Ateet Ka Chehra
Author:
Jabir HusainPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
जाबिर हुसेन अपनी डायरी के इन पन्नों को ‘बेख़ाब तहरीरें’ का नाम देते हैं। वो इन्हें अपने ‘वसीयतनामे का आख़िरी बाब’ भी कहते हैं। ये तहरीरें उनकी डायरी में दर्ज इबारतें हैं। इबारतें, जो समय की रेत पर अनुभूतियों की एक व्यापक दुनिया उकेरती हैं। इबारतें, जो किसी रचनाकार की क़लम को उसकी ज़िन्दगी के तल्ख़ आयामों से दूर ले जाती हैं। खुले आकाश तले, लम्बे, ऊँचे पेड़ों के अन्तहीन सिलसिलों की अजनबी अपनाइयत की ओर, जिससे निकलनेवाली रौशनी की किरणें उसे अपने जिस्म की गहराइयों में उतरती महसूस होती हैं। किरणें, जो उसे आत्मसम्मान और वफ़ादारी के साथ ज़िन्दा रहने का हौसला देती हैं।</p>
<p>जाबिर हुसेन अपनी रचनाओं में किसी काल्पनिक समाज की अच्छाइयाँ नहीं उभारते। वो अपने आस-पास के किरदारों, देखे-समझे, अनुभव की तपिश में परखे, लोगों की बाबत लिखते हैं। उनके सामाजिक सरोकार उनकी तमाम तहरीरों से बख़ूबी झलकते हैं। इनसानी रिश्तों के बीच पैदा होनेवाली दरारें, रंग और नस्ल की पहचान, सत्ता के औजार के रूप में पुलिस का इस्तेमाल, जैसी कुछ सच्चाइयों से जाबिर हुसेन अपनी तहरीरों का शिल्प तैयार करते हैं। शिल्प, जो डायरी की सामान्य परिभाषा से कहीं अलग है। और जो अपने प्रतीक और बिम्ब के कारण मर्मस्पर्शी, बल्कि रोमांचकारी बन जाता है। इस शिल्प में ज़िन्दगी की उदासियाँ भी विश्वास का संकेत बनकर उभरती हैं। तो फिर जाबिर हुसेन की ये तहरीरें उनके ‘बेख़ाब वसीयतनामे’ का आख़िरी बाब कैसे हैं? अतीत का चेहरा इस सवाल की परतें खोलता है।
ISBN: 9788126701636
Pages: 228
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘हम हशमत’ के पहले भाग में जो लेखक-गुच्छा प्रस्तुत किया गया था उसमें थे निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, कृष्ण बलदेव वैद, अमजद भट्टी, महेन्द्र भल्ला, गोविन्द मिश्र, मनोहर श्याम जोशी, नागार्जुन, शीला संधू, नितिन सेठी, रमेश पटेरिया, सुधीर पंत, मियाँ नसीरुद्दीन और सरदार जग्गा सिंह।
हिन्दी के सुधी पाठकों और आलोचकों ने ‘हम हशमत’ को संस्मरण विधा में मील का पत्थर माना था। ‘हम हशमत’ की विशेषता है तटस्थता। कृष्णा सोबती के भीतर पुख़्तगी से जमे ‘हशमत’ की सोच और उसके तेवर विलक्षण रूप से एक साथ दिलचस्प और गम्भीर हैं। नज़रिया ऐसा कि एक समय को साथ-साथ जीने के रिश्ते को निकटता से देखे और परिचय की दूरी को पाठ की बुनत और बनावट जज़्ब कर ले। ‘हशमत’ की औपचारिक निगाह में दोस्तों के लिए आदर है, जिज्ञासा है, जासूसी नहीं। यही निष्पक्षता नए-पुराने परिचय को घनत्व और लचक देती है और पाठ में साहित्यिक निकटता की दूरी को भी बरकरार रखती है।
‘हम हशमत’ हमारे समकालीन जीवन-फलक पर एक लम्बे आख्यान का प्रतिबिम्ब है। इसमें हर चित्र घटना है और हर चेहरा कथानायक। ‘हशमत’ की जीवन्तता और भाषायी चित्रात्मकता उन्हें कालजयी मुखड़े के स्थापत्य में स्थित कर देती है।
Che Guevara : Ek Jeevani
- Author Name:
V.K. Singh
- Book Type:

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Description:
चे को किसी ‘महामानव’ या ‘मसीहा’ के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए। चे अपनी कमियों, अच्छाइयों, शक्तियों, कमज़ोरियों के साथ पूरी सम्पूर्णता में उस समाज के मनुष्य का, जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का न तो अस्तित्व हो और न ही सम्भावना, प्रतिनिधित्व करते हैं। इस महागाथा के सात सोपान हैं ‘बचपन के दिन’ में अर्जेन्टीना के उस ज़माने के सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में एक ह्रासमान बुर्जुआ अभिजात परिवार में जन्म लेने से लेकर किशोरावस्था को पार करते हुए जवानी की दहलीज़ तक पहुँचने की दास्तान है। ‘उत्तर की खोज में दक्षिण की राह’ अपने से काफ़ी बड़ी उम्र के मित्र के साथ खटारा मोटरसाइकिल पर दुनिया-जहान को देखने-समझने निकल पड़ी जवानी की दहलीज़ चढ़ते एक किशोर की कहानी है। ‘एक बार फिर सडक़ पर’ मार्क्सवादी साहित्य के अध्येता नौजवान की डॉक्टरी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद अपनी ख़ुद की तलाश में एक बार फिर निकल पड़ने की कहानी है। ‘क्यूबा क्रान्ति की दास्तान’ गुरिल्ला दस्ते के डॉक्टर से गुरिल्ला लड़ाका, गुरिल्ला सेना कमांडेंट, क्यूबा क्रान्ति के विजयी कमांडर और समाजवादी क्यूबाई समाज के नवनिर्माण की मुहिम के सबसे दक्ष नायक बनने की कहानी है। ‘क्रान्तिकारी अन्तरराष्ट्रीयता के कार्यभार’ एक बार फिर चे को सब कुछ छोडक़र अन्तरराष्ट्रीय मुक्ति-संघर्ष में लहू और बारूद की राह पकड़ने को मजबूर करते हैं। ‘शहादत की राह पर’ चे के बोलिवियाई अभियान के अद्भुत-अकल्पनीय शौर्य की दास्तान है। ‘उत्तरगाथा’ गिरफ़्तारी के बाद अमेरिकी-बोलिवियाई जल्लाद मंडली के हाथों चे की हत्या और उनके दुनिया के मुक्ति-संघर्ष के प्रतीक बन जाने की कहानी है।
चे के अनन्यतम साथी फिदेल ने बिलकुल सही कहा कि चे के बारे में जो कुछ कहा गया, लिखा गया और जो कुछ कहा जाएगा, लिखा जाएगा या जो कहा जा सकता है और लिखा जा सकता है, चे उससे कहीं बढ़कर है।
Lohia : Ek Pramanik Jivani
- Author Name:
Omkar Sharad
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- Description: डॉ. लोहिया के चालीस साल के राजनीतिक जीवन में कभी उन्हें सही मायने में नहीं समझा गया। जब देश ने उन्हें समझा, लोगों की उनके प्रति चाह बढ़ी और उनकी ओर आशा की निगाहों से देखना शुरू किया तो अचानक ही वे चले गए। हाँ, जाते-जाते अपना महत्त्व लोगों के दिलों में जमा गए। लोहिया का महत्त्व! उन्हें गए इतना समय बीत गया, देश की राजनीति में कितना परिवर्तन आ गया, फिर भी आज नए सिरे से लोहिया की ज़रूरत महसूस की जा रही है। यह तो भावी इतिहास ही सिद्ध करेगा कि देश में आए आज के परिवर्तन में लोहिया की क्या भूमिका रही है। लगता है कि लोहिया ऐसे इतिहास-पुरुष हो गए हैं, जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, उनका महत्त्व बढ़ता जाएगा। किसी लेखक ने ठीक ही लिखा है—“डॉ. राममनोहर लोहिया गंगा की पावन धारा थे, जहाँ कोई भी बेहिचक डुबकी लगाकर मन और प्राण को ताज़ा कर सकता है।” एक हद तक यह बड़ी वास्तविक कल्पना है। सचमुच लोहिया जी गंगा की धारा ही थे—सदा वेग से बहते रहे, बिना एक क्षण भी रुके, ठहरे। जब तक गंगा की धारा पहाड़ों में भटकती, टकराती रही, किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब मैदानी ढाल पर आकर वह तीव्र गति से बहने लगी तो उसकी तरंगों, उसके वेग, उसके हाहाकार की ओर लोगों ने चकित होकर देखा, पर लोगों को मालूम न था कि उसका वेग इतना तीव्र कि समुद्र से मिलने में उसे अधिक समय न लगा। शायद उस वेगवती नदी को ख़ुद भी समुद्र के इतने पास होने का अन्दाज़ा न था। यह इस देश, समाज और आधुनिक राजनीति का दुर्भाग्य है कि वह महान चिन्तक इस संसार से इतनी जल्दी चला गया। यदि लोहिया कुछ वर्ष और ज़िन्दा रहते तो निश्चय ही सामाजिक चरित्र और समाज संगठन में कुछ नए मोड़ आते। —ओंकार शरद
Milkha Singh
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Smriti Chitra
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Description:
“संस्मरण में स्मृति का सामंजस्यपूर्ण पुनः अवतरण है। अतः इसमें हमारी मानसिक क्रियाएँ अधिक सक्रिय होकर ही स्मृति के आधारों से हमें एक आत्मीय सम्बन्ध में जोड़ती हैं।
“यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि अतीत की दुःखद स्मृतियाँ भी पुनर्जीवन पाकर सुखद अनुभूति का कारण बन जाती हैं। अतीत-कथाएँ इसी से नित्य रसमयी हैं। स्मृति के आधार जब समय का दीर्घ व्यवधान पार कर लौटते हैं, तब हमें मित्र-मिलन की विस्मयमयी सुखद अनुभूति होती है।
“संस्मरण में हम अपनी स्मृति के आधारों पर से समय की धूल पोंछ-पोंछकर उन्हें अपने मनोजगत के निभृत कक्ष में बैठाकर उनके साथ जीवित रहते हैं और अपने आत्मीय सम्बन्धों को पुनः जीवित करते हैं। इस स्मृति-मिलन में मानो हमारा मन बार-बार दोहराता है, हमें आज भी तुम्हारा अभाव है।
“मेरे संस्मरण उन स्मरणीयों के स्मरण हैं, जिनके अभाव की मुझे तीव्र अनुभूति होती है, चाहे वे मनुष्य हों चाहे पशु-पक्षी।”
—महादेवी
(भूमिका से)।
Hundred Petalled Lotus
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Gadiyaram Ramakrishna Sarma +1
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- Description: This book is English translation by M V Chalapathi Rao of Gadiyaram Ramakrishna Sarma's Sahitya akademi award winning Telugu Autobiography,Satapatramu, Sahitya Akademi.
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