परिवर्तन की इस लड़ाई को समझने का आधार है।
ISBN: 9788126715992
Pages: 468
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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गांधी नीलहे अंग्रेज़ों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीड़ित चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढ़कर 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।
सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की ज़बरिया खेती से मुक्ति मिल गई, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।
नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेज़ों का रैयत बनना पड़ा।
इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई ज़िक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।
इसका एक रोचक पक्ष उन किंवदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुज़रते वक़्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।
सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में क़िस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का ख़याल रखा है।
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इतिहास पर शोध करनेवालों के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार की सामग्री सुलभ हो जाने और निजी दस्तावेज़ों के अनेक संग्रह सामने आ जाने से उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम चरण और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक चरण के भारतीय इतिहास पर शोधपत्रों की बाढ़-सी आ गई है। इन शोधपत्रों में अधिकांशतया विशिष्ट समस्याओं, आन्दोलनों अथवा क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, और नई सामग्री के संश्लेषण की अथवा नई खोजों को समाहित करते हुए पाठ्य-पुस्तकें लिखने की अपेक्षाकृत कम कोशिश की गई है। प्रो. सुमित सरकार की यह पुस्तक इसका अपवाद है। यहाँ लेखक ने साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को केन्द्र में रखकर नई सामग्री का संश्लेषण किया है और साथ ही परवर्ती औपनिवेशिक भारत की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक घटनाओं के समग्र अध्ययन में उसका उपयोग करने की कोशिश भी की है।
आधुनिक भारत और उसके स्वातंत्र्य आन्दोलन का इतिहास-लेखन प्रायः विशिष्ट वर्ग के ही दृष्टिकोण से किया गया है। ऐसे इतिहास-लेखन में विभिन्न क्षेत्रों का नेतृत्व करनेवाले लोगों के कार्यकलाप, आदर्श या दलगत जोड़-तोड़ केन्द्रीय विषय रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने, स्वयं अपने ही शोध के आधार पर, उन प्रचुर सम्भावनाओं का उद्घाटन करने की कोशिश की है, जो इतिहास को समाज के निचले तबके की दृष्टि से देखने के लिए विद्यमान हैं। आधुनिक भारतीय इतिहास की हमारी पूरी समझ पर लगे महत्त्वपूर्ण आरोपों का अध्ययन करने के लिए लेखक ने विशिष्ट वर्ग के बजाय जनजातियों, किसानों और कामगारों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
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Gandhi Aur Unke 'Satyagrah' Ki Yatra
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- Description: जब तक मानव सभ्यता का अस्तित्व है तब तक गाँधी की प्रासंगिकता बनी रहेगी, क्योंकि गाँधी ने मानवता के साथ मानव सभ्यता के मौलिक मूल्यों और मानवता के आदर्शों, प्रतिमानों पर ही अपना दर्शन आधारित किया और उसे क्रियान्वित करते हुए अपना जीवन भी जी कर दिखा दिया। जब तक विश्व में युद्ध और युद्धपरक परिस्थितियाँ बनी रहेंगी, मानव-समाज और विश्व में उनके दर्शन का महत्त्व सदैव बना रहेगा। गाँधी मानवता, शान्ति, शान्तिपूर्ण अस्तित्व के साथ विकास के समर्थक थे और सत्य शाश्वत मूल्य अधारित हो अर्थात् सृष्टि, विश्व और समाज के मध्य भी सामंजस्य, सन्तुलन और सहभाग का भाव स्थायी हो, इसके इच्छुक थे। इसलिए किसी एक आयाम को लेकर गाँधी को समझने के लिए अध्ययन करना ख़तरा मोल लेना ही है। उनके व्यक्तित्व के समस्त आयामों के बिना उनका समावेशी अध्ययन सम्भव नहीं है। अत: गाँधी जी का हर अध्ययन उनकी जीवन-यात्रा का ही अध्ययन हो जाता है और इसलिए उन 'संस्कारों' और उनके व्यक्तित्व के मनोवैज्ञानिक विकास को भी विश्लेषित करना पड़ेगा तब हम उनको एवं उनके विचारों को समझ सकेंगे। बिना वांग्मय के अध्ययन के किसी लेखक, विचारक, ऐतिहासिक व्यक्तित्व को पूर्णता में समझा ही नहीं जा सकता। अत: गाँधी के 'सत्याग्रह' की यात्रा भी उनकी जीवन-यात्रा ही हो जाती है।
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