DESHPREM, PRAKRITI AUR PAHAD
Author:
Dr. RamaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
देशप्रेम, प्रकृति
और पहाड़ख्यात लेखक-कवि श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कविताओं को पढ़कर रखा नहीं जा सकता है। उसके अंदर की सामाजिक, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक चेतना बार-बार आवाज देकर अपनी तरफ बुलाती है। देश प्रेम कवि का मूल भाव है। अपने देश की भाषा, संस्कृति और सभ्यता कवि को विशेष प्रिय है। कवि पहाड़ों से जीवन का संघर्ष सीखता है तो पौराणिक और ऐतिहासिक परंपरा से जीवन को उत्सवधर्मी बनाता है। निशंक राजनीति में रहते हुए लगातार साहित्य सृजन कर रहे हैं और सबसे बड़ी बात है कि विविध विधाओं में लिख रहे हैं। कविताओं के साथ उपन्यास, कहानी, यात्रा-वृत्तांत आदि विधाओं में उनकी लेखनी यह बताती है कि साहित्य उनका पहला प्रेम है, जिससे वह समाज की नब्ज टटोलते हैं।
लगभग डेढ़ दर्जन कविता और गीत संग्रहों का सृजन कर चुके निशंक भारतीय साहित्य के महत्त्वपूर्ण कवियों में शुमार हैं। राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा उन्हें आह्लादित करती है। उनकी कविताएँ मजदूर वर्ग का व्याख्यान हैं। वह दलित और असहाय लोगों के लिए सहजता का भाव रखते हैं। उनकी कविताओं में आम जन जीवन की पीड़ा और दर्द को साफ-साफ महसूस किया जा सकता है। वह सामाजिक रिश्तों को बहुत बारीकी से प्रस्तुत करते हैं।
प्रकृति और देश प्रेम की अजस्र धारा बहानेवाले लोकप्रिय कवि ‘निशंक’ की कविताओं के बिंब दरशाती एक पठनीय पुस्तक।
ISBN: 9789390315147
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अति सूक्ष्म ऐन्द्रिक अनुभूतियों की कविताओं का मजमूआ है ‘इतने पास अपने’। यह संग्रह इस बात का परिचायक है कि शमशेर बहादुर सिंह की कविताएँ रूप और सौन्दर्य की अनुभूतियों में खोती नहीं, बल्कि श्रम से जुड़कर जीवन का यथार्थ बताते हुए कविता के शिखर पर पहुँचती
हैं।दूसरा सप्तक से चर्चित हुए कवि शमशेर बहादुर सिंह को कभी अज्ञेय ने ‘कवियों का कवि’ कहा था और हिन्दी कविता जगत में उनकी पहचान शमशेरियत से हुई थी। इस शमशेरियत की बानगी देखिए—‘बात बोलेगी, हम नहीं, भेद खोलेगी बात ही।’ यह पंक्ति समकालीन कविता का मुहावरा बन चुकी है। इसमें सन्देह नहीं कि शमशेर हमारे समय के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपनी लम्बी काव्य-यात्रा में हिन्दी कविता को समृद्ध किया है। उनकी कविताएँ कवि की प्रतिबद्धता और जिजीविषा का प्रमाण प्रस्तुत करती-सी प्रतीत होती हैं।
प्रकृति-प्रेम और मानवीय रूप-सौन्दर्य शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं के केन्द्र बिन्दु हैं।
Subhadra Samagra
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Subhadra Kumari Chauhan
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Mera Ujar Pados
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Dinesh Jugran
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- Description: ‘मेरा उजाड़ पड़ोस’ दिनेश जुगरान का चर्चित काव्य-संग्रह है। संग्रह की कविताएँ हमारे आज के आस्थाहीन समय के सत्य और संकट को, जिसमें जीवन-मूल्य पूरी तरह अपनी क़दरो-क़ीमत खो चुके हैं, एक अत्यन्त प्रभावशाली भाषा और मुहावरे में परिभाषित करती हैं। इनमें उस शफ़्फ़ाक़ और बेहिस दुनिया की परतें खुलकर सामने आती हैं जिसमें 'होशियार लम्हों' की 'साज़िश' के चलते, यह एहसास कि 'ज़हरीले बीज, टूटे फावड़े और/बिना धार की खुरपियों से/नई क्यारियाँ कैसे बनेंगी', एक गहरी उदासी और असहायता का बोध छोड़ जाता है। लेकिन यह हार मान लेनेवालों की कविताएँ नहीं हैं। इनका सरोकार ज़िन्दगी से है जहाँ हार-जीत साथ-साथ चलते हैं। दुनिया का बिगाड़, दिनेश जुगरान पर भी इस तरह असरअन्दाज़ होना चाहता है कि वह भीड़ का हिस्सा और ख़ुद अपना तमाशा हो जाएँ, लेकिन इससे उनकी ज़िन्दगी के लिए शिद्दत और गर्मजोशी कम नहीं होती। वह कहते हैं—'मैंने अभी तक/हार नहीं मानी है/जीना चाहता हूँ/अपना ही किरदार/धरती को रख लिया है/अपनी ज़बान पर/और पहाड़ों की धड़कनों को/पहन लिया है अपनी साँसों में।' दिनेश जुगरान की कविता हमें अपने अन्तराल तक देखने की शक्ति प्रदान करती है और लगता है हम किसी जादुई गोले में अपनी ज़िन्दगी के अन्तर्विरोधों से रू-ब-रू होते हुए उन रहस्यों तक पहुँच रहे हैं जिन पर किसी कारणवश अभी तक पर्दा पड़ा हुआ था। वे कविताओं के लिए ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की पड़ताल करते हुए, उसका अतिक्रमण करने का प्रयास भी करते हैं। कविता दिनेश जुगरान के लिए किसी बदलाव का नारा नहीं, व्यक्ति के स्वतंत्र होने का एहसास है। उनका लहज़ा, ख़ुद से बात करने का, और कविता का परिदृश्य एक बड़ी दुनिया के उजाड़ होने का ख़तरा और वह कुछ महत्त्वपूर्ण, जो उसके विरोध में किए जाने से रह गया, जिसका किया जाना अब पहले से भी ज़्यादा ज़रूरी मगर दुश्वार है। कविता तब होती है जब शब्द पहचाने अर्थ से बाहर जाकर नए जीवन-सत्यों को पारदर्शिता के साथ सामने रख पाएँ। दो वाक्यों के बीच की ख़ामोशी ही कभी-कभी वह रहस्यात्मकता होती है जिसे समझने में उम्रें बीत जाती हैं। जीवन की हर यात्रा दिनेश जुगरान के भीतर से गुज़रकर किसी बिम्ब, उपमा या प्रतीक में रूपान्तरित होती, ऐसे विरोधाभासों का सामना कराती है, जो लगता है किसी और तरह से व्यक्त कर पाना सम्भव नहीं हो सकता। जैसे मैं देख और समझ सकता हूँ, उस एक मछली को जो ‘पानी से ऊपर उठाकर मुँह’ किसी को पुकारना चाहती है; जान सकता हूँ, उस ‘अज्ञात भय’ के टुकड़े को जो ‘उन डरी हुई तितलियों में/शामिल हो गया है/जो पहाड़ों से/नीचे गिर रही हैं।’ ‘आने से पहले ही चुपचाप/गुज़र जाता है लम्हा’ के अनुभव का शरीक, मैं महसूस कर सकता हूँ—‘मेरी डूबी हुई नाव का/सबसे मज़बूत हिस्सा/मेरी हथेलियों में/अभी भी चिपका हुआ है।’ या ‘सूर्योदय और सूर्यास्त का/फ़ासला’ ‘किस प्रकार पिता के माथे की लकीरों में/नापा जा सकता है’, और कैसे ‘बचपन के रहस्य/अन्दर ही अन्दर जकड़ गए हैं/चेहरे और शब्दों के दायरे/अब मुझे बाँध नहीं पाते/मेरे अन्दर की शीशे की खान/चूर-चूर हो चुकी है।’ जब वह कहते हैं—‘उसके नन्हे आँसू/एक दरिया छीनकर ले गया है’ तो जो मर्म उत्पन्न होता है, वह किसी दूसरी शब्दावली में कल्पना कर पाना सम्भव नहीं लगता। इसे उनकी भाषा पर अद् भुत पकड़ भी कहा जा सकता है और ज़िन्दगी की असलियत की गहरी समझ भी। उनकी भाषा और मुहावरा आनेवाले समय में लिखी जानेवाली कविता पर, देर तक और दूर तक, असरअन्दाज़ होगा। दिनेश जुगरान अपनी कविता में जिस रूपक का प्रयोग करते हैं, वह उनके दुनिया के अनुभव और निजी सोच के द्वन्द्वात्मक संघर्ष का निचोड़ होता है। आपबीती के जगबीती बनने की प्रक्रिया में निजी जीवन-सत्य व्यक्तिगत सीमाओं का अतिक्रमण कर विराट जीवन-सत्य के विभिन्न रूप रच लेते हैं। संक्षेप में ‘मेरा उजाड़ पड़ोस’ एक ऐसा महत्त्वपूर्ण काव्य-संग्रह है, जो हमारे मुश्किल संकटग्रस्त समय को आईना दिखाते हुए, हमें अपने भीतर के उजाड़ तक देखने की सलाहियत देता है। लगता है—‘हवा के वजन की तरह/लम्हा चेहरे पर उतरता हुआ’ के अन्दाज़ में। —मंज़ूर एहतेशाम
Geet Govind
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Kapila Vatsayan
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केन्दुविल्व (केन्दुली) नामक ग्राम में बारहवीं शती में जन्मे महाकवि जयदेव जगन्नाथ की आराधना से प्राप्त भोजदेव और रमादेवी की सन्तान थे। उत्कल राजा एकजात कामदेव के राजकवि के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने 'गीतगोविन्द’ की रचना की। देवशर्मा की जगन्नाथ की कृपा से प्राप्त पुत्री पद्मावती से उनका विवाह हुआ। वह आन्ध्र के एक ब्राह्मण की पुत्री थी, ऐसी भी आख्यायिका है। जयदेव ने ‘गीतगोविन्द' की उन्नीसवीं अष्टपदी से उसे पुनरुज्जीवित किया, ऐसी भी कथा है। जिस दिन रथयात्रा होती है, यही उन्नीसवीं अष्टपदी—‘प्रिये चारुशीले’ मखमल के कपड़े पर लिखकर जगन्नाथ के हाथों दी जाती है।
महीपति ने ‘भक्तविजय' में जयदेव को व्यास का अवतार कहा है। विश्व-साहित्य में राधा-कृष्ण के दैवी प्रेम पर आधारित भाव-नाट्य के रूप में यह एक अप्रतिम रस काव्य है। इस नृत्यनाट्य में पद्मावती राधा की और जयदेव कृष्ण की भूमिका करते थे और वह मन्दिर में खेला जाता था। दोनों केरल में गए और यह काव्य प्रस्तुत किया, ऐसा उल्लेख है। चैतन्य सम्प्रदाय के अनुयायी ‘गीतगोविन्द’ को भक्ति का उत्स मानते हैं। जगन्नाथ मन्दिर के एक शिलालेख के अनुसार देव सेवकों को प्रति संध्या जगन्नाथ के आगे यह नृत्यगायन करने का आदेश दिया गया है। इस काव्य में सहजयान बौद्ध प्रभाव का सूक्ष्म दर्शन होता है : प्रज्ञा और उपाय तत्त्व ही राधा और कृष्ण हैं। राधा-कृष्ण का मिलन इस काव्य में जीव-ब्रह्म के मिलन का प्रतीक है—सुमुखि विमुखिभावं तावद्विमुंच न वंचय। जयदेव के नाम से बंगाली पद मिलते हैं। ‘गुरुग्रन्थ साहब’ में और दादूपंथी साधकों के पद-संग्रह में भी जयदेव की बानी है। राजस्थानी में भी जयदेव के पद मिले हैं।
भारतीय भाषा परिषद् ने दिनांक 18-19 मई, 1980 को ‘गीतगोविन्द’ संगोष्ठी आयोजित की थी। उसमें पढ़े गए बंगाली, मराठी, ओड़िया, मलयाली, गुजराती, हिन्दी-भाषी विद्वानों के निबन्धों और भाषणों का हिन्दी अनुवाद, इस विषय की विशेषज्ञा, डॉ. कपिला वात्स्यायन की भूमिका के साथ प्रस्तुत है।
Samanantar
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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Description:
‘समानान्तर’ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा अनूदित विश्व-काव्य की श्रेष्ठ कृतियों का संकलन है।
इस पुस्तक में एक तरफ़ जहाँ हमें—पुर्तगीजी, स्पेनिश, अंग्रेज़ी, जर्मन, फ़्रेंच, अमरीकी, चीनी, पोलिश एवं भारतीय भाषाओं में मलयालम की अछूती भावभूमि और नवीन भंगिमाओं वाली कविताएँ मिलती हैं तो दूसरी तरफ़ डी.एच. लारेंस की वे कविताएँ भी जो यूरोप और अमरीका में बहुत लोकप्रिय नहीं हो सकीं, लेकिन जिनका राष्ट्रकवि दिनकर जी ने चयन ही नहीं, बल्कि सरल भाषा-शैली में हिन्दी में अनुवाद भी किया और जो भारतीय चेतना के आसपास चक्कर काटती हैं।
अनूदित होते हुए भी नितान्त मौलिक प्रतीत होनेवाली कालजयी कविताओं का एक अनूठा संकलन है ‘समानान्तर’।
Siddharth Aur Gilahari Chayan
- Author Name:
K. Satchidanandan
- Book Type:

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Description:
गहरी करुणा, वैचारिक परिपक्वता और संसार को मनुष्यों समेत हर जीव के लिए एक उदार खुली जगह बनाने की मंशा से युक्त के. सच्चिदानन्दन की ये कविताएँ हमें एक बड़े रचनाकार का भावप्रवण सान्निध्य उपलब्ध कराती हैं।
के. सच्चिदानन्दन मलयालम भाषियों के लिए जितने अपने हैं, उतने ही हिन्दी भाषी पाठकों के भी हैं। अनामिका अनु द्वारा संकलित-अनूदित यह संग्रह उनकी कविता-यात्रा का अगला चरण है। वे ऐसे कवि हैं जो न अपने फ़ॉर्म को पुराना पड़ने देते हैं, न ही अपनी दृष्टि को। भीतर और बाहर की अपनी यात्राओं और कला-साहित्य के विभिन्न अनुशासनों से अपने लगाव के चलते वे अपनी कविता को लगातर नई करते रहते हैं। उन्हीं के शब्दों में : ‘मेरी कविता एक संवाद है जो मैं अपने से, दूसरों से, प्रकृति से और सृष्टि से अनवरत करता रहता हूँ। आधी सदी से भी ज़्यादा समय से मैं कविता लिख रहा हूँ, कविता का अनुवाद भी करता रहा हूँ, कविता के बारे में लिखता भी रहा हूँ, फिर भी हर नई कविता के सम्मुख मैं एक ‘बिगिनर’ की तरह ही प्रस्तुत होता हूँ। हर नई कविता में अपने अनुभव को व्यक्त करने के लिए मुझे नए सिरे से सही शब्दों और उपयुक्त शिल्प की तलाश करनी होती है।’
इस संकलन की कविताएँ अपनी कथ्यगत विविधता और संवेदना की व्यापक परिधि के साथ पुन: हमें उनकी कविता के विराट लोक में ले जाती है जहाँ दु:ख के कमरे हैं, और देशों की सीमाएँ उलांघती मानवीयता के विशाल पंख भी।
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