Ullas Ki Naav : Usha Uthup
Author:
Vikas Kumar JhaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
‘आइ बिलीव इन म्यूजि़क’, ‘आइ बिलीव इन लव’—हमेशा इन दो संगीतमय वाक्यों से अपने शो की शुरुआत करनेवाली भारतीय पॉप संगीत की महारानी उषा उथुप ‘रम्भा हो’, ‘पाउरिंग रेन’, ‘मटिल्डा’, ‘कोई यहाँ नाचे-नाचे’ और ‘दोस्तों से प्यार किया’ सरीखे झूम-धूम-भरे बेशुमार गानों के संग लोगों के अन्तर्मन के धुँधले क्षितिज को हज़ार वाट की अपनी हँसी से सदैव जगमग करती आई हैं। वे देश-दुनिया की बाईस भाषाओं में गाती हैं। पर दुनिया-भर में फैले उनके प्रशंसकों को इस बात का कहीं से भी इल्म नहीं कि ‘उल्लास की नाव’ बनकर निरन्तर जीवन-जय की पताका लहरा रही उषा अपने आन्तरिक संसार में किस दु:ख, शोक और प्रहार की तीव्र लहरों के धक्कों से जूझती रही हैं। दरअसल, पाँच दशकों से भी अधिक के अपने सुदीर्घ करिअर में उषा उथुप ने अपने बारे में कम, अपने संगीत के बारे में ज़्यादा बातें कीं। मुम्बई में जन्मीं और पली-बढ़ीं, तमिल परिवार की उषा उथुप के पति केरल के हैं और उषा की कर्मभूमि कोलकाता है। इस लिहाज़ से वे एक समुद्र-स्त्री हैं, क्योंकि उनके जीवन से जुड़े सभी नगर-महानगर समुद्र तट पर हैं। इसलिए उनका संगीत समुद्र का संगीत है। एक ज़माना था जब पॉप संगीत को भारत में बहुत हल्के व फोहश रूप में लिया जाता था। पर उषा उथुप ने पॉप संगीत को हिन्दुस्तान में न सिर्फ़ ज़मीन दी, बल्कि सम्पूर्ण वैभव भी दिया। उषा ने पॉप संगीत से लेकर जिंगल, गॉस्पेल और बच्चों के लिए भी भरपूर गाया है। मदर टेरेसा उनसे हमेशा कहती थीं—‘तुम्हारा स्वर हमेशा मेरी प्रार्थना में शामिल रहता है, उषा!’ श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उन्हें जब भी सुना, तो कहा—‘उषा! यू आर फैब्यलस! शानदार-जानदार हो तुम।‘ यह उषा उथुप ही हैं, जिन्होंने भारतीय स्त्री के परिधान के संग-संग अपनी चूड़ी-बिंदी से पूरित सज्जा को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। सत्तर पार की उषा की आवाज़ में शाश्वत वसन्त है।
ISBN: 9789389577310
Pages: 288
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘दिल्ली मेरा परदेस’ रघुवीर सहाय की डायरी पुस्तक है जो ‘धर्मयुग’ में 1960 से 63 तक ‘दिल्ली की डायरी’ नामक स्तम्भ के रूप में प्रकाशित हुई थी। तब रघुवीर सहाय ‘सुन्दरलाल’ के नाम से यह स्तम्भ लिखा करते थे जो काफ़ी चर्चित रहा। इसके ज़रिए रघुवीर सहाय की कोशिश यह थी कि इसमें दिल्ली के जीवन पर टिप्पणियाँ हों और ऐसी हों कि उनका दिल्ली के बाहर भी कोई अर्थ हो सके।
ये तीन वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण थे, क्योंकि नेहरू के राजनीतिक जीवन के वे अन्तिम वर्ष थे। 1964 में उनके देहान्त के पहले राष्ट्रीय जीवन का चरित्र एक संकट से गुज़र रहा था। जिन मान्यताओं के लिए नेहरू कहते और करते थे, वे उनके बाद भी बची रहेंगी या नहीं, यह प्रश्न एक सांस्कृतिक प्रश्न बन गया था। ‘दिल्ली की डायरी’ में नेहरू के जीवन के अन्तिम चार वर्षों में से तीन की स्पष्ट झलक मिलती है।
इस पुस्तक का नाम ‘दिल्ली मेरा परदेस’ क्यों है, इसके बारे में खुद रघुवीर सहाय लिखते हैं कि, ‘दिल्ली मेरा देस नहीं है और दिल्ली किसी का देस नहीं हो सकती। उसकी अपनी संस्कृति नहीं है। यहाँ के निवासियों के सामाजिक आचरण को कभी इतना स्थिर होने का अवसर मिल भी नहीं सकता कि वह एक संस्कृति का रूप ग्रहण करे। अधिक से अधिक वह सभ्यता का, बल्कि उसके अनुकरणों का एक केन्द्र हो सकती है। सो वह है। ...मैं 1951 की गर्मियों में दिल्ली आया था। तब से इस शहर के कुछ हिस्से मेरी निगाह में उतने ही ख़ूबसूरत हैं। ...ज़िन्दगी में जो दो काम किए हैं—अख़बारनवीसी और कविता—उन दोनों की सबसे अच्छी स्मृतियाँ भी यहीं की हैं। और मुफ़लिसी की मस्तियाँ और पस्तियाँ भी। परन्तु ये दिल्ली की सबसे बड़ी देन नहीं हैं। सबसे बड़ी देन तो एक परदेसीपन है : एक अजब तरह का स्निग्ध एकान्त जिसमें जब चाहो तब भीतर चले जाओ, चाहे कितनी ही भीड़ में क्यों न हो, और जिसमें से जब चाहो ज़रा देर के लिए बाहर आ जाओ, कोई देखेगा नहीं।’
‘दिल्ली मेरा परदेस’ गद्य में उस रचनात्मक अनुभव की पुस्तक है जो अपनी शैली में सुन्दर तो है ही, सामाजिक-राजनीतिक चेतना में सहज सम्प्रेष्य और धारदार भी है। कोई डेढ़ सौ किस्तों में से चुनकर पुस्तक में शामिल अंश उस दस्तावेज़ की तरह हैं जिनके सवालों से टकराए बिना अपने वर्तमान को ठीक से नहीं समझा जा सकता, न ही भविष्य की तरफ़ दूर तक देखा जा सकता है।
Kabra Bhi Quaid Aur Janjeeren Bhi
- Author Name:
Alpana Mishra
- Book Type:

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Description:
अल्पना मिश्र हिन्दी कहानी के सूची-समाज में अनिवार्य रूप से शामिल नहीं हैं लेकिन वे उसकी सबसे मज़बूत परम्परा का एक विद्रोही और दमकता हुआ नाम हैं। उन्हें उखड़े और बाज़ार-प्रिय लोगों द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया जा सका। कहानी का यह धीमा सितारा मिटनेवाला, धुँधला होनेवाला नहीं है, निश्चय ही यह स्थायी दूरियों तक जाएगा।
अल्पना मिश्र की कहानियों में अधूरे, तकलीफ़देह, बेचैन, खंडित और संघर्ष करते मानव जीवन के बहुसंख्यक चित्र हैं। वे अपनी कहानियों के लिए, बहुत दूर नहीं जातीं, निकटवर्ती दुनिया में रहती हैं। आज पाठक और कथाकार के बीच की दूरी कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही है, अल्पना मिश्र की कहानियों में यह दूरी नहीं मिलेगी। आज बहुतेरे नए कहानीकार प्रतिभाशाली तो हैं पर कहानी तत्त्व उनका दुर्बल है, वे अपनी निकटस्थ, खलबलाती, उजड़ती, दुनिया को छोड़कर नए और आकर्षक भूमंडल में जा रहे हैं। इस नज़रिए से देखें तो अल्पना मिश्र उड़ती नहीं हैं, वे प्रचलित के साथ नहीं हैं, वे ढूँढ़ती हुई, खोजती हुई, धीमे-धीमे उँगली पकड़कर लोगों यानी अपने पाठकों के साथ चलती हैं।
‘ग़ैर-हाज़िरी में हाज़िर’, ‘गुमशुदा’, ‘रहगुज़र की पोटली’, ‘महबूब ज़माना और ज़माने में वे’, ‘सड़क मुस्तक़िल’, ‘उनकी व्यस्तता’, ‘मेरे हमदम मेरे दोस्त’, ‘पुष्पक विमान’ और ‘ऐ अहिल्या’ कहानियाँ इस संग्रह में हैं। इन सभी में किसी-न-किसी प्रकार के हादसे हैं। भूस्खलन, पलायन, छद्म आधुनिकता, जुल्म, दहेज हत्याएँ, स्त्री-शोषण से जुड़ी घटनाएँ अल्पना मिश्र की कहानियों के केन्द्र में हैं। इन सभी कहानियों में लेखिका की तरफ़दारी और आग्रह तीखे और स्पष्ट हैं। वे अत्याधुनिक अदाओं और स्थापत्य के लिए विकल नहीं हैं। उनकी कहानियाँ आलंकारिक नहीं हैं, वे उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मानवीय आन्दोलन का पक्ष रखती हैं और इस तरह सामाजिक कायरता से हमें मुक्त कराने का रचनात्मक प्रयास करती हैं। मुझे इस तरह की कहानियाँ प्रिय हैं।
—ज्ञानरंजन
Greatest Speeches Of Vivekananda
- Author Name:
Swami Vivekanand
- Book Type:

- Description: "This book is a collection of Swami Vivekananda’s speeches and intends to inspire the readers with his words. It is the voice of Vivekananda that has been captured here, a voice that calls us from our slumber of ignorance and leads to the path of enlightenment and awakening. His speeches can help us become a better version of ourselves. A core concept that he believed in was that of ‘family’ and how it can form the basis of harmony and brotherhood on a macro scale. His speeches do indicate towards accepting catch other, like we do in a family. According to him, the whole world can form a family if we live wich harmony and right tolerance. His speeches also portray the secularism of India, the love for the country to which he belonged to and was proud of the diversity and empathy. His speeches should be read by everyone across the borders and one must understand the true depth of his words. The speeches in Chicago represent what Vivekananda truly believed in and what he stood for. His philosophies — shall constantly inspire us and help move forward cowards a bright and fruitful future.
It's Not That Hard
- Author Name:
Manas Shalini Mukund
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- Description: When 16-year-old Manas complains of back pain, his parents assume it to be a result of his back-to-back cricket matches. Little do they know that this is going to turn out to be a malignant tumour which leads to partial paralysis. The Covid pandemic also sets in, adding its own complications to the mix. What kind of battle are this life-loving, strong-willed teenager and his family compelled to face? This boy's journey full of determination and courage provokes a question: How rock solid does one need to be to go through a tunnel this deep and walk out to be able to say, 'It's not that hard'?
Haashiye Par Padi Duniya
- Author Name:
Balkrishna Gupta
- Book Type:

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Description:
‘हाशिए पर पड़ी दुनिया’ बहुआयामी व्यक्तित्व-कृतित्व के धनी बालकृष्ण गुप्त पर केन्द्रित अनूठी पुस्तक है। डॉ. राममनोहर लोहिया और बालकृष्ण गुप्त की राजनीतिक सहभागिता एक इतिहास निर्मित कर चुकी है। अध्ययन, अनुभव, सक्रियता व प्रतिबद्धता का ऐसा उदाहरण दुर्लभ है। प्रस्तुत पुस्तक की भूमिका में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय लिखते हैं : ‘आप यदि लोहिया पर लिखेंगे तो बालकृष्ण जी छाया बन जाएँगे और बालकृष्ण जी पर लिखेंगे तो लोहिया की देह बनना तय है। वैसे लोहिया मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं जबकि बालकृष्ण जी मेरे गुरु के गुरुत्व होने की शक्ति, यानी कि वह वजह, जिससे लोहिया थे, उस शक्ति पर लिखना निश्चित ही आसान काम नहीं है।’
स्वाभाविक है कि बालकृष्ण गुप्त पर लिखे गए संस्मरणों एवं स्वयं उनके महत्त्वपूर्ण आलेखों से समृद्ध यह पुस्तक अपने समय का ज्वलन्त साक्ष्य है। सम्पादक द्वय सारंग उपाध्याय व अनुराग चतुर्वेदी ने पुस्तक का संयोजन पाँच खंडों में किया है। खंड-1 में आत्मीयजनों के संस्मरण बालकृष्ण गुप्त के कर्मठ जीवन का व्यवस्थित विवेचन करते हैं। खंड-2 (हाशिए पर पड़ी दुनिया), खंड-3 (बुद्धिजीवी नेहरू, लोहिया और वामपंथ) तथा खंड-4 (बिड़ला, गोयनका और अंधी योजनाएँ) में बालकृष्ण गुप्त के विपुल लेखन से चुने गए कुछ महत्त्वपूर्ण आलेख हैं। समाज, राजनीति, अर्थनीति, लोकतंत्र, विदेशनीति, प्रशासन और विश्व परिदृश्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध ये लेख गुप्त की लेखन क्षमता का अकाट्य प्रमाण हैं।
इन आलेखों की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है। समकालीन राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भों को समझने में इन विचारों से बहुत प्रकाश मिलता है। यह भी पता चलता है कि राजनीति में सक्रिय रहने के लिए कितने अध्ययन व विवेक की आवश्यकता होती है। ‘लोहियावाद’ को मूर्तिमान करनेवाले बालकृष्ण गुप्त का लेखन प्रेरणा प्रदान करता है।
खंड—5 (दस्तावेज़) में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के प्रसंग सँजोए गए हैं। पुस्तक में अनेक चित्र हैं जो स्वयं में एक दस्तावेज़ हैं। समग्रत: यह सुसम्पादित व विचार-समृद्ध पुस्तक प्रत्येक जागरूक पाठक के लिए अनिवार्य है।
Premchand Smriti
- Author Name:
Premchand
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Gautam Adani: A Complete Biography
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Mahesh Dutt Sharma
- Book Type:

- Description: Gautam Adani is an exceptional entrepreneur, full of determination and vision. From the modest beginnings, he became a global billionaire, showing us the true power of hard work. His diverse business success reflects his smart decision-making and inspires aspiring entrepreneurs everywhere. This book tells the inspiring story of Gautam Adani, a visionary business leader who has made a significant impact on the global corporate world. With remarkable business skills and unwavering determination, Adani built a diverse and successful business empire from humble beginnings. “No business is small or big, and there is no religion greater than the business”. Implementing this maxim in his life, Gautam Adani left the narrow streets behind and became the most famous businessman in India. This book will inspire aspiring entrepreneurs, showcasing the incredible power of determination and forward-thinking in achieving greatness in the business world.
Ek Kahani Yah Bhi
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Mannu Bhandari
- Book Type:

- Description: 'आपका बंटी'और 'महाभोज'जैसे उपन्यास और अनेक बहुपठित-चर्चित कहानियों कीलेखिका मन्नू भंडारी इस पुस्तक में अपने लेखकीय जीवन की कहानी कह रही हैं ।यह उनकी आत्मकथा नहीं है,लेकिन इसमें उनके भावात्मक और सांसारिक जीवन केउन पहलुओं पर भरपूर प्रकाश पड़ता है जो उनकी रचना-यात्रा में निर्णायक रहे ।एक ख्यातनामा लेखक की जीवन-संगिनी होने का रोमांच और एक जिद्दी पति कीपत्नी होने की बाधाएँ,एक तरफ अपनी लेखकीय जरूरतें (महत्वाकांक्षाएँ नही)और दूसरी तरफ एक घर को सँभालने का बोझिल दायित्व,एक धुर आम आदमी की तरहजीने की चाह और महान उपलब्धियों के लिए ललकता,आसपास का साहित्यिकवातावरण-ऐसे कई-कई विरोधाभासों के बीच से मनजी लगातार गुजरती रहीं,लेकिनउन्होंने अपनी जिजीविषा,अपनी सादगी,आदमीयत और रचना-संकल्प को नहीं टूटनेदिया । आज भी जब वे उतनी मात्रा में नहीं लिख रही हैं,ये चीजें उनके साथहैं,उनकी सम्पत्ति हैं ।यह आत्मस्मरण मनजी की जीवन-स्थितियों के साथ-साथ उनके दौर की कईसाहित्यिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी रोशनी डालता है और नईकहानी दौर की रचनात्मक बेकली और तत्कालीन लेखकों की ऊँचाइयों-नीचाइयों सेभी परिचित कराता है । साथ ही उन परिवेशगत स्थितियों को भी पाठक के सामनेरखता है जिन्होंने उनकी संवेदना को झकझोरा ।
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