Ramkrishna Pramhans
Author:
Romain RollandPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 140
₹
175
Available
“मुझे एक ऐसे महापुरुष के चरणों में बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जिसका जीवन उसकी समस्त शिक्षाओं व उपदेशों की अपेक्षाकृत हज़ारों गुणा अधिक उपनिषदों की वाणी की एक उत्कृष्ट जीवित व्याख्या है, जो वास्तव में मानवरूप में उपनिषदों की एक जीवित आत्मा है...जो भारत के विभिन्न विचारों का समन्वय है...।” यह महापुरुष और कोई नहीं, रामकृष्ण परमहंस थे।</p>
<p>स्वामी विवेकानन्द आगे लिखते हैं : “भारत-भूमि हमेशा विचारकों और ऋषियों से समृद्ध रही है। शंकर के पास एक महान मस्तिष्क था और चैतन्य के पास एक विशाल हृदय था और अब वह समय आ गया था जब मस्तिष्क और हृदय—इन दोनों के एक समन्वित मूर्तरूप की आवश्यकता थी—एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जिसके अन्दर एक ही शरीर में शंकर के चमत्कारिक मस्तिष्क और चैतन्य के आश्चर्यजनक रूप से उदार व विशाल हृदय का समावेश हो; जो प्रत्येक सम्प्रदाय में एक ही आत्मा, एक ही परमात्मा को कार्य करते हुए देखता हो; जो प्रत्येक वस्तु के अन्दर भगवान को देखता हो, जिसका हृदय इस संसार में भारतवर्ष व उसके बाहर सब जगह समस्त दीन-दुखियों, दुर्बलों, पददलितों और पीड़ितों के लिए आर्तनाद करता हो और इसके साथ ही जिसकी विशाल तीव्र बुद्धि परस्पर विरोधी विभिन्न सम्प्रदायों के बीच संगति स्थापित करनेवाले उदार विचारों की कल्पना करती हो...और उनमें संगति स्थापित करके मस्तिष्क और हृदय के एक सार्वभौम धर्म को जन्म देनेवाली हो—ऐसे मनुष्य ने जन्म लिया था।...समय उसके अनुकूल था, यह आवश्यक था कि ऐसे मनुष्य का जन्म हो, और वह आया था, और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उसका कर्मक्षेत्र एक ऐसी नगरी के निकट था, जो पाश्चात्य विचारों से पूर्ण थी, जो पश्चिमी विचारों के पीछे पागल हो उठी थी और जिस नगरी ने भारत के अन्य सब नगरों की अपेक्षा कहीं अधिक आचार-विचारों को अपनाया था। ऐसे स्थान में, बिना किसी किताबी ज्ञान के वह रहता था। इस महान मनीषी को अपना नाम तक भी लिखना न आता था, परन्तु हमारे विश्वविद्यालयों के बड़े-बड़े प्रतिभाशाली स्नातक उसकी बुद्धि की विराट शक्ति को देखकर दंग रह जाते थे...वह अपने समय का महान ऋषि था, जिसकी शिक्षाएँ वर्तमान समय के लिए सबसे अधिक लाभदायक हैं।”</p>
<p>...यदि मैं आपको एक भी सत्य बात कहता हूँ तो वह उसकी और केवल उसकी है और यदि मैंने आपसे कोई भ्रान्तिपूर्ण या ग़लत बातें कही हैं, तो वे सब मेरी अपनी हैं, उनका उत्तरदायित्व मेरे ऊपर है।’’</p>
<p>“जिस मनुष्य की मूर्ति की मैं यहाँ स्थापना करना चाहता हूँ, वह तीस करोड़ नर-नारियों के दो सहस्र वर्षव्यापी आध्यात्मिक जीवन का परिपूर्ण रूप है। यद्यपि चालीस वर्ष हुए, उसका देहावसान (सन् 1886) हो चुका है, तथापि उसकी आत्मा आधुनिक भारत को प्राणदान कर रही है। वह गांधी के समान कर्मवीर नहीं था, कला या विचार में गेटे व टैगोर के समान प्रतिभाशाली नहीं था। वह बंगाल के एक छोटे से गाँव का रहनेवाला ब्राह्मण था, जिसका बाह्य जीवन संकीर्ण रूढ़ियों की सीमा में आबद्ध था। उसमें उल्लेख योग्य कोई विशेष घटना न थी, और तात्कालिक सामाजिक व राजनीतिक हलचल से वह सर्वथा पृथक् था; परन्तु उसके आन्तरिक जीवन में नाना देवताओं और मानवों का एक विचित्र समावेश था। उसका अभ्यन्तरीय जीवन उस सकल शक्ति की मूलाधार स्वरूपिणी दैवी ‘शक्ति’ का अंशमात्र था, जिस दैवी शक्ति की मिथिला के प्राचीन कवि विद्यापति और बंगाल के कवि रामप्रसाद ने वन्दना की है।</p>
<p>—रोमां रोलां
ISBN: 9788180312311
Pages: 238
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अपने हाथ में लिए अन्य कामों की भाँति जमशेत जी ने इन परियोजनाओं में एक ऐसे व्यक्ति की अमोघ नैसर्गिक वृत्ति को प्रकट किया जिसे पता था कि पराधीन राष्ट्र के गौरव की बहाली कैसे की जाए। उन्होंने देश की आज़ादी के बाद उसे दुनिया के अग्रणी राष्ट्रों में स्थान पाने में मदद की।
ये परियोजनाएँ जिस बड़े पैमाने की थीं, उसके लिए बहुत दम-गुर्दे की आवश्यकता थी। कुछ मामलों में तो बस लगे रहने की ज़िद थी जो कि रंग लाई—जैसे कि इस्पात परियोजना के लिए उपयुक्त जगह की तलाश करने का मामला असीम धैर्य के कारण हल हुआ। दूसरे मामलों में, जैसे—इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस में मान-मनुहार करने का उनका लाजवाब कौशल और धैर्य ही था जिसने आख़िरकार शंकालु वाइसराय लॉर्ड कर्जन से उन्हें मंजूरी दिलवाई।
‘भारत से प्यार’ में आर.एम. लाला ने जमशेत जी और उनके समय के जीवन्त चित्रण के लिए लन्दन की इंडिया ऑफ़िस लाइब्रेरी और दूसरे अभिलेखागारों की नवीन सामग्री के साथ-साथ उनके पत्रों का उपयोग किया। यह एक महत्त्वपूर्ण लेखा-जोखा है जो स्पष्ट कर देता है कि जशमेत जी की उपलब्धि वाक़ई मानीखेज़ थी और उनकी मृत्यु के सौ साल बाद भी ऐसा क्यों जान पड़ता है कि वे अपने समय से बहुत आगे थे।
Nit Naval Rajkamal
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Nitish Kumar : Antrang Doston Ki Nazar Se
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यह कहानी किसी भी उस आम आदमी की हो सकती है जिसके अन्दर कुछ अच्छा करने और करते रहने का जज़्बा हो !
‘नीतीश कुमार : अंतरंग दोस्तों की नज़र से’ महज़ नीतीश कुमार की जीवनी नहीं है, बल्कि यह मुन्ना बाबू की, ‘नेताजी’ की और नीतीश जी से माननीय नीतीश कुमार बनने की भी कहानी है जो उनके पचास वर्षों से अधिक समय से उनसे जुड़े अभिन्न मित्रों ने लिखी है। इसमें उनके माता-पिता, भाई-बहनों, पत्नी, पुत्र और हित-मित्र समेत कई ऐसे लोगों का ज़िक्र है जिससे नीतीश कुमार की वह व्यक्तिगत-पारिवारिक छवि पहली बार सामने आती है जो उनके जगज़ाहिर सियासी जीवन के पीछे प्रायः ओझल रही है।
नीतीश कुमार के पिता रामलखन सिंह को अधिकतर लोग वैद्य और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जानते हैं। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उनकी सक्रियता और राजनीति के छल-कपट से कुपित होकर उनके चुनाव लड़ने के हवाले से यह किताब नीतीश कुमार की पृष्ठभूमि के एक अहम मगर अल्पज्ञात पक्ष पर रोशनी डालती है।
यह जीवनी आज़ादी के बाद के बिहार की राजनीति का सटीक लेखा-जोखा भी है। नीतीश कुमार के बनने की प्रक्रिया बहुत ही जटिल व विकट रही है। वायु सेना अधिकारी की परीक्षा में असफल होने के बाद, जीविकोपार्जन के लिए सामने आए कई विकल्पों को निर्ममता से ठुकरा कर, मात्र जनसेवा के लिए चुनावी राजनीति की लहरों में डूबते-उतराते, जूझते, गिरते और फिर दूनी ऊर्जा से खड़े होकर अपने आदर्शों की रक्षा करने वाले संघर्षरत नीतीश कुमार की कहानी है यह।
अपनी सकारात्मक सोच के कारण हमेशा आशान्वित रहने वाले, एक छोटे से क़स्बे के मध्यवर्गीय परिवार से निकलकर सिर्फ़ अपनी लगन, जिजीविषा और ईमानदार नीयत की वजह से एक ‘असफल’ नेता से देश के गिने-चुने बेहतरीन मंत्रियों में से एक और डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के बाद मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लम्बे समय से बिहार की बागडोर कुशलतापूर्वक सँभाल रहे नीतीश कुमार की यह प्रामाणिक और अनौपचारिक जीवनी इतनी रोचक ढंग से लिखी गई है कि आप इसे एक बैठक में ही पढ़कर ख़त्म कर लेना चाहेंगे!
SBI Ki Shikhar Gatha
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Rajesh Chakrabarti
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- Description: "SBI की शिखर गाथा यह कहानी है सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक की, जो दरशाती है कि परिवर्तन अभी भी हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भरोसा किए जाने और ललकारे जाने पर, प्रोत्साहनों एवं बोनस आदि के बिना भी, किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सफलता की यह कहानी दरशाती है कि सार्वजनिक उपक्रमों को न विशेष प्रोत्साहन की जरूरत है और न अनावश्यक आलोचना की। इन्हें झिड़कने या इन पर दया दिखलाने की भी कोई जरूरत नहीं है। एस.बी.आई. के कायापलट की कहानी इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि मानव की कर्मठता एवं दृढ़निष्ठा व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से क्या कुछ हासिल कर सकती है। कुछ कर दिखाने का जोश पैदा करने में धन की कोई महत्ता नहीं है। नेतृत्व का अर्थ है आशावादी होना, सकारात्मक सपने बुनना; और सबसे अहम बात कि टीम चाहे जितनी बड़ी हो, टीम के सदस्यों को गर्व और अपनी पहचान का एहसास कराना। जो अपने-अपने संगठनों में क्रांतिकारी सकारात्मक परिवर्तन लाने का इरादा रखते हैं, जिन संगठनों को व्यावसायिक जगत् में कभी गौरवशाली स्थान प्राप्त था, पर जो आज कड़ी प्रतिस्पर्धा एवं परिवर्तनों के मकड़जाल में घिर गए हैं, उन संगठनों का नेतृत्व स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से सबक लेकर अपनी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने का जोश जगा सकता है। विपरीत परिस्थितियों में यथोचित परिवर्तन कर सफलता के शिखर छूने की कहानी है यह पुस्तक, जो प्रबंधकों और कर्मियों को समान रूप से प्रेरित करेगी। "
Maulana Azad : Ek Jeevani
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- Description: मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्वतंत्रता सेनानी, इस्लामी विद्वान, स्वतंत्र विचारक, अख़बारनवीस और आज़ाद भारत के पहले शिक्षामंत्री थे। उन्हें कोई औपचारिक तालीम तो नहीं मिली, लेकिन संस्कृति, दर्शन, भाषा और साहित्य के व्यापक स्वाध्याय से उन्होंने स्वयं कई विषयों में महारत हासिल की। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने कई पत्रिकाएँ और अख़बार निकाले। गांधी जी के अहिंसक सविनय अवज्ञा आन्दोलन से वह बहुत प्रभावित थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद वह इसके सबसे युवा अध्यक्ष चुने गए। कांग्रेस के अध्यक्ष की हैसियत से, आज़ाद ने मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति के साथ-साथ दमनकारी ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ भी लड़ाई लड़ी। आज़ाद की इस गहन और विस्तृत जीवनी में, इतिहासकार एस. इरफ़ान हबीब पाठकों को आज़ाद की ज़िन्दगी के सबसे निर्णायक क्षणों से रू-ब-रू कराते हैं। एक अध्याय में हम आज़ाद की ग़ैर-मामूली परवरिश, उनके रसूख़दार ख़ानदान, इस्लामी दुनिया में उथल-पुथल और ज़िन्दगी के प्रति आज़ाद के स्वतंत्र विचारों के शुरुआती संकेत देखते हैं। इसके बाद यह किताब मौलाना आज़ाद के आलोचनात्मक इस्लामी चिन्तन, अख़्लाक़ी सवालों और पैन-इस्लामी बहसों की पड़ताल करती है। यह वह दौर था जिसने आज़ाद के मज़हबी नज़रिये और राष्ट्रवाद के प्रति उनके दृष्टिकोण को स्वरूप दिया। ‘आज़ाद, इस्लाम और राष्ट्रवाद’ शीर्षक अध्याय आज़ाद की सियासी ज़िन्दगी और समग्र राष्ट्रवाद में उनके अटूट भरोसे और मुस्लिम लीग की फ़िरक़ा-परस्त सियासत के प्रति उनके कट्टर विरोध के ब्योरे पेश करता है। ‘ग़ुबार-ए-ख़ातिर : धर्म और राजनीति से आगे’ शीर्षक अध्याय 1940 की दहाई में अहमदनगर फ़ोर्ट जेल में उनकी क़ैद के दौरान ख़तों की शक़्ल में लिखे गए निबन्धों संग्रह के ज़रिये आज़ाद के दार्शनिक विचारों और निजी पसन्द-नापसन्द को उजागर करता है। और आख़िर में, ‘एक नए भारत का निर्माण : शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान और बहुलवादी लोकाचार’ में प्राथमिक और प्रौढ़ शिक्षा की पहल के मार्फ़त देश की कमज़ोर शिक्षा प्रणाली को मज़बूत करने की आज़ाद की कोशिशों, देश की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक तरक़्क़ी को लेकर उनकी दूरअन्देशी और अभी अभी आज़ाद हुए देश की कला और संस्कृति को सँजोने में उनके योगदान को रेखांकित किया गया है। ‘मौलाना आज़ाद : एक जीवनी’ भारत के महान विचारकों और राष्ट्र-निर्माताओं में से एक की निर्णायक जीवनी है।
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