Banjare Ki Chitthiyaan
Author:
Sumer Singh RathorePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
सुमेर सिंह राठौड़ रेत के समन्दर और अंधड़ में खेलकर बड़े हुए हैं। अपने रचनात्मक तनाव में वे उसी खिलाड़ी जज्बे से आगे बढ़ते दिखते हैं। जहाँ शब्द साथ नहीं होते, वहाँ सुमेर दृश्यों में अपनी बात कह गुज़रते हैं। जब विचारों की दौड़ लगती है, तब उनके शब्द आज़ाद परिन्दों की तरह तमाम बन्दिशों से होड़ लेते हैं।</p>
<p>कहने को 'बंजारे की चिट्ठियाँ' डायरी विधा की किताब है। लेकिन यह इस पीढ़ी की मन:स्थिति के एक ऐसे स्कैन रिपोर्ट की तरह है जो आने वाले समय का एक साहित्यिक दस्तावेज़ भी है। चाह-बिछोह, लाग-लपेट, सफलता-सार्थकता, विफलता-कशमकश—जो कुछ जीवन में है, वह सुमेर के लेखन में देखने को मिलता है।</p>
<p>खुरदुरी ज़िन्दगी का एक बेहद कोमल आख्यान है यह किताब; जिसे पढ़ना अपने किसी-न-किसी अक्स को भी देखने जैसा है।
ISBN: 9789392757341
Pages: 176
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Awarn Mahila Constable Ki Diary
- Author Name:
Neerja Madhav
- Book Type:

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Description:
उपन्यास के क्षेत्र में नीरजा माधव असाधारण सिद्धि-सम्पन्न लेखिका हैं। उनकी विचार-विदग्धता, भाव-प्रवणता, अनछुए विषयों का वैविध्य उन्हें अपने समय के अन्य रचनाकारों से अलग रेखांकित करता है। उनके एक-एक शब्द में एक संस्कृति, जीवन-शैली अथवा सुख-दु:ख की आकृति सिमटी होती है जिसे दृष्टि-ओझल करते ही कथा-सूत्र के छूट जाने का भय होता है। यहाँ पर वे उन लेखकों से बिलकुल भिन्न हैं जो एक ही दृश्य के लम्बे, उबाऊ और शब्दों के मकड़जाल में पाठकों को उलझाए रखने का व्यापार करते हैं। नीरजा माधव के उपन्यासों में अपने युग की व्यापक बेचैनी, वेदना और सार्थक प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति दिखलाई पड़ती है। दलित-विमर्श और स्त्री-विमर्श के प्रचलित मुहावरों से बिलकुल पृथक् वे अपना मुहावरा स्वयं गढ़ती हैं और इस प्रकार अपनी राह भी। कुछ क्षण के लिए शिराओं में झनझनाहट पैदा करनेवाला साहित्य देने के पक्ष में वे कभी नहीं रहीं। इस उपन्यास की भूमिका में भी वे लिखती हैं—‘साहित्य का लक्ष्य मनुष्य के भीतर प्रेम, संयम, समर्पण और त्याग की उदात्त भावनाओं को जाग्रत करना है। ऐसे में यदि साहित्यकार भी मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति को ही उत्तेजित करने का व्यापार करने लगेगा तो यह सृजन तो नहीं ही हुआ।’
एक अनछुए विषय पर लिखा गया अप्रतिम और पठनीय उपन्यास है : ‘अवर्ण महिला कान्स्टेबल की डायरी’।
आस्था पर हमलों और धार्मिक संघर्षों का इतिहास प्राचीन होते हुए भी नित नए विकृत रूपों में समाज को प्रभावित कर रहा है। ऐसे ही एक प्राचीन धार्मिक स्थल की सुरक्षा में लगी अवर्ण महिला कान्स्टेबल अपनी कर्तव्यनिष्ठा का निर्वहन करते हुए आसपास के परिवेश को अपनी पैनी दृष्टि से देखती है और इतिहास तथा वर्तमान की अपनी व्याख्या करती है। नायिकाप्रधान यह उपन्यास अतीत की विसंगतियों के साथ वर्तमान में भी जड़ें जमाए अनेक कुंठाओं एवं आग्रहों के साथ दलित-विमर्श के कई अनछुए पक्षों को रेखांकित करता चलता है।
Nelson Mandela - A Complete Biography
- Author Name:
Dr. Gaurav Gupta
- Book Type:

- Description: Nelson Mandela remains an icon politician who led the struggle to replace an apartheid regime in South Africa with a multiracial democracy. He is remembered not so much for being the country's first black President, but for being the first to have galvanize an entire country against colonial oppression. Mandela's life is a lesson to those who fear hardship. He showed nothing worthwhile can be achieved without facing and indeed, surmounting hardships in life. He himself took all the hardships in his stride and saw the struggle through until the oppressive forces were compelled to yield. His charisma, self. deprecating sense of humour and above all, lack of bitterness over the harth treatment he endured are a testament to his towering global appeal. He never tried to take revenge, not even against those who tortured him. This book is a humble effort to trace Nelson Mandela's life, from his childhood and years in jail to his rise as President. It will inspire readers to follow the ideals and values of life cherished by this icon.
Logaan
- Author Name:
Jabir Husain
- Book Type:

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Description:
ये वो दिन थे, जब नागभूषण पटनायक को फाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। और उन्होंने जनता के नाम एक क्रान्तिकारी ख़त लिखा था। इस ख़त की प्रतियाँ हमारे साथियों के बीच भी बँटी थीं और इस पर गम्भीर बहस का दौर चला था। उन चर्चाओं और बहस के दौरान ही गोविन्दपुर का एक बूढ़ा मुसहर बोल उठा था—‘हम आपकी बात नहीं समझ पाते, बाबू। देश-समाज में हमारी गिनती ही कहाँ है। सभ्यता और संस्कृति जैसे शब्द हमारे लिए अजनबी हैं। हम तो केवल इतना जानते-समझते हैं कि जिस पैला (बर्तन) में हमें मज़दूरी मिलती है, उसका आधा हिस्सा किसानों ने आटे से भर दिया है। पैला छोटा हो गया है। इससे दी जानेवाली मज़दूरी आधी हो जाती है। जो राज आप बनाना चाहते हैं, उसमें पैला का यह आटा खरोंच कर आप निकाल पाएँगे क्या—हमारे लिए तो यही सबसे बड़ा शोषण और अन्याय है। हम इसके अलावा और कोई बात कैसे समझें?’ बूढ़े मानकी माँझी की शराब के नशे में कही गई यह बात बे-असर नहीं थी। हम उसकी समझ और चेतना देखकर स्तब्ध रह गए थे। मानकी ने यह बात मुसहरी में अपने झोंपड़े के सामने पड़ी खाट पर बैठे-बैठे सहज भाव से कह दी थी। मगर हमारे चेहरे पर एक बड़ा सवालिया निशान उभर आया था।
कुछ ऐसी ही पंक्तियाँ बिखरी पड़ी हैं जाबिर हुसेन की इस डायरी के इन पन्नों पर जो आपको इन पन्नों से गुज़रने के लिए आमंत्रित करती हैं।
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