Globe Ke Bahar Ladki

Globe Ke Bahar Ladki

Authors(s):

Pratyaksha

Language:

Hindi

Pages:

160

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

320 mins

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Book Description

प्रत्यक्षा की कहानियों में जितनी कविता होती है, कविताओं में उतनी ही कहानी भी होती है। विधाओं का पारम्‍परिक अनुशासन तोड़कर वे एक ऐसी अभिव्यक्ति रचती हैं जिसमें कविता की तरलता भी होती है और गद्य की गहनता भी। यह अनुशासन वे किसी शौक या दिखावे के लिए नहीं, कुछ ऐसा कह पाने के लिए तोड़ती हैं जिसे किसी एक विधा में ठीक-ठीक कह पाना सम्‍भव नहीं। हिन्‍दी में गद्य कविताओं का सिलसिला पुराना है, लेकिन ज़्यादातर कवियों के यहाँ वे एक शौकिया विचलन की तरह दिखती हैं, जबकि प्रत्यक्षा का जैसे घर ही इन्हीं में बसता है। उनका अतीत, उनका वर्तमान, उनके रिश्ते-नाते, उनके जिए हुए दिन, उनके किए हुए सफ़र, सफ़र में मिले दोस्त, उस दौरान लगी प्यास, कहीं सुना हुआ संगीत, माँ की याद—यह सब इन कविताओं में कुछ इस स्वाभाविकता से चले आते हैं जैसे लगता है कि रचना के स्थापत्य में इनकी जगह तो पहले से तय थी। फिर वह स्थापत्य भी इतना अनगढ़ है कि पढ़नेवाला क़दम-क़दम पर हैरान हो। प्रत्यक्षा की रचना के परिसर में घूमना एक ऐसे घर में घूमना है जिसमें दीवारें पारदर्शी हैं, जिसके आँगन में धरती-आसमान दोनों बसते हैं, जिसके कमरे अतीत और वर्तमान की कसी हुई रस्सी से बने हैं, जहाँ ढेर सारे लोग बिल्कुल अपनी ज़‍िन्‍दा गंध और आवाज़ों-पदचापों के साथ आते-जाते घूमते रहते हैं। हिन्‍दी की इस विलक्षण लेखिका की यह कृति इस मायने में भी विलक्षण है कि अपने पाठक को वह रचना का एक बिल्कुल नया आस्वाद सुलभ कराती है—जिससे गुजऱते हुए पाठक भी अपने-आप को बदला हुआ पाता है। यह वह तिलिस्मी मकान है जिससे निकलकर आप पाते हैं कि दुनिया आपके लिए कुछ और हो गई है। यह पुस्तक प्रत्यक्षा की रचनाशीलता का ही नहीं, हिन्‍दी लेखन का भी एक प्रस्थान बिन्‍दु है।    </p> <p>—प्रियदर्शन

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