Sham' A Har Rang Mein
Author:
Krishna Baldev VaidPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 260
₹
325
Unavailable
‘ख़्वाब है दीवाने का’ से आरम्भ हुई कृष्ण बलदेव वैद की डायरी-यात्रा ‘शम’अ हर रंग में’ तक पहुँचकर विराम लेती है। अर्थ स्पष्ट है कि ‘शम’अ हर रंग में’ एक लेखक की डायरी है। एक ऐसे शख़्स की दैनिक आपबीती जिसके लिए लेखक होना कोई बाहरी चुनाव नहीं, आन्तरिक मजबूरी है।</p>
<p>‘शम’अ हर रंग में’ एक ऐसी पुस्तक है जो रेखांकित करती है कि लेखक समाज से उतना नहीं लड़ता जितना कि अपने आपसे। उसका हर दिन, हर लम्हा कल की नोक पर अटका रहता है। उसकी उदासियाँ, ख़ुशियाँ, शक, यक़ीन, ज़िद्द—यानी अपने होने का हर रंग, उसके तख़लीक़ी इरादों और अन्देशों के इर्द-गिर्द बचा हुआ है। बारीक अहसासों से भाषा की हदों को पार कर जाता है और पाठकों का अन्तरंग हो जाता <br />है।<br />यह पुस्तक डायरी-लेखन की विशिष्टता की कसौटी बनकर उभरी है और मनुष्य के मानसिक जीवन के उतार-चढ़ावों का रूपायण करती है। बीती सदी के आधे समय और समाज की कुछ बारीक कतरनें और रंगतें भी इसमें मौजूद हैं। हिन्दी रचना-संसार की दुर्लभ झलकियाँ भी इस पुस्तक को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
ISBN: 9788126714339
Pages: 291
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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काशीनाथ सिंह कहानियाँ, उपन्यास, नाटक और आलोचना लिखकर और कथाकार के रूप में ख्याति अर्जित कर संस्मरणों की दुनिया में आए। सम्भवत: इसीलिए उनके संस्मरण अन्तत: स्मृति-कथाएँ हैं। कथा, जिसमें गल्प का तत्व कभी भी यथार्थ के सामने निस्तेज और प्रभावहीन नहीं होता। ऐतिहासिक व्यक्तियों और वास्तविक घटनाओं के इर्द-गिर्द बुने जाने पर भी उनमें रचनात्मकता और कल्पना के पहलू ऐसे मिले-जुले होते हैं कि वे कभी भी ‘यथार्थ’ को ‘भारी’, ‘ठोस’ और ‘पत्थर’ सा नहीं बनने देते। यहाँ ‘यथार्थ’ एक जीवित पाखी की तरह ‘गल्प’ के पंख लगाकर जीवन के महा-आकाश में उड़ता है। कहानी-उपन्यास से संस्मरण की ओर आने का एक लाभ यह भी हुआ है कि कहानी-उपन्यास बुनते-गढ़ते हुए जो सीखें कथाकार काशीनाथ सिंह को मिली थीं, वे यहाँ भी काम आ सकी हैं।
काशीनाथ सिंह के संस्मरणों में वास्तविकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उनमें एक ख़ास तरह की स्पष्टता, साहसिकता और बेबाकी पैदा की है। भोजपुरी की शक्ति, जो उनकी कहानियों में, संयत भाव से प्रकट होती थी, उनके संस्मरणों में खुलकर प्रकट होती है। बनारसीपन ने इन संस्मरणों के गद्य को जीवन का आईना बना दिया। हरिशंकर परसाई और नामवर सिंह—गद्य में काशीनाथ सिंह के आदर्श मालूम पड़ते हैं। इसीलिए उनके संस्मरणों की संरचना में करुणा और व्यंग्य अन्तर्भुक्त हैं। इन दोनों गद्यकारों की तरह उनकी भाषा बतकही के अत्यन्त निकट चली जाती है। छोटे-छोटे वाक्य, कौतुक और खिलंदड़ापन उनकी भाषा में भीतर तक विन्यस्त है। बनारसीपन इन सबको एक नया रंग देता है ।
‘आहटें सुन रहा हूँ यादों की’ स्मृति-कथाओं की किताब है। इस पुस्तक में ‘याद हो कि न याद हो’ के पहले संस्करण के बाद प्रकाशित छोटे-बड़े 18 संस्मरण शामिल हैं। पुस्तक के पहले खंड के संस्मरण निजी जीवन के इर्द-गिर्द घूमते हैं। दूसरे खंड में काशीनाथ सिंह के निकट जनों–गुरु बच्चन सिंह, बड़े भाई नामवर जी के परम मित्र वकील साहेब उर्फ नागेंद्र सिंह, आलोचक-मित्र-संगठक प्रो. कमला प्रसाद, मित्र-कथाकार दूधनाथ सिंह, मित्र–भाषाविज्ञानी श्री राम अधार सिंह और कमउम्र मित्र सिने विशेषज्ञ श्री प्रह्लाद अग्रवाल पर केन्द्रित संस्मरण हैं।
काशीनाथ सिंह के इन संस्मरणों से गुजरते हुए सहज ही आभास होता है कि वास्तविक देश के सामानान्तर स्मृति एक देश है!
Ullas Ki Naav : Usha Uthup
- Author Name:
Vikas Kumar Jha
- Book Type:

- Description: ‘आइ बिलीव इन म्यूजि़क’, ‘आइ बिलीव इन लव’—हमेशा इन दो संगीतमय वाक्यों से अपने शो की शुरुआत करनेवाली भारतीय पॉप संगीत की महारानी उषा उथुप ‘रम्भा हो’, ‘पाउरिंग रेन’, ‘मटिल्डा’, ‘कोई यहाँ नाचे-नाचे’ और ‘दोस्तों से प्यार किया’ सरीखे झूम-धूम-भरे बेशुमार गानों के संग लोगों के अन्तर्मन के धुँधले क्षितिज को हज़ार वाट की अपनी हँसी से सदैव जगमग करती आई हैं। वे देश-दुनिया की बाईस भाषाओं में गाती हैं। पर दुनिया-भर में फैले उनके प्रशंसकों को इस बात का कहीं से भी इल्म नहीं कि ‘उल्लास की नाव’ बनकर निरन्तर जीवन-जय की पताका लहरा रही उषा अपने आन्तरिक संसार में किस दु:ख, शोक और प्रहार की तीव्र लहरों के धक्कों से जूझती रही हैं। दरअसल, पाँच दशकों से भी अधिक के अपने सुदीर्घ करिअर में उषा उथुप ने अपने बारे में कम, अपने संगीत के बारे में ज़्यादा बातें कीं। मुम्बई में जन्मीं और पली-बढ़ीं, तमिल परिवार की उषा उथुप के पति केरल के हैं और उषा की कर्मभूमि कोलकाता है। इस लिहाज़ से वे एक समुद्र-स्त्री हैं, क्योंकि उनके जीवन से जुड़े सभी नगर-महानगर समुद्र तट पर हैं। इसलिए उनका संगीत समुद्र का संगीत है। एक ज़माना था जब पॉप संगीत को भारत में बहुत हल्के व फोहश रूप में लिया जाता था। पर उषा उथुप ने पॉप संगीत को हिन्दुस्तान में न सिर्फ़ ज़मीन दी, बल्कि सम्पूर्ण वैभव भी दिया। उषा ने पॉप संगीत से लेकर जिंगल, गॉस्पेल और बच्चों के लिए भी भरपूर गाया है। मदर टेरेसा उनसे हमेशा कहती थीं—‘तुम्हारा स्वर हमेशा मेरी प्रार्थना में शामिल रहता है, उषा!’ श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उन्हें जब भी सुना, तो कहा—‘उषा! यू आर फैब्यलस! शानदार-जानदार हो तुम।‘ यह उषा उथुप ही हैं, जिन्होंने भारतीय स्त्री के परिधान के संग-संग अपनी चूड़ी-बिंदी से पूरित सज्जा को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया। सत्तर पार की उषा की आवाज़ में शाश्वत वसन्त है।
Ek Dalit Ki Aatmkatha
- Author Name:
Ram Rakshadas
- Book Type:

- Description: 15 जुलाई, 1962 को मैं किसी तरह बी.ए. पास कर गया। उस समय पूरा परिवार कर्ज में डूबा हुआ था, घर-गृहस्थी चलाने और पटना में रहकर पढ़ाई करने, पुस्तकें खरीदने के लिए रुपयों की जरूरत थी। आमदनी के नाम पर कॉलेज से मिलनेवाली छात्रवृत्ति एकमात्र साधन था। इससे मेरे और परिवार के खर्च की पूर्ति नहीं हो पाती थी, इसलिए मजबूरी में कर्ज लेना पड़ता था। थोड़ी-बहुत खेती थी, जिससे कुछ महीने का खर्च निकल जाता था। इतना ही नहीं, 5 अप्रैल, 1961 को हमारे एक लड़का भी हो गया, जिसकी परवरिश और दवा-दारू का खर्च बढ़ गया। ऐसी विकट परिस्थिति में मेरे शुभचिंतकों ने राय दी कि मुझे तुरंत नौकरी कर लेनी चाहिए; हमारी स्थिति आगे पढ़ने की नहीं है । सामने पुस्तकें खुली रहती थीं और आँखों के सामने पत्नी का मलिन चेहरा मानसपटल पर कौंध जाता था। पत्नी चाहकर भी मेरी पढ़ाई में बाधक बनना नहीं चाहती थी। मेरे मन में तूफान मचा हुआ था। एक तरफ घर की माली हालत को दुरुस्त करना और दूसरी ओर अपने अरमानों तथा लक्ष्यों को प्राप्त करना, दोनों जरूरी कार्य थे। दोनों की राहें जुदा थीं। एक को छोड़ना ही पड़ेगा। इसी पुस्तक से- संघर्षों, कष्टों और अभावों से जूझकर अपनी अदम्य इच्छाशक्ति तथा जिजीविसाह के बल पर पढ़ाई पूरी कर जीवन में सफलता प्राप्त करने की प्रेरणाप्रद आत्मकथा।
'Na' Ki Jeet Hui
- Author Name:
K. Suresh
- Book Type:

-
Description:
‘‘न’ की जीत हुई’ के. सुरेश की संस्मरणात्मक कहानियों की दूसरी पुस्तक है। वस्तु, शैली और संरचना की दृष्टि से इसे उनकी पहली पुस्तक 'इक्कीस बिहारी और एक मद्रासी' का विस्तार माना जा सकता है; अर्थात् प्रस्तुत संग्रह की नौ कहानियाँ भी पाठक को पिछले संग्रह की ग्यारह कहानियों के अनुभव संसार में शामिल कर अनुभूति के कुछ और मार्मिक स्थलों की ओर ले जाती हैं।
सुरेश जी वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी हैं। अपनी दीर्घकालीन सेवा के दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों में विभिन्न प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन किया है। इस अवधि में भाँति-भाँति के लोगों से उनका साक्षात्कार हुआ है, क़िस्म-क़िस्म की समस्याओं से उन्होंने मुठभेड़ की है और तरह-तरह की घटनाओं का वे हिस्सा बने हैं। कहीं संघर्ष, कहीं सहानुभूति, कहीं कृतज्ञता का भाव। इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ ऐसे
व्यक्तियों, परिस्थितियों, घटनाओं, अनुभवों और भावों का साक्षात्कार हैं, जो संवाद के इच्छुक हैं। ये संस्मरण एक ऐसे चैतन्य प्रशासक की रागात्मक अभिव्यक्ति हैं, जिसका चित्त शुद्ध और संवेदना जाग्रत
है।इन रचनाओं की सहजता और कथ्य के स्तर पर बरती गई ईमानदारी के माध्यम से अभिव्यक्ति की सच्चाई को परखा जा सकता है। इसे एक प्रशासक के अनुभव का निचोड़ कहा जा सकता है। यह निचोड़ ‘हम सिंगल ही अच्छे थे’ में प्रशासकों के बँगलों पर स्थायी समस्या के रूप में उपस्थित ‘अच्छे’ अथवा ‘अनुकूल’ भूत्या की तलाश के रोचक प्रसंग के रूप में देखा जा सकता है। ‘दिल में जो तमन्ना थी’, ‘कैसे नहीं लिखूँ’, ‘बाक़ी सब ठीक है’, ֹ‘कटी नाक की अमर कहानी’, ‘कलेक्टर साहब के बँगले की गाय’ आदि संस्मरण भी रोचक मुहावरों, प्रसंगों और घटनाओं की सार्थक भूमिका के साथ किसी ज्वलन्त समस्या और उसके निराकरण के लिए किए गए प्रयासों की प्रशासनिक सूझ से जुड़ते हैं।
इन संस्मरणों के मार्फ़त तत्कालीन मध्य प्रदेश के दूरस्थ अंचलों, ख़ास तौर पर जनजाति बहुल ज़िलों की विषम स्थितियों, कठिन जीवन-संघर्ष और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की वास्तविकता का पता भी चलता है।
Mera Pariwar
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में महादेवी वर्मा जी ने कुछ विशिष्ट मानवेतर प्राणियों के प्रति अपनी जिस सहज, सौहाद्र और एकांत आत्मीयता की अभिव्यंजना का जो अपूर्व कला-कौशल अपने इन चित्रों में व्यक्त किया है, वह केवल उनकी अपनी ही कला की विशिष्टता की दृष्टि से नहीं वरन् संसार-साहित्य की इस कोटि की कला के समग्र क्षेत्र में भी बेमिसाल और बेजोड़ हैं। ये कृतियाँ मानवीय भावज्ञता, संवेदना और कलात्मक प्रतिभा के अपूर्व निदर्शन की दृष्टि से शाब्दिक अर्थ में अपूर्व ओर अद्भुत कलात्मक चमत्कार के नमूने हैं।
Nirbheek Yoddhaon Ki Kahaniyan
- Author Name:
Shashi Padha
- Book Type:

- Description: "भारत के गौरवमय इतिहास पर दृष्टि डालें तो हर पन्ने पर अनेक स्वतंत्रता सेनानियों और वीर योद्धाओं के विषय में पढ़ने एवं जानने का अवसर मिलेगा। बलिदान एवं संकल्प की इसी परंपरा को निभा रहे हैं हमारे बहादुर सैनिक, जिनकी पैनी दृष्टि और युद्ध कौशल से शत्रु सदैव परास्त होता आया है। जीवन की आपाधापी और अपने-अपने घेरों में सिमटे हम लोग उनके विराट् व्यक्तित्व और साहस भरे वृत्तांतों को भले ही न देख पाएँ पर शशि पाधा से वे छूटते नहीं हैं। असल में ये नायक और उनका नायकत्व तो शशि के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। शशि जो देखती हैं, महसूसती हैं, वह केवल रचनाकार के वश की बात नहीं है, यह तभी संभव है जब उन अहसासों को पहचानने वाला संवेदनशील हृदय भी रचनाकार के पास हो। न पहले कभी ऐसी सत्यकथाओं को संगृहीत किया गया और न ही कभी अलग से इन्हें पढ़ने का कोई अवसर मिल पाया। इन वीर कथाओं को पढ़ते हुए मन किन भावों में डूब-उतरा रहा है, यह तभी समझा जा सकता है जब इस संग्रह के आदर्श महानायकों की गाथा आप तक पहुँचेगी। हम और हमारी आनेवाली पीढि़याँ इन नायकों के साहस भरे कौशल से प्रेरणा ले सकती हैं। नमन उन ऊँचाइयों को, जिन्हें इन निडर युवकों ने अपना लक्ष्य बनाया। नमन उन सफलताओं को जिन्हें उन्होंने अपनी बहादुरी से पूरा किया। और बहुत-बहुत बधाई मेरी मित्र और संवेदनशील रचनाकार शशि पाधा को, जिनकी कलम इन गाथाओं को हम सबके लिए समेट लाई। इस अनजाने संसार से हिंदी साहित्य का परिचय करवाने के लिए उन्हें साधुवाद। —पूर्णिमा बर्मन"
Bhagwan Budh : Jeewan Aur Darshan
- Author Name:
Damodar Dharmanand Kosambi
- Book Type:

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Description:
इस ग्रन्थ के मूल लेखक धर्मानन्द कोसम्बी पालि भाषा और साहित्य के प्रकांड पंडित थे। बौद्ध धर्म-सम्बन्धी तमाम मौलिक साहित्य का गहरा अध्ययन करके वे अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान बने। लेकिन उनका सारा प्रयास केवल विद्वत्ता पाने के लिए नहीं था। वे बुद्ध भगवान के अनन्य भक्त थे। इसीलिए उन्होंने जो कुछ पाया, जो कुछ किया और साहित्य-प्रवृत्ति द्वारा जो कुछ दिया, वह सब का सब ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ था।
धर्मानन्द कोसम्बी द्वारा लिखित यह चरित्र शायद पहला ही चरित्र ग्रन्थ है, जो किसी भारतीय व्यक्ति ने मूल पालि बौद्ध ग्रन्थ ‘त्रिपिटिक’ तथा अन्य आधार-ग्रन्थों का चिकित्सापूर्ण दोहन करके, उसी के आधार पर लिखा हो। इस प्राचीन मसाले में भी जितना हिस्सा बुद्धि-ग्राह्य था उतना ही उन्होंने लिया। पौराणिक चमत्कार, असम्भाव्य वस्तु सब छोड़ दी, और जो कुछ भी लिखा, उसके लिए जगह-जगह मूल प्रमाण भी दिए। इस तरह बौद्ध-साहित्य में उनके काल की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जो कुछ भी जानकारी मिल सकती थी, उससे लाभ उठाकर इस ग्रन्थ में बुद्ध भगवान के काल की परिस्थिति पर नया प्रकाश डाला गया है। भगवान बुद्ध के बारे में प्रामाणिक जानकारी देनेवाली महत्त्वपूर्ण कृति।
Jane Pahachane Log
- Author Name:
Harishankar Parsai
- Book Type:

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Description:
सुविख्यात व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई के इन संस्मरणात्मक शब्दचित्रों को पढ़ना एक नई अनुभव-यात्रा के समान है। इस अनुभव-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि लेखक ने यहाँ अपने समकालीनों के रूप में कुछ साहित्यिक व्यक्तियों की ही चर्चा नहीं की है, बल्कि कुछ ग़ैर-साहित्यिक व्यक्तियों को भी गहरी आत्मीयता से उकेरा है। संग्रह के इस वैशिष्ट्य को परसाई जी ने स्वयं अपने ख़ास अन्दाज़ में इस प्रकार रेखांकित किया है—‘मेरे समकालीन’ जो यह लेख और चरित्रमाला लिखने की योजना है, तो सवाल है, मेरे समकालीन कौन? क्या सिर्फ़ लेखक? डॉक्टर के समकालीन डॉक्टर और चमार के समकालीन चमार? इसी तरह लेखक के समकालीन क्या सिर्फ़ लेखक? नहीं।...लेखकों, बुद्धिजीवी मित्रों के सिवा ये ‘छोटे’ कहलानेवाले लोग भी मेरे समकालीन हैं। मैं इन पर भी लिखूँगा।
फिर भी जिन जाने-अनजाने साहित्यिकों का उन्होंने यहाँ स्मरण किया है, वे हैं—श्रीकान्त वर्मा, केशव पाठक, प्रभात कुमार त्रिपाठी ‘प्रभात’, ब्रजकिशोर चतुर्वेदी, रामविलास शर्मा, शमशेर बहादुर सिंह, नामवर सिंह, माखनलाल चतुर्वेदी और सोमदत्त। इनके अतिरिक्त ‘मेरे समकालीन’ शीर्षक लेख में परसाई जी ने कुछ और साहित्यिकों को भी प्रसंगत: याद किया है।
वस्तुत: यह कृति परसाई सरीखे रचनाकार के गम्भीर रचनात्मक सरोकारों के साथ-साथ उनकी आत्मीय और सजग सामाजिकता का भी मूल्यवान साक्ष्य पेश करती है।
Manto : Ek Badnam Lekhak
- Author Name:
Vinod Bhatt
- Book Type:

- Description: उर्दू साहित्य में मंटो ही सबसे ज़्यादा बदनाम लेखक है। सबसे बड़ा गुनाह यह कि वह समय से पिचहत्तर साल पहले पैदा हुआ। साथ ही उसने समय से पहले मरकर हिसाब बराबर कर दिया। उस समय उसने जो कुछ लिखा, वह अगर आज लिखा होता तो उसकी एक भी कहानी पर अश्लीलता का मुक़दमा नहीं चला होता। उसमें भरपूर आत्मविश्वास था। वो जो कुछ भी लिखता, जैसे सुप्रीम कोर्ट का आख़िरी फ़ैसला। कोई चुनौती दे तो वो सुना देता। उसकी कहानियों में वेश्याओं के दलाल पात्रों के वर्णन के बारे में किसी ने मंटो से कहा— ‘रेडियो के दलाल जैसे आप बनाते हैं, वैसे नहीं होते।’ मंटो ने तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए कहा—‘वो दलाल खुशिया मैं हूँ।’...और यह जानकर हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार देवेन्द्र सत्यार्थी ने निःश्वास छोड़ते हुए कहा—‘काश मैं खुशिया होता...।’ मंटो की निजी पसन्द-नापसन्द अत्यन्त तीव्र होती थी। मृत व्यक्ति की बस तारीफ़ ही की जानी चाहिए, मंटो ऐसा नहीं मानता था। उसका एक विचार-प्रेरक कथन है—ऐसी दुनिया, ऐसे समाज पर मैं हज़ार-हज़ार लानत भेजता हूँ, जहाँ ऐसी प्रथा है कि मरने के बाद हर व्यक्ति का चरित्र और उसका व्यक्तित्व लांड्री में भेजा जाए, जहाँ से धुलकर, साफ़-सुथरा होकर वह बाहर आता है और उसे फ़रिश्तों की क़तार में खूँटी पर टाँग दिया जाता है।
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