
Manavputra Isa : Jeewan Aur Darshan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
281
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
562 mins
Book Description
विश्वविख्यात चरितावली में मानवपुत्र ईसा का नाम प्रथम पंक्ति में है। उनका जीवन एक स्तर पर जितना सुस्पष्ट और सुलिखित है, उतना ही उसके विविध पक्षों की व्याख्या को लेकर विद्वानों और विचारकों में मतभेद रहा है। वे ईश्वर के बेटे हैं पर मानवपुत्र कहे जाते हैं। इस रूप में लौकिक और अलौकिक संसार को वे बड़ी ख़ूबी से जोड़ते हैं। उनके सीधे-सादे जीवनवृत्त में सृष्टि के अनेक रहस्य अन्तर्निहित हैं। इस स्थिति में ईसा का जीवन आरम्भ से ही बड़े-बड़े जीवनीकारों, दार्शनिकों और कलाकारों के लिए सूक्ष्म जिज्ञासा का विषय रहा है। पश्चिमी संसार की कलाओं का एक बहुत बड़ा भाग ईसा के जीवन-चरित से प्रेरित और प्रभावित है। भारत के बड़े-बड़े मनीषी भी उनके व्यक्तित्व से सीखते हैं। महात्मा गांधी के लिए अत्यन्त प्रेरक प्रसंगों में से एक पर्वत-प्रवचन का रहा है।</p> <p>ऐसे सरल पर उलझे हुए चरित को लिखना किसी भी लेखक के लिए योग्य चुनौती है। डॉ. रघुवंश ने केवल ईसा की कहानी नहीं कह दी है, वरन् अपनी भाषा में उसका पुनःसृजन किया है। वृत्त, चरित और जीवनी से आगे वह रचनात्मक साहित्य बनने के लिए प्रस्तुत है। इलाहाबाद कैथलिक सैमिनरी के कई विद्वानों ने उसे पढ़ा और देखा है। इस रूप में जहाँ एक ओर उसका साहित्यिक पक्ष विकसित है, वहीं उसका वृत्ताधार प्रामाणिक और परीक्षित, और इन दोनों स्तरों पर वह आकर्षक पाठ्य-सामग्री सिद्ध होगी।