Dhalti Saanjh Ke Musafir
Author:
Pratapmal DevpuraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
एक दिन जब आकाश साफ़ हो तब किसी ऊँचे स्थान से सुबह के समय उगते सूरज की छटा देखें। फिर उसी स्थान से सायंकाल में भी ढलते सूरज की छटा देखें। ढलता सूरज उगते सूरज से कम प्रकाशवान नहीं होता। यह बात वृद्धावस्था के लिए भी सत्य है।</p>
<p>बुढ़ापा आते ही निराशाजनक स्वर सुनाई पड़ते हैं। वास्तविकता यह है कि वृद्धावस्था कोई रोग नहीं है, शरीर की एक प्रक्रिया है, प्राकृतिक क्रम को हमें स्वीकार कर लेना पड़ता है।</p>
<p>वृद्धावस्था में अनेक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव आते हैं जिनके साथ तालमेल बिठाना आवश्यक है। हर व्यक्ति की परिस्थितियों से तालमेल बिठाने की क्षमता भी अलग-अलग होती है। इस अवस्था में पग-पग पर अनिश्चितता भी होती है।</p>
<p>बुज़ुर्गों में स्वास्थ्य की समस्याएँ जटिल होती हैं। वे स्वयं अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक से नहीं समझते हैं क्योंकि कई लोगों में एक से अधिक बीमारियाँ मौजूद होती हैं। इसलिए उनका इलाज भी कठिन होता है। अनेक औषधियों के सेवन से उनके दुष्प्रभाव भी उन बीमारियों में सम्मिलित हो जाते हैं। अनेक बुज़ुर्ग इलाज का ख़र्च वहन करने में अक्षम होते हैं, तब बुज़ुर्गों को और कठिनाइयाँ हो जाती हैं। नियमित एवं सादा खान-पान, स्वास्थ्य के प्रति चेतना, सुबह-शाम टहलना, योग, व्यायाम आदि में नियमित रहना रोग निराकरण में बहुत मददगार होता है। प्रत्येक बुज़ुर्ग को दूसरे बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए समय भी निकालना चाहिए जिससे उनको राहत मिलेगी।</p>
<p>आपकी जीवन-संध्या सुखद होगी या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने इस जीवन संध्या के लिए सार्थक योजना बनाई थी या नहीं।</p>
<p>इस पुस्तक लेखन का उद्देश्य यह है कि पाठकों में इस अवस्था के बारे में जागरूकता आए।
ISBN: 9789382193012
Pages: 180
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
मार्क्सवाद और समकालीन भाषा-विज्ञान के सम्बन्धों के मद्देनज़र, यह सवाल किया जा सकता है कि क्या ‘मार्क्सवादी भाषा-विज्ञान’ जैसी कोई चीज़ मौजूद है? और इसका उत्तर देने में कोई हिचक या कठिनाई नहीं महसूस होती क्योंकि मार्क्सवाद मानव-सभ्यता के भौतिक-आत्मिक विकास का इतिहास प्रस्तुत करते हुए मानव-भाषाओं की व्याख्या के प्रति एक सुनिश्चित ‘अप्रोच’ प्रस्तुत करता है और एक सुनिश्चित पद्धति लागू करते हुए कुछ सुनिश्चित स्थापनाएँ प्रस्तुत करता है।
एक सामाजिक एवं विचारधारात्मक परिघटना के रूप में, भाषा की प्रकृति और प्रकार्यों पर मार्क्सवादी चिन्तन को 1920 और 1930 के दशक में सोवियत भाषा-वैज्ञानिकों ने बहुपक्षीय रूप में आगे बढ़ाया। 1929 में प्रकाशित वी.एन. वोलोशिनोव की पुस्तक मार्क्सवाद और भाषा का दर्शन पहली ऐसी पुस्तक थी जिसमें भाषा-विज्ञान के कुछ प्रमुख आधारभूत प्रश्नों पर मार्क्सवादी विश्व-दृष्टिकोण और पद्धति से विचार करने का प्रयास दिखाई देता है। वोलोशिनोव ने विचारधारा और भाषा के प्रति सॉस्युर के संरचनावाद और विटगेंस्टाइन के भाषायी दर्शन से सम्बद्ध परम्पराओं से सर्वथा अलग ‘अप्रोच’ अपनाया तथा संकेत-विज्ञान और विमर्श-सिद्धान्त की ऐसी प्रणालियाँ प्रस्तावित कीं जो मार्क्सवादी साहित्यिक आलोचना को कई धरातलों पर समृद्ध बनाने की सम्भावना से युक्त थीं। मार्क्सवाद और भाषा का दर्शन पहला संस्करण 1929 में और दूसरा संस्करण 1930 में प्रकाशित हुआ। इसमें वोलोशिनोव ने भाषा और विचारधारा के बीच के सम्बन्धों का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया, वह अपने कई विवादास्पद उपप्रमेयों और उपांगों के बावजूद, भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में मार्क्सवाद को लागू करने का अभूतपूर्व उदाहरण था। न केवल दशकों बाद तक, मार्क्सवादी भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में मार्क्सवादी भाषा-विज्ञान इसे एक सन्दर्भ-बिन्दु के रूप में देखता रहा और इसके द्वारा प्रस्तुत प्रस्थापनाओं तथा उठाए गए अनसुलझे प्रश्नों से जूझता रहा, बल्कि आज भी यह प्रक्रिया जारी है।
Janjatiya Navjagran
- Author Name:
Rahul Singh
- Book Type:

- Description: ‘जनजातीय नवजागरण’ पुस्तक जनजातीय यानी आदिवासी सन्दर्भों के इतिहास में बिखरे पड़े तथ्यों को जुटाकर जनजातीय नवजागरण का एक नैरेटिव खड़ा करती है; बांग्ला, मराठी और हिन्दी क्षेत्रों के बहुश्रुत नवजागरणों के बरक्स जनजातीय नवजागरण की एक सैद्धान्तिकी निर्मित करती है; और प्रादेशिक नवजागरणों से जनजातीय नवजागरण को अलगाने के सूत्र प्रस्तावित करती है। इसके लिए यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और रानी विक्टोरिया के अधीन औपनिवेशिक भारत में हुए जनजातीय सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों की गहरी पड़ताल करती है और उससे हासिल निष्कर्षों को साझा करती है।औपनिवेशिक दबावों के विरुद्ध जनजातीय समूह कैसे संगठित होकर प्रतिरोध और परिवर्तन की इबारत लिखते हैं? कम्पनी राज और अंग्रेजी राज के बढ़ते अमानवीय दमन के समान्तर वे कैसे अपनी रणनीति में बदलाव करते चले जाते हैं? ऐसे अनेक प्रश्नों पर विचार करते हुए यह पुस्तक उजागर करती है कि शेष भारत की तुलना में आदिवासी समुदायों के लिए अंग्रेजी राज एक गहन सभ्यतागत संकट बनकर आया था जो उनके लिए अस्तित्वगत संकट का सबब बन गया था। उनका अभूतपूर्व प्रतिरोध इसी संकट की तीव्रतर प्रतिक्रिया था। उसका आधार थी उनकी स्वाधीनता की चेतना जो उनकी सहजीवी-समावेशी जीवनदृष्टि, सदियों पुराने सामुदायिक अनुभवों और परम्पराओं से उपजी थी, न कि किसी कथित आधुनिक विचार अथवा संस्थान के सम्पर्क से। इस ऐतिहासिक परिघटना की पूरी प्रक्रिया को यह पुस्तक उसकी सामाजिकता और ऐतिहासिकता के साथ दर्ज करती है। अंग्रेजी राज ने आदिवासी समुदायों की पूरी विरासत को जिस व्यवस्थित तरीके से ध्वस्त किया उसकी एक बानगी झारखंड के सन्दर्भ में इस पुस्तक में देखी जा सकती है। तथ्यों को विमर्शों के ताने-बाने में यह पुस्तक बहुत सावधानीपूर्वक पिरोती है। वस्तुतः यह एक विचारोत्तेजक किताब है, जो इतिहास की प्रचलित समझदारी को चुनौती देते हुए विमर्श की एक नई जमीन विकसित करती है। यह अकादमिक और गैर-अकादमिक दोनों समूहों के लिए जरूरी है।
Vidyalaya Utsav
- Author Name:
Acharya Mayaram 'Patang'
- Book Type:

- Description: "‘उत्सव’ जीवन में उत्साह का संचार करते हैं। जिस समाज में उत्सव जितने जोश और आनंद से मनाए जाते हैं, वह समाज उतना ही जीवंत माना जाता है। भारतवर्ष अत्यंत प्राचीन देश है। यहाँ अवतारों, वीरों, धर्मगुरुओं की संख्या सहस्रों तक जाती है। विद्यालयों में सभी की जयंती मनाना संभव नहीं है। अनेक पर्व ऋतु-परिवर्तन से जुड़े हैं, अनेक पर्व किसी के बलिदान या महान् घटनाओं से जुड़े हैं। सच तो यह है कि हर तिथि और हर दिन का कुछ-न-कुछ महत्त्व है। हमारे विद्यालयों में अधिकांश शिक्षक अनेक उत्सवों की जानकारी से ही अनभिज्ञ होते हैं। कुछ जानकारी होते हुए भी बोलने में संकोच करते हैं। कई नए शिक्षक बोलना चाहते हैं, परंतु उन्हें तत्संबंधी विषय की जानकारी उपलब्ध नहीं होती। इन सब कारणों पर विचार करके यह आवश्यकता अनुभव हो रही थी कि एक ऐसी पुस्तक होनी चाहिए, जो वर्ष भर में मनाए जानेवाले प्रमुख त्योहारों की जानकारी शिक्षकों तथा छात्रों को उपलब्ध करा सके। विविध कक्षाओं के स्तर के अनुसार शिक्षक इस पुस्तक की सहायता से छात्रों को लिखवाकर या याद करवाकर सभा में बोलने के लिए तैयारी करवा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि ये उत्सव वे नहीं हैं, जो विद्यालयों में मनाए जाते हैं, बल्कि ये ऐसे उत्सव हैं, जो मनाए जाने चाहिए। आप अपने स्थान, स्तर, विश्वास तथा अनुकूलता के आधार पर जो मनाना चाहें, मना सकते हैं। इस कार्य में पुस्तक आपकी सहायता करेगी। आशा है, शिक्षक एवं छात्र इससे लाभान्वित होंगे। "
1000 Computer-Internet Prashnottari
- Author Name:
Vinay Bhushan
- Book Type:

- Description: "15 फरवरी, 1946 को ' एनियाक ' नामक कंप्यूटर दुनिया के सामने पहली बार आया था । तब से लेकर आज तक हमारे जीवन में कंप्यूटर का महत्व बढ़ता ही जा रहा है । इसके आकर्षण से क्या बच्चे, क्या बड़े-कोई नहीं बच पा रहा है । गणना करनी हो, गीत-संगीत सुनना हो, गप करना हो या फिर शोध करना हो, सबके लिए अपनी सेवाएँ देने हेतु सदैव तत्पर रहता है कंप्यूटर । इस पुस्तक में 1000 प्रश्नों के माध्यम से कंप्यूटर से संबंधित अनेक जानकारियाँ दी गई हैं । कंप्यूटर का आविष्कार, कंप्यूटर की पीढ़ियाँ, डिजिटल कंप्यूटरों का वर्गीकरण, कंप्यूटर : एक परिचय, सेकेंडरी मेमोरी, इनपुट/आउटपुट उपकरण, इंटरफेस, सॉफ्टवेअर, ऑपरेटिंग सिस्टम, डाटा संचार (कम्यूनिकेशन), कंप्यूटर नेटवर्क व्यवस्था, कंप्यूटर वाइरस एवं सुरक्षा प्रबंधन, सुपर कंप्यूटर, इंटरनेट, ई-मेल, एफ.टी.पी. और टेलनेट, कंप्यूटर और भारत तथा कंप्यूटर और कैरियर जैसे अध्यायों के द्वारा इस पुस्तक में कंप्यूटर की दुनिया की रोचक व रोमांचक यात्रा कराई गई है । यह पुस्तक कंप्यूटर के क्षेत्र से संबंध रखनेवालों, छात्रों, इंजीनियरों, शोधार्थियों तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठनेवाले प्रतियोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी है । "
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