Vishwa Patal Par Hindi
Author:
Dr. Surya Prasad DixitPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
हिन्दी भारत की एक राष्ट्रीय भाषा है, संघ की राजभाषा है और एक विश्वभाषा भी है। समस्त संसार में वह आज करोड़ों लोगों द्वारा समझी जाती है। उसकी व्याप्ति लगभग डेढ़ सौ देशों में है। वह लगभग एक दर्जन देशों में जनभाषा के रूप में प्रचलित है। इन देशों को तीन कोटियों में विभाजित करना तर्कसंगत होगा—(1) भारत के पड़ोसी राष्ट्र, (2) भारतवंशी राष्ट्र, (3) आप्रवासी-बहुल राष्ट्र।</p>
<p>‘विश्व पटल पर हिन्दी’ का दूसरा महत्त्वपूर्ण पक्ष है, विश्वबोध। हिन्दी का सम्बन्ध संस्कृत, पालि और भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अरबी, फ़ारसी, पस्तो, तुर्की, अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, स्पेनिश, डच, पुर्तगाली, इटैलिक आदि कई भाषाओं से है। इस भाषा ने हज़ारों शब्दों का आदान-प्रदान किया है। हिन्दी-सेवियों ने सैकड़ों विश्वविख्यात ग्रन्थों के अनुवाद किए हैं। दर्जनों विश्व विभूतियों पर ग्रन्थ लिखे हैं। कई यात्रा-संस्मरण लिखे हैं तथा विश्व की घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं। हिन्दी ने अनेक विश्वस्तरीय विचारधाराओं को आत्मसात् किया है तथा देश-देशान्तर तक अपनी ‘भारत विद्या’ का निर्यात भी किया है। हिन्दी की रूप-रचना अर्थात् व्याकरण, शब्दकोश, पाठ्यक्रम, शोध, समीक्षा एवं सर्जनात्मक लेखन में सैकड़ों विदेशी विद्वानों की सहभागिता रही है।</p>
<p>इधर हिन्दी फ़िल्मों, धारावाहिकों, पत्र-पत्रिकाओं और मीडिया कार्यक्रमों ने उसे विश्व के कोने-कोने में पहुँचाया है। कम्प्यूटर, इंटरनेट से उसका काफ़ी परिविस्तार हुआ है। लेखक ने दो दशक पूर्व इस ‘विश्व पटल पर हिन्दी’ की दिशा में पहल की थी। इसे अभी और व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। इस प्रयोजन पूर्ति में इस पुस्तक की अपनी एक विशिष्ट उपयोगिता है।
ISBN: 9788180318047
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Nagari-Nagari,Dware-Dware
- Author Name:
Prempal Sharma
- Book Type:

- Description: "यात्रा-वृत्तांत साहित्य की बड़ी जीवंत विधा है, जिसमें पहाड़ों की गूँज, नदियों की कल-कल और पक्षियों की मीठी चह-चह की तरह जीवन और जीवन-रस छलछलाता नजर आता है। इनमें हमारा समय है तो मानव-आस्था की सुदीर्घ परंपरा भी। यात्रा-वृत्तांत एक तरह से कालदेवता की अभ्यर्थना भी हैं, जो पल में हमें कल से आज और आज से कल तक हजारों वर्षों की यात्रा कराके एकदम ताजा एवं पुनर्नवा बना देते हैं। प्रस्तुत यात्रा पुस्तक में दर्शनीय तीर्थस्थलों की प्रामाणिक जानकारी दी गई है, जिससे वे सभी सुरम्य यात्रा-स्थल अपनी पूरी प्राकृतिक सुंदरता, भव्यता और ऐतिहासिक गौरव के साथ पाठक की स्मृति में बसने की ताकत रखते हैं। प्रस्तुत पुस्तक ‘नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे’ के यात्रा-वृत्तांतों की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये मन को बाँध लेते हैं। पाठक इन्हें पढ़ना शुरू करे तो पूरा पढ़े बिना रह नहीं सकता है। पाठक को लगता है, वह इन्हें पढ़ नहीं रहा, बल्कि चलचित्र की भाँति देख रहा है; लेखक के साथ-साथ यात्रा कर रहा है। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में पाठकों का अपार प्यार-दुलार पाने के बाद अब ये यात्रा-संस्मरण पुस्तक रूप में पुनः पाठकों के सामने उपस्थित हैं। पत्र-पत्रिकाओं के पाठकों से इतर पाठक-बंधु भी अब इनका रसास्वादन सहजता से कर सकेंगे। पाठकों के हृदय में उतरकर अपना स्थान बना लेनेवाले यात्रा-संस्मरणों की रोचक, पठनीय-मननीय पुस्तक।
Vichar Ka Kapda
- Author Name:
Anupam Mishra
- Book Type:

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Description:
‘‘क़ायदे से अनुपम मिश्र न लेखक थे, न पत्रकार। वे साफ़ माथे के एक आदमी थे जो हर हालत में माथा ऊँचा और साफ़ रखना चाहते थे। उनकी निराकांक्षा उनकी बुनियादी बेचैनियों को ढाँप नहीं पाती थी। ये बेचैनियाँ ही उन्हें कई बार ऐसे प्रसंगों, व्यक्तियों, घटनाओं, वृत्तियों को खुली नज़र देखने-समझने की ओर ले जाती थीं। उनकी संवेदना में ऐसी ऐन्द्रियता थी कि वे विचार का कपड़ा भी पहचान लेती थीं। कुल मिलाकर अनुपम मिश्र की अकाल मृत्यु के बाद शेष रह गई सामग्री में से किया गया यह संचयन हिन्दी में सहज, निर्मल और पारदर्शी, मानवीय गरमाहट से भरे गद्य का विरल उपहार है। हमें मरणोत्तर अनुपम मिश्र को उनकी भरी-पूरी जीवन्तता में प्रस्तुत करने में प्रसन्नता है।”
—अशोक वाजपेयी
The Prince
- Author Name:
Niccolo Machiavelle
- Book Type:

- Description: वेत्तोरी को लिखे पत्र में मैकियावेली यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ‘इस छोटी-सी किताब को जब पढ़ा गया तो यह देखा गया होगा कि मैंने इन 15 सालों के दौरान शासन कला का कितना अध्ययन किया है। मैं न कभी सोया, न कभी निष्क्रिय रहा। हर आदमी इच्छा रखता है कि दूसरों की सेवा करके अनुभव प्राप्त किये व्यक्ति को अपनी सेवा में रखे। मेरी विश्वसनीयता पर किसी को कोई शक़ नहीं होना चाहिये, क्योंकि मैंने जो विश्वास एक बार जीता, उसको हमेशा बनाए रखा, तोड़ना नहीं सीखा। मैं अपने मालिक का भरोसेमंद और ईमानदार हूँ लेकिन उसकी फ़ितरत मैं नहीं बदल सकता। मेरी ग़रीबी मेरी ईमानदारी की गवाह है।’ यद्यपि लगभग चार शताब्दियों का ध्यान ‘द प्रिंस’ पर केंद्रित रहा है परंतु इसकी कुछ समस्याएँ अभी भी बहस के योग्य और दिलचस्प हैं क्योंकि शासकों और शासितों के बीच अनंत समस्याएँ हैं। यही आचार-विचार मैक्योवली के समकालीनों के भी हैं लेकिन नहीं कहा जा सकता कि यह सब नैतिकता यूरोप की पुरानी सरकारों में भी रही होगी। हमें आदर्श बल की बजाए उपलब्ध सामग्री पर भरोसा करना चाहिए। मैक्योवली जिस तरह से सरकार और आचरण के सिद्धांतों का वर्णन करते हैं, उससे घटनाएँ और व्यक्ति दिलचस्प हो जाते हैं।
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