Aksharon Ki Kahanee
Author:
Gunakar MuleyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
Aksharon Ki Kahanee-language teaching
ISBN: 9788190271301
Pages: 100
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
The Prophet
- Author Name:
Khalil Gibran
- Book Type:

- Description: मोहब्बत तुम्हारे सिर पर ताज रखती है और तुम्हें सूली पर भी चढ़ा देती है।’’ ‘‘मोहब्बत अपने अलावा तुम्हें कुछ नहीं देती और मोहब्बत अपने अलावा तुमसे कुछ नहीं लेती।’’ ‘‘तुम्हें क़ानून बनाने और उसे लागू करने में कितना मज़ा आता है; लेकिन इससे भी ज़्यादा ख़ुशी तुम्हें उस वक़्त होती है जब तुम उसे तोड़ते हो।’’ ‘‘और अगर कोई ख़ौफ़ है, जिसे तुम मिटाना चाहते हो तो उसकी जगह तुम्हारे अपने ही दिल में है, न कि उस शख़्स के वजूद में, जिससे तुम डर रहे हो।’’ ‘‘हमेशा यही होता आया है कि मोहब्बत अपनी गहराई से बेख़बर रहती है, यहाँ तक कि जुदाई की घड़ी आ जाये।’’
Samkaleen Antarashtriya Sambandh
- Author Name:
Vivek Ojha
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक अन्तरराष्ट्रीय राजनीति और सम्बन्धों की गतिशील प्रकृति को ध्यान में रखकर समसामयिक सन्दर्भों और घटनाक्रम को अद्यतन रूप में प्रस्तुत करती है। पुस्तक में भारत की विदेश नीति की उभरती प्रवृत्तियों, विकसित-विकासशील देशों की राजनीति को प्रभावित करनेवाले कारकों और पोस्ट कोविड विश्व-व्यवस्था की सम्भावित प्रकृति को विस्तार से समाहित किया गया है। इसमें उन सभी पहलुओं को तथ्यात्मक और विश्लेषणात्मक तौर पर प्रस्तुत किया गया है जो सिविल सेवा और विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इस पुस्तक को समावेशी बनाने का प्रयास करते हुए पाठ्यक्रम के सभी महत्त्वपूर्ण विषयों को प्रासंगिक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Bihar Ke Vyanjan – Sanskriti Aur Itihas
- Author Name:
Ravishankar Upadhyay
- Book Type:

- Description: बिहारी खानपान का बेहद समृद्ध इतिहास रहा है. मगध साम्राज्य में जब बिहार लंबे समय तक सत्ता का केंद्र रहा तो यहां से शासन करनेवाले महान सम्राटों ने यहां के व्यंजनों को राज्याश्रय प्रदान किया. इसी कारण प्राचीन राजगृह के इर्दगिर्द आज भी व्यंजनों पर निर्भर कस्बे मौजूद हैं, चाहे वह खाजा के बेमिसाल स्वाद वाला सिलाव हो या पेड़ा बनाने वाला निश्चलगंज. गया में चावल और तिल के साथ प्रयोग कर तिलवा-तिलकुट से लेकर अनरसा जैसा प्रयोगधर्मी स्वाद बनाया गया. प्राचीन पाटलिपुत्र यानी आज का पटना देख लीजिए. यहां पर पुराने शहर में खुरचन, थोड़ी दूर पर बाढ़-बख्तियारपुर और धनरूआ में लाई, तो मनेरशरीफ में नुक्ती वाले लड्डू हैं. बड़हिया में रसगुल्ले हैं. भोजपुर इलाके के उदवंतनगर में खुरमा, ब्रह्मपुर में गुड़ई लड्डू, गुड़ की ही जलेबी तो बक्सर में सोनपापड़ी है. थावे, गोपालगंज चले जाइए तो वहां पर आपको पेडुकिया मिलेगा. मिथिला के दही- चूड़ा से लेकर अरिकंचन और बेसन के गट्टे की सब्जी के क्या कहने! ये उदाहरण तो बस बानगी हैं, आप राज्य के जिस किसी हिस्से में चले जाइए वहां पर आपको कोई न कोई बेमिसाल स्वाद मिल जाएगा. इस किताब में आपको बिहार की स्वाद परंपरा का लिखित इतिहास और सांस्कृतिक प्रयोग के अनुभव पढ़ने को मिलेंगे जो चौथी शताब्दी से शुरू होकर आजतक जारी है.
Prakriti Ka Dwandwavad
- Author Name:
Friedrich Engels
- Book Type:

-
Description:
उन्नीसवीं सदी के आरंभ में, और उससे भी अधिक मध्यकाल में, गणित, ज्योतिष, भौतिकी, रसायन तथा जीव-विज्ञान के क्षेत्र में आविष्कारों और उपलब्धियों का एक तांता-सा लग गया था। नए तथ्यों और प्राकृतिक नियमों की स्थापना हुई, नए सिद्धांतों तथा नई परिकल्पनाओं का बीजारोपण हुआ, और विज्ञान के नए उपांग अस्तित्व में आए।
एंगेल्स ने दिखाया कि प्राकृतिक विज्ञान की उस विजय-यात्रा में तीन सर्वोपरि उत्कर्ष हैं–जैव कोशिका की खोज, ऊर्जा की अविनाशिता, रूपांतरण के नियम की खोज और डार्विनवाद। सन् 1838 तथा 1839 ई. में मत्थियस याकोब श्लेईडैन और थियौडोर श्वान ने वनस्पति एवं पशु कोशिकाओं की एकरूपता सिद्ध की। उन्होंने सिद्ध किया कि कोशिका जीवधारियों की मूल रचना-इकाई है, और उन्होंने आंगिक संरचना के एक सांगोपांग कोशिका सिद्धांत की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने जीव-जगत की एकता को प्रमाणित किया। सन् 1842 और 1847 के बीच के काल में जुलियस मायर, जैम्स जूल, विलियम ग्रोव, एल.ए. कोल्डिंग और हरमान हैल्महोल्ट्ज ने ऊर्जा की अविनाशिता तथा रूपांतरण के नियम की खोज करके इसे प्रमाणित किया। परिणामतः प्रकृति का उद्घाटन एक ऐसी अविरत प्रक्रिया के रूप में हुआ जिसमें द्रव्य की एक प्रकार की सर्वव्यापी गति दूसरे प्रकार में बदलती रहती है। 'प्रकृति का द्वंद्ववाद' में जिन विषयों का समावेश है, उनकी रचना एंगेल्स ने 1873 से 1886 ई. तक के काल में की थी। प्रकृति विज्ञान के इतिहास, विशेषतः पुनर्जागरण से उन्नीसवीं सदी के मध्यकाल तक के इतिहास से, पर्याप्त साक्ष्य लेकर एंगेल्स ने दर्शाया है कि प्रकृति विज्ञान का विकास अंततोगत्वा व्यावहारिक आवश्यकताओं से, उत्पादन से, निर्धारित होता है।
हिन्दी में इस पुस्तक की लम्बे समय से प्रतीक्षा थी लेकिन इसके जटिल पाठ के चलते किसी ने इसके अनुवाद का साहस नहीं किया। विज्ञान और प्रगतिशील सोच के हिमायती गुणाकर मुळे ही ऐसे व्यक्ति थे, जो इस पुस्तक की अहमियत को समझते थे और अनुवाद में इसके साथ न्याय कर सकते थे! कुछ पृष्ठों का जो अनुवाद वे किसी कारणवश नहीं कर पाए थे, वह बाद में कराया गया और पूरी पांडुलिपि को व्यवस्थित किया गया। इस पूरी प्रक्रिया में और पांडुलिपि को प्रकाशन योग्य स्थिति तक लाने में श्रीमती शांति गुणाकर मुळे की भूमिका उल्लेखनीय रही है।
आधारभूत मार्क्सवादी साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह पुस्तक अमूल्य है।
Lachhami Jaggar
- Author Name:
Harihar Vaishnav
- Book Type:

-
Description:
‘लछमी जगार’ की कथा की भाव-भूमि का सम्बन्ध धान उत्पादन-प्रक्रिया के विस्तारित प्रसंग से है, अत: इसका गठन उसी के अनुरूप है। पाठक इस तथ्य की स्वत: पड़ताल के लिए आमंत्रित हैं। निम्न प्रतीकों की जानकारी जो हल्बी भाषी समुदाय के लिए तो स्पष्ट है, किन्तु उनसे इतर पाठकों के लिए इस कथा के सामान्य परिदृश्य को समझने हेतु आवश्यक जान पड़ती है : मेंग का अर्थ वर्षा है तो माहालखी हैं धान और इक्कीस रानियाँ हैं विभिन्न दलहनी-तिलहनी और अन्य मोटे अनाज। इसी तरह गोपपुर है खेत। इस कथा के नायक नरायन राजा की तुलना सूर्य से की जा सकती है जबकि माहादेव (शिव) को बीज-पुरुष के रूप में देखना चाहिए।
यहाँ यह जानना भी आवश्यक होगा कि दण्डकारण्य का पठार धान उत्पादक पूर्व एवं गौण अन्न उत्पादक पश्चिम की सीमा पर स्थित है। गौण अन्न का उत्पादन पहाड़ी भूमि पर तो किया जा सकता है, किन्तु धान के उत्पादन के लिए सम एवं सिंचित भू-भाग का होना आवश्यक है। इसलिए धान उत्पादन ने अपने-आपको मुख्य भूमि में स्थापित किया, जबकि गौण अन्न गाँव की सीमा पर चले गए। नरायन राजा का विवाह पहले गौण खाद्यान्नों (इक्कीस रानियों) के साथ हुआ और उसके बाद धान (माहालखी) के साथ। मिथकीय दृष्टि से यह कथा इस क्षेत्र का जनपदीय इतिहास सिद्ध होती है। और जैसे ही हम कथा के इस बिन्दु को आत्मसात् कर लेते हैं, वैसे ही इस कथा में आए पत्नी-पीड़क प्रसंगों और धान की मिंजाई के प्रसंग के बीच के अन्तर्सम्बन्धों को भी पकड़ने में सफल हो सकते हैं।
इस महाकाव्य का आयोजन बस्तर की महिलाओं के लिए एक पवित्र अनुष्ठान है। वस्तुत: ‘लछमी जगार’ चर्चा की नहीं अपितु महसूस करने की चीज़ है। यह महसूसना इसके भीतर के विभिन्न संस्कारों और उनसे जुड़े विश्वास, जो विभिन्न संस्कारों में सन्निहित भिन्न-भिन्न भूमिकाओं में देखे जा सकते हैं, के साथ एकात्म होकर सहभागी होने में है। कथा में वर्णित कुछ एक घटनाओं का सजीव चित्रण उनकी अभिनय प्रस्तुति के साथ किया जाता है, जिनकी मुख्य भूमिकाओं में स्वयं आयोजक ही होते हैं। इन अनुष्ठानों/संस्कारों को मुख्य एवं गौण, दो श्रेणियों में बाँटकर देखा जा सकता है। भिमा-विवाह (अध्याय 16), आम-विवाह (अध्याय 21) एवं माहालखी का विवाह। (अध्याय 32) इस महाकाव्य की प्रमुख घटनाएँ हैं जो विपुल जन-समुदाय को आकर्षित करती हैं।
Parakram
- Author Name:
Dinesh Kandpal
- Book Type:

- Description: "तोलोलिंग की चोटी पर बीस दिन से भारतीय जवान शहीद हो रहे थे। आखिरी हमले की रात वे दुश्मन के बंकर के बेहद करीब पहुँच गए, लेकिन तभी गोलियों की बौछार हो गई। वे घायल थे, लेकिन वापसी उन्हें मंजूर नहीं थी। शरीर से बहते खून की परवाह किए बिना उन्होंने एक ग्रेनेड दागा और कारगिल में भारत को पहली जीत मिल गई। उसके सामने 100 चीनी सिपाही खड़े थे; गिनती की गोलियाँ बची थीं, लेकिन मातृभूमि का कर्ज चुकाते वक्त उसके हाथ नहीं काँपे और उसने युद्ध के मैदान को दुश्मन सिपाहियों का कब्रिस्तान बना दिया। ये भारतीय सेना की वे युद्ध गाथाएँ हैं, जो आप शायद आज तक नहीं जान पाए होंगे। रणभूमि में कान के पास से निकलती गोलियाँ जो सरसराहट पैदा करती हैं, वही कहानी इस किताब में है। बडगाम में मेजर सोमनाथ शर्मा की कंपनी ने कैसे श्रीनगर को बचाया और सियाचिन में पाकिस्तान के किले को किसने ढहाया, इस पराक्रम के हर पल का ब्योरा यह किताब देती है। सन् 1947 से लेकर करगिल तक भारतीय सैनिकों की वीरता की ये वे सच्ची कहानियाँ हैं, जो बताती हैं कि विपरीत हालात के बावजूद कैसे अपने प्राणों की परवाह किए बिना हमारे सैनिकों ने अदम्य साहस और शौर्य दिखाया। यह उस पराक्रम की झलक है, जो युद्धभूमि में दिखा और आज इस पुस्तक के जरिए आप तक पहुँच रहा है। भारतीय जाँबाजों के शौर्य, साहस, निडरता और राष्ट्रप्रेम का जीवंत प्रमाण है यह कृति ‘पराक्रम’, जो पाठकों को न केवल प्रेरित करेगी, वरन् भारतीय सैनिकों के समर्पण के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक कर देगी।"
Charles Darwin
- Author Name:
Vinod Kumar Mishra
- Book Type:

- Description: This Books doesn’t have a description
Rajkahini-The Princely Tales of Rajasthan
- Author Name:
Abanindranath Tagore
- Rating:
- Book Type:

- Description: Rajkahini-The Princely Tales of Rajasthan is an English translation of Abanindranath Tagore's Bengali classic Rajkahini. It is a collection of nine stories that are replete with episodes and incidents involving the royalty of Rajasthan. Expectedly, therefore, bravery, nobility palace intrigues, wars, skirmishes, feuds betrayal, caste, religion, marriage, motherhood and progeny, all play a dynamic role as the fictionalized social and political history of early Rajasthan is unfurled. Authoring Rajkahini as a literary expression of the legends and tales of the Rajput kings can also be considered a part of the postcolonial action to etch out a narrative that could draw the far part of the nation closer to the Bengali readership.
Dharmon Ki Kataar Mein Islam
- Author Name:
Arun Bhole
- Book Type:

- Description: इसलामी आतंकवाद की दहशत न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के विध्वंस के साथ ही सारी दुनिया में फैल गई थी। उसके कुछ समय बाद भारत में जब नृशंस गोधरा कांड और उग्र गुजरात दंगे हुए, तो लेखक देश और दुनिया के लिए दुश्चिंताओं से ग्रस्त हो गया। उसके गहन इतिहास-बोध और दीर्घकालीन राजनीतिक अनुभव के साथ घटनाओं के घात-प्रतिघात ने जिन विचारों को जन्म दिया, वे ही घनीभूत होकर ‘धर्मों की कतार में इसलाम’ नामक पुस्तक बन गई। जैसा कि पुस्तक के नाम से झलकता है, विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए यह इसलाम के स्वरूप, स्वभाव और उसकी सृजित समस्याओं पर विशेष प्रकाश डालता है। ‘धर्मों की कतार में इसलाम’ में इस बात पर बल दिया गया है कि भारतीय मूल के मुसलमानों का इतिहास सिर्फ हजार-पाँच सौ साल ही पुराना नहीं माना जाएगा, जब से वे लोग मुसलमान बनाए गए या बने थे। उन्हें अपने पूर्वकालीन पुरखों के इतिहास से भी खुद को जोड़ना चाहिए और इस अति प्राचीन देश की शानदार सभ्यता-संस्कृति पर समान रूप से गर्व करना चाहिए। वर्तमान भारत में गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा जैसी गंभीर समस्याएँ केवल मुसलिम समाज तक ही सीमित नहीं, बल्कि सारे देशवासी इनसे परेशान हैं। इसलिए मुसलमानों के लिए भी ऐसे सार्वजनिक और राष्ट्रीय महत्त्व की समस्याओं पर एक मुसलमान के बजाय एक हिंदुस्तानी के नाते विचार और यत्न करना लाभदायक होगा। इसलाम को सही रूप में जानने-समझने के लिए एक जरूरी पुस्तक।
Mere Yuvjan Mere Parijan
- Author Name:
Ramesh Gajanan Muktibodh
- Book Type:

- Description: मुक्तिबोधजी अपनी रचनाओं के प्रति कुछ लापरवाह ज़रूर रहे हों किन्तु इसके विपरीत वे लेखक-मित्रों से प्राप्त पत्रों को सहेजकर सुरक्षित रखने में काफ़ी सचेत थे। संग्रह के इन पत्रों की अवधि 28 वर्ष के अन्तराल में फैली हुई है। संग्रह का पहला पत्र 11.3.1936 को प्रभागचन्द्र शर्माजी ने तथा अन्तिम पत्र विनोद कुमार शुक्लजी ने 7.4.1964 को लिखा है। 43 लेखकों के कुल 306 पत्र संग्रहीत हैं। पुस्तक की पांडुलिपि तैयार करते समय नेमिजी के पत्रों की खोज करने पर संयोगवश वे प्राप्त हो गए। अन्यथा उनके पत्रों के बिना यह पुस्तक अपूर्ण-सी रहती। परिशिष्ट में मुक्तिबोधजी के सहपाठी अन्य मित्रों के 15 पत्र हैं। इनकी एक ऐतिहासिकता है। पुस्तक में मात्र 6 पत्र मराठी में लिखे हैं। इनमें एक पत्र प्रभाकर माचवेजी ने 27.12.1939 को पेंसिल से लिखा है जो अंग्रेज़ी से शुरू होकर मराठी में समाप्त होता है। बीच-बीच में अंग्रेज़ी-मराठी का प्रयोग खूब हुआ है। गांधीजी के आश्रम का सुन्दर चित्र खींचा है। इन पत्रों का मूल स्वर या सार संक्षेप एक-दूसरे के प्रति सौम्य आदर और अटूट स्नेह का है। आचार-विचार में मतान्तर रहते हुए भी स्नेहमय सम्बन्धों की मिठास में कोई कमी नहीं। —रमेश गजानन मुक्तिबोध पिछली शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जिस एक कवि ने मरणोत्तर मूर्धन्यता अर्जित की, वे हैं गजानन माधव मुक्तिबोध। वे एक ऐसे कवि भी रहे हैं जिनकी कविता में मित्रता का एक विराट् स्पन्दित परिसर महसूस किया जा सकता है : दरअसल उन्हें एक अनोखे अर्थ में एक बड़ा मित्र-कवि भी कहा जा सकता है। एक स्तर पर उनकी कविता मित्र-संवाद है। वह जो सुने उसको तो सम्बोधित है ही वह अपने मित्रों को भी लगातार और विशेष रूप से सम्बोधित है। हिन्दी के मुख्य अंचल के हाशिए पर रहते हुए भी मुक्तिबोध एक संवादप्रिय व्यक्ति और लेखक थे। इस अनूठे संचयन में लगभग पचास लेखकों के तीन सौ से अधिक पत्र शामिल किए गए हैं। मुक्तिबोध की 1964 में असमय और बेहद दुखद मृत्यु के 43 बरसों बाद इन पत्रों का एकत्र प्रकाश में आना एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक घटना है। इस पत्र-संग्रह से उस समय की याने आज से चालीस साल पहले की हिन्दी साहित्य-संस्कृति के बारे में कुछ ऐसा पता चलता है जो इन दिनों उस संस्कृति से, हमारा दुर्भाग्य है, कि अगर एक दम गायब नहीं तो बहुत बिरला हो गया है। इन पत्रों में कई पत्रिकाओं की व्यथा और संघर्ष की अन्तरंग कथाएँ भी छिपी हुई हैं जैसे हरिशंकर परसाई द्वारा सम्पादित ‘वसुधा’ और नरेश मेहता और श्रीकान्त वर्मा द्वारा सम्पादित ‘कृति’ की। ‘आलोचना’, ‘कल्पना’, ‘हंस’ आदि की अन्तर्कथाएँ भी कुछ पता चलती हैं। कई लेखकों की कठिनाइयों, संघर्षों, समझौतों, दिग्भ्रमों, उलझनों और चतुराइयों का आभास भी यहाँ-वहाँ मिलता है। जो भी हो, यह पत्र-संग्रह मुक्तिबोध को उस समय चल रहे साहित्यिक, वैचारिक और निजी संवाद के एक महत्त्वपूर्ण, सजग और सक्रिय केन्द्र के रूप में भी अवस्थित करता है। —अशोक वाजपेयी
Harishankar Parsai : Vyangya Ki Vaicharik Prishthbhoom
- Author Name:
Radhe Mohan Sharma
- Book Type:

- Description: हरिशंकर परसाई सही मायनों में व्यंग्य-लेखन में ‘मास्टर माइंड’ हैं। एक ऐसे लौह-लेखक जिनके कारण ही व्यंग्य एक विधा के रूप में स्थापित हो सका । प्रो. राधेमोहन शर्मा ने अपने लघु शोध-प्रबन्ध में विस्तार से विवेचन-विश्लेषण कर हिंदी गद्य साहित्य में परसाई की शिखर-स्थिति को रेखांकित किया है। व्यंग्य के स्वरूप और प्रकार, युग की बात युग के लिए, व्यक्तित्व की पहचान जैसे विश्लेषणों में परसाई के व्यंग्य की समग्रता को समेटा गया है। हरिशंकर परसाई के पाठकों, छात्रों, अध्यापकों, शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक उन्हें गहरे तक समझने के लिए श्रेष्ठ मार्गदर्शक है।
Rasayan Ki Rochak Baaten
- Author Name:
Dr. D.D. Ojha
- Book Type:

- Description: "बहुत पुराने समय से ही पारे से सोना बनाने के 'प्रयास किए जाते रहे हैं । ऐसा प्रयास करनेवालों को कीमियागिर तथा इस विज्ञान को कीमियागिरी कहा जाता था । इसी को रसायनशास्त्र भी कहा जाता है । आयुर्वेद में इसे रसशास्त्र नाम से जाना जाता है । मानव-जीवन का कोई भी ऐसा पक्ष नहीं है, जिसमें रसायन विज्ञान का अंश न हो । वर्तमान युग में बिना रसायन विज्ञान के भौतिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । उदाहरण के तौर पर, यह ज्ञानवर्धक पुस्तक जिस कागज पर छपी है, छपाई में प्रयोग की गई स्याही तथा अन्य अभिक्रियाएँ भी रसायनजन्य हैं । रसायनज्ञों ने इसी विज्ञान के सहारे पृथ्वी, पेड़-पौधों तथा खनिजों से आश्चर्यजनक वस्तुएँ प्राप्त की हैं । सभी तरह की दवाइयाँ उन्नत कृषि के लिए खाद तथा कीटनाशी, सिंथेटिक कपड़े का उत्पादन, दैनिक जीवन में उपयोग आनेवाली खाने-पीने की अनेक वस्तुएँ रासायनिक उत्पाद ही हैं । यह विज्ञान रोचक भी है और विचित्र भी । दैनंदिन उपयोग में आनेवाले रासायनिक उत्पादों का प्रयोग करते हुए हमारे मन में जिज्ञासा होती है उनकी वास्तविकता जानने की । ' रसायन की रोचक बातें ' पुस्तक में इसी प्रकार के शताधिक तथ्यों के बारे में सरल भाषा में सचित्र जानकारी सुलभ कराने का प्रयास किया गया है । "
Bhavan : Sahitya Aur Anya Kalaon Ka Anushilan
- Author Name:
Mukund Laath
- Book Type:

-
Description:
मुकुन्द लाठ भारत के उन बहुत थोड़े लेखकों में से एक हैं जिनके यहाँ साहित्य और कलाओं को लेकर ऐसी गहरी और सूक्ष्म दृष्टि है जो प्राचीन साहित्य और शास्त्र, दर्शन और चिन्तन, संगीत और नाट्य, कविता, परम्परा और आधुनिकता आदि सबको एक संग्रथित समावेश में शामिल कर रूपायित होती रही है। वह परम्परा से जैसे कि आधुनिकता से भी अनाक्रान्त रहकर एक प्रश्नवाचक दूरी रखती है। साहित्य और कलाओं के स्वरूप पर ऐसा मौलिक चिन्तन, कुछ कृतियों की सूक्ष्म समीक्षा, हिन्दी में बहुत कम देखने को मिलता है। हिन्दी में पहले ऐसे लोग थे, जैसे कि वासुदेवशरण अग्रवाल, मोतीचन्द्र, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि, जो ऐसी समावेशी और आधुनिकता के लिए भेदक दृष्टि रखते थे। मुकुन्द लाठ उस परम्परा में ही दशकों से सक्रिय रहे हैं और उनकी यह संचयिता हम बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं कि अपने समय, समाज, साहित्य और कलाओं को समझने की यह दृष्टि हिन्दी के विचार-जगत में हस्तक्षेप की तरह पहचानी-गुनी जाएगी। यह निश्चय ही हिन्दी की विचार-सम्पदा का अपेक्षाकृत अब तक का जाना विस्तार है।
—अशोक वाजपेयी
Antriksh Prashnottary
- Author Name:
Kali Shankar
- Book Type:

- Description: अनजाने अंतरिक्ष को जानने के लिए सामान्य मानव के मस्तिष्क में अनेक रोचक और कुतूहलपूर्ण प्रश्न उभरते रहे हैं तथा वह अंतरिक्ष के विषय में अधिकाधिक जानकारी पाने की प्रबल इच्छा रखता है । प्रस्तुत पुस्तक में अंतरिक्ष के विभिन्न विषयों- अंतरिक्ष स्टेशन, तारकीय / क्षुद्र ग्रहीय '' पुच्छल तारा अभियान, अंतरिक्ष परिवहन स्पेस शटल, अंतरिक्ष में प्रमोचन की प्रक्रिया, अंतरिक्ष के रिकॉर्ड, अंतरिक्ष दूरबीनें, कृत्रिम उपग्रह, स्पेस वॉक, अंतरिक्ष परिघटनाओं तथा अंतरिक्ष चयन और प्रशिक्षण का रोचक वर्णन किया गया है । आज अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न अनुसंधानों -स्पेस एलीवेटर ( अंतरिक्ष परिवहन का भविष्य का सबसे सस्ता साधन), भूकंपों के पूर्वानुमान में उपग्रहों की भूमिका और सौर ऊर्जा उपग्रहों के बारे में भी रोचक व ज्ञानप्रद जानकारी दी गई है । अंतरिक्ष के दुर्लभ और रोमांचक आँकड़ों को 23 परिशिष्टों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है । यह पुस्तक अंतरिक्ष विषय के जिज्ञासु पाठकों के कुतूहलपूर्ण प्रश्नों का समाधान करने में समर्थ सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है ।
Bharatiya Jeevan Drishti
- Author Name:
Braj Kishore Kuthiala
- Book Type:

- Description: भारतीय जीवन दृष्टि प्रो. बृज किशोर कुठियाला का जीवन और दर्शन उनके लेखों में व्यापक रूप से दृश्यमान है, जो भारतीय संस्कृति का प्रतिमान है। जीवन पंचतत्त्व से उत्पन्न और पंचतत्त्व में समा जाने की यात्रा का वृत्तांत है। तत्त्वों के पारस्परिक उपयुक्त साहचर्य ही संतुलन कारक हैं। आत्मा और परमात्मा का संबंध देह से देहावसान तक और फिर मुक्ति की बैकुंठी भारतीय पुराणों में पढ़ने को मिलती है। जीवन एक सतत प्रवाह है, हमारे बाद भी चलेगा। ‘ब्रह्मसत्यम जगद् मिथ्या’ या ‘अहम् ब्रह्मास्मि तत्त्वमसि’ सूत्र वाक्य बहुत कुछ कह जाते हैं। संवाद जोड़ने का काम करता है, विवाद तोड़ने का। भारतीय संस्कृति समग्रता की दृष्टि से अस्तित्व में है। प्रो. कुठियाला के लेख वेदांत दर्शन अथवा एकात्म मानवदर्शन की भावना को व्यक्त करते हैं। भारतीय चिंतन में देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण से मुक्ति की बातें हैं। व्यक्ति पर समाज का ऋण भी है। मनुष्य राष्ट्रकल्याण, समाज-कल्याण, और लोक-कल्याण से इस ऋण से मुक्त हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है हम लोक के साथ संवाद बनाए रखें। वादे वादे जायते तत्त्व बोधः। बात करते रहने से तत्त्व मिलता है। नारद और ब्रह्माजी, शौनकादि ऋषि और सूतजी, कृष्ण और अर्जुन, काकभुशुण्डि और गरुड़जी, आचार्य मंडन मिश्र और आदि-शंकराचार्य से जो ज्ञान मिला वह केवल मानव कल्याण के लिए नहीं है, बल्कि समस्त ब्रह्मांड के लिए है। प्रो. कुठियाला के लेखों में यह मंतव्य पढ़ने के बाद एहसास होगा। सभी लेख चिंतन, मनन और ज्ञानवर्धन के लिए उपयोगी हैं। —पार्थसारथि थपलियाल
Sabhi Ke Liye Manvadhikar
- Author Name:
Pratapmal Devpura
- Book Type:

- Description: जन्म से ही प्रत्येक मानव के कुछ अधिकार हैं। ‘सभी के लिए मानवाधिकार’ पुस्तक में मानवाधिकारों के विभिन्न पक्षों को सरल भाषा में समझाया गया है जिन्हें पढ़कर बच्चे और नवसाक्षर भी मानवाधिकारों को समझ सकते हैं। पुस्तक में पाठक को बच्चों के अधिकार, लैंगिक समानता, महिला समानता का अधिकार, महिलाओं के आर्थिक अधिकार, सामाजिक न्याय एवं मानवाधिकार और पुलिस जैसे विषयों के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया गया है।
Nagari-Nagari,Dware-Dware
- Author Name:
Prempal Sharma
- Book Type:

- Description: "यात्रा-वृत्तांत साहित्य की बड़ी जीवंत विधा है, जिसमें पहाड़ों की गूँज, नदियों की कल-कल और पक्षियों की मीठी चह-चह की तरह जीवन और जीवन-रस छलछलाता नजर आता है। इनमें हमारा समय है तो मानव-आस्था की सुदीर्घ परंपरा भी। यात्रा-वृत्तांत एक तरह से कालदेवता की अभ्यर्थना भी हैं, जो पल में हमें कल से आज और आज से कल तक हजारों वर्षों की यात्रा कराके एकदम ताजा एवं पुनर्नवा बना देते हैं। प्रस्तुत यात्रा पुस्तक में दर्शनीय तीर्थस्थलों की प्रामाणिक जानकारी दी गई है, जिससे वे सभी सुरम्य यात्रा-स्थल अपनी पूरी प्राकृतिक सुंदरता, भव्यता और ऐतिहासिक गौरव के साथ पाठक की स्मृति में बसने की ताकत रखते हैं। प्रस्तुत पुस्तक ‘नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे’ के यात्रा-वृत्तांतों की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये मन को बाँध लेते हैं। पाठक इन्हें पढ़ना शुरू करे तो पूरा पढ़े बिना रह नहीं सकता है। पाठक को लगता है, वह इन्हें पढ़ नहीं रहा, बल्कि चलचित्र की भाँति देख रहा है; लेखक के साथ-साथ यात्रा कर रहा है। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में पाठकों का अपार प्यार-दुलार पाने के बाद अब ये यात्रा-संस्मरण पुस्तक रूप में पुनः पाठकों के सामने उपस्थित हैं। पत्र-पत्रिकाओं के पाठकों से इतर पाठक-बंधु भी अब इनका रसास्वादन सहजता से कर सकेंगे। पाठकों के हृदय में उतरकर अपना स्थान बना लेनेवाले यात्रा-संस्मरणों की रोचक, पठनीय-मननीय पुस्तक।
Bakasht Sangharsh
- Author Name:
Avinash Jha
- Book Type:

- Description: उन अनजाने किसानों के नाम, जिनके संघर्ष की कहानी बड़े बड़े संघर्षों की दास्तान के बीच अनकही रह गई। समय के रेत पर जो अपने जीवन के निशान छोड़कर चले गए, शायद वो उसे हमारे लिए ही बना गये हों, जिनको ढूंढने , सहेजने और किताबों के पन्नों पर स्याही से उकेरने के नाम, यह दास्तान।
Yog Purankatha
- Author Name:
Dr. Madhavi Kulkarni +1
- Book Type:

- Description: वीरभद्रासन आणि हनुमानासनापासून मत्स्येंद्रासन, कूर्मासन आणि अनंतासनापर्यंत अनेक योगासनांची लोकप्रिय नावे भारतीय पुराणकथांमधील पात्रे आणि श्रेष्ठ व्यक्तींवर आधारित आहेत. ही पौराणिक पात्रे कोण होती, त्यांच्या कथा काय आहेत आणि योगासनांशी त्यांचा काय संबंध आहे? देवदत्त पट्टनाईक यांचे अलीकडील पुस्तक ‘योग पुराणकथा' (सहलेखक - आंतरराष्ट्रीय योग साधक मॅथ्यू रॉली) हे पुस्तक हिंदू, बौद्ध आणि जैन धर्मातील पूर्वापार चालत आलेल्या लोककथा आपल्याला पुन्हा सांगते. जगाला सुपरिचित असलेल्या योगासनांच्या मागे या कथा आहेत. 64 महत्त्वाच्या आसनांमागील कथांच्या हकिकती सांगताना शाश्वत सत्ये, पुनर्जन्म, मुक्ती आणि सहवेदना या संकल्पनांवर आधारित भारतीय उपखंडातील दृष्टिकोनाकडे देवदत्त आपले लक्ष वेधतात. हजारो वर्षे या संकल्पना योगाचे संवर्धन करत आहेत. या पुस्तकात आसनांमधील शरीराच्या विशिष्ट स्थितीबद्दल विचार मांडले आहेत. असे असले तरी आसने कशी करावीत याविषयी हे पुस्तक नाही. एक ज्ञानशाखा म्हणून योगाकडे बघताना त्याचे मानसिक, आध्यात्मिक दृष्टिकोन आणि योगदान, तसेच त्यामागील तत्त्वज्ञान, परंपरा, संस्कृती समजावून घेणं आवश्यक असते. तीन हजाराहून अधिक वर्ष प्रभाव असलेल्या या कथांनी जागतिक दृष्टिकोन आकारास आणला. अशा सर्वांची ओळख हे पुस्तक करून देते. Yog Purankatha | Devdutt Pattanaik, Matthew Rulli | Translated By : Madhavi Kulkarni योग पुराणकथा | देवदत्त पट्टनायक, मॅथ्यू रॉली | अनुवाद : माधवी कुलकर्णी
The Riligion Of The Forest
- Author Name:
Rabindranath Thakur
- Rating:
- Book Type:

- Description: We stand before this great world. The truth of the life depends upon our attitude of mind toward it - an attitude which is formed by our habit of dealing with is according to the special circumstance of our surroundings and our temperaments. It guides our attempts to establish relations with the universe either by conquest or by union, either through the cultivation of power or through that of sympathy. And thus, in our realization of the truth of existence, we put our emphasis either upon the principle of unity.
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...