Hum Hushmat : Vol. 4
Author:
Krishna SobtiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
‘हम हशमत’ का यह चौथा भाग है। कृष्णा सोबती ने ‘हशमत’ को सिर्फ़ एक उपनाम की तरह ग्रहण नहीं किया था, बल्कि वह अपने आप में एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व है। कृष्णा जी ने स्वयं कहा है कि जब वे ‘हशमत’ के रूप में लिखती हैं, तो न सिर्फ़ उनकी भाषा, और शब्द-चयन कुछ अलग हो जाते हैं, उनका हस्तलेख तक कुछ और हो जाता है। ‘हशमत’ का विषय उनके समकालीनों, साथी लेखकों के अलावा गोष्ठियों, पार्टियों में हुए अनुभव और समसामयिक मुद्दों पर उनकी प्रतिक्रियाएँ होती हैं।</p>
<p>‘हम हशमत’ के इस भाग में राजेन्द्र यादव और असद जैदी पर उनके आलेखों के अलावा इस समय के कुछ विवादों पर उनकी प्रतिक्रियाओं को भी लिया गया है। साहित्य, लेखक की अस्मिता, और संस्कृति से सम्बन्धित उनके कुछ पठनीय आलेख भी यहाँ हैं। देश के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक पर्यावरण से कृष्णा जी इधर बहुत क्षुब्ध और निराश रही हैं, लोकतंत्र के भविष्य की चिन्ता उन्हें बार-बार सताती रही है। इसकी छवियाँ इस सामग्री में बार-बार सामने आएँगी। भाषा को लेकर ‘सारिका’ में प्रकाशित उनकी एक प्रतिक्रिया विशेष तौर पर पढ़ी जानी चाहिए। इसमें उन्होंने अत्यन्त स्पष्टता से बोलियों, भाषा और प्रान्तीय बोलियों के अन्तर्सम्बन्धों पर अपनी बात कही है।
ISBN: 9789388753364
Pages: 163
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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ज़ाकिर साहब के जीवन के अनेक पहलुओं को उजागर करनेवाली पुस्तक : ‘ज़ाकिर साहब की कहानी : उनकी बेटी की ज़ुबानी।’
लेखिका ने ज़ाकिर साहब को बहुत निकट से देखा है और उनके अन्तरंग जीवन को बड़े आदर के साथ परखा है।
प्रस्तुत पुस्तक में ज़ाकिर साहब की जीवनी प्रारम्भ से लेकर अन्त तक दी गई है। उनकी ज़िन्दगी के अनेक उतार-चढ़ाव को मार्मिक स्पर्श दिया गया है। जहाँ इसमें ज़ाकिर साहब की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है, वहीं उनके कुछ महत्त्वपूर्ण संस्मरणों को भी रेखांकित किया गया है, जिनके माध्यम से ज़ाकिर साहब का व्यक्तित्व अपनी सम्पूर्ण आभा के साथ प्रस्फुटित होता है।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी ख़ूबी है रोचकता के साथ इसकी प्रस्तुति। कहने का ढंग इतना निराला कि पढ़ते ही बनती है। हर आयु का व्यक्ति इसको पढ़कर ज़रूर आनन्द ले सकता है। किशोरों के लिए तो यह विशेष रूप से उपयोगी है। यह पुस्तक निश्चित रूप से उन्हें बहुत कुछ सोचने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा के साथ-साथ देश का अच्छा और सच्चा नागरिक बनने की सूझबूझ, व्यापक उदार दृष्टि और राष्ट्रप्रेम प्रदान करेगी।
J.N.U. Mein Namvar Singh
- Author Name:
Suman Keshari
- Book Type:

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Description:
‘जे.एन.यू. में नामवर सिंह’ दरअसल स्वयं जे.एन.यू. वासियों की अपनी गाथा है—अपने को उस स्वप्नदर्शी विश्वविद्यालय से जोड़ने की—उसे निरन्तर सुरक्षित रखने और बनाते जाने की अपनी दास्तान...
इसमें पुरानी यादें भी हैं, कसक भी है और ख़ुशी भी। ख़ुशी उस यूनिवर्सिटी से जुड़ने की जो न केवल अध्ययन—अध्यापन और शोध में निरन्तर नए प्रयोग कर रही थी, बल्कि जो अपनी
ईंट-कंकरीट की इमारतों के प्रकृति के साथ संयोजन में भी अनूठापन रच रही थी।
जिस समय जे.एन.यू. की इमारतें अरावली की पहाड़ियों पर उभर रही थीं, उस समय यूँ तो पर्यावरण की रक्षा पर इतना बल न था—पर वह यूनिवर्सिटी ही क्या जो भविष्योन्मुखी न हो—जो परम्परा से जुड़ती और उससे संवाद न करती हो—जो सर्वहितकारी और जीवन्त न हो...
तो जे.एन.यू. स्मृति भी है और प्रकृति भी...
Swatantrata Senani Krantikari Baikunth Sukul Ka Mukadama
- Author Name:
Nandkishore Sukla
- Book Type:

- Description: बिहार के ग्राम जलालपुर, जिला मुजफ्फरपुर (वर्तमान वैशाली) में जन्मे बैकुंठ सुकुल उन स्वतंत्रता सेनानियों में थे, जो गुमनामी के अंधेरों में रहे हैं। उन्हें मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश ने भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के प्रसिद्ध मुकदमे के इकबालिया गवाह फणीन्द्रनाथ घोष की हत्या के आरोप में फाँसी की सजा सुनाई थी। बंगाल और लाहौर सहित विभिन्न जगहों के 91 सरकारी गवाहों की सुनवाई में सुकुल जी के द्वारा 50 बचाव पक्ष के गवाहों को पेश करने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया गया। बैकुंठ सुकुल को सजा सुनाते समय सत्र न्यायाधीश उन तीन निर्णायकों से असहमत रहा जिन्होंने बैकुंठ सुकुल को दोषी नहीं पाया बल्कि बहुमत छोड़कर एक निर्णायक से सहमत रहते हुए फैसला सुनाया गया और 14 मई,1934 को बैकुंठ नाथ सुकुल को फाँसी दे दी गई। यह पुस्तक तत्कालीन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में शहीद बैकुंठ सुकुल के मुकदमे की कार्यवाहियों को प्रामाणिकता से प्रस्तुत करती है। 24 फरवरी, 1934 का वह पत्र भी इस पुस्तक में शामिल में किया गया है, जो मुजफ्फरपुर के सत्र न्यायाधीश ने पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को लिखा था। उस पत्र में स्पष्ट किया गया था कि ‘बैकुंठ सुकुल द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष बचाव वकील खड़ा करने का कोई अर्थ नहीं है।’ साथ ही यहाँ ‘लाहौर षड्यंत्र’ के मुकदमे के फैसले से जुड़े दस्तावेज भी हैं जो सुखदेव और उनके साथियों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किया गया था। इन दस्तावेजों के अतिरिक्त इस पुस्तक में जहाँ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन गतिविधियों का खुलासा किया गया है, वहीं बिहार की राष्ट्रीय राजनीति में भूमि,जातियों, समुदाय और शिक्षा की सापेक्ष भूमिका पर प्रकाश भी डाला गया है।
Rahul Sankrityayan : Anaatm Bechaini Ka Yayavar
- Author Name:
Ashok Kumar Pandey
- Book Type:

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Description:
हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन की वैचारिक दृढ़ता, लेखन और घुमक्कड़ी के तमाम क़िस्से सुनते-पढ़ते हुए कई पीढ़ियों ने लिखना सीखा। जीवन में वामपंथी स्टैंड लेना हो या बौद्ध धर्म की लुप्तप्राय पांडुलिपियों के लिए दुनिया भर की ख़ाक छानते हुए भटकना; हमारे सामने एक ऐसा कठिन व्यक्तित्व उभर कर आता है जिसकी मेहनत के आगे नतमस्तक ही हुआ जा सकता है। हिन्दी में ख़ूब सेलीब्रेट किए जाते हुए अक्सर ऐसी ही प्रतिभाओं को हम आलोचनात्मक नज़रिए से नहीं देख पाते। यह न सिर्फ़ उस व्यक्ति के प्रति अन्याय है बल्कि उसके बौद्धिक अवदान को इतिहास में ठीक-ठीक लोकेट न कर पाने की एक ऐसी असमर्थता भी है जो भावी पीढ़ियों के प्रति एक अन्याय जैसा है।
अशोक कुमार पांडेय ने इस जीवनी में राहुल जी को उनकी बौद्धिक विकास यात्रा में समझने की कोशिश की है जो अक्सर बाहरी है और जहाँ निजी है वहाँ भी पॉलिटिकल के स्वर सुनने की चेतन कोशिश की है। राहुल जी ने आत्मकथा नहीं लिखी बल्कि जीवन-यात्रा लिखी है। उनके अपने लिखे में से और अन्य तमाम स्रोतों से जानकारियाँ खंगालते हुए राहुल जी का वह मुकम्मल व्यक्तित्व बनता है जिसकी हिन्दी साहित्य में सख़्त ज़रूरत थी। हिन्दी का पाठक वर्ग स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों और वंचित अस्मिताओं के शामिल होने से एक बड़ा वर्ग बन चुका है, यह आलोचनात्मक जीवनी इन सबके हस्तक्षेप से उभरती नई दृष्टि से पाठ के नए आयाम रचती है।
इतिहास की पुनर्रचना की राह में भी अशोक कुमार पांडेय का यह प्रयास नई राहें खोलेगा और नए सवाल रचेगा।
Shabdon Ke Aalok Mein
- Author Name:
Krishna Sobti
- Book Type:

- Description: ‘शब्दों के आलोक में’ एक पुरानी जन्म तारीख़ के नए-पुराने मुखड़ों और कार्यकारी उभरते पाठ के रचनात्मक टुकड़ों की बंदिश है जिसे एक जिल्द में सँजोया गया है। पाठ न नएपन से आक्रान्त है और न पुरानेपन से आतंकित। जीने का एक ऐसा मौसम इसके आर-पार फैला है जो न लेखक की कार्य-क्षमताओं पर हावी है और न साहित्यिक मुखौटों से भयभीत। ट्रैक पर दौड़ते हुए न किसी को पछाड़ने की हसरत और न किसी से पिछड़ने का डर।
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