Maharishi Dayanand

Maharishi Dayanand

Authors(s):

Yaduvansh Sahay

Language:

Hindi

Pages:

348

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

696 mins

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Book Description

महर्षि दयानन्द के सामने बड़ा सवाल था कि भारतीय संस्कृति के परस्पर-विरोधी तत्त्वों का समाधान किस प्रकार हो। उन्होंने देखा कि एक ओर जहाँ इस संस्कृति में मानव-जीवन और समाज के उच्चतम मूल्यों की रचनाशीलता परिलक्षित होती है, वहीं दूसरी ओर उसमें मानवता-विरोधी, समाज के शोषण को समर्थन देनेवाले, अन्धविश्वासों का पोषण करनेवाले विचार भी पाए जाते हैं। अतः उनके मन को उद्वेलित करनेवाली बात यह थी कि हमारी सांस्कृतिक मूल्य-दृष्टि की प्रामाणिकता क्या है? सत्य के लिए, मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए प्रामाणिकता की आवश्यकता क्या है?</p> <p>गांधी को अपने सत्य के लिए किसी धर्म-विशेष के ग्रन्थ की प्रामाणिकता की आवश्यकता नहीं हुई। लेकिन दयानन्द के युग में पश्चिमी संस्कृति की बड़ी आक्रामक चुनौती थी। स्वतः यूरोप में 19वीं शती से विज्ञान और नए मानववाद के प्रभाव से मध्ययुगीन धर्म की उपेक्षा की जा रही थी, और मध्ययुगीन आस्था के स्थान पर बुद्धि और तर्क का आग्रह बढ़ा था; परन्तु भारत में यूरोप के मध्ययुगीन धर्म को विज्ञान और मानववाद के साथ आधुनिक कहकर रखा जा रहा था। धर्म को अपने प्रभाव को बढ़ाने और सत्ता को स्थायी बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा था। अतः भारतीय संस्कृति की ओर से इस चुनौती को स्वीकार करने में भारतीय अध्यात्म के वैज्ञानिक तथा मानवतावादी स्वरूप की स्थापना आवश्यक थी। फिर भारतीय अध्यात्म को इस रूप में विवेचित करने के लिए आधार-रूप प्रामाणिकता की अपेक्षा थी और इस दिशा में महर्षि दयानन्द ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई। यह पुस्तक हमें उसकी पूरी विचार-यात्रा से परिचित कराती है और उनके प्रेरणादायी जीवन के अहम पहलुओं से भी अवगत कराती है।

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